Daily Routine - True Respect of Time in Hindi Human Science by Kamal Bhansali books and stories PDF | दैनिक दिनचर्या-समय का सही सम्मान

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दैनिक दिनचर्या-समय का सही सम्मान

समय" शब्द कितना सीधा सादा, परन्तु कितना महत्वकांक्षी, अपने पल, पल की कीमत मांगता है। कहता ही रहता है, कि मेरा उपयोग करो, नहीं तो मैं वापस नहीं आने वाला। सच भी यही है, इसका सही उपयोग ही इसकी 'कीमत' है।

आज से पहले समय की कमी की चर्चा शायद लोग कम करते थे, क्यों की आर्थिक जरूरतें कम थी।
साधनों को विकसित करने के लिए भी, जरूरत के ज्ञान को अर्जित करने के लिए भी, संयमित होने का उन्हें अभ्यास नियमित करना पड़ता, क्योंकि हाथ से साधन विकसित करने में समय लगता था। इसलिए दिनचर्या उनके जीवन का एक हिस्सा था।

आज मशीनों को मशीन बनाती है, आदमी तो सिर्फ दिमाग लगाता है | सच भी यही है की "आज आदमी की नहीं उसके दिमाग की कीमत है"।
समय की कीमत जब से इन्सान ने पहचाननी शुरु की तब से वो कहने लगा " Time is money, Time is precious , सही भी है | पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लोगों को समय की पहचान देने के लिये " आराम हराम है" का नारा दिया।

आज समय के प्रति चेतना बढ़ गई और प्राय: हम लोग़ कहते ही रहते की "समय नहीं मिला" या " अभी मेरे पास समय नहीं हैं"। वास्तिवकता मे, ऐसे कहने वालों की कहीं अपनी कमजोरी तो नहीं ? यह चिन्तन की बात है, आज हम "समय व्यवस्था" का मूल्यांकन कर लेना चाहिये।

सबसे पहले हम 'समय' की कमी के जो प्रमुख कारण हो सकते, उन्हें ही तलाशते है। सबसे पहले हमारी अपनी दिनचर्या को ही क्यों न ले, क्योंकि समय का सदुपयोग या दुरुपयोग करने के लिए हमारे पास एक दिन में चौबीस घंटे होते है और एक साल में तीन सौ पैसंठ दिन तथा हमारे पूरे जीवन काल में (अगर एक सौ वर्ष की जिन्दगी माने तों)मात्र छत्तीस हजार पांच सौ दिन यानि आठ लाख छिन्त्र हजार घंटे, सिर्फ जीने के लिए है। मान लेते है कुछ समय के लिए की हम इतना ही जीयेंगे, हालांकि कोई बिड़ला ही इस मुकाम तक पंहुचता है, हो सकता है, उनकी दिनचर्या और उम्र की रेखा मजबूत होती होगी। हाँ, तो हमें एक दिन में कमसे कम आठ घंटे सोने के बाद देने होंगे क्योंकि एक स्वस्थ आदमी के लिए इतना समय सोना जरूरी है। नित्यकर्म,सोना, खाना आदि के लिए दो घंटे तो दिन भर में, हिसाब से लग जायेंगे। यहां, अगर हम और दुरुपयोग किया समय नहीं गिने तो भी पूरे जीवन काल में हमारे पास बचते हैं, सिर्फ पांच लाख ग्यारह हजार घंटे यानी लगभग इक्कीस हजार दो सौ एकानवे दिन, कितने गरीब है, हम समय के मामले में, हालांकि इतने कम समय में हमारी चाहतें करोड़ों अरबों रुपयों की होती है।

यह जरूरी नहीं था, हम इस तरह से इनको गिने, पर दिनचर्या की कीमत समझनी उतनी ही जरूरी लगी जितनी बाजार जाते समय अपने बटुए की होती। "समय"आज तक सभी के लिए अनमोल(बिना किसी मूल्य का )होता इसलिए इसके प्रति लापरवाही चलती, परन्तु अब समय की कीमत तय हो गई, और जो भी हमें अपनी सेवायें देता वो उसकी कीमत जरुर वसूलता है। सच यही है, की "अर्थ"ने "समय" को कीमती बना दिया है।

