हॉस्पिटल के अनेक गलियारों से गुजरते हुए , शिवानी किरण की बहन के पीछे पीछे यंत्रवत सी चली जा रही थी।
शिवानी के मन में विचारों का झंझावात उमड़ घुमड़ रहा था। क्या बात करेगी वह किरण से!
क्यों मिलने जा रही है उससे!!
और साथ में दिनेश, इतने वर्षों बाद हम तीनों एक दूसरे से!!!! सामना, हे भगवान!!
लौट जाऊं वापस!!!! नहीं नहीं, अब देर हो चुकी है !
हां, सामने कैंसर मरीजों का वार्ड ही तो दिख रहा है!!! नहीं आज मैं किरण से मिलकर ही जाऊंगी!
मैं क्यों मुंह छुपाऊं! मैंने कौन सा अपराध किया है! अपराधी तो वह है और उसकी सजा भगवान ने उसे दे ही दी!!!
जैसा कि उसकी बहन कह रही है वह मुझसे मिलने के लिए तड़प रही है! हां इसकी बहन को यह नहीं पता कि वह अपना पापों का प्रायश्चित करना चाहती है तो मैं उसके अंतिम समय में इतना तो कर ही सकती हूं।
अंतिम इच्छा तो दुश्मन की भी पूरी करते हैं और वह किसी दुश्मन से कम तो नहीं!!!!!
दीदी, इसी वार्ड में है मेरी दीदी अंदर चलिए!!
किरण की बहन की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी।
शिवानी ने कांपते पैरों व धड़कते दिल के साथ उस वार्ड में प्रवेश किया।
उसनेे चारों ओर वार्ड में नजर दौड़ाई वार्ड में केवल 5 ही बैठे थे। जिसमें से चार खाली थे और एक कोने वाले बेड पर वह लेटी थी!! हां वह किरण ही होगी।
उसकी बहन ने इशारा कर बताया, वह दीदी है!!!
सुनकर शिवानी का दिल और जोर जोर से धड़कने लगा।
वह किरण की बहन के साथ उसके पीछे पीछे दबे कदमों से किरण के बेड के पास पहुंची।
किरण दीवार की ओर मुंह करके लेटी हुई थी।
दीदी, दीदी, सो रही हो क्या!!! देखो तो आज आपसे कौन मिलने आया है!!!
कई आवाज देने के बाद भी किरण के शरीर में कोई हलचल ना हुई।
यह देख कर उसकी बहन थोड़ा घबरा गई। फिर थोड़ा सा अपने आप पर संयम रखते हुए उसने किरण को हाथ से थोडा हिलाया। इस बार किरण के शरीर में थोड़ी हलचल हुई। देख कर सब ने राहत की सांस ली।
दीदी, दीदी, ठीक हो आप!!!
किरण ने जैसे ही करवट बदली , उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही शिवानी का दिल कांप गया।
चेहरा क्या, केवल कंकाल था। आंखें धंसी हुई, रंग बिल्कुल काला, होंठ पीले जिन पर पपड़ी जमी हुई थी। सिर के बाल भी जहां-तहां से झड़े हुए थे।
दीदी , देखो तो आज आपसे कौन मिलने आया है। आंखें खोलो!!!!
किरण ने धीरे धीरे आंखें खोली। आंखों पर रोशनी पडते ही उसकी कमजोर आंखे चौंधया सी गई। उसने फिर से आंखें बंद कर ली।
कुछ पल बाद उसने फिर से अपनी आंखें खोलने की कोशिश की।
सामने खड़ी शिवानी पर उसकी नजर गई। आंखों को चौड़ा कर वह उन्हें पहचानने की कोशिश करने लगी। उस समय उसके चेहरे पर अनेक भाव आ जा रहे थे। काफी देर तक एकटक शिवानी व दिनेश को देखने के बाद
उसकी आंखों में आंसू आ गए। होंठ कुछ कहने की मुद्रा में फड़फड़ाने लगे।
लेकिन भावनाओं के अतिरेक में उसकी आवाज नहीं निकल रही थी।
आवाज के साथ ना देने पर किरण ने शिवानी के सामने अपने कृषकाय हाथों को माफी के लिए जोड़ दिया ।
शिवानी उसकी यह हालत देख अपने आप को रोक नहीं पाई।
किरण के प्रति उसका इतने सालों का गुस्सा, नफरत का वो लावा सब, आज किरण के आंसुओं के साथ बह गया। आज उसे किरण अपनी वही छोटी बहन लग रही थी जिससे वह अपने दिल की हर बात करती थी।
क्या हालत बन गई इस लड़की की!
