Atonement - 21 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग-21

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प्रायश्चित - भाग-21

किरण ने अपनी उखडती हुई सांसो को फिर से समेटा और शिवानी की ओर देखते हुए बोली
"आपने मुझे जीवन का नया नजरिया दिया। मुझमें आशा का संचार किया। आपके साथ-साथ मैं तो मांजी की भी शुक्रगुजार हूं कि उनसे मुझे अपनी मां जैसा प्यार मिला। लेकिन मैं अभागी मेरे जीवन में प्यार व अपनापन तो धूप की तरह था। जिसे जितना मैं आंचल में बांधने की कोशिश करती वह सांझ होते होते स्याह अंधेरे में बदल जाता।"

"किरण जब तुम हमारा इतना मान सम्मान करती थी, इतना प्यार करती थी! फिर क्यों तुमने इतना घिनौना काम किया। क्यों मेरे घर परिवार में आग लगा दी!
मेरे विश्वास का तुमने यह सिला दिया!! क्या मिला तुम्हें !
यह सब करने के लिए तुम्हें मेरा ही घर मिला! !!!
सिर्फ कुछ रुपयों के लिए!!
वह तो मैं तुम्हें वैसे भी दे देती लेकिन तुमने तो मेरी जिंदगी का सुकून ही छीन लिया!!!!
हां तुमको ही क्यों दोष दे रही हूं। दोषी तो!!!!!" कहते हुए उसने दिनेश को जलती नजरों से देखा।
कहते हुए शिवानी की आंखों में आंसू आ गए।

"दीदी, इसमें भैया का कोई कसूर नहीं। उन्हें तो इस सब की कोई खबर भी नहीं थी।
और दीदी अपराधी में भी नहीं!! हमारा रिश्ता अब भी भाई-बहन जैसा पवित्र हैं वो सब एक नाटक था! मेरी मजबूरी थी!!!!"

शिवानी , किरण की ओर हैरानी से देखते हुए बोली "किरण तुम क्या कह रही हो! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा! वह सब जो कुमार ने दिखाया था, उसके बाद भी तुम भाई बहन!!!!!
क्यों ऐसे पवित्र रिश्ते को कलंकित कर रही हो!! क्या मजबूरी थी, जो तुम्हें यह सब करने पर मजबूर होना पड़ा। साफ-साफ बताओ! अब मुझसे सब्र नहीं हो रहा। 10 सालों से तुम्हें नहीं पता, मैं किस आग में जल रही हूं। जी जरूर रही हूं लेकिन निष्प्राण सी!!!"
"दीदी, मैं भी इतने वर्षों से एक लाश की तरह ही जी रही हूं। जिसके सर पर ऐसे गुनाहों की पोटली थी, जो उसने किया ही नहीं था!!!"
"किरण और पहेलियां मत बुझाओ!!! साफ-साफ बताओ!!!" शिवानी अपनी भावनाओं पर काबू ना रख सकी और लगभग चिल्लाते हुए बोली।
"वही बता रही हूं दीदी। रियान के समय जब आप हॉस्पिटल में एडमिट थी, उस समय जब मैं मांजी की मदद करवाती, कुमार भी अक्सर वहां आ जाता था।
मांजी, कुमार को हमेशा समझाती। धीरे धीरे कुमार भी उनकी बातों से प्रभावित होने लगा था। मांजी अब उससे खुल कर बातें करने लगी थी। सीधी साधी मांजी अक्सर अपने गांव की जमीन जायदाद के बारे में उसे बताती। कुमार भी उनकी बातों को बड़ी रूचि लेकर सुनता था।
धीरे धीरे उसके स्वभाव में भी अंतर आने लगा था। यह तो आपने भी देखा था कि रियान के होने के बाद वह मुझसे तो अच्छे से व्यवहार करने ही लगा था, साथ ही रिया व रियान को भी प्यार करता था।
आपके साथ साथ मैंने भी मान लिया था कि मेरे दिन फिर गए हैं । लेकिन वह सब उसकी सोची समझी साजिश का हिस्सा था दीदी! जिसका खुलासा आपके ससुर की मौत के बाद मुझे हुआ!"
"मतलब! कैसी साजिश!" शिवानी उत्सुकता से बोली।