दोस्तों, क्या अब भी हमें अपनी दैनिक दिनचर्या की कीमत नहीं समझनी चाहिये ? क्या हमें सिर्फ आर्थिक उन्नति के हिसाब से अपनी दिनचर्या को बनानी
चाहीये ? क्या हमारी दिनचर्या बिना समय के मूल्यांकन रहित होनी चाहिये ? कई ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न हमें अपने आप से पूछने है, और कम समय में जीवन कैसे बेहतर बिताये, इस पर एक चिन्तन भरी नजर डालना, हमारा कर्तव्य बन जाता है।

सुबह उठना धर्म के अनुसार सही माना जाता है, सूर्य नमस्कार की प्रक्रिया योग भी स्वीकार करता हैं तथा विज्ञान भी मानता है, की सुबह की प्रथम धूप स्वास्थ्य के लिए खासकर चमड़ी के लिए लाभकारी है | कहते भी है, 'Early riser is early gainer' , जो लोग सुबह का सद उपयोग स्वास्थ्य तथा आत्मा के लिए करते है, उनके शरीर की ऊर्जा उनसे बेहतर होती, जो देरी से सोने और देरी से जागने के आदि हो जाते है | याद है जब स्कूल में पढ़ता, तो गुरूजी दिन भर का कार्य कर्म की एक समय सारिणी बना कर देते थे | उनका यही कहना था "अच्छी शुरुवात ही अच्छा परिणाम ला सकती है"।आज हम जो समय की कमी की बात कर रहे, वो कहीं हमारी समय व्यवस्था तकनीक की कमजोरी तो नहीं, ये स्वंय विवेचना की बात है। किसी लेखक ने कहा भी है "आपकी मंजिल की दुरी, जितनी आपकी अपनी योजना अधूरी," विवेचना की बात है।

हमारा मकसद, विवेचना का कदापि, यह नहीं है की जिन्दगी बिना समय का ध्यान रखे, नहीं गुजार सकते है। हमारा मकसद जीवन को तय समय में बेहतर ढंग से सजाना होता है। जिन्दगी में सब तरह के रंग लाने तो हमें अपना नजरिया समय के प्रति सकारत्मक चिन्तन से ही करना होगा। हमें जो चौबिस घंटे मिले उसमें धर्म, कर्म, परिवार, मानवता सभी का ध्यान रखकर ही बिताना होगा। तभी हम कह सकते है समय कितना ही कम क्यों न हो आज तो मै भरपूर जिया हूँ।

समय में दिन रात का महत्व कम नहीं आँका जाना चाहिए। रात को प्रकृति ने बड़ी सूक्ष्मता के साथ कोमलता से संजों कर बनाया है, उसमे आनन्द, आराम तथा शांति का समावेश किया है। दिन में कर्म और दर्शन के हिसाब से मानव को उसका इस दुनिया में अपना महत्व तय करने के लिए समय दिया गया हैं। आशा है, अर्थ तन्त्र के विकास तथा विज्ञान के प्रकाश के साथ हम अपनी दिनचर्या का संतुलन परिवार और मानव- प्रेम के आपसी सम्बन्धों की गरिमा अनुकूल ही करेंगे। समय की सीमा बढ़ाना हमारे लिये सभंव न हों पर उसके अंतर्गत ही हम भरपूर जीने की कोशिश अपनी पवित्र भावनाओं और सही कर्म के सानिध्य में जरुर कर सकते है।

समय न खराब होता, न ही अच्छा...हमारी सफलता और असफलता से उसका कोई लेना देना नहीं, वो तो निरंतर बहने वाली स्वच्छ नदी के प्रवाह की तरह है। उसका सही उपयोग ही हमारे जीवन का सही मूल्याकंन है। पलों में बंटकर भी "समय"अपनी सार्थकता का बोध कराता है।

अगर हमने, समय सारिणी या दैनिक कार्यक्रम बनाने का निश्चय किया या बनाते है, तो सुबह में कुछ समय अपनें इष्ट या भगवान की प्रार्थना का उसमे जरुर रखना चाहिए। एक आत्मविश्वास और भरी शुरुआत हो सकती है, हमारे स्वर्णिम दिन की।

एक प्रार्थना जो बचपन से आज तक हम सुनते आये है, हमारे दैनिक जीवन को सकारत्मक ऊर्जा प्रदान कर सकती है, उसे शायद हम सभी जानते है।
"ॐ"
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव।

चलते चलते .... कबीर दास जी इस दोहे को याद दिला देता, शायद सही समय के उपयोग का ज्ञान हमारे दिमाग मे सदा के लिए स्थापित हो जाये।
"काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होगी, बहुरी करेगा कब"।
लेखक ✍️ कमल भंसाली