हे भगवान, मैंने तुझसे इसका इतना बुरा तो नहीं करने के लिए कहा था!
इतना दुख, इतनी तकलीफ!!!
वह जल्दी से आगे बढ़ी और किरण का हाथ अपने हाथों में लेकर वही पास पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोली
"क्या हाल बना लिया है तूने अपना! यह सब कैसे!!!"
कहते हुए शिवानी की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।
शिवानी के हाथ को कसकर पकड़ते हुए किरण सुबकते हुए बोली "मुझे माफ कर दो दीदी! मुझे माफ कर दो।
मैंने आपकी जिंदगी में जहर घोला था। उसी पाप की सजा भुगत रही हूं।
आप तो सदा से ही बड़े दिलवाली रही हो। आपने सदा मेरा भला चाहा और मैंने, मैंने आपकी हंसती खेलती जिंदगी में पल भर में आग लगा दी । उस पाप के लिए यह तो बहुत ही थोड़ी सजा दी है भगवान ने मुझे! मैं तो इससे ज्यादा दुखों की हकदार थी!!!!"
"चुप हो जा पगली!!!! चुप हो जा!!!
कुछ नहीं होगा तुझे सही हो जाएगी तू!!!!!"
"नहीं दीदी, आप तो मेरा सदा अच्छा ही सोचती हो ना ! बस भगवान से प्रार्थना करो जल्द से जल्द मुझे मुक्ति दे! मेरी और जीने की चाह नहीं। इतने सालों से अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने के लिए ही मैं जी रही थी। आज आप मिल गए!!!
भगवान ने समय रहते मेरी सुन ली। आपसे भेंट हो गई। आज आपसे सब कुछ सच-सच बता मैं, अपने दिल का बोझ हल्का करना चाहती हूं । कहते हैं ना ,भगवान के घर जाने से पहले अपने किए सभी गुनाहों का प्रायश्चित कर लेना चाहिए शायद इसलिए भगवान ने आपसे मुझे दोबारा मिलाया है!!!"
"किरण तुम कहीं नहीं जा रही! हौसला रखो तुम सही हो जाओगी। "
"नहीं दीदी मुझे जीने की चाह नहीं। मैं तो कब की मर जाती लेकिन मेरे साथ ही वह राज भी मर जाता। जिसकी सजा भैया निरअपराधी होकर भी भुगत रहे हैं। मैं मरने से पहले उस कलंक को हम दोनों के सिर से मिटाना चाहती हूं क्योंकि अपराधी मैं भी नहीं! बस थोड़ा स्वार्थी हो गई थी ! अपने परिवार के लिए! अपनी बहनों के लिए!!!"
"क्या मतलब! क्या कहना चाहती हो तुम! मैं समझी नहीं!!!
"दीदी भैया बेकसूर है ! उस सब में भैया का कोई दोष नहीं और सच कहूं तो दोष मेरा भी नहीं! बस मेरी किस्मत का है! जो मुझे कुमार जैसा पति मिला। जिसके साथ मैंने 1 दिन सुख का नहीं देखा।
उसे मुझसे नहीं मेरे शरीर से प्यार था। मैं तो उसकी वासना पूर्ति का एक माध्यम मात्र थी। कभी पत्नी की नजर से उसने मुझे देखा ही नहीं!!
जब उसकी वासना शांत हो गई। उसने मुझे वह काम करने के लिए कहा जिसके बारे में, मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी।"
कहते हुए किरण फूट-फूट कर रोने लगी!!
"शांत हो जाओ किरण, शांत हो जाओ। तुम्हारी तबीयत बिगड़ जाएगी। आज तुमसे मिलकर मेरे मन के सारे मैल धुल गए। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। बस तुम ठीक हो जाओ।" शिवानी उसे शांत करते हुए बोली।
किरण के मन को थोड़ी शांति मिली तो वह आगे बोली "दीदी आपने मुझे छोटी बहन का दर्जा दिया लेकिन मैं ! मैं अभागन! आपके ही घर को!!!!!!!