"दीदी, अपने ससुर की मृत्यु के बाद आप तो गांव में ही रुक गए थे लेकिन भैया वापस आ गए ।
कुमार के कहने पर ही मैंने भैया के लिए खाना बनाना शुरू किया था। मुझे तो लगता था कि कुमार सुधर गया है और उसे भैया की परवाह है लेकिन ऐसा नहीं था। वह सब तो उसकी घिनौनी साजिश का हिस्सा था। जिसे जान मेरे पैरों तले से भी जमीन निकल गई थी।
1 दिन कुमार रात को काफी पी कर आया। मैंने उससे जब इतना पीने का कारण पूछा तो वह कहने लगा कि मेरे ऊपर काफी कर्जा है और तुम ही हो जो मुझे इस कर्जे से मुक्ति दिला सकती हो!
सुनकर मैं डर गई कि मैं किस तरह से! कहीं मेरी सौदेबाजी तो नहीं!!!
मैं सोच रही थी, तभी वह हंसते हुए बोला 'नहीं नहीं मैं तुम्हें
बेचूंगा ! तुम तो मेरी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी हो। जिसे मैं इतनी जल्दी हाथों से नहीं जाने दूंगा!'
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रहा है! क्या करवाना चाहता है मुझसे!
मैं कुछ कहती, उससे पहले ही वह बोला ' सुन ज्यादा दिमाग पर जोर मत दे! सब कुछ मैंने सोच लिया है ! बस तू मेरा एक छोटा सा काम कर दे। उसके बाद हम मालामाल हो जाएंगा। मेरा कर्जा भी उतर जाएगा और हम एक आराम की जिंदगी भी जी सकेंगे!'
मैं उसकी ओर हैरानी से देखने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था!
वह थोड़ा गंभीर बनाते हुए बोला 'सुन ज्यादा बड़ा काम नहीं है बस तुझे दिनेश के साथ!!!!!!!!'
क्या कह रहे हो आप!!!! क्या मतलब है आपका!!! नहीं नहीं !!!! आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया!!!!!
'अरे मैं तुझे कौन सा असली में उसके साथ कुछ करने के लिए कह रहा हूं। बस उसके खाने में, मैं बेहोशी की दवाई मिला दूंगा और तुझे बस कपड़े उतार थोड़ी देर लेटना ही तो है, उसके साथ!!!!!!'
सुनकर मुझे यकीन नहीं हुआ। मेरा पति मुझे किसी और के साथ!! सच कहूं दीदी मन कर रहा था , अभी धरती फट जाए और मैं उस में समा जाऊं लेकिन मैं!!!!
उस दिन पता नहीं कहां से मुझमें हिम्मत आ गई और मैं चिल्लाते हुए बोली आपने सोच भी कैसे लिया कि मैं ऐसे नीच काम में!!!!!!
शर्म आती है मुझे आपको अपना पति कहने पर!!!!!
जिन लोगों ने दुख दर्द में हमेशा हमारा साथ दिया। आप उनके घर में ही!!!!!
मैं अभी जाकर भैया को आपकी सारी करतूतों के बारे में बताती हूं। फिर देखना, कैसे आपको अभी धक्के मार निकालते हैं! मेरा तो जो होगा देखा जाएगा लेकिन उनका बुरा तो मैं होने नहीं दूंगी!!!!!
कह जैसे ही मैं जाने लगी तभी कुमार गुस्से से बोला 'जा अपने भैया और दीदी को तो तू बचा लेगी लेकिन अपनी बहनों को कैसे बचाएगी!!!!'
अपनी बहनों का जिक्र सुन मेरे पैर रुक गए!!!!!
मैंने उसकी ओर देखा तो वह हंसते हुए बोला, 'अगर तूने मेरा काम नहीं किया तो तेरी बहन कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी!!!'
उसने अपनी जेब से एक शीशी निकाली और मुझे दिखाते हुए बोला 'देख, देख रही है इसमें क्या है! बस इसकी कुछ बूंदे उनके चेहरे पर गई और उसके बाद उनकी पूरी जिंदगी नर्क से बदतर बन जाएगी!!
फिर देखूंगा कौन तेरे दीदी और भैया उनको सहारा देते हैं!!!!
जा तुझे रोकूंगा नहीं लेकिन बाद में मुझे दोष मत देना!!!!'
दीदी यह सब सुन मेरे कदम ही रुक गए। मुझे कुछ समझ नहीं आया। क्या करूं! क्या नहीं! एक तरफ आप दोनों का ख्याल! एक तरफ अपनी मासूम बहनों का!
आपको नहीं पता उस समय कैसी हालत थी मेरी!
जी कर रहा था, अपनी जिंदगी खत्म कर दूं लेकिन उससे हासिल तो कुछ होने वाला नहीं था।
कुमार की रग रग से मैं वाकिफ थी। मुझे पता था यह शैतान जो कह रहा है, उसे करने में वक्त भी जाया नहीं करेगा।

