Dusari Aurat - 2 - 1 in Hindi Love Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | दूसरी औरत.. सीजन - 2 - भाग - 1

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दूसरी औरत.. सीजन - 2 - भाग - 1

"हैलो! बेटा कैसा है? कितने दिन हुए तूने तो एक फोन भी नहीं किया और कई महीनों से तू घर भी नहीं आया! कोई परेशानी की बात तो नहीं है न बेटा और तेरी तबियत तो ठीक है न!!" जहाँ दूसरी तरफ़ से फोन पर अनुराधा जी यानि कि सुमित की माता जी एक ही साँस में शिकायत-भरे लहजे के साथ ही अपने बेटे के प्रति अपनी फिक्र भी जताने में कोई कोताही नहीं बरत रही थीं वहीं दूसरी तरफ से स्पीकर मोड में अपना फोन डालकर मिस्टर सुमित बाबू यानि कि अनुराधा जी के सुपुत्र उनकी कुछ बातों को सुन तो कुछ बातों को अनसुना करके इधर वॉट्सऐप पर अपनी तीन साल पुरानी गर्लफ्रैंड से चैट करने में व्यस्त थे!

सुमित बाबू दरअसल यहाँ कानपुर में रहकर अपनी पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे और कोई लाख कहे कि बनारस की हवाओं में प्यार बहता है मगर हमारे सुमित बाबू को तो जो प्यार उनके अपने बनारस के घाटों पर भी नसीब न हुआ उसी कम्बख्त इश्क़ के दर्शन उन्हें यहाँ कनपुरिया चौराहों पर प्राप्त हुए!

"माता जी प्रणाम! ऐसी कोई भी बात नहीं है,अरे हम बस थोड़ा अपनी पढ़ाई-लिखाई में बिजी थे बस! बाकी आप और बाबू जी तो वहाँ ठीक हैं न! अच्छा चलिए हम आपसे शाम को फुर्सत से बात करते हैं,वो अभी हम जरा अपने कॉलेज के लिए लेट हो रहे हैं,अच्छा माता जी,प्रणाम!"

"उफ्फ़...लगता है कि आज आप फिर हमारे कत्ल का पूरा इरादा करके आये हैं।"सपना नें सुमित को देखकर आँहें भरते हुए कहा!

अरे नहीं मैडम जी,ऐसे कैसे भला और फिर कातिल के मुँह से ये कत्ल की बातें शोभा नहीं देतीं!

अच्छा तो अब शोभा नाम की कोई नयी गर्लफ्रैंड बनाने का इरादा है,क्यों जी???

इस बात पर दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े!

सच,सुमित तुम जब भी ये व्हाइट शर्ट पहनते हो तो कसम से मेरी जान निकलती है।

"अरे,सपना मैडम इतनी आसानी से हम अपनी जान की जान थोड़े ही न निकलने देंगे!",ये कहते हुए सुमित नें झट से सपना के होठों को अपने होंठों से चूम लिया!हालांकि इस अचानक हुए चुम्बन के एहसास से सपना के बदन का रोम-रोम सिहर उठा लेकिन चूंकि वो दोनों इस समय कॉलेज के कैम्पस में ही एक पेड़ के नीचे खड़े हुए थे तो इस कारण सपना की सिरहन सिर्फ सुमित को ही महसूस हुई और सपना नें खुद को बड़ी ही फुर्ती से नियंत्रित कर लिया!

शाम को कॉलेज से लौटने पर जब सुमित नें बनारस अपनी माता जी को फोन मिलाया तो वो एक बार फिर से उसे शिकायतों का पुलिंदा खोलकर सुनाने लगीं!

सुमित नें उनसे अगले महीने होली पर घर आने का पक्का वायदा करके फोन रख दिया। हालांकि अनुराधा जी ने सुमित से सीधे तौर पर तो कुछ भी नहीं कहा मगर फिर भी वो किसी न किसी एक अनजान आशंका से जरूर भर उठी थीं कि जो बेटा पहले हर तीसरे महीने घर आया करता था और प्रतिदिन नियम से फोन करके यहाँ के हालचाल लिया करता था वो ही लड़का आज बनारस से इतना जी क्यों चुराता है???

होली की छुट्टियां होने वाली हैं तो मैं सोच रही थी कि इस बार की छुट्टी का हर एक दिन हम एक अलग अंदाज़ से बितायेंगे।एक दिन हम मन्दिर चलेंगे तो दूसरे दिन मूवी,तीसरे दिन मैं तुम्हें मॉल से शॉपिंग करवाऊँगी और फिर होली वाले दिन तुम सुबह ही मेरे घर पर आ जाना। वैसे भी मम्मी तो हमेशा तुमसे कहती ही हैं न कि त्यौहार वाले दिन तुम हमारे ही घर पर आ जाया करो।इस बार होली का पहला गुलाल मैं तुम्हीं से लगवाऊँगी,समझे!!