कैसे कहूं, क्या कहूं! कहां से शुरू करूं! समझ नहीं आता!!!!
कहते हुए किरण अपनी उखड़ी हुई सांसो को वश में करने लगी ।
कुछ देर के लिए वार्ड में सन्नाटा छा गया। शिवानी, दिनेश और उसकी बहन सबकी निगाहें किरण पर ही टिकी हुई थी और किरण की छत की ओर शून्य में।
"दीदी कुमार का तो आपको पता ही था। उसमें इतनी बुरी आदतें थी जो कि उसकी कमाई से पूरी नहीं हो सकती थी।
मम्मी जहां काम करती थी ,पहले कुमार भी वही काम करता था। एक दो बार वह घर पर भी आया था। अपने झूठे नेक चाल चलन के दिखावे से उसने मां की आंखों पर पर्दा डाल दिया। आपको तो पता ही है तीन तीन बेटियों की मां की जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है और हमारी आर्थिक हालत शुरू से ही खराब थी।
आप कहती थी ना कि मैं बहुत खूबसूरत हूं तो दीदी
मेरी यही खूबसूरती मेरी सबसे बड़ी दुश्मन बन गई। कुमार मेरे रंग रूप पर रीझ गया था। उसने मां के सामने मेरे साथ शादी का प्रस्ताव रख दिया।
मां तो उसे एक शरीफ इंसान समझती थी। इतना अच्छा रिश्ता पाकर मां क्या, मैं भी बहुत खुश थी। मुझे लगा कि मेरे दुख के दिन कट गए पर मुझे क्या पता था कि दुख की तो अभी शुरुआत ही हुई है। मां के घर देखें दुख तो उनके आगे हजारों सुखों के बराबर थे।
शादी होने के एक दो महीने तक तो कुमार सही रहा। फिर धीरे-धीरे उसका असली रूप मेरे सामने आने लगा। उसकी सभी बुरी आदतों से धीरे धीरे कर पर्दा उठने लगा। मैंने उसे कई बार प्यार से समझाना चाहा लेकिन जितना मैं उसे प्यार से समझाती, उतना ही उसका गुस्सा और आदतें बिगड़ती जा रही थी। जब तब वह मुझ पर हाथ उठा देता।
मां का घर पास ही था लेकिन मैंने कभी अपने मुंह से उन्हें कुछ नहीं बताया लेकिन मेरे चेहरे के निशान और सूजी आंखें मेरे दुखों की सारी कहानी बयां कर देते थे।
मां ,मेरी हालत देखकर खूब रोती। हमेशा यही कहती मैंने तो किसी तरह अपने दुख के दिन काट लिए लेकिन तुझे, तुझे ऐसे तिल तिल मरता देखने से अच्छा है, भगवान मुझे उठा ले। मुझे क्या कम दुख दिए थे जो मेरी बेटी को भी!!!!
अपनी मां की हालत देखकर मैंने निश्चय कर लिया था कि किसी तरह भी कुमार को मना कर दूसरी जगह ले जाऊंगी जिससे मां ना मेरी हालत देखेगी ना दुख में घुलेगी। क्योंकि अगर उन्हें कुछ हो जाएगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों को कौन संभालेगा।
खैर किसी तरह से कुमार को मना कर हमने वह कस्बा ही छोड़ दिया।
उसके बाद ही दीदी हम आपके यहां रहने आए थे। मैंने सोचा था। नई जगह, नया काम शायद कुमार की आदतें यहां रहकर बदल जाएंगी। वह सारे अपने बुरे काम धंधे छोड़ दे लेकिन वह कहते हैं ना इंसान को हर जगह उसकी
फितरत के लोग मिल ही जाते हैं!
तो यहां भी वही हुआ। कुमार जहां काम करता था, वहां पर भी उसने गलत संगति वाले लोगों से दोस्ती कर ली। उसे सुधरता ना देख मैंने भी अपनी किस्मत व हालात से समझौता कर लिया था।
हां मेरे कुछ अच्छे कर्म कहो या मेरी मां की दुआओं का असर कि आप मुझे मिली सच कहूं दीदी, जितना प्यार, अपनापन आपसे मिला। मां के अलावा मुझे पूरी जिंदगी किसी से नहीं मिला।
क्रमशः
सरोज ✍️