दीदी, मैं हालात के आगे हार गई थी। मुझे अपनी दोनों मासूम बहने और मां दिखाई दे रही थी।
3-3 जिंदगियां!!!
बताओ दीदी, आप मेरी जगह होती तो क्या करती!!!!!

मुझे तो विश्वास था कि आप भैया को बहुत प्यार करते हो और उस वीडियो पर यकीन नहीं करोगे। कुमार की साजिश नाकामयाब हो जाएगी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
दीदी उस दिन भी कई बार मेरे मन ने मुझे धिक्कार! सच बताने के लिए मजबूर किया। लेकिन हर बार मेरी बहनों का मासूम चेहरा मेरे सामने आ जाता और मैं चाह कर भी कुछ ना कह पाई।
दीदी मरता हुआ इंसान झूठ नहीं कहता। भगवान साक्षी है भैया सिर्फ आपके थे और आपके हैं! इनको तो उस सबका इल्म भी नहीं। कुमार ने इनके खाने में बेहोशी की दवा मिला दी थी। इनका दामन पाक साफ है,
साथ ही मेरा भी। वह बस एक नाटक मात्र था। कहते हुए" किरण फूट-फूट कर रोने लगी।
सुनकर सभी के आंसू रुक नहीं रहे थे। किरण की बहन अपनी दीदी के आंसू पोंछते हुए बोली "दीदी आपने हमारे लिए अपनी पूरी जिंदगी स्वाहा कर दी। कभी मुंह से इस बात का जिक्र भी नहीं किया। दीदी आप महान हो!"!
"अरे नहीं रे! मैं काहे की महान! मैंने तो अपने स्वार्थ की खातिर दूसरों के जीवन में आग लगा दी!
जिसका प्रायश्चित तो मरने के बाद भी नहीं हो सकता। फिर भी दीदी हो सके तो मुझे माफ कर देना!" किरण , शिवानी व दिनेश की ओर हाथ जोड़ते हुए बोली।

"सचमुच किरण तू महान है!!!!
आज अपनी महानता से तूने मुझे छोटा कर दिया। यूं माफी मांग मुझे नरक का भागी मत बना।
बिना सोचे समझे, बिना पूरा सच जाने आज तक मैं तुम दोनों के बारे में पता नहीं, क्या क्या सोचती आई!!

आज मुझे खुद से नफरत हो रही है। समझ नहीं आ रहा अपने पापों का प्रायश्चित मैं किस तरह करूं!
दिनेश हो सके तो मुझे!!!" कहते हुए शिवानी के शब्द गले में ही अटक गए! और आंखों से आंसू बहने लगे।
"शिवानी, संभालो अपने आप को। यह समय इन सब बातों का नहीं!
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। वह एक बुरा दौर था। गुजर गया! "दिनेश ,शिवानी को संभालते हुए बोला।
शिवानी किरण की ओर देखते हुए बोली "किरण तुम्हें सही होना ही होगा वरना मैं अपने आप को कभी माफ ना कर पाऊंगी!"
फिर वह किरण की बहन से बोली "तुमने अपनी दीदी की बहुत सेवा की। अब से उनकी सारी जिम्मेदारी मेरी है!
मैं अपनी छोटी बहन की जी जान से सेवा करूंगी। मुझे पूरा विश्वास है, किरण तुम फिर से पूरी तरह सही हो जाओगी। भगवान इतना निष्ठुर नहीं!
कि हमारे जीवन में आई खुशियों को फिर से छीन ले।
तुम मेरे साथ रहोगी। मैं करूंगी तुम्हारी देखभाल!
हम फिर से साथ मिलकर हंसेंगे, फिर से खिलखिलाएंगे!"
शिवानी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली!

सुनकर किरण के चेहरे पर मुस्कान आ गई ।वह कुछ बोली नहीं बस ऊपर की ओर देखते हुए सिर हिला दिया। मानो कह रही हो, ईश्वर कुछ समय और उसे दे दे!
तभी डॉक्टर वहां आ गए। उनके आते ही सब बाहर निकल गए। जब वह किरण का चेकअप करने के बाद जाने लगे तो दिनेश व शिवानी ने डॉक्टर से पूछा "डॉक्टर किरण की हालत!!!!!"
डॉक्टर ने उन दोनों की ओर सरसरी निगाह डालते हुए किरण की बहन की ओर देखते हुए बोले
"आप!!!
वैसे मैंने इनकी सिस्टर को सब कुछ बता दिया है। देखिए हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली है। बस अब तो आप लोगों की दुआओं व ऊपर वाले का सहारा है इन्हें। जीने को तो यह साल भर या उससे ज्यादा भी निकाल सकती हैं और नहीं तो!!!
आप इन्हें घर ले जाइए। घर पर जितना हो सके, सेवा के साथ-साथ उन्हें खुश रखने की कोशिश कीजिए। जिससे अंतिम समय में इनका दर्द कुछ कम हो! हमने उन्हें अभी दवाई व इंजेक्शन दिया है। अभी वह आराम कर रही हैं इसलिए उन्हें अभी डिस्टर्ब नहीं करना। अगर आप चाहते हैं तो कल हम इन्हें डिस्चार्ज कर देंगे।" कह डॉक्टर चले गए!

सबने अंदर आकर देखा तो किरण सो रही थी। सभी कैंटीन में चले गए ।चाय पीते हुए शिवानी ने किरण की बहन से पूछा "तुम लोग यहां कैसे आए और कुमार, वो कहां है!!!!"

"उसके बारे में तो हमें भी नहीं पता। दीदी कभी उनके बारे में खुलकर बात नहीं करती । उनका जिक्र होते ही वह बहुत परेशान हो जाती इसलिए हमने भी उनसे पूछना छोड़ दिया था!"