सुमित चुपचाप सपना की सारी बातें सुन रहा था और मन ही मन में ये सोच रहा था कि वो आखिर सपना को अब कैसे ये बात बताये कि वो तो अपनी माता जी से किये गए वायदे के अनुसार इस बार होली पर अपने घर 'बनारस' जा रहा है और फिर इस बार जाना भी तो बहुत जरूरी हो गया था क्योंकि वो पिछली दीपावली को भी सपना को छोड़कर अपने घर नहीं जा सका था।

"सपना,देखो मैं भी होली तुम्हारे साथ ही मनाना चाहता हूँ मगर वो दरअसल बात ये है कि देखो मैं पिछली बार दीपावली पर भी घर नहीं जा पाया था और वैसे भी घर गये मुझे एक साल से ज्यादा हो रहा है। बाबू जी तो कुछ नहीं कहते लेकिन माता जी तो शिकायत करती ही हैं न और फिर उनकी शिकायत जायज़ भी है,आखिर मैं उनका एकलौता बेटा जो ठहरा।"सुमित नें बड़े ही डरते-डरते और मायूसी भरी आवाज़ में अपनी बात सपना के सामने रखी!!

हाँ-हाँ,तुम्हारी माता जी जो कुछ भी करें,सब जायज़ और मेरी हर बात नाजायज़! क्यों बोलो? ऐसा ही है न!!

"यार सपना!प्लीज़ नाराज मत हो यार। अब अगर तुम भी मेरी सिचुएशन नहीं समझोगी तो फिर भला और कौन समझेगा!! आय लव यू शोना...तुमसे प्यारा मुझे कोई नहीं",इतना कहकर सुमित नें सपना को खींचकर अपने सीने से लगा लिया!

सपना के चेहरे पर सुशोभित होती हुई गंगा-यमुना को सुमित नें अपनी जेब से निकाले हुए रूमाल से पोंछते हुए कहा कि... होली पर हम जायेंगे जरूर बनारस लेकिन कानपुर में होली मनाने के बाद!! सुमित की आँखों से झलकती हुई शरारत को पढ़ लेने पर सपना नें शरमाकर अपना चेहरा और भी कसकर सुमित के सीने से लगा दिया!

कल से हमारी होली की छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं और तुम आज रात में ही मुझे छोड़कर चले जाओगे,कितने गंदे हो तुम!

अरे बाबा तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे कि मैं कानपुर छोड़कर नहीं बल्कि ये दुनिया ही छोड़कर चला जा रहा हूँ!

चुप...कुत्ते...इतना कहकर सपना यकायक ही फूटफूटकर रोने लगी इसपर सुमित नें उसे तुरंत ही हाथ पकड़कर अपनी बाइक के पीछे की सीट पर बिठा लिया और उसने फटाफट से बाइक स्टार्ट कर भगा दी।

सपना पूरे रास्ते सुमित के कंधे से सिर टिकाकर रोती ही रही जिसके कारण अब सुमित की शर्ट कुछ सपना के आँसुओं तो कुछ उसके पसीने से भीग चुकी थी।

सुमित अब अपने रूम के दरवाज़े के बाहर खड़ा था और ये देखकर सपना का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

"सुमित तुम मुझे यहाँ क्यों लाये हो और तुम्हारा वो रूम-पार्टनर सुरेश,वो क्या सोचेगा??"सपना नें सुमित की ओर आशंका भरी एक दृष्टि डालते हुए पूछा।

देखो यार,तुम ये सुरेश-वुरेश की चिंता तो छोड़ ही दो क्योंकि वो कल रात ही अपने गाँव जा चुका है और रही बात मेरे,तुम्हें यहाँ लाने की तो मोहतरमा आप शायद भूल रही हैं कि मैंने आपसे ये पहले ही कह दिया था कि हम इस होली पर बनारस तो जरूर जायेंगे मगर कानपुर में होली मनाने के बाद!

रूम के अंदर प्रवेश करते हुए भी सपना का दिल धकधक-धकधक कर रहा था लेकिन इसके बावजूद वो अपने जिस्म में एक गुदगुदी भी महसूस कर रही थी और इसका कारण शायद ये था कि वो इससे पहले सुमित से इस तरह एक बंद कमरे में अकेले कभी नहीं मिली थी।

कमरे में प्रवेश करते ही सपना वहाँ पढ़ने वाली मेज के पास रखी हुई एक लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गई और सुमित उसे वहीं छोड़कर अंदर रसोईघर में घुस गया। फिर दो से चार मिनट बाद ही वो अंदर से दो गिलास पानी और एक प्लेट में कुछ बेसन के लड्डू लेकर लौटा।

मुझे पता है कि तुम्हें बेसन के लड्डू बहुत पसंद है,इसलिए मैं सुबह कॉलेज जाने से पहले ही इन्हें लेकर रख गया था।

अच्छा जी! तो ये सब आपकी प्रीप्लानिंग थी!!

