lucky in Hindi Short Stories by भूपेन्द्र चौहान“राज़” books and stories PDF | खुशनसीब

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

Categories
Share

खुशनसीब

“प्रिय रवि,

सुना है,अभी तुम्हारा वहाँ मन नहीं लग रहा है।

वापस घर आने का मन बना रहे हो,

ऐसा कुविचार तुम्हारे मन में क्यूँ आया?

बताओ ऐसी भी क्या वजह हो गयी,

रजनी बता रही थी, भैया से बात हुई थीं

बड़े उदास मन से उनकी बातों का

ज़वाब दिया था तुमने


बहुत फ़िक्र कर रहे हैं, सब तुम्हारी।

तुम्हारी उदासी.........क्या इसकी वज़ह मैं हूँ ?

या फ़िर कोई अन्य वजह है.....

नहीं रवि , नहीं.....

मैं तुमसे दूर थोड़े ही हूँ,

तुम्हारे बिल्कुल क़रीब हूँ,


सच, कहती हूँ

तुम्हारे सीने पे हाथ

रखकर देख लो,

धड़कनों में महसूस करोगे

मुझे, अपने दिल के करीब

सच रवि, हमारा प्यार,

कभी इतना खुदगर्ज़ नहीं हो सकता।

कि तुम्हें अपने फ़र्ज़ों और कर्तव्यों,को

भुलाने के लिए मज़बूर कर दे ।

ऐसा हमारे जीवन में कदापि न होगा।

सोचो रवि, तुम्हारी लाडली बहिन पर,

उन हालातों में क्या बीतेगी

जब वह सुनेगी ,

कि हर रक्षाबंधन पर उसकी रक्षा का वचन देने वाला

भाई , देश की रक्षा करने का अवसर नसीब होने पर

देश की रक्षा न कर सका, क्या ज़माने के ताने वह सुन

सकेगी । और अपने बाबूजी और मां के बारे में सोचो

जब उन्हें पता चलेगा उनका लाड़ला, उनकी दी हुई

सीख,उसको बचपन में सुनायी गयी सारी देशभक्ति की

कथाएं भुला बैठा है,

वज्रपात हो जायेगा.....रवि, सच....... वज्रपात

उनके कलेजे पर।

कहीं? ऐसा तो नहीं, मेरे कारण,

अपने फर्ज से दूर हो रहे तुम?

हाँ इतना ज़रूर जानती हूँ

कायर नही हो तुम,

बहादुर ,हो बहादुर

हाँ अभी उतने भी बहादुर नहीं

कि हमारे प्यार के बारे में

हम दोनों के माँ

और बाबूजी को बता सको।

ख़ैर ये अलग बातें हैं.........

मैं तो कहती हूं रवि,बड़े ही खुशनसीबों को मिलता है

यह मौका ,

सैनिक बनने का मौका

देश की सेवा करने का मौका

देश के प्रति मर मिटने का मौका ।

मुझे यकीन है , कुदरत जल्द ही मेरी भाग्य रेखा में

तुम्हारा साथ लिख देगी,

बड़ी खुशनसीब हूँ मैं तुम्हारी प्रेयसी बनकर ।

फूले मुँह नहीं समाएगी तुम्हारी माँ,

दूनी चौड़ी छाती हो जायेगी तुम्हारे बाबूजी की।

उनके साथ-साथ सभी घरवाले अपने आपको

गौरवान्वित महसूस करेंगे और खुशनसीब ।”

देश की सेवा के लिए सीमा पर तैनात सैनिक रवि ने

नम आंखों से पत्र पढ़ते हुए तिरंगे को मन ही मन

सलामी दी। सैनिक रवि ने पत्र अपनी जेब में रखा

उसकी आँखों के सामने पत्र के आख़िरी शब्द तैर रहे

थे। अपनी प्रेमिका, आशा के द्वारा लिखे गये पत्र को

पढ़कर रवि को ऐसा महसूस हुआ मानो पत्र से

निकली ज्ञान रश्मियों ने उसके मन पर छाए काले

विचार की काली बदली को सदा के लिए हटा दिया हो

आशा की ज्ञानरश्मियों ने उसके मन में उजाला भर

दिया था । नेक राह दिखाने वाली आशा से जल्दी

शादी करने का उसने मन बना लिया था ।

ख़्वाबों में आशा को अपनी दुल्हन के वेश में देखकर

वह अपने आप को खुशनसीब महसूस कर रहा था ।

(स्वरचित) भूपेन्द्र चौहान_25_5_2021

(Disclaimer)
(इस कहानी के सभी पात्र और उनके नाम और घटनाएं काल्पनिक हैं और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना से कोई भी संबंध नहीं हैं। यह कहानी किसी भी व्यक्ति के निजी जिन्दगी से प्रेरित नहीं है। यह पूरी तरह से एक कल्पनात्मक रचना है। यदि किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से समानता पाई जाती है तो ये मात्र एक संयोग होगा।)