"तुम्हारी मम्मी और दूसरी बहन!"
"मां तो नहीं रही!! 2 साल पहले ही वह चल बसी। मुझसे बड़ी बहन की दीदी ने शादी कर दी । वह तो मुझ पर भी घर बसाने का दबाव बना रही है लेकिन मैं नहीं मानी !
पिछले तीन-चार सालों से दीदी बीमार रहने लगी थी!
बीमार होती भी क्यों ना! हम सबकी जिम्मेदारी जो उन्होंने अपने सिर पर ओढ़ ली थी। रात दिन कोल्हू के बैल की तरह काम में लगी रहती थी। हम दोनों बहनों की पढ़ाई पूरी करवाई और फिर बीच वाली बहन की शादी!
अपने बारे में तो उन्होंने सोचना ही छोड़ दिया था या यूं कहें उन्होंने जीने की तमन्ना ही छोड़ दी थी।
उनकी तपस्या का फल है की दीदी की बड़ी अच्छे घर में शादी हुई और मेरी सरकारी नौकरी लग गई।
नौकरी लगते ही रिश्ते आने लगे । दीदी तो चाहती है मैं जल्द से जल्द शादी कर लूं। मेरा भी घर परिवार हो लेकिन आप ही बताएं दीदी अगर मैंने शादी कर ली तो दीदी की देखभाल कौन करता।
आपको तो पता ही है। वह कितनी स्वाभिमानी है‌‌।
मेरी नौकरी लगने के बाद भी उन्होंने काम करना नहीं छोड़ा वह तो जब बिल्कुल ही बिस्तर पर आ गई तो!!!!
कहते हुए किरण की बहन का गला भर आया।"
फिर थोड़ा अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए बोली। अब मुझे पता चला दीदी एक जगह टिक कर क्यों नहीं रहती थी। हम दीदी से जब इस बारे में पूछते तो हमें यह कह कर चुप करा देती कि यहां पर काम धंधा सही नहीं मिल रहा !
लेकिन आज पता चला। वह हमें उस शैतान से बचाने के लिए मारी मारी फिर रही थी।
कभी भी उन्होंने हम दोनों बहनों पर वह यह बात जाहिर नहीं होने दी। हां मुझे लगता है, मां को सब कुछ पता था। अक्सर हम दोनों बहनों ने उन दोनों को अकेले में या रात में रोते हुए देखा है!
अकेले ही सब कुछ सहती रही! अब जब सुख देखने के दिन आए तो ऐसी असाध्य बीमारी ने उन्हें घेर लिया।
भगवान क्यों उनके इतने इम्तिहान ले रहा "। वह अपने आंसू पोंछते हुए बोली।
चाय खत्म करने के बाद सब वापस किरण के पास आए । अंदर गए तो किरण उठ चुकी थी। उन सब को देख कर इस बार उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी।
अपनी बहन को इतना खुश और मुस्कुराते हुए देख किरण की बहन बोली "दीदी, कितने दिनों बाद आज आपको ऐसे मुस्कुराते हुए देख रही हूं। दीदी सदा ऐसे ही हंसते रहा करो।"
"हां अब यह सदा ऐसे ही हंसेंगी की और इसे हंसना ही पड़ेगा। रियान की बातें सुनकर यह उदास रह हीं नही सकती।"
"क्या दीदी, रियान बातें करने लगा! कितना बड़ा हो गया वो!"
"बातें ! अरे अब तो वह है कान काटता है ।खुद ही चल कर देख लेना।"
दोनों बहने उसकी और हैरानी से देखने लगी।
"अरे मुझे ऐसा क्यों देख रहे हो! क्यों किरण अपने घर नहीं चलोगी। मेरा घर तेरा ही तो है!"
"लेकिन लेकिन वह दीदी!!!!"
"इसका मतलब तूने मुझे माफ नहीं किया! किरण मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने का एक मौका दे। मेरे साथ चल!
अगर तू मुझे अपना समझती है तो मना मत कर। बस अपनी बड़ी बहन के साथ अपने घर चले ‌। हम सब साथ रहेंगे ।"
किरण अपनी बहन की ओर देखते हुए बोली "दीदी मुझे आपके साथ चलने में कोई एतराज नहीं लेकिन आपको तो पता है। अभी मेरी जिम्मेदारियां खत्म नहीं हुई। इसे छोड़ कर बताओ कैसे मैं!!!"
"अरे पगली, तुझे कौन कह रहा है इस को छोड़कर जाने के लिए। अरे, यह भी हमारे साथ चलेगी। भगवान ने मुझसे मेरी एक बहन छीनी थी और आप मुझे दो दो बहने लौटा दी। इसकी विदाई तो हम अपने घर से ही करेंगे। इसकी जिम्मेदारी तेरे साथ साथ मेरी भी है! चलोगे ना मेरे साथ!" शिवानी, किरण की बहन की ओर बड़ी हसरत भरी नजरों से देखते हुए बोली।

