Maar Kha Roi Nahi Nahi - (Part Seven) in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | मार खा रोई नहीं - (भाग सात)

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मार खा रोई नहीं - (भाग सात)

मुझे नहीं पता था कि स्कूल जैसी पवित्र जगह पर भी जाति धर्म,क्षेत्र ,लिंग,उम्र ,सोर्स-सिफारिश के आधार पर भी निर्णय लिए जाते हैं।योग्यता,प्रतिभा,कार्यकुशलता पर ये चीजें भारी पड़ जाती हैं।मुझे विभिन्न स्कूलों में पढ़ाने का अनुभव है।हर स्कूल की अपनी कमियां और खूबियाँ थीं।
कहाँ क्या अनुभव मिला,कभी इस पर भी प्रकाश डालूँगी।
सबसे पहले इस स्कूल के बारे में बात करूंगी,जहाँ 16 वर्ष काम किया और रिटायर कर दी गयी।
वैसे तो अब तक के जितने भी स्कूलों में मैं रही,उसमें यह हर दृष्टि से बेहतर यह स्कूल था।सेलरी सरकारी तो नहीं पर अन्य स्कूलों के मुकाबले बेहतर थी।यहां अंदरूनी राजनीति भी नहीं थी।मेहनती और कार्यकुशल शिक्षकों का यहां सम्मान भी था।धर्म विशेष से जुड़ा होने के बावजूद यहाँ दूसरे धर्म को लेकर कोई पक्षपात नहीं किया जाता था,न ही अपने धार्मिक आयोजनों में जबरन शामिल किया जाता था ।किसी तरह का धार्मिक दबाव भी नहीं था,जैसा कि इस तरह के स्कूलों के बारे में अफवाहें होती हैं।कम से कम मैंने तो ऐसा कभी महसूस नहीं किया इसलिए मैं अपने उन मित्रों से लड़ जाती थी ,जो इस तरह की अफवाहों पर विश्वास करते हैं ।हो सकता है कि मैं ज्यादा नहीं जानती होऊँ।हो सकता है मैंने पठन- पाठन के अलावा अन्य किसी बात पर ध्यान ही नहीं दिया हो।या यह भी हो सकता मेरे सामने इस तरह की बातें नहीं की जाती हो क्योंकि मैं मीडिया से जुड़ी हूँ,यह बात सभी जानते थे।
पर इधर एक बात मैंने भी देखा और महसूस किया था कि क्षेत्रवाद यहाँ प्रचुरता से है।संस्था अपने क्षेत्र से अध्यापकों को बुलाकर ससम्मान रखती है और लोकल अध्यापकों से भेदभाव करती है।अपने क्षेत्र के अध्यापक को सीनियर क्लास देती है ताकि उसकी सेलरी हाईएस्ट हो ।उस टीचर की पत्नी को भी नौकरी दे देती है,चाहे उसकी योग्यता या शिक्षा कुछ भी हो।उनके बच्चों को भी मुफ्त शिक्षा देती है।उन्हें जीवन के सभी संसाधन मुहैया कराना,हाउस रेंट,कन्वेंस,वर्ष में दो बार अपने घर आने -जाने ले लिए हवाई टिकट ,अपने त्योहारों पर पूरे परिवार को भोज ,गिफ्ट और भी अन्य सुविधाएं सब दी जाती है।
लोकल अध्यापकों को इस तरह की कोई सुविधा नहीं दी जाती।उच्चतर शिक्षा प्राप्त को भी प्राइमरी कक्षा दे दी जाती है और जरा -सी गलती पर बाहर कर दिया जाता है।बात -बात पर इंसल्ट किया जाता है।उसकी औकात दिखाई जाती है।पर अपने क्षेत्र वालों के साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं किया जाता।पूरे स्कूल की बागडोर उसी क्षेत्र के लोग संभालते हैं ।सभी महत्वपूर्ण कार्य उनके ही जिम्मे होते हैं।एक क्षेत्र एक धर्म के होने के कारण वे ही विश्वसनीय समझे जाते हैं और संस्था से सम्बन्धी सारे सीक्रेट उन्हें पता होते हैं ।सभी का आपस में पारिवारिक सम्बन्ध होता है। लोकल क्षेत्र के शिक्षकों को वे हेय दृष्टि से देखते हैं,उनका मजाक बनाते हैं,उन्हें गरीब,बदहाल और भिखारी समझते हैं जैसे सभी उन पर आश्रित हो या उनके टुकड़ों पर पल रहे हों ।जिनका कोई वजूद न हो ,जो लालची और चरित्रहीन हों।
गलती इस क्षेत्र के लोगों की भी है क्योंकि इनमें एकता नहीं।सभी एक -दूसरे की ही जड़ खोदने में लगे रहते हैं।इधर के लोग उन लोगों की चापलूसी और खुशामद करके अपना ही भला करते रहना चाहते हैं ।उनकी इस कमजोरी को वे लोग जानते हैं और इसका भरपूर फायदा उठाते हैं।उनके अपने क्षेत्र में गरीबी है, रोजगार के उतने साधन नहीं ।वेतन भी कम है,इसलिए इधर आकर वे नौकरी करते हैं और कुछ ही सालों में अपने क्षेत्र में बढ़िया घर,गाड़ी सब खरीद लेते हैं ।उनके घर के लोग खुशहाल जीवन जीने लगते हैं । अंग्रेजी जानने के कारण इधर के लोग उन्हें विशेष योग्य व शिक्षित मानते हैं ।इधर के लोग उन्हीं स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं,जिनमें उस विशेष क्षेत्र के लोग पढ़ाते हैं ।
कोविड 19 के बीच सत्र में ही उस क्षेत्र के कुछ नए टीचर्स को ज्वाइन कराकर पूरी सेलरी दी गयी और इस क्षेत्र के कई टीचर्स को निकाल दिया गया ,कुछ को रिटायर कर दिया गया ,शायद आर्थिक बैलेंस बनाने के लिए ये किया गया।इसी क्षेत्र की धरती पर उस क्षेत्र के लोग फल- फूल रहे और इधर के लोग रोजगार खोकर मारे -मारे फिर रहे।पर सवाल कौन उठाए?सवाल उठाने पर भी क्या होना है?वे कागज़ी रूप से सही रहते हैं।आर्थिक रूप से भी काफी मजबूत हैं ।सरकार को अच्छी- खासी रकम देते हैं ,इसलिए उनके ख़िलाफ़ कोई कुछ बोल भी नहीं सकता।सबको उनसे काम पड़ सकता है।सभी अपने बच्चों को उनके स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं।वे काले अंग्रेज हैं और अंग्रेजों की नीति पर चलकर इधर के लोगों को गुलाम बने रहने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं।