मेरे अल्फ़ाज़
एक काव्य संग्रह
अनंत कुमार शुक्ला
लेखक के बारे मे
अनंत कुमार शुक्ला का जन्म 26 सितंबर 2008 को मध्य प्रदेश के रीवा मे हुआ था। उनकी आयु 13 वर्ष है। उनका कविते लिखने के प्रति खास आकर्षण है। उनकी कविताओं को कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और वेबसीटेस मे जगह दी गई है। उनकी सबसे बढ़िया और लोकप्रिय कविताओं को एकत्रित करके एक काव्य संग्रह का रूप दिया गया है। यह उनकी कलम की पहली नुमाइश है।
दो शब्द
मुझे काव्य को आगे बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर मिला है। मै "मेरे अल्फाज़" किताब के माध्यम से आपको मेरी कुछ कविताओं का संग्रह कर पेश करूंगा। मै प्रकृति के प्रति भाव रखने मे विश्वास रखता हूं। शायद इसी वजह से मुझे लेखनी का शौक आया.....
भगवान करे मेरी लेखनी को मां सरस्वती एसे ही आशीर्वाद दे। यह मेरा पहला काव्य संग्रह है। उम्मीद है आपको पसंद आएगा।
कविताएन
माँ की ममता
जाने वाले
हौसला
मेहनत कर
कुछ रिश्ते
मां की ममता...
उसकी हर बात मुझे कुबूल है,
वो तो ममता का एक फूल है!!
भगवान से भी ऊपर है मां!
सच्ची मित्र है मेरी मां।।
शायद न हो एक पल उसके लिए!!!
लेकिन उसका हर पल हर लम्हा है मेरे लिए!!!
मां सब जानती है!!
मां सब मानती है!!
मां सब समझती है!!
जाने वाले....
मुंह फेर के जाने वाले,
अब तू न पछताना !!
टूट गया दिल मेरा,
लौट के तू न आना
हो गय है वार अनेक,
बिना तुझसे बतलाए!!
अब कुछ नया बहाना,
लेके मुझे न मनाना
मुंह फेर के जाने वाले,
अब तू न पछताना!!
टूट गया है दिल मेरा,
अब लौट के तू न आना
हौसला....
इन फासलों से हौसला नहीं टूटता!!!
फासलों से में नहीं रूठता।।
हौसला ये अटल है..
वीरता ये प्रबल है।।।
आखिर कब तक हारा हुआ रूठेगा!!!!
कभी न कभी वह जरूर उठेगा!!!
आरंभ प्रचंड है,
हौसला बुलंद है!
रोक सको तो रोक लो,
टोक सको तो टोक लो!!!
मेहनत कर....
मेहनत कर , हल मिलेगा
आज नहीं तो कल निकलेगा
अरे अभी तो असली उड़ान भरनी है!!
अभी तो पूरा आसमान बाकी है।।।।
अर्जुन सा लक्ष्य रख , निशाना लगा
मेहनत से तो रेगिस्तान में भी जल निकलेगा।।
बेशक तू आज बिखरा है लेकिन,तू कल चमकेगा
बेशक आज तू टूटा है लेकिन,
कल तू जीतेगा!!!
कुछ रिश्ते....
कुछ रिश्ते है जो खास है
कुछ रिश्ते है जो साथ है!!
कुछ रिश्तों ने दिल तोड़ा
बस अपनो से ही आस है....
कुछ रिश्ते जो साथ थे
उन्होंने तोड़ा विश्वास है!!!
कुछ ने खेला खेल है
उनको नहीं अहसास है।।।
कुछ हाथों से छूट रहे
कुछ बातों से रूठ रहे!!!
कुछ ने ढका नकाब है
और अपनो के दिल ही लूट रहे।।।
यह मेरी पहली पुस्तक है। इसलिए भगवान का धन्यवाद अर्पित करने रुद्राक्षत्रकम –
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।