DAIHIK CHAHAT - 9 in Hindi Fiction Stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | दैहिक चाहत - 9

Featured Books
Categories
Share

दैहिक चाहत - 9

उपन्‍यास भाग—९

दैहिक चाहत –९

आर. एन. सुनगरया,

देव के दिमाग में दफ़न, अपनी स्‍वर्गिय पत्‍नी के यादों का अम्‍बार ऐसा प्रगट हुआ कि देव को सॉंस लेने की फुरसत नहीं, निरन्‍तर बताये जा रहा है,……….उसकी तत्‍कालीन छबि एवं विशेषताऍं........’’तीज-त्‍यौहार, रस्‍म-रिवाज, मेहमान-नवाजी, मौहल्‍ले-बस्‍ती, पास-पड़ोस के सामूहिक कार्यकलाप या अन्‍य कोई काम इत्‍यादि की सम्‍पूर्ण तैयारी एवं परम्‍परागत तौर-तरीकों से सम्‍पन्‍न करना, उसे बाखूबी आता था। कहीं कोई मीन-मेख नहीं । किसी तरह की चिल्‍ला-चौंट नहीं, किसी से कोई बहस, कहा-सुनी या नाराजगी नहीं। कुछ भी अप्रिय स्थिति का कहीं कोई लेसमात्र भी संकेत नहीं । सभी कार्य पूर्ण मनोयोग और रीति-नीति के अनुसार सम्‍पन्‍न होते रहे हैं। सभी की जुबान पर उसकी प्रसन्‍नसा होती थी। किसी के घर-परिवार एवं कुटुम्‍ब शादी-विवाह, सामाजिक कार्यक्रम, सामूहिक कार्यों का आयोजन होता, तब मेरी पत्‍नी की खोज खबर शुरू हो जाती, कई-कई दिनों पहले से योजनाऍं बनना प्रारम्‍भ हो जातीं, जब तक कार्यक्रम पूर्ण सफलता पूर्वक सम्‍पन्‍न नहीं हो जाता तब तक अत्‍यन्‍त व्‍यस्‍तता रहती। मगर मेरा पूर्ण रूपेण ख्‍याल रखने में कोई कोताही नहीं होने देती। गज़ब की ऊर्जावान एवं प्रतिभाशाली थी, कि उसकी याद आते ही.......बहुत बैचेन और व्‍यथित हो उठता हूँ! काश......मेरा उम्र भर का साथ होता.....! लेकिन......। खेर! आज भी उसके लोकप्रियता के किस्‍से गूँजते हैं, वातावरण में........।‘’ देव चुप्‍प हो गया।

......शीला सोचने लगी देव के मन-मस्तिष्‍क एवं आत्‍मा पर पत्‍नी का बहुत ही गहरा प्रभाव अंकित है। जो अनुकूल अवस्‍था पा कर जीवन्‍त हो उठता है। वक्‍त-बे-वक्‍त देव को उद्दोलित करता रहेगा। वह यादों के अंधेरों में भटकता रहेगा। सुख-शॉंति से विरक्‍त होता रहेगा।

देव को इन स्‍वाभाविक यादों से छुटकारा दिलाना होगा। अत्‍याधिक प्रयास करते रहने होंगे। सर्वसामान्‍य प्रयास करते रहने होंगे। सर्वसामान्‍य तरीका तो यही हो सकता है कि ऐसी परिस्थिति ही निर्मित ना होने दी जाये कि वह अपने अतीत में मंडराने लगे। अत्‍यन्‍त व्‍यस्‍तता भी कारण हो सकता है, समस्‍या निवारण का। पिछला सब कुछ भूले रखने हेतु। हर वक्‍त ध्‍यान रखना होगा कि वह वर्तमान-भविष्‍य की ओर ही देखे-सोचे। लम्‍बे कालखण्‍ड का कालान्‍तर भी वजह हो सकता है, भूलने- विसरने हेतु।

शीला-देव तय नहीं कर पा रहे थे, कि छुट्टी का सदोपयोग कैसे किया जाय। एैकहरी दिनचर्या से ऊब एवं नीरसता ने जीवन में ठहराव सा ला दिया है। बन्‍धक की तरह बुझे-बुझे से विचारों के अलावा, निरासाजनक दिमाग की मनोदशा ऊर्जावान नहीं महसूस हो रही है। सम्‍भवत: इसका एक ही समाधान हो सकता है कि रिफ्रेशन के मकसद से कहीं पिकनिक स्‍पॉट, दर्शनीय स्‍थल अथवा प्राकृतिक सौन्‍दर्य की शरण में समय बिताया जाये भरपूर मन-माफिक पर्याप्‍त संतृप्‍त होने तक इच्‍छापूर्वक, निश्चिन्‍त होकर; शरीर के सभी कुन्‍द पड़े अवयव रिचार्ज करना अत्‍यावश्‍यक है। नेचरोथेरापी के सुचारू उपयोग से दिमाग में ताजगी-तरावट एवं शेष शरीर में ऊर्जा दौड़ने लगेगी, जो तरोताजा करने में सहायक या उत्‍प्रेरक की भॉं‍ति क्रियाशील होकर राहत का आभास करायेगी।

