bhago bhago buddhijivi aya in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | भागो, भागो बुद्धिजीवी आया।

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भागो, भागो बुद्धिजीवी आया।

--भागो, भागो बुद्धिजीवी आया।

यशवन्त कोठारी

मैनें एक जाने-माने बुद्धिजीवी को नमस्कार करने का प्रयास किया मगर मैं हिन्दी का अदना लेखक, वो देश का प्रखर बुद्धिजीवी। उसने मेरे नमस्कार का जवाब देना उचित नहीं समझा। इसका कारण मेरी समझ में तब आया जब वही बुद्धिजीवी एक देशी छोकरी को विदेशी शराब का महत्व समझाते हुए पकड़ा गया। बुद्धिजीवीयों का बेशरम होना बहुत जरूरी है, वे शरम, लज्जा, भय, इज्जत जैसी छोटी चीजों की परवाह नहीं करते। जब भी दो चार बुद्धिजीवी एक विषय पर विचार करने एकत्र होते हैं, एक दूसरे की छीछालेदर करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वार्तालाप कुछ इस तरह होता है-

‘‘ तुमने मेरी शोध को अपनी पुस्तक में छाप लिया।’’

‘‘ तुमने मंत्री तक को नहीं छोड़ा।’’

‘‘ अबे जा।’’

‘‘ जा तेरे जैसे कई देखें हैं।’’

पाठको, भाषा अंग्रजी भी हो सकती है। बुद्धिजीवी जब गुस्से में होता है तो अंग्रेजी बोलता है, ज्यादा गुस्से में होता है तो गलत अंग्रजी बोलता है।

यदि शराब विदंशी हो तो बुद्धिजीवी शालीन हो जाता है। यदि परोसी जाने वाली शराब देशी हो तो बुद्धिजीवी देशी फाश गालियां देने लग जाता है। ऐसी स्थिति में पार्टी, सेमिनार या कांफ्रन्स के आयोजक सचिव उन्हें टी.ए.डी.ए. देकर विदा कर देते है।

हर समझदार बंद्धिजीवी अपने अलावा सभी को मूर्ख समझता है। हर बंद्धिजीवी की सफलता के पीछे एक सुन्दर महिला होती है और इस सुन्दर महिला के पीछे बुद्धिजीवी की पत्नी होती हैं यदि कभी यह सुन्दर महिला बुद्धिजीवी की पत्नी के हत्थे चढ़ जाती है तो झोटा पकड़ कर निकाल दी जाती है।

बुद्धिजीवी स्वयं कोई काम नहीं करता, उसके चेले-चपाटे, शिष्य-शिष्याएं, चमचे-चमचियां सब काम करते हैं और नाम बुद्धिजीवी का होता है। बुद्धिजीवी प्रोफेसर को सकता है, सम्पादक हो सकता है, साहित्यकार, लेखक हो सकता है। वह सरकार का धमकाता है। वह अकादमी को डराता है, वह शोध छात्र की दुनिया उजाड़ सकता है, क्योकिं वह देश का प्रमुख एक मात्र बंद्धिजीवी है।

अकसर बुद्धिजीवीयों की तरह ही एक और प्राणी होता है जो बुद्धिजीवी का स्त्री संस्करण होता है, जिसे हम सुविधा के लिए बंद्धिजीवनी कह सकते हैं। ये महिलाएं भी बंद्धिजीवीयों की तरह ही होती हैं। भारी नम्बरों के साथ कॉफी हाउस, आकाशवाणी, दूरदर्शन, विश्वविधालयों, अखबारों के कार्यालयों में चक्कर लगाती रहती हैं। इनका प्रमुख काम अपने बुद्धिजीवी के लिए अकादमी की फेलाशिप, कोई पुरस्कार या विदेश यात्रा का जुगाड़ करना होता है। बदले में इन्हें एक बौद्धिक सुरक्षा तथा विदंशी शराब उपलब्ध कराई जाती है, जो इन्हें रास आती है।

बुद्धिजीवी हर प्रकार के विषय का विशेषज्ञ होता है। यदि आकाशवाणी को मलेरिया के लिए टॉक देनी है तो हिन्दी का बुद्धिजीवी यह काम कर देता है। यदि दूनदर्शन पर विज्ञान का कार्यक्रम है तो अर्थ शास्त्र का बुद्धिजीवी हाजिर है।

बुद्धिजीवी नहीं तो देश, सरकार और जनता का क्या हो। कभी सोचा है आपने ? जितने भी गलत निर्णय होते हैं उनके पीछे एक-न-एक बुद्धिजीवी का हाथ होता है।

बुद्धिजीवीयों से देश, समाज, काम को बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। बच्चे तक बुद्धिजीवी के नाम से डर कर रोना बंद कर देते हैं। अक्सर माताएं अपने बच्चों को कहती हैं- ‘चुप हो जा नहीं तो बुद्धिजीवी खा जायेगा।’

बुद्धिजीवी यदि खाता नहीं है तो भी काटता तो है। बुद्धिजीवीयों में राज्याश्रय और सेठाश्रय दो परम प्रिय शब्द हैं। जो हाज्याश्रय का बुद्धिजीवी है वह सेठाश्रयवादी बुद्धिजीवी करार देता है। वैसे लाभ के लिए ये दोनों बुद्धिजीवी तुरन्त एक हो जाते हैं।

बुद्धिजीवीयों की नस्लों के बारे में वैज्ञानिकों में मतभेद है । जब से क्लोन प्रणाली जन्मी है, बुद्धिजीवीयों के भी क्लोन तैयार करने के बारे में सोचा जा रहा है। आप कल्पना करिये, एक जैसे सैकड़ो, हजारों बंद्धिजीवी कड़को पर दौड़ रहे हैं, हर तरफ बुद्धिजीवी ही बुद्धिजीवी। दुनिया बुद्धिजीवीयों से भर गई है। और आम आदमी इनसे बचता फिर रहा है। बचो, बुद्धिजीवी आ रहा है। भागो, भागो बुद्धिजीवी आया।

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