मैं एक लेखक हूं। मेरे लेख और कहानियां पत्र-पत्रिकाओं तथा सोशल मीडिया में प्रकाशित होते रहते हैं। अनेक पाठक - पाठिकाओं के पत्र इस संबंध में मुझे आते रहते हैं। अभी - अभी मैं सोकर उठा था। दैनिक नित्यकर्म से निवृत्त होकर मैं अपने स्टडी रूम में कुछ लिख रहा था कि अचानक किसी ने कॉल - बेल बजाई। मैंने उठकर दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे पर पोस्ट - मैन खड़ा था। उसने मुझे एक पत्र दिया।
मैंने पत्र खोला तो पता चला कि यह राजस्थान की किसी पूर्व रियासत की राजकुमारी का पत्र था। पत्र का कागज बहुत महंगा व सुगंधित था। राजकुमारी जिसका नाम राजकुमारी प्रिया था ने लिखा था कि
सेवा में,
श्रीमान प्रताप सिंह जी।
मैं आपकी रचनाओं की एक पाठिका हूं। पहले भी मैं आप से पत्र व्यवहार कर चुकी हूं। मैंने मेरी रियासत की प्राचीन लाइब्रेरी को देखने का आपसे अनुरोध किया था। आपने इस विषय में अपनी सहमति दी थी। क्या आप इसी हफ्ते हमारे गरीब खाने में पधार सकते हैं। आप मुझसे फोन पर भी बात कर सकते हैं। मेरा फोन नंबर ----- है।
---- जोरावर गढ़ की राजकुमारी
कुमारी प्रिया
मैंने दिए गए मोबाइल नंबर पर अपने मोबाइल से कॉल की। फोन प्रिया ने ने ही उठाया। मैंने प्रिया को बताया कि इस सोमवार तक मैें जोरावर गढ पहुंच जाऊंगा। सोमवार होने में अभी 5 दिन थे। मैं तैयारियों में जुट गया। दो-तीन जोड़ी कपड़े, डायरी - पेन, कुछ रुपए आदि मैंने एक छोटे बैग में डाले और बस - स्टैंड की तरफ चल पड़ा। वहां से 5 घंटों के सफर में मैं ऋषिकेष पहुंच गया। ऋषिकेष से बस पकड़ कर मैं दिल्ली पहुंच गया। दिल्ली से बस पकड़ कर मैं जयपुर पहुंच गया। जयपुर में मैैं एक होटल में रुक गया। वहां नहा - धोकर मैंने भोजन किया और शांति से सो गया। एक-दो दिन जयपुर में गुजारने के बाद मैंने प्रिया को फोन किया और उसे बताया कि अगले दिन मैं जोरावर गढ पहुंच जाऊंगा।
अगले दिन मैं एक छोटी गाड़ी बुक कर के जोरावर गढ़ पहुंच गयाा। जयपुर से जोरावर गढ़ 45 किलोमीटर दूर था। प्रिया ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया।
प्रिया 30 - 35 वर्ष की अत्यंत सुंदर युवती थी। राजसी रोब की झलक उसके सुंदर चेहरे पर थी। वह अत्यंत गौरवर्ण व साढे 5 फीट की एक लंबे कद की युुुवती थी। इस समय वह जींस और टॉप पहने हुई थी।
राजे - रजवाड़े आजादी के बाद खत्म कर दिए गए थे। परंतु कुछ भूतपूूर्व राजा और राजकुमारी लोग आजादी के बाद नेता उद्योगपति आदि बन गए थेे। राजकुमारी प्रिया के पिताजी के पास अथाह धन व महल थे। चतुर प्रिया ने अपने 10 महलों में से 9 महलों को फाइव - स्टार होटल में तब्दील कर दिया था और एक सबसे शानदार महल राज - पैलेेस अपनी रिहायश के लिए रख लिया।
इसमें सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद थीी। मुुुुझे यहीं ठहराया गया। मैं जाते ही सो गया। कुछ घंटों बाद मेरी नींद खुली। बाथरूम में जाकर मैंने स्नान आदि किया। फिर दूसरे कपड़े पहन कर सोफे पर बैठ गया। अब मैंने कमरे पर नजर दौड़ाई तो देखा कि कमरा बहुत साफ - सुथरा था। एक किनारे मेज पर कुछ दुर्लभ पुस्तकें व खाली नोट्स - बुक्स रखी हुई थी। कुछ पेन भी वहां रखे हुए थे। मैं समझ गया गया कि यह इंतजाम मेरे लिए ही है। मैं एक खाली नोटबुक लेकर उस पर लिखने लगा। पेन और नोटबुक का पेपर दोनों महंगे और सुगंधित थे। मैं दुर्लभ पुस्तकों का अध्ययन कर उनका सारांश नोटबुक में लिखने लगा। तभी कॉल बेल बजी। मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि राजकुमारी प्रिया अपने हाथों में भोजन की थाली लेकर खड़ी थी। उसके साथ दो महिला अंगरक्षक खड़ी थीं। वह थाली लेकर अंदर आई और उसने थाली सामने एक खाली मेज पर रख दी। दोनों अंगरक्षक बाहर ही खड़ी रही।