not just thread in Hindi Women Focused by Jyoti Prajapati books and stories PDF | सिर्फ धागे का बंधन नही

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सिर्फ धागे का बंधन नही

स्कूल से आकर बैठी ही थी कि बड़े भैया का फोन आ गया। अचानक उनका फोन आया देख खुशी भी हुई और आश्चर्य भी। क्योंकि बड़े भैया ना के बराबर ही फोन करते थे। भतीजे जब फोन लगाते तब ही बात करते थे। वो भी ज़रूरत भर की...जैसे,"कैसी है?घर मे सब कैसे हैं? स्कूल कैसा चल रहा है??" ओर अंत मे,"ध्यान रखना अपना..!"

मैंने फोन रिसीव कर कान से लगाते हुए कहा,"हां भैया !!"
भैया बोले,"आ गयी स्कूल से..?" मैंने कहा,"हॉं भैया बस अभी आकर बैठी ही थी और पर्स में से मोबाइल निकाला तो आपका फोन आ गया !!" फिर हमने एक दूसरे के हालचाल पूछे। उसके बाद भैया बोले,"मैं आ रहा हूँ तुझे लेने राखी के लिए !!वहां कुछ काम है तो वो भी हो जाएगा और तुझे भी ले आऊंगा !!"

बेहद खुशी हुई मुझे सुनकर की भैया खुद मुझे लेने आ रहे हैं! थोड़ी देर इधर-उधर की बात करने के बाद मैंने फोन रखा और याद करने लगी बचपन में रक्षाबंधन हम कैसे मनाते थे..?
शादी के कुछ सालों तक भैया खुद मुझे लेने आते थे...लेकिन फिर उनका प्रमोशन होकर ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया और उन्होंने वहीं अपना घर खरीद लिया !! काम की व्यस्तता भी बहुत बढ़ गयी थी उनकी। इसलिए मैंने ही मना कर दिया था कि आप परेशान मत हुआ करिये...मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ, खुद आ जाऊंगी !!
हर बार मैं ही उनके बिन बुलाए पहुंच जाती थी !! पूछने की ज़रूरत भी क्या..? सगे भाई का घर है..पूरे अधिकार से जा सकती हूँ वहां तो मैं !!

आज जब भैया ने लेने आने की बात कही तो आंसू आ गए। खुशी से नही...दुविधा से!! बड़े भैया ने अचानक कह दिया कि अगले हफ्ते आ रहे हैं लेने...ओर पिछले पंद्रह दिन से छोटे भैया भी मुझे याद दिला रहे हैं कि इस बार राखी पर मैं उनके घर आऊं, हर बार पहले बड़े भैया के यहां जाती हूँ और उनके यहां से छोटे भैया के यहां जाती हूँ। मगर इस बार तो छोटे भैया ने ज़िद पकड़ ली कि मैं पहले उसके यहां ही आऊं !! बड़ी कशमकश में उलझी हुई थी मैं...क्या करूँ? किसके यहां जाऊं..? जिसके यहां पहले नही जाऊंगी वही नाराज़ होकर बैठ जाएगा..!
पिछली बार भी छोटे भैया ने कहा था,"मैं आ जाऊं तुझे लेने.?" तो मैंने ये कहकर मना कर दिया था कि,"नही...मैं खुद आ जाऊंगी !! पन्द्रह अगस्त था तो पहले से नही आ सकती ! उसी दिन रक्षाबंधन भी था..!पहले राष्ट्रीय पर्व फिर धार्मिक पर्व !!" लेकिन जब मैं उस दिन घर पहुंची तो भतीजा आया हुआ था!! मैं उसके साथ चली गयी। छोटे भैया को जब पता चला तो बहुत नाराज हुआ था !! कितनी बहस की थी उसने मुझसे..! यहां तक कह दिया कि,"वो ऊंची पोस्ट पर है...उसके यहां तेरी आवभगत अच्छे से होती है, अच्छी महंगी साड़ी देता है वो तुझे इसलिए उसके यहां जाती है तू !!"

मैं तो उसे समझा समझाकर थक गई थी की ऐसा कुछ नही है..!! लेकिन उसके बाद से मैं जितनी बार भी रक्षाबंधन पर उसके घर गयी...उसके चेहरे पर हर बार की तरह चमक नज़र नही आई !राखी बंधवाने के बाद वो एक साड़ी ओढ़ाकर इतिश्री कर लेता..! उसके इस रवैये से दुःख तो होता...मगर उसका भी कहना गलत नही था। मैं हर बार बड़े भैया के यहां ही पहले जाती थी।
हमेशा से दोनो भाइयो के बीच ऐसा नही था...कुछ मेरा बड़े भाई के प्रति अधिक लगाव ओर कुछ उनकी शादी के बाद भाभियों के कान भरने की आदत से दोनो ऐसे हो गए थे...!
मेरी शादी सबसे पहले हुई, उसके बाद बड़े भैया की ओर फिर छोटे भैया की। जब तक दोनो की शादी नही हुई थी..तब तक दोनो ही बड़े हर्ष उल्लास से रक्षाबंधन का इंतज़ार करते थे की बहन को लेने जाना है। वो राखी बांधेगी..!! जब दोनो की अलग-अलग शहर में नौकरी लगी थी तब भी दोनो मेरे ससुराल आ जाये करते थे राखी बंधवाने..!! चाहे दस मिनट के लिए ही आ पाते...मगर आते ज़रूर। उसके बाद दोनो की शादी हुई..! शुरुआती साल में मैं चाहे पहले किसी के भी घर जाऊं...दोनो ने कभी कोई शिकायत नही की !! मगर बीते कुछ सालों से दोनो को जाने क्या हो गया..?? दोनो में से जिसके घर पहले नही जाती वो ही नाराज़ हो जाता!!
पहले मुझे लगता था कि शायद मेरी ही किसी बात का बुरा लगा होगा तब तो मुझे लेकर दोनो भाइयो में टसल शुरू हो गयी। लेकिन एक दिन बड़े भैया के मुंह से निकल गया,"सही कहती है तेरी भाभी...छोटे तुझे महंगी कार में बिठाकर लेकर आता है तो तेरा रुतबा बढ़ता है...इसलिए तू मेरे यहाँ कैसे आ सकती है बस में बैठकर! उसी के यहां जाएगी !!!"

दुख तो मुझे बहुत होता दोनो भाइयो के तानों से....मगर सुनकर चुप रह जाती!! ठीक है, अपनी बहन से ही तो शिकायत कर रहे हैं ना..?? ओर भाई-बहनों में तो शिकायत चलती ही रहती है !! मगर बीते सालों में दोनो का टकराव बढ़ गया था बेवजह ही!! पापा-मम्मी के जाने के बाद मेरे ससुराल में पहली शादी थी। मायके से बेटी-दामाद के लिए कपड़े आते हैं !! छोटी भाभी ने भैया से कहा कि ये बड़े भैया का कर्तव्य है!क्योंकि वो बड़े हैं तो अब पिता का दायित्व उन्हें ही निभाना चाहिए !! और बड़ी भाभी ने बड़े भैया से कहा था कि हर बार हम ही क्यों खर्चा करें? छोटे भाई की कोई जिम्मेवारी नही है क्या..?
ओर अंत मे तय हुआ कि दोनो भाई ही कपड़े लेकर आएंगे अपनी-अपनी तरफ से....आखिर दोनो की अपनी अलग गृहस्थी हो चुकी थी !! दोनो भाभियाँ पूछने लगी,"साड़ी पसन्द आई कि नही...!!"मैंने जवाब दिया था,"आपका आना ज़्यादा ज़रूरी था भाभी...! साड़ी तो दोनो ही बहुत अच्छी है!!" दोनो भाभियाँ अपेक्षा रख रही थी कि मैं उनकी साड़ी को बेहतर बताऊं !! मामेरा के बाद मायके से आई साड़ी को ही पहनती है बहुये....मेरे लिए तो ये एक चुनौती हो गयी थी कि किसकी साड़ी पहनूँ..?? मुझे पता था...दोनो भाई से ज़्यादा भाभियां इंतज़ार कर रही है ! किसी अवांछित परिस्थिति से बचने के लिए मैंने दोनो भाई की लाई हुई साड़ी में से कोई सी साड़ी नही पहनी...!सबने बहुत पूछा...मैंने सबको बहाना बना दिया। लेकिन जब भाइयो ने पूछा तो दोनो को एकसाथ खड़ाकर मैंने उन्ही से पूछ लिया,"बता दो दोनो में से किसकी दी हुई साड़ी पहनूँ..? क्योंकि जिसकी नही पहनूँगी वही बुरा मान जाएगा !!" तब भी दोनो भाइयो ने एक ही जवाब दिया था,"कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नही है। तुझे जिसकी साड़ी पसन्द हो वो पहन लें...!हम क्यों नाराज़ होंगे..?"

