UJALE KI OR in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर (संस्मरण )

Featured Books
  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

  • आई कैन सी यू - 51

    कहानी में अब तक हम ने देखा के रोवन लूसी को अस्पताल ले गया था...

Categories
Share

उजाले की ओर (संस्मरण )

उजाले की ओर (संस्मरण )

--------------

जीवन का एक शाश्वत सत्य ! आने वाला जाने का समय लिखवाकर ही अपने साथ इस दुनिया में अवतरित होता है | जीवन और मृत्यु के बीच कितना फ़ासला है ,कोई नहीं जानता लेकिन जाना है यह अवश्य शाश्वत सत्य है | जाने वाला चला जाता है ,छोड़ जाता है अपने पीछे न जाने कितनी-कितनी स्मृतियाँ ! लेकिन उसके जाने के बाद जो दिखावा होता है ,जो व्यवसाय होता है ,वह कभी-कभी बहुत पीड़ा से भर देता है | जिस घर से कोई जाता है ,वह तो वैसे ही अधमरा सा हो जाता है | वास्तव में यह इस पर निर्भर करता है कि जाने वाले के साथ किसीका कितना संबंध है | जितना प्रगाढ़ संबंध,उतना ही अधिक वह पीड़ित ! लेकिन ऐसे में भी लोग जब कमाई का साधन ढूँढ लेते हैं तब कितनी पीड़ा होती है ,मानवता पर से विश्वास उठ जाता है |

एक परिवार में किसी पार्टनर की मृत्यु होना यानि दूसरे साथी के लिए जीवन कठिन तो हो ही जाता है | चाहे वह उम्र जाने की हो भी भले किन्तु यह भी शाश्वत सत्य है कि दूसरे का जीवन न जाने कितने दिनों तक स्मृतियों के वृत्त में घूमता रह जाता है | कई दिनों तक तो नींद भी करवटें बदलते हुए ,आँखों में आँसू भरते हुए झ्पकियों में आती है | धीरे-धीरे कहीं जाकर परिवार,मुख्य रूप से पार्टनर सहज हो पाता है |

ऐसे में यदि किसी अपने बहुत क़रीबी के जाने के बाद यदि अगले दिन भोर में घर के सिंहद्वार पर खटखटहट हो तो सबसे पहले वही उठकर बाहर जाता है जिसका पार्टनर उसे छोड़ गया है | कारण यह है कि वही तो होता है जो पूरी रात भर करवटें बदलते हुए झपकी लेता रहता है |

ऐसे ही एक उदास दिन जब मैंने गेट पर आहट सुनी ,मैं अस्त-व्यस्त स्थिति में गेट पर भागी | परिवार के और लोग जाग न जाएँ ,मुझे तो नींद आ ही नहीं रही थी |

“क्या बात है भाई ?” गेट पर एक मोटरसाइकिल को खड़े हुए देखकर मैंने पूछा |

मेरा मन घबरा रहा था | नवम्बर के अंतिम दिनों में खासी हवाएँ चलने लगती हैं ,ऐसे में दोपहिया वाहन पर हवा का प्रकोप कुछ अधिक होता है | वे तीन युवा लड़के थे ,काले विंडचीटर पहने | एक उनमें से हाथ में अख़बार लेकर खड़ा था ,दूसरा गेट पर लिखे हुए नं को अपने मोबाइल की टॉर्च से पढ़ने की कोशिश कर रहा था और तीसरा मोबाइक पर ही बैठा था | समय कोई पाँच बजे का होगा ,अंधेरा था इसलिए मुझे बरामदे की लाइट जलानी पड़ी थी |

“इसी घर में कल किसीकी मृत्यु हुई है न ?”उनमें से किसी एक ने पूछा |

दूसरा पता पढ़कर बता रहा था |

“हाँ,क्या बात है - --?” मैं उलझन में थी |

सोचा ,किसीको उठा लूँ ,फिर लगा रहने देती हूँ ,मैं ही बात कर लेती हूँ | मन अव्यवस्थित था ही !

