🌹सूपनखा का नौका विहार
यौवन मद से चूर चूर सम वय सखियों के संग सूपनखा का नोका विहार
उन्मत्त सूपनखा की भयावही आवाजें
समुद्र की लहरों की गर्जन
समुद्री लुटेरों का झुंड अपनी नौकाओं से
लंका की उन दानव कन्याओं को घेर लिया
सूपनखा अपना बल दिखलाने लगी
तीरो पर तीर चला लुटेरों को खदेड़ ने लगी
यह क्या समुद्री लुटेरों के असंख्य झुंड अपने साथियों की रक्षा मे आ खड़े हुए
दस्यु सुन्दरी कुछ करती उसे नाव सहित पकड़ लिया
सूपनखा अपने आपको बचाने के लिए अपने भाई रावण का भय दिखलाने लगी । तुम नही जानते मै कौन हूँ...मै उस महाबली लंकापति महाराज रावण की बहिन हूँ, अरे दुष्टों तुम्हें मौत का खौफ नही, मेरे भाई से देव दानव सब खौफ खाते है, लगता है तुम्हारी मौत तुमसे यह सब करवा रही है । अरे मूर्खो लंका के किसी सैनिक ने भी देख लिया तो तुम्हारे शरीर को समुद्री जीव ही खायेंगे,तुम्हारे सगे संबंधियों को खबर भी नही लगेगी ।
लुटेरे जीत के जश्न में मस्त
सूपनखा को सहेलियों सहित बंधी बना लिया गया ।
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आकाश मार्ग से विद्युत्जिह्वा राक्षस ने देखा
राक्षस कुमारियो को बल पूर्वक ले जाने वाले ये कौन है ?
नीचे आकर जानना चाहा तो सूपनखा बोली हे वीर तुम मेरे भाई रावण को सूचित करो
विद्युत्जिह्वा बोला तुम डरो नही ।
विद्युत्जिह्वा अन्तर्ध्यान हो गया और आकाश से बाणो की वृष्टि करने लगा
कभी पत्थर कभी तीर
लुटेरों को समझ मे नहीं आया
अपनी जान बचाने को सारे भाग गये ।
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विद्युत्जिह्वा के अद्भुत पराक्रम ने सूपनखा के दिल को भी जीत लिया ।
राक्षस जाति की युवतियां अपने दिल की बात रखने मे संकोच नही करती
सूपनखा विद्युत्जिह्वा से बोली हे वीर मै अपना हृदय हार गयी आप मुझे स्वीकार करें
विद्युत्जिह्वा सूपनखा के चढ़ते यौवन को देख प्रस्ताव स्वीकार कर लिया ।
फिर सिलसिला रोज मिलने का चल पड़ा
वही समुद्र वही नोका वही समय
एक दिन महारानी मंदोदरी ने पूछ लिया
ननद जी आजकल आप कहाँ जाती है
लंका के राजकाज में आपकी रूचि कम और सहेलियों के संग अधिक आ जा रही है
सूपनखा नाराजगी मे बोली भाभी आपकी रोका टोकी मुझे अच्छी नही लगती
आप अपने काम से काम रखो
मै कहाँ जाती हूँ किससे मिलती हूँ बस आप रहने दीजिए मै तो कभी आपसे नही पूछती
आप दिनभर क्या करती है । मंदोदरी बोली ठीक है नही पूछुंगी
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विद्युत्जिह्वा से मिलने पर सूपनखा बोली प्रियवर
हम कब तक ऐसे छुप छुप कर मिलते रहेंगे
भैया से तुम मेरा हाथ मांग लो
ठीक है कल मै भैया से बात करता हूँ
अगले दिन
विद्युत्जिह्वा लंका मे पहुँच गया
रावण को मंदोदरी के साथ घूमते देख दूर से प्रणाम किया
रावण ने हाथ के इशारे से पास आने को कहा
बोलो क्या बात है
विद्युत्जिह्वा बोला मुझे आप क्षमा करे राक्षस राज आप मुझे प्राणवान देवे तो अपनी बात कहू
हूँ दिया...कहो क्या अपराध हुआ है
महाराज मैं सूपनखा से प्रेम करता हूँ उससे विवाह ..विद्यु...तजिव्हा ...मै तेरी जीभ निकलवा दूंगा ..यदि तुझे अभय दान नही दिया होता तो तुम जीवित नही रहते..चले जाओ
रावण की गर्जना से सैनिक भाग कर आ गये विद्युत्जिह्वा को घेर लिया
मंदोदरी बोली इसे जाने दो इसे महाराज ने अभय दान दिया है ।
उधर सूपनखा पत्ते की तरह कांप रही है
विचार आ रहे जा रहे है मैने कौनसा गलत किया है हमारी राक्षस संस्कृति के अनुरूप यह सब है ।
लगता है भाभी ने भैया के कान भरे हैं
रावण के जाने के बाद --
लंबे लंबे श्वास भरती सूपनखा भाभी से बोली
ले लिया बदला तूने भाभी ..उस दिन का
मै सोच भी नही सकती तुम्हारी सुन्दर छवि के पीछे विष ही विष है । सिर को झटका कर चली गयी
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रावण ने प्रतिबंध लगा दिया सूपनखा पर
अब लंका से बाहर नही जायेगी
राक्षसों को आदेश दे दिया लंका के आसपास विद्युत्जिह्वा को देखो तो उसे मार डालना
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जनकपुर मे धनुष यज्ञ का आयोजन
सीतास्वयंवर मे देश देश के राजाओ राजकुमारों का आगमन
रावण को गुप्तचर से संदेश मिला
महाराज जनकपुर मे उत्सव हो रहा है
सुना है जनक ने शर्त रखी है कि जो शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढायेगा उससे सीता का विवाह किया जायेगा, महाराज जनक नंदनी सीता अद्वितीय रूपवान गुणवान सुन्दरी है उसे पाने के लिए राजाओ का जमावड़ा हो रहा है ।
रावण अपने आसन से खड़ा हो गया
हमारे होते सीता का वरण कोई नही कर सकता
झट से पुष्पक विमान को आमंत्रित किया
रावण सवार होकर चल पड़ा जनकपुर की ओर,
रावण के आने की सूचना से जनकपुर के रनवासे मे हड़कंप मच गया
राजा जनक रावण की अगवानी के लिए आये
रावण ने आतिथ्य नही लिया
जनक से पूछा आपने हमे संदेश क्यो नही भेजा क्या हम राजा नही है
जनक जी बोले महाराज रावण आपतक संदेश न पंहुचा सके आपकी लंका समुद्र से घिरी है
मेरे दूत समुद्र नही लांग सकते थे
कहाँ है धनुष ?