दोनों ने अविलम्‍व कुदरती सुन्‍दरता के सानिद्ध में विचरण करने हेतु जाने की तैयारी प्रारम्‍भ कर दी।

अत्‍यावश्‍यक सामग्री समेटी ड्राइवर को बुलाया, उसने कार की देख-रेख करके, जरूरी हवा-पानी-तेल चेक किया, सब दुरूस्‍त करके, तैयारी की सूचना देव को देकर गेट पर तैनात हो गया।

सामान्‍य सलाह-मशविरा के पश्‍च्‍चात गन्‍तव्‍य की ओर रवाना हो चले।

चाय-कॉफी-पानी के लिये आवश्‍यकता अनुसार रूकते-रूकाते पहुँच गये, निर्धारित स्‍पॉट पर !

कार पार्क कर ड्राइवर वहीं रूक गया। देव-शीला छोटा-मोटा सम्‍भावित आवश्‍यक सामान हाथों में पकड़े-पकड़े पैदल ही आगे बढ़ने लगे। बहुत ही मन्‍द गति से, मस्‍त झूमते-झामते मतवाली चाल में.........।

टीलेनुमा स्‍थान पर सामान रखकर दोनों साथ-साथ खड़े होकर, लम्‍बी-लम्‍बी नजरें दौड़ा कर नैन-निरीक्षण कर रहे हैं। देव ने अपना आवजर्वेशन बताया, ‘’नेच्‍युरली ब्‍युटी को क्षति पहुँचाये बगैर पर्यटक स्‍थल निर्मित किया है। ताकि पर्यटकों को सुविधाजनक आवा-गमन सुलभ हो सके। आरामदायक स्‍थल पर रूक कर इच्‍छा अनुसार रेस्‍ट किया जा सके एवं प्राकृतिक छटा की छाया में रमकर मनमोहक नजारों को अपनी मेमौरी में सहेज कर संग्रहित कर सकें।‘’

‘’हॉं !’’ शीला ने देव के ऑंकलन का हृदय से समर्थन किया।‘’ आगे कहा, ‘’शहर से काफी करीब इतना हरा-भरा खूबसूरती का साक्षात समागम.........से अनजान थे अब तक.........।‘’

‘’आर्टिफिसियल परिवेश, प्रदूषित आबोहवा, मशीनी लाइफ जीते हैं हम।‘’ देव ने रोष जताया।

ये स्‍वास्‍थ्‍य के अनुकूल पूर्णत: प्राकृतिक माहौल, विशुद्ध प्राणवायु, स्निग्‍ध शॉंत, स्‍वत: सुलभ............। ऑंखों को कुदरती, शर्द सम्‍मोहन से शरावोर शुकून समेटे, सजीव सुन्‍दरता का साकार सपना, समग्र वातावरण पर छाया हुआ है। शरीर के रग-रग में अपने अदृश्‍य जादू के नशीले प्रभाव में मश्‍त कर रहा है। चेतना में समाकर, अपना कोमल एहसास करा रहा है। मन में नाजुक-नाजुक, नरम-नरम भावनाओं के खिले फूलों की पंखडि़याँ, महीन गतिशील वायुवेग में कंपकंपा रही है, जैसे रसभरे औंठ थरथरा रहे हों।

करिश्‍माई कुदरत के जीवन्‍त रंग-बिरंगे फूल-पत्तियों, कलियों के झुरमुट, समग्र सरस संगीत समान सरगम सुनाता सब के सब समा रहे हैं संयुक्‍त रूप में, दिल-दिमाग पर, आत्‍मा भी अपना समर्थन दे रही है, माहौल एकाकार करने में.........।

शीला-देव परस्‍पर एक-दूसरे को अपलक निहारे जा रहे हैं। निरन्‍तर, मदहोश नजरों से। चाहत एवं शुषुप्‍त वासनायुक्‍त आवेग को नियंत्रित करने की हर कोशिश विफल हो रही है। मर्यादाओं के बन्‍धन तड़तड़ा कर चटक चुके हैं। निर्जन स्‍थल उत्‍प्रेरित कर रहा है, दोनों को......., एक पल के लिये दोनों की प्रेमपिपासा का सैलाब बेकाबू होता जा रहा है ! होश ही नहीं रहा कब औंठ क्रियारत हो गये, औंठों के सम्‍वेदनशील स्‍पर्श की ऊर्जा का संचार तन बदन की तपन को......शॉंत, सन्‍तुष्‍ट, संतृप्‍त, सरगमी सॉंसों की संगत में संलिप्‍त होकर स्‍वर्ग की अथवा सौर मंडल की सैर कर रहीं दो आत्‍माऍं, स्‍वछन्‍द....।

सुगन्धित शाम की गहरी होती लालिमा विलीन हो गई; कुछ ही क्षणों में सम्‍पूर्ण परिवेश गहरे अंधेरे में डूब गया।

