टूर्नामेंट होने वाले थे | दौड़, रस्साकशी, ऊंची कूद, कबड्डी, खो-खो, और बास्केटबॉल | हर बार की तरह इस बार भी मैंने प्रतियोगिता में भाग लिया था | या तो मैं कबड्डी में भाग लेती या रस्साकशी या फिर खो-खो, लेकिन इस बार बास्केटबॉल में हिस्सा लिया | उसकी भी एक वजह थी, वो वजह थी, कृतिका, जो ना जाने क्यों इन दिनों मुझसे चिढ़ी हुई थी |
उसने मुझे खुले आम चैलेंज किया था की अगर मुझमे हिम्मत है तो उसे बास्केटबॉल हराकर दिखाऊं | उस वक़्त तो मैंने भी जोश ही जोश में हाँ कर दी थी |
पर हमें तो इस खेल की एबीसीडी भी नहीं पता और कृतिका तो शुरू से ही इस खेल में चैंपियन रही है, अब डर रही थी मैं |
तू डर मत | हम सीखेंगे और कृतिका का घमंड तोड़ेंगे, कामिनी ने डांटते हुए समझाया |
कृतिका की टीम से हमारा मुक़ाबला होने वाला था | कामिनी को टीम का कप्तान बनाया गया | हम सीख रहे थे और कुछ ही दिनों में अच्छा खेलने लगे थे | एक गजब का आत्मविश्वास हम सभी के मन में अब आने लगा था की अब हम भी कुछ है |
लेकिन वो कहते हैं ना कि जब तक राहें कठिन ना हो तब तक किसी भी मुकाबले का कोई मतलब नहीं | जिस दिन मैच होने वाला था उससे एक दिन पहले गेंद फट गई थी या जानबूझकर ऐसा किया गया था | जिसका दोषारोपण हमारी टीम पर कर दिया गया |
अब क्या करें? मैंने हताश होते हुए ठोड़ी पर हाथ टिकाया | इतनी जल्दी नई गेंद कहाँ से लायें !!
हमारी टीम को हारी हुई करार देने की तैयारी कर ली गई थी |
नहीं....नहीं.....मैं हार नहीं मानूंगी | कहीं से भी व्यवस्था कर लूंगी | तभी अचानक मुझे याद आया सागर के पास भी तो बास्केटबॉल है | हाँ !! मैंने देखा है, उसे उसके दोस्तों के साथ खेलते हुए |
कामिनी.......मैं बस अभी आती हूँ | तू यहाँ संभल लेना |
तू चिंता मत कर, कामिनी ने मुझे हिम्मत दी |
बस फिर क्या था!! मेम से परमिशन लेकर मैं जल्दी से अपनी साइकिल लेकर उसके घर पहुंची |
दरवाजा खटखटाया |
दरवाजा सागर ने ही खोला |
तुम? यहाँ? इस वक़्त? मुझे स्कूल यूनिफार्म में देखकर चौंका वो |
हाँ.......वो, दादी है घर में?
अभी तो नहीं है |
दादाजी?
दोनों ही नहीं है | क्यों कोई काम था?