जनक जी बोले महाराज यज्ञ शाला मे रखा है अभी रात्रि हो गयी है आप विश्राम करे और कल प्रातः यज्ञशाला मे पधारे ।
#कुछ कथाकार कहते है रावण रात्रि मे ही जाकर धनुष उठाने का प्रयास करता है उसकी अंगुली दब जाती है वहा वाणासुर भी आता है रावण धनुष के पास बैठा रहता है इनमे बहस भी होती है ।
रात्रि मे ही आकाश वाणी से रावण को पता चलता है ....हे रावण तुझे लंका मे न पाकर एक राक्षस तेरी बहिन को उठा ले गया
मेघनाद ने नही रोका नही वह अपनी सेना के साथ युद्धाभ्यास मे कही गया है
रावण तुरंत वहा से लंका के लिए रवाना होता है
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अपने भैया रावण को ओर मेघनाद को लंका मे पाकर सूपनखा ने विद्युत्जिह्वा को संदेश भेजकर लंका मे बुलवा लिया
विद्युत्जिह्वा ने रावण की सुरक्षा टुकड़ी को चकमा देकर सूपनखा को ले उड़ा
एकाएक सामने रावण को देख दोनो घबरा गये
रावण ने अपनी चंद्राहास से विद्युत्जिह्वा के टुकड़े कर दिये ।
सूपनखा का प्यार सूपनखा का प्रितम उसकी आंखो के सामने ही मार दिया गया ।
सूपनखा स्तब्ध ..अपने भैया के इशारे से विमान मे जा बैठी
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प्रतिशोध की आग भी है पर रावण के बल को याद कर चुप रह जाती है ।
सूपनखा ने गुप्तचर की सूचना सुनी वह रावण से कह रहा है महाराज जिन्होने ताड़का को मारा था उन्होंने ही शिव धनुष उठाया ही नही उसे तोड़ डाला, रावण यह सुनकर थोड़ा चिंतन करने लगा ।
अब सुपनखा को आस बनी की कोई रावण से भी बढकर है,अब उससे मित्रता करनी होगी ।
अपनी गुप्तचरियो को नियुक्त कर दिया
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सूपनखा को पता चला कि वे राजकुमार पंचवटी मे ठहरे है
सूपनखा ने रावण से कहा भैया मै पंचवटी की तरफ अपनी सीमाओं का जायजा लेकर आती हूँ ।
पंचवटी मे श्रीराम को देख वह अपना दुःख भूल गयी
सोचा क्यो न मै इनसे ही विवाह कर लू
विवाह प्रस्ताव श्रीराम के सामने रखा
श्रीराम बोले सुंदरी मै तो विवाहित हूँ मेरे साथ मेरी पत्नी है
लक्ष्मण जी लकड़ी लेकर आये तो उन्हे देख कर वह बोली यह कौन है
यह भी ठीक है
लक्ष्मण जी से वही बात कही लक्ष्मण जी ने कहा मै तो इनका दास हूँ
फिर राम जी से बोली तुम्हारी पत्नी ही अड़चन है तो इसे मै मार दूंगी
वह सीता जी की ओर बढी
लक्ष्मण जी ने मैया का बचाव करते हुए उसकी नाक काट डाली
अब तो अपने राक्षसी रूप मे आकर जोर जोर से चिल्लाने लगी पंचवटी के पास ही खरदूषण त्रिशिरा को ले आई
राम जी ने पूरी सेना सहित उनका वध कर दिया
सूपनखा वहा से भागी
अब मन मे विचार चलने लगे रावण मरे या राम मेरा प्रतिशोध तो पूरा होगा । रावण से कहकर सीता हरण कराया और रावण का पूरा वंश मिटाकर वहा से भाग गयी
अपने प्रतिशोध मे खुद का घर बर्बाद कर हंस रही थी ।
# पर पुरूषों को रिझाना बड़े नाखून सूप की तरह यही पहचान बस सूपनखा की रह गयी ।
✍कैप्टन 🙏🙏🙏🙏🙏🙏