(34)
सागर खत्री की कार अंजन को एयरपोर्ट से लेकर उसके बंगले पर पहुँची। अपने दोस्त सागर खत्री को देखकर अंजन उसके गले लग गया। सागर खत्री ने उससे पूँछा कि पुलिस की तरफ से कोई दिक्कत तो नहीं आई। अंजन ने कहा,
"जैसे ही मुझे पता चला कि माइकल के आदमी ने बयान में समर का नाम लिया है मैंने तुम्हें फोन पर दिया। तुमने यहाँ आने को कह दिया। मैं यहाँ आ गया। पुलिस अभी समर तक ही नहीं पहुँच पाई होगी।"
"सावधानी बरती थी ना ?"
"पूरी रमन सिंह के पासपोर्ट पर आया हूँ।"
सागर खत्री ने उससे कहा कि पहले वह फ्रेश होकर नाश्ता कर ले फिर दोनों बातें करेंगे। अंजन गेस्ट रूम में फ्रेश होने चला गया। सागर ने मीरा को सूचित कर दिया था कि अंजन आ गया है। जिससे वह अपने आप को मानसिक रूप से तैयार रखे।
नाश्ते के बाद अंजन और सागर खत्री बार में बैठकर पीने लगे। सागर खत्री सोच रहा था कि वह मीरा वाली बात कैसे छेड़े। तभी अंजन ने कहा,
"मानवी और निर्भय डिसूज़ा विला में चूहे की तरह छिपकर बैठे हैं। उन पर मेरी नज़र बनी हुई थी। पर कुछ कर नहीं पाया। मामला ताज़ा है। गड़बड़ हो सकती थी।"
"बहुत अच्छा किया तुमने। वो दोनों भी जानते हैं कि अभी उनका वहाँ रहना ही ठीक है। अगर वो कहीं जाते भी हैं तो हमारे आदमी उनकी एक एक हरकत पर नज़र रखेंगे।"
"यही तो मैंने भी सोचा। इसलिए शांत बैठा रहा। लेकिन अब जब भी मौका मिलेगा इन दोनों को छोड़ना नहीं है। ऐसी सज़ा दूंँगा कि इनकी रूह भी कांपेगी।"
"तुम्हें पता चला कि इन दोनों को तुम्हारे बीच हाउस में होने की खबर किसने दी थी।"
"अभी तक तो नहीं।"
सागर खत्री के लिए मीरा की बात छेड़ना आसान हो गया था। उसने अंजन से कहा,
"तुमको सचमुच किसी पर शक नहीं है ? या फिर जिस पर शक जा रहा है उस पर ध्यान नहीं देना चाहते हो।"
अपने दोस्त की इस बात पर अंजन गंभीर हो गया। उसने कहा,
"क्या कहना चाहते हो तुम ?"
"मेरा इशारा मीरा की तरफ है। तुम बीच हाउस जा रहे हो यह बात या तो पंकज को पता थी या फिर मीरा को। पंकज ने यह खबर नहीं दी। तो फिर बचा कौन ?"
अंजन उसकी बात पर चुप हो गया। सागर खत्री ने कहा,
"सचमुच तुम्हारे मन में मीरा का नाम नहीं आया ?"
अंजन ने अपना गिलास बार टॉप पर रख दिया। उसके बाद गहरी सांस लेकर बोला,
"जबसे मीरा अचानक गायब हो गई है तबसे मेरे मन में यही आता है कि मेरे बारे में मानवी और निर्भय को खबर देने वाली वही हो सकती है। अब तो इस बात पर पूरा यकीन भी हो चला है। लेकिन जब यह बात मन में आती है तो दिल में टीस सी उठती है। यकीन होते हुए भी मन उसे झुठलाने में लगा रहता है।"
सागर खत्री कुछ देर चुप रहने के बाद बोला,
"तुम चाहते हो कि मीरा से मिलकर असलियत का पता करो।"
अंजन को ऐसा लगने लगा था जैसे कि सागर खत्री को मीरा के बारे में कुछ पता चला है। उसने कहा,
"यार पहेलियां मत बुझाओ। तुम्हें मीरा के बारे में क्या पता चला है ? कहाँ है वो ?"
सागर खत्री उठा। अंजन के दोनों कंधे पकड़ कर बोला,
"इसी बंगले में है। मिलोगे उससे ?"
अंजन आश्चर्य से उसकी तरफ देखने लगा। सागर खत्री ने उसे पूरी बात बताई। सब जानने के बाद अंजन ने कहा,
"अभी मिलना है उससे। मुझे उसके पास ले चलो।"
सागर खत्री ने उसी लड़की को बुलाया जो मीरा को लेकर गई थी। उसे हिदायत दी कि अंजन को मीरा के पास ले जाए।
मीरा परेशान इधर उधर टहल रही थी। जानती थी कि अंजन कभी भी उससे मिलने आ सकता है। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका सामना कैसे करेगी। यहाँ से भाग निकलने की भी कोई तरकीब नहीं थी। अब तो वह मन ही मन मना रही थी कि अंजन के आने से पहले ही उसका हार्ट फेल हो जाए। वह जानती थी कि मौत तो तय है। पर अंजन उसे आसान मौत नहीं देगा। मारने से पहले अपने सवालों से उसे परेशान करेगा।
डोरबेल की आवाज़ सुनते ही मीरा की टांगें कांपने लगीं। वह कुछ देर बुत बनी खड़ी रही। पर जानती थी कि अगर उसने दरवाज़ा नहीं खोला तो वो लड़की अपने कार्ड से दरवाज़ा खोल देगी। वह कांपती हुई आगे बढ़ी। दरवाज़ा खोला और दूसरी तरफ मुंह घुमाकर खड़ी हो गई।
अंजन अंदर आया। कुछ देर तक वह भी चुप खड़ा रहा। उसके दिल में भी अजीब सी हलचल थी। उसके मन के गुस्से और मीरा के लिए प्यार के बीच रस्साकसी चल रही थी। पर उसने अपने प्यार को पीछे ढकेल दिया। गुस्से से बोला,
"मेरी तरफ देखो।"
मीरा और अधिक कांपने लगी। उसे अपनी तरफ मुड़ते ना देखकर अंजन आगे बढ़ा। उसे कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया। उसने देखा कि मीरा का चेहरा सफेद पड़ गया है। वह बुरी तरह डरी हुई है। उसके देखते ही देखते वह बेहोश होकर गिर पड़ी।
अंजन घबरा गया। उसने मीरा को उठाया और बेडरूम में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया। उसके बाद भागकर किचन में गया। फ्रिज से पानी की एक बोतल निकाली। ठंडे पानी के छींटे मारे। मीरा होश में आ गई। होश में आते ही गिड़गिड़ा कर बोली,
"प्लीज़ अंजन मुझे माफ कर दो..."
उसके गिड़गिड़ाने से अंजन का गुस्सा और बढ़ गया। उसने पानी की बोतल को फर्श पर पटक दिया। कुछ देर खुद को शांत करने की कोशिश करता रहा। पर सफल नहीं हुआ। गुस्से में मीरा के पास आकर बैठ गया। उसके बाल पकड़कर चेहरा अपनी तरफ घुमाकर बोला,
"अब गिड़गिड़ा रही हो। पर मेरे साथ धोखा करते हुए एक बार भी नहीं सोचा। मेरे दुश्मनों को मेरे बारे में खबर दे दी।"
मीरा की आँखों में डर साफ दिखाई पड़ रहा था। अंजन ने उसे छोड़ दिया। बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया। इस समय उसकी लड़ाई अपने ही मन के दो हिस्सों से चल रही थी। कभी गुस्सा हावी हो रहा था कभी प्यार। एक बार फिर वह मीरा के पास जाकर बैठ गया। उसने मीरा के चेहरे पर अपनी नज़रें गड़ाकर पूँछा,
"जब तुमने मुझे धोखा देने के बारे में सोचा तो एक बार भी तुम्हारे मन में नहीं रोका। आखिर क्यों तुमने मुझे धोखा दिया ? तुम मेरे प्यार को बिल्कुल भी नहीं पहचान पाई थी।"
मीरा ने उसके सवालों का जवाब नहीं दिया। वह घबराहट में बार बार बस एक ही बात कहती जा रही थी कि मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है। मुझे माफ कर दो। अंजन समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। कुछ समझ ना आने पर वह उठा और वहाँ से चला गया।
नीचे आया तो सागर खत्री उसकी ही राह देख रहा था। अंजन बिना कुछ बोले सीधे बार में गया। अपना लिए एक बड़ा पेग बनाया और वहीं स्टूल पर बैठकर पीने लगा। उसकी शक्ल से पता चल रहा था कि उसकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है। सागर खत्री अभी कुछ पूँछकर उसे परेशान नहीं करना चाहता था। वह चुपचाप उसे देखता रहा।
अंजन के मन में बहुत कुछ था। वह सागर खत्री के साथ बात करना चाहता था। वह अपना गिलास लेकर उसके पास जाकर बैठ गया। सागर खत्री समझ गया कि वह उससे बात करना चाहता है। उसने कहा,
"मीरा से बात की ?"
"बात क्या करता। वह तो बस तोते की तरह एक बात रट रही थी। मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ कर दो। वैसे भी इसके अलावा कह क्या सकती है वो।"
सागर खत्री ने पूँछा,
"फिर क्या फैसला लिया तुमने ?"
अंजन इस विषय में कोई फैसला नहीं ले पाया था। सागर खत्री के इस सवाल पर बोला,
"फैसला क्या करूँ ? मेरा दिल इस समय जैसे लड़ाई का मैदान बना हुआ है। अजीब स्थिति है। मीरा के लिए गुस्सा भी है और प्यार भी।"
सागर खत्री ने मुस्कुरा कर कहा,
"मुझे तो लगता है कि गुस्से पर प्यार भारी है। तुम अभी भी इस बात को झुठला देना चाहते हो कि मीरा ने गलत किया है। लेकिन ऐसा कर नहीं पा रहे हो। इसी बात का गुस्सा है।"
सागर खत्री ने जो बात कही वह सही थी। अंजन ने कहा,
"तुम ठीक कह रहे हो। मैंने मीरा से दिल की गहराई से प्यार किया था। पर शायद प्यार मेरी किस्मत में नहीं है। बचपन में अपनी माँ को बहुत चाहता था। पर वह छोटी उम्र में ही छोड़कर भगवान के पास चली गई। पिता ने कभी मुझे प्यार नहीं दिया था। दूसरी शादी के बाद तो मेरी तरफ ध्यान देना ही बंद कर दिया। इसलिए मैं घर छोड़कर भाग आया।"
अंजन रुका। अपने गिलास में बची हुई शराब को खत्म किया। फिर आगे बोला,
"मानवी से मैंने कभी प्यार नहीं किया था। वह मेरे लिए एक सीढ़ी की तरह थी। उसके सहारे मैं उसके भाई की दौलत पर कब्ज़ा कर पाया। उसे अपने रास्ते से हटाने की कोशिश की। इसलिए उसने अपने प्रेमी के साथ उस बात का बदला लेने के लिए मुझ पर हमला किया। फिर भी मेरा मन करता है कि एक बार यदि मानवी मेरे सामने आ जाए तो अपने हाथों से उसकी गर्दन तोड़ दूंँ। लेकिन मेरा को तो मैंने सच्चे दिल से चाहा था। उसके बावजूद उसने मुझे धोखा दिया। पर आज वह मेरे सामने थी फिर भी मैं कुछ नहीं कर पाया। मैं अपने प्यार के हाथों इतना मजबूर कैसे हो गया। मैंने तो अपने बचपन के साथी पंकज को भी नहीं छोड़ा था। इस समय मैं समझ नहीं पा रहा कि क्या करूंँ।"
"अपने आप पर कोई दबाव मत डालो। कोई जल्दी नहीं है। शांत मन से सोचकर फैसला लो।"
अंजन को अपने दोस्त की बात सही लगी।