thief (satire) in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | चोर (व्यंग्य )

Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

चोर (व्यंग्य )

चोर (व्यंग्य )

नोखेलाल जी रोज ही शाम को टहलने निकलते हैं । कभी-कभी हम से उनकी मुलाकात हो जाती है । साठ की उम्र को पार करते अनोखेलाल अपने नाम को चरितार्थ करते हैं । वे आज भी विषयों को समझने में अपना सर खापाते हैं यह और बात है कि उन्हें दूसरे दिन उस विषय के बारे में उतना ही ज्ञान रह जाता है, जितना पहले दिन था । अचानक आज हमारी मुलाकात नोखेलाल जी से हो गई तमाम औपचारिक संवादों के बाद नोखेलाल ने पूछा "यह काला धन क्या होता है ?" हम अचकचा गए वे हमारे ज्ञान की परीक्षा ले रहे हैं या कोई और बात है ? हम शब्द खोजने लगे वे फिर कहने लगे "धन तो धन होता है ,उसमें काला और गोरा कैसा ?" उन्हें उत्तर देने के लिए हमें अपने शब्द और ज्ञान भंडार में कमी का एहसास होने लगा हमने कहा "सरकार की चोरी से कमाया गया पैसा काला धन होता है ।" अनोखेलाल बोले "ऐसी बात है तो पटवारी ,चपरासी और बाबू जो पैसे रिश्वत में लेते हैं वह भी तो काला धन ही है । मैंने "हां" में मुंडी हिला दी।वे बोले "फिर तो कलेक्टर से लेकर चपरासी तक सब के पास काला धन जरूर होगा । मैंने फिर "हां" में मुंडी हिलाई। वे बोले जा रहे थे "अच्छा मिश्रा जी..... सच बोलना ....क्या आपने कभी काला धन नहीं लिया ?" मैं खीझ गया वैसे भी सच हमेशा ही खिझाने वाला होता है । मैं बोला "आप भी ना... .!" वे बोले "लो भाई अपनी बारी आई तो खींझ गए। इसको कहते हैं पर उपदेश कुशल बहुतेरे । " मैं बोला "मुझे आप सरे राह क्यों बेइज्जत करना चाहते हो ? " वे हंस दिए और बोले "वाह भाई वाह आपको अपने थोड़े से काले धन की बड़ी चिंता है। चोर तो आप भी हैं। उतने ही बड़े जिसने 627 लोग । नोखलाल जी की बात से मुझे लगा कि वह बोल तो सही रहे हैं 121 करोड़ लोगों के बीच में बहुत सा धन सफेद और काला होगा। यही धन छोटी नालियों से बहता हुआ नदियों से मिलता है और अंत में किसी विदेशी बैंक रूपी महासागर में समा जाता है । मुझे लगने लगा कि किसी अधिकारी और कर्मचारी की शान और शौकत का बड़ा हिस्सा काले धन का ही होता है । नेता मंत्रियों का तो महल ही काले धन की बुनियाद पर खड़ा होता है
अनोखेलाल बोले " बुरा मान गए क्या ?" हम झट से बोले "नहीं तो !" नोखेलाल बोले "मान भी जाओ तो हमारी बला से । अरे भाई सब इतने बड़े चोरों को गाली बकते हैं लेकिन उन्हीं के लिए थैली लेकर तैयार रहते हैं ।" अब मैंने पूछा " हमारे चोर होने से हमारा उनसे पूछने का अधिकार नहीं रहता क्या?" नोखेलाल बोले "चोर चोर मौसेरे भाई . ‌...अरे आप उनसे क्यों नहीं पूछ सकते ? आपको पूछना चाहिए .....भाई इतनी बड़ी चोरी कैसे की हमें भी बताओ । जब हमें भी मौका मिलेगा हम भी करेंगे ।" मुझे लगने लगा वह मेरा मजाक उड़ा रहे हैं मैं बोला "यह क्या बात हुई?" वे बोले "यही तो बात है ,वरना देश में चोरियों का स्तर रोज - रोज न बढ़ता अब तो जो चोर पकड़ते हैं, हजारों करोड़ के होते हैं ।बस थोड़ा सीखा, मौका देखा और बड़ी में चोरी में लगे गए । " मैं बोला "आज मेरी बहुत बेज्जती कर रहे हैं।" उन्होंने हंस जवाब दिया "लो भाई चोर को चोर कहा तो बुरा मान गए । यह तो छोटी चोरी है और बड़ा चोर होता तो शायद आज मैं घर वापस न जा पाता ।"
मैं उनकी बातों को उनकी बातों से उकताने लगा था । वे मजा लेने के मूड में थे । मैंने यूं हीं पूछा " क्या काला धन कभी वापस आएगा?" अनोखेलाल बोले "भूल जाओ काले कोट के सिपाही उसे कभी देश में ना आने देंगे पीछे से धोती टोपी की टीम भी उनकी मदद करेंगी। मेरी तो छोड़ दो तुम्हारे पांच साल के बच्चे को भी अपने जीवन में काला धन वापस आने का समाचार नहीं मिलेगा।" मैं उनके चोर वाले संबोधन से आहत तो था ही । बात साफ करना चाहता था । मैंने याचना की " आप मुझे इतना जलील क्यों कर रहे थे ?" अनोखेलाल बोले "अरे लेखक तू तो माध्यम है । तू लिखेगा जरूर और जब लिखेगा तो तेरी जगह तेरा पाठक होगा । अपने किसी भी पाठक से भी यही पूछ कर देखना । हर तरफ तो चोर फैले हैं। उतना विदेशों में काला धन नहीं है जितना देश में । तू बुरा ना मानना तू तो प्रतीक है । चोर शब्द तो समाज तक पहुंचना चाहिए ।" मैंने उन्हें क्या कहता और आपसे भी क्या कहूं ?

आलोक मिश्रा "मनमौजी"