कॉफी की चुस्‍की लेते हुए शीला खुशी जाहिर कर रही है, ‘’स्‍वाभाविक प्राकृतिक विशुद्ध वातावरण के जादुई असर में घुल-मिलकर कुछ ही क्षणों की निकटता, एकदम तरो-ताजा होकर, रोम-रोम खिल उठता है। फूलों सा हल्‍का शरीर, जैसे किसी परिन्‍दे की भांति स्‍वच्‍छ विशाल वायुमंडल में विचरण कर रहा हो।‘’

‘’हॉं।‘’ देव ने प्रसन्‍नता जाहिर की, ‘’तुम्‍हारी अनुभूति से मैं पूर्णत: सहमत हूँ। दिमाग में तरावट महसूस कर रहा हॅूं। बदन की सारी गॉंठें खुल गई। नई-नवेली फीलिंग हो रही है। सॉंसों में ताजगी, नसों में ऊर्जा भर गई ।‘’ देव ने शीला की ओर याचक निगाहों से देखा, ‘’क्‍यों ना आगे ऐसे विजिट फ्रेंक्‍वेन्‍टली प्‍लान किये जायें बल्कि करते रहें, लाइफ को रियली एन्‍ज्‍वॉय करने की गरज से..।‘’

‘’अति उत्तम.....आईडिया, परन्‍तु......।‘’ शीला ने निराशा जनक लहजे में शंका जाहिर की, ‘’अगर इसी तरह गुलछर्रे समान धूम-धाम करते रहे तो..........।‘’

‘’….तो क्‍या......।‘’ देव ने तुरन्‍त टोका, ‘’हम समझदार, शिक्षित, सक्षम हैं। गली-मौहल्‍ले के छिछौरे नहीं हैं। जिम्‍मेदार, परिपक्‍व एवं अनुभवी, नागरिक हैं।‘’ देव की आवाज में आक्रोश व क्रोध का मिश्रण था।

‘’परस्‍पर, रिश्‍ता क्‍या है?’’ शीला ने तत्‍काल, दृड़तापूर्वक मुख्‍य मुद्दे पर ध्‍यानाकर्षित किया, ‘’समाज-बिरादरी एवं सराऊँडिंग में हमारे सम्‍बन्‍घ का कोई सर्वमान्‍य जगजाहिर नाम तो हो !’’ शीला ने संदेह व्‍यक्‍त किया।

‘’औरत-मर्द लिव-इन-रिलेशनशिप में, रह सकते हैं, कानून हैं !’’

‘’कानून के उपरान्‍त भी, समाज दकियानूसी से मुक्‍त नहीं हुआ है।‘’ शीला ने याद दिलाया, सलाह दी, ‘’कुछ तो हो सामाजिक मान्‍यता हेतु, ताकि चटकारे लेकर, नमक-मिर्च-मसाला मिलाकर, अफवाहें उड़ाने वाले नैरोमाइन्‍डेड, अफवाह-वाजों के मुँह पर ताले लगें।‘’

‘’ठीक सोचा तुमने !’’ देव को सम्‍पूर्ण हालात स्‍पष्‍ट रूप से समझ आ गये....।‘’ बोला, ‘’जल्‍द ही इस मामले पर गम्‍भीरता पूर्वक पुख्‍ता कार्यवाही करेंगे; फिर निश्चिंत, हंसी-खुशी, अमन-चैन, सम्‍मान पूर्वक, प्रतिष्ठित हो सकेंगे।‘’ देव ने शीला को आशा भरी समर्पित नजरों से देखा, ‘’कोई प्रॉबलम तो नहीं.......तुम्‍हें ?’’

‘’नॉट एट आल !’’ शीला ने दृढ़ता पूर्वक कहा समर्थन करते हुये, ‘’यह अत्‍यावश्‍यक है। भविष्‍य को सेक्‍वेर करने के लिये भी।‘’

‘’बेटियों से मश्‍वरा करना होगा।‘’ देव ने गम्‍भीरता पूर्वक शीला के मुखमंडल के भाव भांपने की चेष्‍टा की। सामान्‍य भावभंगिमा के अलावा कुछ नजर नहीं आया। आगे कहा, ‘’उन्‍हें कोई ऑवजेक्‍शन या कुछ एडवाईजड, कुछ तो होगा उनका व्‍हयू ! सम्‍बन्‍ध की खुशहाली के लिये दोनों बहनों की रायशुमारी महत्‍व रखती है।‘’

‘’सम्‍भवत: वे दोनों बहुत खुश होंगी।‘’ शीला ने आत्‍मविश्‍वास पूर्वक कहा, ‘’वे तो एक पैर पर खड़ी हैं, तत्‍काल अनुमति देने हेतु। मेरी रजामन्‍दी ही, बेटियों की मंशा की ग्‍यारन्‍टी है।‘’

दोनों हल्‍के-फुल्‍के अन्‍दाज में मुस्‍कुराते-मुस्‍कुराते निश्‍च्‍छल हंसी, ठहाकों में परिवर्तित हो गई..........।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---१०

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