कन्हर पद माल= शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 15
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज कृत
(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)
हस्तलिखित पाण्डुलिपि सन् 1852 ई.
सर्वाधिकार सुरक्षित--
1 परमहंस मस्तराम गौरीशंकर सत्संग समिति
(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्हर दास जी सार्वजनिक
लोकन्यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्द्री, पिछोर।
सम्पादक- रामगोपाल ‘भावुक’
सह सम्पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ राधेश्याम पटसारिया राजू
परामर्श- राजनारायण बोहरे
संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)
पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com
प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2045
श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2054
सम्पादकीय--
परमहंस मस्तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्द विभोर कर रहा है।
पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्दी साहित्य में स्थान दिलाने, संस्कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज सम्वत् 1831 में ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्मे।
सन्त श्री कन्हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्हर सागर’’ में पर्याप्त स्थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्त संत श्री कन्हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्तुत कर रहे हैं।
कन्हर पदमाल के पदों की संख्या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्या का प्रमाण--
सवा सहस रच दई पदमाला।
कृपा करी दशरथ के लाला।।
के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्त हो पाये हैं। स्व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्द्र उत्सुक के सम्पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्त्रीय संगीत की धरोहर
तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।
गुरू कन्हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्थ।।
विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्तम श्री कृष्ण का जीवन झांकी से साम्य उपस्यित करने में बाबा कन्हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।
डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्त्रीय संगीत की धरोहर कन्हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी रविवार सम्वत् 1939 को पिछोर में हुआ।
नगर निगम संग्रहालय ग्वालियर में श्री कन्हर दास पदमाल की पाण्डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्वालियर द्वारा पाण्डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्त चन्दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।
पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्हर साहित्य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।
इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।
रामगोपाल भावुक
दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्पादक
राग – पूर्वी, ताल – मार
हरि न भजै जाको जड़ मन नीच।।
रहत अचेत चेतता ना बह, सो परिहैं भ्रम बीच।।
लाख जतन कर भ्रम नहि जैहैं, छूटे न तन मन कीच।।
कन्हर बिना कृपा सीता वर, घटहि न ओसन सींच।।464।।
रे मन झूठे भरम भ्रमाया, लाभ कहा कर पाया।।
तुस कूटौ तूं कूट वृथा ही, वा में कह निकसाया।।
आया माया पाय लुभाया, मन संतोष न पाया।।
जग तग कह व्यौहार निबेरत, मन मंह नहिं सकुचाया।।
भूलो आवागमन भवन मंह, देख – देख हरसाया।।
कन्हर भजन बिना सीतावर, फिर पीछे पछताया।।465।।
राग – धनाश्री, ताल – त्रिताल
सखी री देखो श्याम अनेरो।।
रोकत म्हारी डगरि बगर कह, मानत कहो न मेरो।।
निकस – निकस अब होइ कहा री, करत रहत वह फेरो।।
कन्हर रोक लेत नित गृह में, कहा लगावत देरो।।466।।
राम जपे न झपे जग में।।
श्रम भ्रम तम कबहूं नहिं लागत, आवत नहिं वा तग में।।
करत न सोच असोच पोच हिं, ते न परत जम फग में।।
निरभय रहत गहत शुभ मारग, रंगे रहत वा रंग में।।
मगन रहत हरि के गुन गावत, लागत ना अघ संग में।।
कन्हर राम नाम की, लगी चोट जा अंग में।।467।।
बात वही म्हारी राम सम्हारी।।
परी धार भव भौंर भरम मह, निज कर कमल उबारी।।
दूजौ दीनदयाल न ऐसो, करै अभय भय टारी।।
कन्हर प्रभु पद जपत रहत जे, जन तन मन हारी।।468।।
जा पर कृपा रहत सियावर की।।
सुख संपदा रहत तिनके घर, ज्यों सरिता निधि सर की।।
सो जन अभय रहत या जग में, आस करत नहिं नर की।।
कन्हर भनत रहत रघुवर गुन, बसत छांह निज कर की।।469।।
राग – गौरी, ताल – त्रिताल
भ्रम बस जस बिसरो नर हरि कौ।।
छिन सुख लाग बहुत दुख पावत, त्रास नहीं अघ अरि कौ।।
मोह द्रोह मद कसि – कसि बांधौं, भूलो पथवा घर कौ।।
कन्हर कोई- कोई कोटिन मधि, ध्यान धरें रघुवर कौ।।470।।
मानी नहिं मानी तू मन नहिं मानी।।
माया पाया सठ बौराया, विषय बासना सानी।।
संग कुसंग रंग रूचि मानी, कबहूं न होत गलानी।।
कन्हर राम नाम चिन्तामनि, सेवत तन मन बानी।।471।।
राग – भोपाली, ताल – त्रिताल
हरि मोहि चरन सरन कब राखो।।
भूलो जीव सीम कोइ लंघन, लोक लाज नाखो।।
को राखत मरयाद नाथ अब, तन मन अघ पाको।।
कन्हर राम नाम सबको हित, जग में को काको।।472।।
मन या स्वारथ बात निपाता, राम कहत अलसाता।।
नाता राता हरषत गाता, संगत ढिंग ना जाता।।
कुलजन पुरजन सब स्वारथ रत, तात मात अरू भ्राता।।
कन्हर राम नाम संतत कह, क्यों नहिं हिय हर्षाता।।473।।
राग – काफी, ताल – त्रिताल
चेत नहीं रे मन भयो अचेत।।
देस भेस कह तू नहिं जानत, कस बस परो दुचेत।।
काम बिहाय राम पद परसत, जो जग होतो चेत।।
कन्हर पार परत सो हरिजन, सो जग भ्रमन बचेत।।474।।
हरि सुमिरन बिन नहिं तन बेस।।
भ्रमत जनम व्यतीत भयो सब, निरखे नहिं अवधेस।।
वृथा जन्म तू जन्म गंवायो, निकस गयो रह सेस।।
परी खबरि अबरि कह तोकों, सुधि न रह लवलेस।।
भूल गयो सठ नीच मीच कह, फिर चलहे वहि देस।।
कन्हर प्रभु बिन कौन छुटावै, जब जम पकरें केस।।475।।
चेत – चेत मन चेत कहौं रे।।
कहि हरि नमा काम तज दूजो, कस अब जात बहौ रे।।
जग में सार धार उर सोई, सोइ प्रभु गहन गहौ रे।।
कन्हर जप – जप पार भये सब, तिन – तिन नाम लहौ रे।।476।।
राग – पीलू, ताल – त्रिताल