किसी संस्था का नाम लेकर एक ने कहा ;

”हम लोग वहाँ से आए हैं ,आप जो कुछ भी देना चाहें उनके नाम पर ,दे दो –“

मेरी मंद बुद्धि थोड़ी खुली और मैंने पूछा ;

“आप लोगों ने इस समय कष्ट किया ! जो कुछ भी करना होगा ,समय पर हम कर लेंगे ---“

“हम तो वृद्धों के लिए यह चंदा इक्कठा करते हैं ,वहाँ पहुंचाते हैं---“

“भैया ,अभी इस स्थिति में नहीं हूँ कि कुछ भी सोच सकूँ ,अभी आप यहाँ से जाइए प्लीज़ ---“

“अरे बा ,उनके नाम पर कुछ तो दे दीजिए ,हम रसीद देंगे ---“ लड़के ने मुझे एक रसीदबुक दिखाई | न जाने उस पर किस संस्था का नाम लिखा था |

वे काफ़ी देर तक ,शायद पंद्रह मिनिट तक मुझसे जंग के अंदाज़ में जूझते रहे | फिर उनका स्वर आक्रोशित हो उठा |

“ठीक है ,मैं अपने बेटे को बुलाती हूँ ---“मैंने पीछे की ओर मुड़ते हुए कहा |

मैं उनसे बहस करने की स्थिति में नहीं थी | इतने में मेन गेट से चौकीदार आ पहुँचा | उसने लड़कों को वहाँ से जाने के लिए कहा | वो तीनों एक बाइक पर बैठकर चले तो गए लेकिन उनकी बड़बड़ करती आवाज़ों ने न जाने कितने दिन मेरा पीछा किया |

चौकीदार ने बताया कि यह एक व्यापार बना हुआ है | इस प्रकार के लड़के रोज़ सुबह अख़बार लेने जाते हैं और परिवारों से पैसे की वसूली करते हैं | मन पीड़ा से भर उठा था |

कुछ तो सोचें ,क्या किसी के जाने की पीड़ा कम है ?

जाने किसीकी ज़िंदगी में कितने गम हैं ------

आप सबकी मित्र

डॉ . प्रणव भारती

उजाले की ओर (संस्मरण )

--------------

जीवन का एक शाश्वत सत्य ! आने वाला जाने का समय लिखवाकर ही अपने साथ इस दुनिया में अवतरित होता है | जीवन और मृत्यु के बीच कितना फ़ासला है ,कोई नहीं जानता लेकिन जाना है यह अवश्य शाश्वत सत्य है | जाने वाला चला जाता है ,छोड़ जाता है अपने पीछे न जाने कितनी-कितनी स्मृतियाँ ! लेकिन उसके जाने के बाद जो दिखावा होता है ,जो व्यवसाय होता है ,वह कभी-कभी बहुत पीड़ा से भर देता है | जिस घर से कोई जाता है ,वह तो वैसे ही अधमरा सा हो जाता है | वास्तव में यह इस पर निर्भर करता है कि जाने वाले के साथ किसीका कितना संबंध है | जितना प्रगाढ़ संबंध,उतना ही अधिक वह पीड़ित ! लेकिन ऐसे में भी लोग जब कमाई का साधन ढूँढ लेते हैं तब कितनी पीड़ा होती है ,मानवता पर से विश्वास उठ जाता है |

एक परिवार में किसी पार्टनर की मृत्यु होना यानि दूसरे साथी के लिए जीवन कठिन तो हो ही जाता है | चाहे वह उम्र जाने की हो भी भले किन्तु यह भी शाश्वत सत्य है कि दूसरे का जीवन न जाने कितने दिनों तक स्मृतियों के वृत्त में घूमता रह जाता है | कई दिनों तक तो नींद भी करवटें बदलते हुए ,आँखों में आँसू भरते हुए झ्पकियों में आती है | धीरे-धीरे कहीं जाकर परिवार,मुख्य रूप से पार्टनर सहज हो पाता है |

ऐसे में यदि किसी अपने बहुत क़रीबी के जाने के बाद यदि अगले दिन भोर में घर के सिंहद्वार पर खटखटहट हो तो सबसे पहले वही उठकर बाहर जाता है जिसका पार्टनर उसे छोड़ गया है | कारण यह है कि वही तो होता है जो पूरी रात भर करवटें बदलते हुए झपकी लेता रहता है |

ऐसे ही एक उदास दिन जब मैंने गेट पर आहट सुनी ,मैं अस्त-व्यस्त स्थिति में गेट पर भागी | परिवार के और लोग जाग न जाएँ ,मुझे तो नींद आ ही नहीं रही थी |

“क्या बात है भाई ?” गेट पर एक मोटरसाइकिल को खड़े हुए देखकर मैंने पूछा |

मेरा मन घबरा रहा था | नवम्बर के अंतिम दिनों में खासी हवाएँ चलने लगती हैं ,ऐसे में दोपहिया वाहन पर हवा का प्रकोप कुछ अधिक होता है | वे तीन युवा लड़के थे ,काले विंडचीटर पहने | एक उनमें से हाथ में अख़बार लेकर खड़ा था ,दूसरा गेट पर लिखे हुए नं को अपने मोबाइल की टॉर्च से पढ़ने की कोशिश कर रहा था और तीसरा मोबाइक पर ही बैठा था | समय कोई पाँच बजे का होगा ,अंधेरा था इसलिए मुझे बरामदे की लाइट जलानी पड़ी थी |

“इसी घर में कल किसीकी मृत्यु हुई है न ?”उनमें से किसी एक ने पूछा |

दूसरा पता पढ़कर बता रहा था |

“हाँ,क्या बात है - --?” मैं उलझन में थी |

सोचा ,किसीको उठा लूँ ,फिर लगा रहने देती हूँ ,मैं ही बात कर लेती हूँ | मन अव्यवस्थित था ही !

किसी संस्था का नाम लेकर एक ने कहा ;

”हम लोग वहाँ से आए हैं ,आप जो कुछ भी देना चाहें उनके नाम पर ,दे दो –“

मेरी मंद बुद्धि थोड़ी खुली और मैंने पूछा ;

“आप लोगों ने इस समय कष्ट किया ! जो कुछ भी करना होगा ,समय पर हम कर लेंगे ---“

“हम तो वृद्धों के लिए यह चंदा इक्कठा करते हैं ,वहाँ पहुंचाते हैं---“

“भैया ,अभी इस स्थिति में नहीं हूँ कि कुछ भी सोच सकूँ ,अभी आप यहाँ से जाइए प्लीज़ ---“

“अरे बा ,उनके नाम पर कुछ तो दे दीजिए ,हम रसीद देंगे ---“ लड़के ने मुझे एक रसीदबुक दिखाई | न जाने उस पर किस संस्था का नाम लिखा था |

वे काफ़ी देर तक ,शायद पंद्रह मिनिट तक मुझसे जंग के अंदाज़ में जूझते रहे | फिर उनका स्वर आक्रोशित हो उठा |

“ठीक है ,मैं अपने बेटे को बुलाती हूँ ---“मैंने पीछे की ओर मुड़ते हुए कहा |

मैं उनसे बहस करने की स्थिति में नहीं थी | इतने में मेन गेट से चौकीदार आ पहुँचा | उसने लड़कों को वहाँ से जाने के लिए कहा | वो तीनों एक बाइक पर बैठकर चले तो गए लेकिन उनकी बड़बड़ करती आवाज़ों ने न जाने कितने दिन मेरा पीछा किया |

चौकीदार ने बताया कि यह एक व्यापार बना हुआ है | इस प्रकार के लड़के रोज़ सुबह अख़बार लेने जाते हैं और परिवारों से पैसे की वसूली करते हैं | मन पीड़ा से भर उठा था |

कुछ तो सोचें ,क्या किसी के जाने की पीड़ा कम है ?

जाने किसीकी ज़िंदगी में कितने गम हैं ------

आप सबकी मित्र

डॉ . प्रणव भारती