Samarpan - 1 in Hindi Love Stories by Anubhav Pandey books and stories PDF | समर्पण (भाग -1)

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समर्पण (भाग -1)

आज दोपहर मैं अचानक लेटे लेटे अचानक जब मंझरी की आँख खुली तो उसने सुना की ऊपर की कमरे मैं से कुछ आवाज आ रही है औरवो आवाज धीरे धीरे तेज़ हो रही है

ये इतनी तेज़ आवाज में आखिर बेटा और बहु क्यों बात कर रहे हैं? अभी कुछ दिन तो हुए दोनों जब दोनों यहाँ लखनऊ आये छुटिओं मेंऔर सुबह तक तो सब ठीक था।

सब ने साथ में खाना खाया था , बहु खुद सबको परोस के खिला रही थी, पूछ रही थी की ये दूँ, मीठा क्या दूँ ? फिर अभी अचानक सेक्या हो गया जब दोनों ऐसे बात कर रहे हैं?

क्या करूँ ऊपर जाके देखूं, ये सवाल उसके मन में घूम ही रहा था वो इसी असमंजस में थी की क्या मेरा बेटा और बहु के बीच में बोलनाठीक रहेगा?

बहु क्या सोचेगी, की में उसके मामलों में क्यों पड़ रही हूँ? आखिर ये उनका आपसी मामला है।।।।


नवीन भी तो घर पर नहीं है, नहीं तो वही ऊपर जाके देखते की आखिर बात क्या है, और ये दोनों क्यों आखिर आपस में चिल्ला चिल्लाके बात कर रहे हैं ?


कभी भी जरूरत के समय ये घर पर रहे हो, मन ही मन अपने पति नवीन को बोलते हुए वापस मंझरी उसी सोच में पड़ गई और उधर उसकेबेटे और बहु का झगड़ा भी बढ़ता जा रहा था।


अचानक से मंझरी के कान में एक गूंजती हुई आवाज आई ,,,,,,, ख़बरदार आदित्य अगर तुमने मुझ पर हाथ उठाया और ये आवाज किसीऔर की नहीं उसकी बहु रश्मि की थी


मंझरी को बर्दास्त नहीं हुआ और वो दौड़ती हुई ऊपर की ओर भागी जहाँ उसके बेटे ने बहु को मारने के लिए हाथ उठाया था, इससे पहलेकी आदित्य रश्मि के ऊपर हाथ उठा पता मंझरी ने अपने बेटे का हाथ पकड़ लिया,,,,,,,,


"आदित्य ये तुम क्या करने जा रहे थे ? तुम्हे थोड़ी भी शर्म नहीं आई अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हुए "


गुस्से और रुदन से मिश्रित मंझरी की आवाज गूंजी। जो अचानक हुए घटना को देख कर रोना चाहती थी ।



" मां तुम ये नहीं समझोगी " अचानक मां को देख कर झेंपते हुए आदित्य ने बस इतना कहा और कमरे में देखने लगा।


अब मंझारी का रुदन भी गुस्से में बदल चुका था।


" मैं नहीं समझूंगी ? आखिर ऐसा क्या है जो तुम्हारी मां होकर भी मैं नहीं समझ सकती "


गुस्से में मंजरी बोली ।


" ये इनका हमेशा का है मां जी । हमेशा कोई परेशानी मोल लेते है और उसका गुस्सा घर पे निकलता है -


इससे पहले कि आदित्य कुछ बोले रश्मि ने उन आंसुओ को पोछते हुए कहा जो मां जी को देखकर लज्जावश निकल आए थे।


उसका गुस्सा अब सिसकियों में बदल चुका था ।


फिर भी उसने तेज आवाज में आंसू हटाते हुए कहा " मैं कोई मशीन नहीं की किसी को गुस्सा आए और वो आकर बस गुस्सा निकालजाए।


मैं भी इंसान हूं। अब ये मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा रोज रोज का ।


मौके की गंभीरता को समझते हुए मंझरी ने पानी का गिलास रश्मि की तरफ बढ़ाते हुए अपने पास बैठने को कहा ।


उम्र के ५३ पड़ाव कर चुकी मँझरी को ये समझते देर नहीं लगी की रश्मि कुछ छुपा रही है


मंजरी ने रश्मि से पूछा आखिर बात क्या है।


पहले तो रश्मि ने बात बदलने की कोशिश की लेकिन जब मंजरी ने जोर देकर पूछा तो वो खुद को रोक नहीं पाई और उसकी गोद में सिररखकर फूट फूट कर रोने लगी।


मंजरी उसके सर पे हाथ फिरा रही थी । आदित्य बाहर जा चुका था ।


मंजरी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है ।


उसने भी अभी ज्यादा जोर देना सही नहीं समझा ।


To be continued……..