कितने चालाक निकले मेरे भाई !! दोनो ने ही मेरे ऊपर डाल दिया। मैं जानती थी की कह तो दिया है, मगर दोनो ही देखना चाहेंगे कि अब मैं किसकी दी हुई साड़ी पहनूँगी !! लेकिन फिर भी मैंने उनकी दी हुई साड़ी नही पहनी !!

शादी के बाद इतना कुछ क्यों बदल जाता है भाई-बहनों के जीवन मे...?? कौन सा साथ रहना है इन्हें जो जिंदगीभर का मनमुटाव पालकर बैठ जाते हैं..? कभी-कभी तीज त्यौहार पर ही तो मिलना हो पाता है!


मैं उठी और एक बैग निकालकर उसमे दो जोड़ी कपड़े रख लिए। अब मुझे पता था कि मुझे किसके घर जाना है..? मेरे चेहरे पर एक निश्चिंतता ओर मन मे सन्तुष्टि आ गयी!!
मैंने दोनो भाइयो को मैसेज किया,"लेने मत आना मैं ही आ जाऊंगी...छुट्टी की थोड़ी समस्या है !! लेकिन आऊंगी ज़रूर !!"

थोड़ी देर तक मैसेज पड़े रहने के बाद दोनो भाइयो ने देख लिया और जवाब में "ओके" लिखकर भेज दिया। साथ ही कहा भी की अगर एंड टाइम पर मन बदल जाये तो बता देना...लेने आ जाएंगे !!"

राखी के पहले ही सास-ससुर से परमिशन ले ली थी। अब इतने साल हो गए हैं तो मैंने खुद ही आना-जाना शुरू कर दिया था।
राखी वाले दोनो बेटों को वहीं छोड़ दिया उनके पास...! ननद आने वाली है...उनकी एक बेटी है, वो ही राखी बांधती है दोनो को ! अगर ये मेरे साथ आये तो इनकी कलाई सूनी रह जायेगी। सलिये दोनो को वहीं रहने का कहकर मैं निकल पड़ी!! घर से भाइयो के घर की दूरी तकरीबन घण्टे भर की थी। मैंने दोनो को ही मैसेज कर दिया था निकलने से पहले,"मैं निकल ली हूँ घर से !!"

घण्टेभर बाद मैं घर के सामने खड़ी हुई थी..!!! आसपड़ोस के लोगो ने देखा तो देखकर मुस्कुरा दिए। मैं भी मुस्कुराई ओर आंखों में आँसू आ गए घर मे कदम रखते ही !! घण्टेभर से ज़्यादा का समय हो गया था...मैं अब तक नही पहुंची तो दोनो भाइयो को चिंता होने लगी। बार-बार दोनो कॉल किये जा रहे थे!! फिर मैसेज आया,"कहाँ तक पहुंची? अभी तक आई क्यों नही ??"

मैंने रिप्लाई किया,"मैं घर आ गयी हूँ भैया...!"

शायद दोनो भाई घर से बाहर निकले मुझे देखने के लिए। जब मैं नही दिखी उन्हें तो दोनो ने फिर से मैसेज किया,"कहाँ है? दिख नही रही !"