राम न जाना मन बहुत भुलाना।।
ता दिन जाया कह ठहराया, अबहूं भरम डुलाना।।
करम ग्रसनि मतिमंद मंद इन, इन बस नहिं अकुलाना।।
कन्हर ता दिन खबर परेगी, जा दिन होय बुलाना।।477।।
भूलो रे मन फिरत निकेत।।
बंधन बंधौ आदि दे जग मंह, क्यों कारण कस हेत।।
धिरता थिरता आवत नाहीं, चलत रहत यों प्रेत।।
बसीभूत बसि भयो जुब बात के, निसि दिन झूठ बदेत।।
मानो कही गहौ शुभ मारग, या में तू कह लेत।।
आयो बुढ़ापा तऊ न अघायो, केस भये सब सेत।।
खबर न रही गये सब शुभ दिन, फिर – फिर उरझेत।।
कन्हर राम सिया पद धर उर, नति तू होय अचेत।।478।।
मन हरि नाम कहे हित तेरो।।
ऐसी कैसी भूलन भूलो, काल आय गयो नेरो।।
अबलौं भूल परी बहु तेरी, अबहूं समझ सबेरो।।
नाम लेत उरझे सुरझे जग, करे नहीं जिन देरो।।
पार भये भव बार न लागी, फेर – फेर नहिं फेरो।।
कन्हर जो न जपेगो प्रभु पद, सो करमन कौ चेरो।।479।।
जाकों रघुवीर को बल सांचों।।
सो भव कूप श्रूप नहिं पावत, आवत जात न नाचौ।।
मगन ध्यान जग मध्य न आवत, जो सांचो मन रांचौ।।
कन्हर हरि पद निरख हर्ष कर, निर्भय पद जन जांचौ।।480।।
हरि सुमरौ मन मानौ म्हारी बाता।।
तन कह तनक तमासा खासा, भिन्न होय फिर जाता।।
सपने कैसी संपति जग में, जागे नहीं दिखाता।।
कन्हर झूठी भूलन भूलो, छिन मह होय निपाता।।481।।
राग – ध्रुपद गौंड़, ताल – इकतारौ।।
झूलत राम हिंडोरैं घन गरजत चहुं ओरै।।
वदन चंद छवि लागति है री, उपमा बरनत थोरै।।482।।
बोलत दादुर चकोर सोभा सरवर सरोज,
सरजू करत मधुर घोर करत मोर सोरै।
बरसै मेघ लूंमि झूमि हरी- हरी रचित भूमि,
दामिनी की दमक जोर लता लूंमि कोरै।।
कन्हर लखि राम रूप मगन भये देव जूथ,
हरषि – हरषि बरषि पुष्प इक टक छवि चोरै।।483।।
राग – गौंड़, ताल – त्रिताल
घन गाजि – गाजि साजि- साजि अवध निकट रहै आये।।
सोभा छवि छाई- छाई सबही मन भाये।।
पावस झकझोर जोर बोलत चहूं ओर मोर,
सरजू करि मधुर सोर उपमा वर ल्याये।।
सोभित वर लता कोर बोलत चातक चकोर,
भ्रमत – भ्रमत करत सोर मानहु गुन गाये।।
कन्हर रघुनाथ गाथ बार – बार निरखि तात आनंद,
रहौ छाई गात मुनि जन सुख पाये।।484।।
राग – भैरवी
आली घन उमडि़ – घुमडि़ बरसै।।
स्याम बिना चपला चमकावै, मन डरपै दरसै।।
मोर सोर पपीया पिक बोलत, निसि – बासर अरसै।।
कन्हर कल न परति पल हरि बिन, चंचल दृग तरसै।।485।।
राग – गौंड
झूलत राम किसोर किसोरी।।
नृपति महल मैं घालौ हिंडोला, डारी रेशम डोरी।।
विमला कमला चौंर ढुरावैं, गावें आनंद बोरी।।
कन्हर अवलोकत पुरवासी, सुंदर चरननि ओरी।।486।।
बोलत चातक दादुर मोर।।
घन गर्जत लूमत चहुं ओर।।
बरसत सुंदर जल झरल्यायौ, बिजुरी चमकति है बहुजोर।।
सोभित भूमि पुरी अति पावन मधुर मधुर बरसै चहुं छोर।।487।।
राग – काफी
मति घालौ लाल पिचकारी, सब घैरू करैं नर – नारी।।
भीजि जैहैं, सारी रंग म्हारी, सिर पर गागरि भारी।।
मारग रारि न कीजै हमसौं, स्याम जांउ बलिहारी।।
कन्हर के प्रभु छोडि़ देउ पट, मानौं अरज हमारी।।488।।
चलौ छवि देखिबैं होरी खेलत हैं रघुवीर।।
सोभित भरथ लखन लघु भ्राता, सखा सखिनि जुत भीर।।
लियै गुलाल कुंकुमा झोरिनि, लसत बसंती चीर।।
वरषत रंग कनिक पिचकारिनि, जनु सामन झर नीर।।