"अरे,हमारी प्लानिंग तो और भी बहुत कुछ है। आप बस देखती जाइये कि आगे-आगे होता है क्या?",ये कहते हुए सुमित नें अपनी दायीं आँख दबा दी जिससे कि सपना सकपकाकर खुद में ही कुछ सिमट सी गई।

कुछ ही देर में वहाँ मेज़ पर दो प्यालों में चाय और सपना के फेवरेट नमकपारे जो कि सपना की मम्मी नें ही सुमित को बनाकर दिये थे,आ चुके थे।

अब तक सुमित अपनी आँसुओं और पसीने से भीगी हुई शर्ट उतार चुका था और उसके गोरे,बलिष्ठ बदन पर उसकी काले रंग की जिमवेस्ट से झाँकते हुए उसके सीने के काले-काले बाल,उसके मर्दाना व्यक्तित्व पर चार चाँद लगा रहे थे और न चाहते हुए भी सपना की नज़र बार-बार वहीं जा रही थी या यूं कहें कि वो भी इस सुखद अनुभव से खुद को वंचित नहीं रखना चाह रही थी।

"मैं ज़रा ये चाय के प्याले अंदर रखकर आता हूँ।",कहकर सुमित अंदर रसोईघर में चला गया और इधर सपना भी अब इस वातावरण में कुछ कम्फर्टेबल फी़ल कर रही थी। अब उसने सुमित के रूम में रखा हुआ ट्रांजिस्टर ऑन कर दिया।

अब रूम में संगीत की सीढ़ी चढ़कर कुछ इश्क़ तो कुछ खुमार भीतर आकर हवाओं में बहने लगा था...नज़र से मिलाकर नज़र चूम लूंगा...न जाने कहाँ कब किधर चूम लूंगा...नज़र से मिलाकर...पंकज उधास की ये गज़ल उस माहौल में पर्याप्त नशा घोलने को काफी थी तभी ट्रांजिस्टर की तरफ़ मुँह करके खड़ी हुई सपना को सुमित नें पीछे से आकर गुलाल लगाना शुरू कर दिया और सपना बस हंसती हुई खुद में सिमटी सी जा रही थी तभी फिर सुमित नें उसे कमर से पकड़कर सामने पड़ी मेज़ के ऊपर बिठा दिया और वो उसके गोरे गालों पर गुलाबी रंग का गुलाल बेतहाशा मलने लगा,इस बीच सपना भी सुमित के हाथों से गुलाल लेने की कोशिश करने लगी और जब वो अपने इस प्रयास में सफल न हो सकी तो उसनें सुमित के गालों पर गुलाल मलने की एक दूसरी ही तरकीब निकाली।

अब सपना नें अपने गालों को सुमित के गालों पर रगड़ना शुरू कर दिया और इस प्रक्रिया में वो कब उसके गालों से उसके सीने तक पहुंची ये तो वो खुद भी नहीं जान पायी। एक-दूसरे के बदन का स्पर्श और उनके दिलों में एक-दूसरे के लिए धड़कते दिलों नें कब उन्हें मदहोशी की चरमसीमा पर पहुंचा दिया,ये प्रश्न तो अब उन दोनों ही के लिए एक अबूझ पहेली बन चुका था!

दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई मगर बिस्तर की सिलवटें तो अभी भी पीछे हटने को तैयार न थीं। बड़ी ही मशक्कत के बाद वो दोनों प्रेम के सागर में नया-नया गोता लगाए हुए प्रेम के पंक्षियों नें एक-दूसरे से खुद को अलग किया।

ये होली मुझे हमेशा याद रहेगी और अगर भगवान नें चाहा तो हमारी अगली होली इससे भी शानदार होगी और तुम्हारी माँग मेरे प्यार के सिंदूर से सजी होगी,सुमित नें सपना के होठों को चूमते हुए कहा जिसपर सपना की आँखें नम हो गई और वो सुमित के सीने से लगकर एक बार फिर से सुबकने लगी।

होली आई रे कन्हाई रंग बरसे,सुना दे ज़रा बाँसुरी!

एक तरफ़ जहाँ सुमित होली का त्यौहार बनारस में अपने माता-पिता के साथ मना रहा था तो वहीं दूसरी ओर कानपुर में सपना अपनी सहेलियों आरती,दीप्ति और अपने मोहल्ले की गुड़िया दीदी और रचना भाभी से छिपकर अपने कमरे में बैठी हुई थी।

वैसे सच कहा जाये तो इस बार का ये होली का त्यौहार उन दोनों ही के लिए फीका था और बाकी अपने-अपने हिस्से का गुलाल तो वो पहले ही एक-दूसरे पर मल चुके थे।

प्रीति की रीति ही है कुछ ऐसी
तुम बिन कोई दिखे न मोय!
प्रेम रंग जब चढ़े तो चढ़े ऐसा
कि फिर दूजा रंग न चढ़े कोय!!

मिलते हैं...अगले भाग में...... क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