मैंने फिर मैसेज किया,'दिखूंगी भी नही!! तुम दोनो के घर नही आई हूँ !! अपने घर आई हूँ..अपने मायके ! वो घर जहाँ जन्म लिया मैंने!! बचपन से शादी होने तक ओर शादी होने के कुछ सालों तक जहां मेरे भाई इंतज़ार करते थे कि कब मैं उनके हाथों में राखी बांधूंगी...! बचपन में मैं दोनो के लिए फोम वाली बड़ी राखी लेकर आती थी...उस एक राखी से ही तुम दोनो की पूरी कलाई भर जाती थी!! तुम दोनो भाइयो में किसकी राखी अच्छी और बड़ी है इस बात को लेकर बहस ना हो इसलिए मम्मी दो एक जैसी राखी दिलाया करती थी मुझे! धीरे-धीरे राखी का साइज छोटा होने लगा...हमारे रिश्ते ओर दिल की तरह ही!!
मैं उस घर मे आई हूँ, जहाँ मेरे दोनो भाई इसलिए झगड़ते थे कि किसकी राखी बड़ी है...ना कि इसलिए कि मैंने पहले राखी किसे बांधी !!"
बचपन मे तुम दोनो भाई पापा से दस रुपये लेकर मेरी थाली में रखते थे। बहुत खुश होती थी में देखकर । फिर जब तुम दोनो भाइयो ने पहली कमाई से सौ रुपये निकालकर मुझे दिए..तब तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा!! लेकिन अब तुम दोनो हज़ार रुपये के साथ ही हज़ार रुपये की साड़ी भी देते हो ना...उसकी कोई कीमत ही नही है उन खुशियों के आगे !! सबकुछ फीका सा, बनावटी सा लगता है अब तो...!ना मन मे कोई खुशी ना ही उल्लास..! बस नाम के लिए रिश्ता निभाना हो गया है..!! हम तीनों सहोदर है ना...!सगे भाई-बहन ! एक ही कोख से जन्मे...!अगर मैं आप दोनो को राखी ना बाँधु तब भी हमारा रिश्ता तो खत्म नही हो जाएगा..?? भाई-बहन तो हम हमेशा ही रहेंगे !! फिर एक धागे को बांधने के बाद भी अगर हमारे मन मे आपस मे एक दूसरे के प्रति भावनाएं नही है तो ये धागा बांधने का भी कोई औचित्य नही रह जाता !! ये धागा तो इसलिए बांधा जाता है ताकि माता-पिता के जाने के बाद बेटी के लिए मायके के दरवाज़े खुले रहें। उनके जाने के बाद इस त्यौहार के बहाने बेटी मायके आती रहे और उसके भाइयो से बनती रहे !! उसे उस घर का हिस्सा होने का एहसास होता रहे !!
एक समय था जब ये त्यौहार आता था तो मुझसे दिन काटे नही कटते थे। मायके आने की खुशी जो होती थी। लेकिन अब जैसे ही रक्षाबंधन का दिन नज़दीक आता है...मेरी घबराहट बढ़ने लगती है !! किस भाई के पास जाऊं पहले? दोनो में से किसी को बुरा लग गया तो?ओर इसी डर से त्यौहार का सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है!! जहां दस दिन पहले ही मायके जाने की ललक सवार हो जाती थी...वहीं अब दो घण्टे रुकना भी भारी लगता है !! तुम दोनो भाइयो के बीच मे मैं चकरघिन्नी हो जाती हूँ। हमेशा आप दोनो के बारे में सोचती हूँ। क्या आप दोनो मेरे बारे में नही सोच सकते? में अकेली एक बार मे एक ही भाई के घर जा सकती हूँ...!क्या आप दोनो मेरे लिए एक जगह इकट्ठे नही हो सकते...??सिर्फ कुछ घण्टो की ही तो बात होती है ना..??
आज के बाद मैं हर राखी पर यहीं आऊंगी...इसी घर मे ! आप दोनो को राखी बंधवानी हो तो यहीं आ जाइयेगा...! वरना राखी पार्सल तो मैं कर ही दूँगी !! किसी से भी बंधवा लेना..!!"