"दीदी, जितना दीदी से आपके बारे में सुना था, आप तो उस से बढ़कर निकली। जिसमें मेरी दीदी की खुशी, उसमें ही मेरी है और मुझे पता है, मेरी दीदी की खुशी आपके साथ ही है। हां हम सब साथ रहेंगे!"
शिवानी ने दिनेश की ओर देखा। दिनेश ने मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला दिया।
फिर वह है कुछ सोचते हुए गंभीर स्वर में बोला "शिवानी अगर इस बीच कुमार को कहीं से इसे हमारे यहां रहने की खबर लग गई तो और वह!!"
"वह अब कभी नहीं आएगा!!!"
"क्या तुम दोनों का तलाक हो गया है!" शिवानी ने पूछा।
"नहीं!"
"फिर!"
"दीदी, अब इस दुनिया में नहीं है!" कहते हुए किरण के चेहरा गंभीर हो गया।
"ओहो पर कैसे!! क्या हुआ था उससे!"
"क्या होता है ऐसे लोगों का! ज्यादा तो मुझे भी नहीं पता क्योंकि आपके यहां से आने के बाद उसने मुझे, मेरी मां के यहां यह कहते हुए छोड़ दिया था कि अभी यहीं रह, जब तेरी जरूरत होगी ले जाऊंगा आकर।
दीदी मैं तो यही चाहती थी। मुझे यूं अचानक आया देख और मेरी हालत देख मां घबरा गई। मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया। सुनकर उन्हें यकीन ही नहीं आया लेकिन यकीन ना करने का कोई कारण भी तो ना था।
मैंने उन्हें वह जगह छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया क्योंकि मुझे पता था, एक बार कुमार के पैसे खत्म हो गए। वह फिर से हम पर यही सब करने का दबाव बनाएगा मैं उस शैतान की पहुंच से अपनी बहनों को दूर ले जाना चाहती थी।
पता नहीं उसको कैसे हर बार हमारे ठिकानों का पता चल जाता लेकिन उसके हमारे पास पहुंचने से पहले ही हम वह जगह बदल देते ।
एक बार रात के समय पुलिस हमारे घर आई। कुमार का फोटो दिखाते हुए, मुझसे उसके बारे में पूछने लगी‌। मैंने उसे पहचानने से इंकार कर दिया।
जब वह जाने लगे तो मां ने पूछा आप इस आदमी को ढूंढ क्यों रहे हो!
तब उनसे ही पता चला ,आपसी रंजिश में उसके ही किसी साथी ने उसे चाकू मार दिया था और उसकी लाश लावारिस अस्पताल में पड़ी थी। वह उसके परिजन को ढूंढ कर उसे लाश सौंपना चाहते "। बताते हुए किरण पसीने से तरबतर हो गई।
"ऐसे शैतान का यही अंत है।"
अगले दिन शिवानी किरण को डिस्चार्ज कराकर अपने साथ ले गई। 10 वर्षों बाद उन सबके जीवन में फिर से खुशियों ने दस्तक दी थी।
किरण की हालत देखते हुए उसकी बहन ने शादी के लिए सहमति दे दी और कुछ समय बाद ही अच्छा सा रिश्ता तलाश कर शिवानी व किरण ने उसकी शादी कर दी।

शिवानी व उसका पूरा परिवार किरण के बचे जीवन में खुशियां बिखेरने के प्रयास में जी जान से लगा हुआ था मानो अपना बरसों पुराना ऋण उतार रहा हो।
सरोज ✍️
समाप्त