बाजे बजत मनौं घन गरजत, गान कोकिला कीर।।
कन्हर उलटि फागु भई पावस, सोभा सरजू तीर।।489।।
रामलला तुमसै ना खेलौं होरी।।
रंग गुलाल उड़ावत मानत नहिं अब मोरी।।
अरज हमारी सुनौं रावरे, नहिं कीजै बरजोरी।।
कन्हर के प्रभु भरि पिचकारी, मारत हौ झकझोरी।।490।।
छोड़ौ जी डगरिआ, मैं थारी बलिहारी।
मति घालौ पिचकारी हम पर, मानौ जी अरज हमारी।।
सुन्दर स्याम जान देउ हमकौ, प्रीति की रीति निआरी।।
कन्हर के प्रभु अरज न मानी, रंग बोरी मोरी सारी।।491।।
राम छटा लखि मगन भई री।।
ऐसी लगनि लगी री आली, तन सुधि बिसरि गई री।।
सोभित कर कमलनि पिचकारी, उपमा बहुत लही री।।
कन्हर संग रंग प्रभु सोभित, रूप अनंग दही री।।492।।
राग – झंझौटी
स्याम थारी छवि पर मन म्हारौ अटकौ।।
रहौ न जात दरस बिन देखै, निसि दिन उर मैं खटकौ।।
केकी कंठ सत पीत पट, जन चपला घन चमकौ।।
कन्हर राम रूप दुति लखि- लखि, कोटि मदन मद सटकौ।।493।।
राग – बहार, ताल – तितारौ
पिचकारी मारत स्याम सचि कै।।
कोऊ जान न जावत जचि कै।।
मारग रोकि रहौ नहिं मानत, हारि परी सखि पचि कै।।
अबिर गुलाल कुमकुमा केसरि, कीच रही रंग मचि कै।।
कन्हर के प्रभु सुघर खिलैया, चोट चलावत जचि कै।।494।।
राग – बहार, ताल – धमार
आयौ बसंत सखी मन भायौ।।
खेलत राम काम लखि लाजत, रूप अनूप सुहायौ।।
अनुज सखा संग लसत मनोहर, धूम धमार मचायौ।।
कन्हर अबिर गलाल कुमकुमा, अवध गलिनि बिच छायौ।।495।।
स्याम सुघर तुमसैं खेलौंगी होरी।।
अबीर गुलाल कुमकुमा केसरि, करिहौं रंग सरबोरी।।
पीताम्बर गहि – गहि कर झटक्यौ, मुख सौ मलिहौं रोरी।।
कन्हर आजु करौं मन भाई, कर पकरौं बरजोरी।।496।।
राग – काफी, ताल – जतकौ
स्याम सौं पकरि करौं मन भाई।।
अबीर गुलाल लाल के मुख पर, परसि – परसि हरषाई।।
कर गहि अंजन आंजि दृगनि में, बार – बार मुसिक्याई।।
कन्हर प्रभु कौं छीन पीताम्बर, फगुआ लैउ सुहाई।।497।।
राग – पीलू, ताल – जतकौ
दृगनि बसे रघुवीर दरस बिन, कल न परति मोई।।
मन तौ धीर – धरत नहिं आली, छिन पल जुग सम जोई।।
दिन नहिं चैन रैनि नहिं निद्रा, होनी होय सु होई।।
कन्हर जा विधि मिलैं प्राण प्रिय, करौ जतन अब सोई।।498।।
मति घालौ लाल पिचकारी, थारी स्याम जाउं बलिहारी।।
सासु ननद सब रारि करैंगी, दैइ अनोखी गारी।।
सारी रंग न भिजोउ रावरे, मानौ जी अरज हमारी।।
छोड़ देउ मग जान देउ घर, सुंदर सुघर खिलारी।।
सुनि- सुनि लोग चवाउ करैंगे, पकरौ मति कर सारी।।
कन्हर के प्रभु कालि मिलौ फिरि, हमकौं होति अबारी।।499।।
अनोखौ सामरौ मोसौं आनि करत बरजोरी।।
सारी झटकत बांह मरोरत, मोतिनि की लर तोरी।।
मैं तो विनय करति नहिं मानत, छोड़त डगरि न मोरी।।
कन्हर हमसौ क्या हठ कीनौ, और नारि का थोरी।।500।।
आजु स्याम रंग होरी मचाई।।
करै सिंगार मांग मौतिनि की, अवध वधू मिलि आई।।
ओढ़े पीत झीन वर सारी, हिअरा हार डुलाई।।
चोबा चन्दन कनिक कटोरनि, गान करति हरषाई।।
यह आनंद पूरि रह सुंदर, जय – जय शब्द सुहाई।।
कन्हर प्रभु सौं फगुआ मांगे, बार – बार मुसिक्याई।।501।।
हमकौ सैननि स्याम बुलावै।।
मिलना कौन विधि होय सखी री, निसि – दिन मन तरसावै।।
वन प्रमोद की कुंज गलिनि मैं, सखन सहित नित आवै।।
कन्हर छवि अवलोकि दृगनि भरि, आनंद उर न समावै।।502।।