एक लंबा चौड़ा मैसेज टाइप करके मैंने दोनो भाइयो को सेंड कर दिया !! उस समय मुझे जो कुछ समझ आया वो सब लिख दिया..!! घर मे बहुत धूल हो रही थी!!ऊपर वाला पोर्शन तो किराए से चढ़ा रखा था ! बस ये दो कमरे ही नही दिए थे। ये हमारा घर जो था !! घर मे सिर्फ मैं अकेली थी...पूरा घर काटने दौड़ रहा था! किरायेदार भी कहीं गए हुए थे !! अपने घर की चाभी मुझे पकड़ा गए। जाते हुए बोले,"घण्टेभर में आ जाएंगे !!" मैंने एक नज़र घर पर डाली और फिर पूरे घर का झाड़ू लगाया, पोंछा फेरा !! एक बार ओर नहाई ओर तैयार होकर मन्दिर की सफाई की...पूजा पाठ करने के बाद पापा-मम्मी की तस्वीर के सामने जाकर खड़ी हो गयी..!
उनकी तस्वीर के सामने जाकर हालत ऐसी हो गयी जैसे वो दोनो मेरे सामने होते तो उनकी गोद मे सिर रखकर फफक पड़ती जी खोल के !! फिर खुद को संयत किया ओर पास की जनरल स्टोर से दो बड़े लिफाफे लेकर आई !! दोनो लिफाफे पर भाइयो के नाम और अड्र्स लिखने के बाद उनके लिए लाये रुमाल, नारियल और राखी को लिफाफे में रख दिया!!

दरवाज़े पर लगी घण्टी बजी। मुझे लगा किरायेदार आ गए शायद। मैंने टेबल पर रखी उनकी चाभी उठाई और जैसे ही दरवाज़ा खोला आवक रह गयी.....बड़े भैया सामने खड़े थे। उसके पीछे ही कार का दरवाज़ा बन्द करके छोटे भैया भी आ गए। मैं तो जैसे दरवाज़े से ही चिपक गयी। बड़े भैया को देखते ही मैं हर बार की तरह भावुक हो गयी और वहीं दरवाज़े पर ही उनसे लिपट कर रो पड़ी !! छोटे भैया मेरे सिर पर थपकी मारकर बोले,"देखा...करा दिया ना एहसास मुझे छोटे होने का..! तू हमेशा यही करती है..!!"

अगर मैं भैया के घर पर होती और तब भैया मुझसे ये बात कहते तो शायद मुझे उनकी ये बातें चुभ जाती। मगर इस वक़्त मुझे उनके ये बोल चुभे नही बल्कि हंसा दिए। बड़े भैया ने छोटे भैया को भी गले लगा लिया। हम तीनों भाई-बहन वहीं खड़े होकर पता नही कितनी देर ऐसे ही एक दूसरे से लिपटकर अपने दर्द को, शिकायतों को आंसूओं में बहाते रहे। फिर तीनो अंदर आये। बड़े भैया की नज़र टेबल पर रखे लिफाफो पर गयी। वो देखते ही बोले,"इत्ता भी भरोसा नही था क्या अपने भाइयो पर..? लिफाफे ही तैयार कर लिए !! वाह !!"

मैंने नज़रें झुका ली! अब क्या कहती..? उन्होंने गलत थोड़े ही कहा था !! बड़े भैया बोले,"जो बात तूने मैसेज में लिखी...वो सामने खड़ी होकर भी तो बोल सकती थी..??"

