स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 8 in Hindi Fiction Stories by Nirav Vanshavalya books and stories PDF | स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 8

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स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 8

करेंसी ओ की अदायगी मैं रिजर्व बैंक सरकारों और संविधानो से सोना गिरो करवाती है, यानी कि यदि रिजर्व बैंक जितने मूल्य की करेंसी नोट बनाकर सरकार को देती है लगभग उतने ही मूल्य का सोना सरकार से लेती है. यह एक संतुलन है. और देश के अर्थ तंत्र के सही होने का प्रमाण भी. जब यह प्रक्रिया बंद हो जाती है यानी कि एकतरफा हो जाती है यानी कि रिजर्व बैंक सिर्फ नोट छपती रहती है मगर सोना गिरो नहीं करवाती, तब यह कहलाता है कि देश दिवालिया हो चुका है.


अर्थ तंत्र की यह रेसिपी लगभग पूरे विश्व में प्रचलित है.

मगर अदैन्य के प्रफुग में सोना गिरो का कोई उल्लेख नहीं है.

अदैन्य का प्रफुग एकदम समतल(flat) चलता है और करेंसी सीधे सभ्य के ही हाथों में जाती है, अंडरवर्ल्ड के हाथों में नहीं. कैसे!! वह भी आगे, बहुत आगे.

ध्यान रहे मित्रों, की डी मोनेटाइजेशन में सोना गिरो

अस्थान होता है. इसमें ऐसी कोई आवश्यकता नहीं होती.


विश्व समुदाय अति शाखाओं में विभाजित है. जिसकि सीधी असर समाज पर पड़ रही है. यानी कि अपराधिक और भूगर्भ के विकराल पंजों की असर कुछ भूभागों पर अनर्थ के रूप में दिखाई दे रही है.

दोस्तों,अनर्थ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है सर्वनाश. यानी कि जिसका आर्थिक रूप से सर्वनाश हुआ है उसको अनर्थ कहते हैं.

जहां विश्व, स्पेस साइंस के नाम पर 300 400 किलोमीटर ही अवकाश की बातें कर रहा था, वहां अदैन्य आकाशगंगाओ को देख सकता था.

उसे यह परम दृष्टि इकाई से मिल रही थी.अदैन्य के इकाई के अभ्यास रोजमर्रा बन चुके थे और एक स्तर पर वह पूरे भूमंडल को एक राष्ट्र देख रहा था.

शायद ग्लोबलाइजेशन की परिभाषा यहीं पर समाप्त होती होगी. एक और ग्लोबलाइजेशन की बड़ी-बड़ी बातें और दूसरी ओर बहु चलन वाद, यह दोनों बातें विरोधाभासी थी.

बेशक, वैश्वीकरण कहीं ना कहीं संसार को किस ना कीसी उचाइ पर ले जा रहा था, मगर बहुचलन वाद अंडरवर्ल्ड को कहीं ना कहीं मजबूत बना रहा था. और यह बात अदैन्य से अतिरिक्त और कौन जानता था की अंडरवर्ल्ड हमारी ही करेंसी का इस्तेमाल कर रहा है. अंडरवर्ल्ड यानी कि एंटर, जिसमें आतंकवाद भी आ गया.


जिस दौर से आसमान गुजर रहा है, शायद उसी दौर से अदैन्य भी गुजर रहा है. जो पारदर्शिता आसमान की है वही अदैन्य की भी सफाई है. फर्क सिर्फ इतना है की आसमान सर्वज्ञ है और अदैन्य अर्थज्ञ.



दौर कुछ 80 के दशक का चल रहा था और इन्हीं 50 वर्षों में 100 से भी अधिक राष्ट्र ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुए थे. तो जाहिर सी बात है, इतने चलन तो नए उत्पन्न हुए ही होंगे. और इतना ही बहु चलन वाद( मल्टी करंसी लिज्म) भी व्याप्त हुआ होगा. और शायद इन्हीं दशकों में भी ऑर्गेनाइजड क्राइम अपना आकार ले चुका था.

इन्हीं 80 के आसपास के दशक में इटली का पुनरावर्तन हुआ था. और उस राष्ट्र का नाम था इंडोनेशिया.

इंडोनेशिया में फुग का अंक 30 से 50 से भी ऊपर चढ़ गया था और ₹10 का स्थान ₹100000 ने ले लिया था.