"भरोसा नही है इसको हम पे भैया !! तभी तो हमसे कहने के बजाय की तुम दोनो के यहाँ आने के बजाय में मायके में जाकर राखी बांधूंगी दोनो को...ये सीधे यहां आकर मैसेज कर रही !! हमसे ये बात पहले ही कह देती तो क्या हम नही आते यहां..?" छोटे भैया बड़े भैया की हॉं में हाँ मिलाते हुए बोले।
मुझे बहुत तेज़ गुस्सा आया उनपर..!! मेरी कभी हिम्मत ही नही होती थी दोनो भाइयो से कुछ कहने की..! शादी से पहले तो बराबरी से झगड़ लेती थी। मगर शादी के बाद अपने आप ही संकोच होने लगा !! मगर आज मैंने थोड़ी हिम्मत जुटाई ओर भीड़ गयी दोनो से बहस करने..!! खूब सुनाया दोनो को...! बताया कि कैसे उन दोनों के अहम के चक्कर मे मैं पिस रही थी ! मेरे लिए दोनो भाइयो में से किसी एक का चुनाव करना मतलब दिल और दिमाग मे से किसी एक को चुनने के बराबर है!! जो दोनो ही बेहद जरूरी है..!! उनसे झगड़ा किया कि दोनो ने हमेशा अपने बारे में सोचा...कभी एक बार भी मेरे बारे में सोचा..? मुझपर क्या बीतती है जब दोनो भाई मुझपर आरोप लगाते हैं कि मैं किसी एक से अधिक स्नेह रखती हूं दूसरे से कम...वो भी धन-दौलत की वजह से..!! मैं तो खुद सरकारी टीचर हूँ। खूब कमा लेती हूँ! मुझे नही ज़रूरत है इन रुपयों की !! मुझे बस अपने भाइयो के स्नेह की ज़रूरत है!!! मैं क्यों रुपये की वजह से भेदभाव करूँगी दोनो में..??"
मैं जो मन मे आया बोलती रही और दोनो भाई चुपचाप सुनते रहे !! शायद उन्हें समझ आ गया था कि उन दोनों के मनमुटाव के कारण मैं बेहद आहत थी। तभी तो उनके पास आने के बजाय सीधे यहां चली आई !!
मेरी आँखों से अनवरत आंसू बहते जा रहे थे...बड़े भैया से देखे नही गए। उन्होंने तुरन्त मेरे आंसू पोंछकर मुझे एक बार फिर अपने सीने से लगाकर पुचकारते हुए चुप कराया। बिल्कुल वैसे ही जैसे बचपन मे छुओ कराते थे, जब मैं गिर जाया करती थी और मुझे चोट लग जाती थी।
छोटे भैया दूध वगेरह लेकर आये और चाय बनाने पहुंच गए। वो तीन कप चाय बनाकर लाये। हमने चाय पी !!
फिर मैंने एक थाली में कुमकुम, चावल, नारियल, बताशे,राखी ओर जल का छोटा सा कलश रखा..! सबसे पहले मन्दिर में माताजी की तस्वीर को कुमकुम चावल लगाकर उनके सामने राखी, नारियल, बताशे रखे ! फिर कान्हा जी को राखी बांधी !! उसके बाद पापा-मम्मी की तस्वीर पर जो माला चढ़ी हुई थी उसपर एक राखी बांधी। फिर दरवाज़े पर एक राखी बांधी। छोटे भैया बोले,"ओ...उन सबको को राखी बांधना हो गया हो तो हमे भी राखी बांध दे...! तेरी भाभियों को बताए बिना ही चले आये हैं हम..!.! दोनो इंतज़ार कर रही होंगी!!"

मैं थाली लेकर बैठी ओर दोनो से बोली,"तय कर लो...पहले किसे राखी बंधवानी है..?"

छोटे भैया बोल उठे,"बड़े भैया को बांध !! बड़े हैं तो पहले अधिकार इन्ही का है !!"

मैंने मुस्कुराकर दोनो भाइयो को बारी-बारी से राखी बांधी !! दोनो जब मेरी थाली में रुपये रखने लगे तो मैने उन्हें रोक दिया। दोनो मेरी शक्ल देखने लगे। मैं बोली,"रुपये नही वचन चाहिए...!
दोनो ने कहा,"कैसा वचन..?"

मैं बोली,"यही वचन की आज के बाद आप दोनो हम तीनों के रिश्ते में अपना अहम आड़े नही आने देंगे !!मैं चाहे पहले जिसके भी घर जाऊं...आप लोग कभी शिकायत नही करेंगे ना ही मुझपर भेदभाव करने का आरोप लगाएंगे !! मैं जब भी आपकी चौखट पर आऊं आप दोनो मुस्कुराकर मुझसे मिलेंगे !!" अपनी बात कहकर मैंने अपनी हथेली आगे बढ़ा दी !! दोनो भाई एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। मेरी धड़कने बढ़ गयी। फिर दोनो ही बोले,"चलो...रुपये बचे हमारे !!" ओर ठहाका मारकर हंसने लगे !!

कितने सो बाद मुझे ये सुकून प्राप्त हुआ था !! इतने अरसे से दिल तरस रहा था दोनो भाइयो को एकसाथ बिना किसी मनमुटाव के देखने को..! आज ईश्वर ने मेरी सुन ही ली थी !! बात सिर्फ एक धागे की नही थी...बात उस रिश्ते की थी जो कभी दिल से हुआ करता था और धीरे-धीरे उस दिल के रिश्ते को सिर्फ एक धागे के रिश्ते का नाम दे दिया गया!!