फिर मैंने उसे टूर्नामेंट के बारे में बताया |
क्या तुम एक दिन के लिए अपनी बास्केटबॉल उधार दोगे? मैंने संकोचपूर्वक कहा
इट्स ऑल राइट, नो प्रॉब्लम, सागर मुस्कुराया |
ओह!! मैं वीसीआर बंद करना भूल गया | आ जाओ ऊपर ही चलते हैं मेरे कमरे में, उसने कहा |
ये पहली बार था, जब मैं किसी लड़के के कमरे में जा रही थी | पर मैं ये जानने को काफी उत्सुक भी थी की उसका कमरा दिखता कैसा है | अंदर ही अंदर थोड़ा सा डर भी लग रहा था |
डोंट वरी, सागर ने कहा | पता नहीं कैसे उसने मेरे मन के भावों को पढ़ लिया |
काफी सुन्दर है, अद्भुत!!! कमरे में घुसते ही मेरे मुँह से निकला |
कमरा बिलकुल ऐसे डिज़ाइन किया हुआ था जैसे किसी मैगज़ीन में चित्र दिए गए होते हैं | वहां एक सिंगल बेड था, जिस पर सफ़ेद और नीले रंग की प्रिंटेड चादर थी | तकिये भी उसी रंग से मेल खाते हुए | पास में ही एक आलमारी थी | सामने एक बड़ा सा शीशा लगा हुआ था जिसके दोनों ओर दराज बने हुए थे, जहाँ उसके रोजमर्रा की चीजे जैसे तेल, कंघी, परफ्यूम, कलाई घड़ी आदि सामान रखा हुआ था |
दीवार में ही बुकशेल्फ बनी हुई थी, जिसमें बहुत ही किताबें करीने से रखी हुई थी | मुझे यकीन नहीं हुआ की जनाब हिंदी साहित्य भी पढ़ते होंगे |
बेड के पास ही टेबल कुर्सी रखे हुए थे | एक दीवार पर कुछ फोटो फ्रेम लगे हुए थे | वो सागर के बचपन की तस्वीरें थी |
ये मैं हूँ, अपनी माँ के साथ | ये मेरे नाना-नानी है और दादा-दादी को तो तुम जानती हो ही | ह्म्म्मम्म...... मैंने हामी भरी |
कोने में एक छोटे से लकड़ी के बॉक्स में फुटबॉल, बास्केटबॉल रखे हुए थे | एक तरफ क्रिकेट बैट था और एक कील पर गिटार टँगी हुई थी |
फिर उसने बास्केटबॉल लाकर मुझे दी |
थैंक यू और उसके हाथ से बॉल लेकर जैसे ही मैं जाने को मुड़ी |
अभी आई और अभी जा रही हो |
मतलब!!!
अरे मेरा मतलब बैठो तो सही, उसने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और खुद बेड पर बैठ गया |
तुम्हारी मम्मी काफी सुन्दर है, मैंने फोटो की ओर देखते हुए कहा |
बेशक!! वे सुन्दर थी |
क्या मतलब?
मतलब.....वे इस दुनिया में नहीं है | मैं जब 12 साल का था, तभी वे इस दुनिया से रुखसत हो गई | बेशक वे नहीं है पर आज भी मेरे दिल और यादों में मेरी माँ जीवित है और हमेशा रहेंगी | उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता | मेरे पापा ने मेरी माँ के गुजर जाने के तुरंत बाद ही दूसरी शादी कर ली, कहते हुए उसकी आँखों में एक दर्द छलक आया |
ये कहकर उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया | उसने या मैंने हाथ हटाने की कोशिश नहीं की | काफी देर तक हाथों में हाथ लिए हम दोनों खामोश बैठे रहे | उसके चेहरे को देखते हुए और उसकी बातें सुनते हुए मुझे ऐसा लग रहा था की कितना दर्द समां रखा है उसने अपने मन में | आज उसको इस तरह भावुक देखकर मेरा मन भी व्यथित हो रहा था |
मैंने उसको सांत्वना देने की कोशिश की |
तुम्हारी मम्मी बहुत ही खूबसूरत है और तुम बिलकुल अपनी मम्मी पर ही गए हो |
सच में!!!! क्या मैं तुम्हे सुन्दर लगता हूँ? उसने मेरी आँखों में गहराई से झाँका |
हाँ.........नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है |
तो क्या मैं सुन्दर नहीं हूँ?
हाँ हो पर……………..उसके इस सवाल से थोड़ा परेशान हो गयी थी मैं |
पर क्या?
कुछ नहीं, अब मैं चलती हूँ | बहुत देर हो गई है, और मैं शरमाकर उठ खड़ी हुई |
जैसे ही मैं उठी, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया |
तुमसे बात करके बहुत अच्छा लगा, दिव्या | मेरा मन हल्का हो गया | क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी?
उसके इस प्रस्ताव को मैं मना नहीं कर पाई और अपना सर हाँ में हिला दिया |
ऐसे नहीं......फिर उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया, हमने हाथ मिलाया |
ऑल द बेस्ट फॉर यॉर मैच, उसने मुझे शुभकामनाएं दी |
थैंक्स और मैं मुस्कुरा भर दी |
और……………….और…………………हमने…………मैच जीत लिया |
आ………….आ…………..हम सब ख़ुशी के मारे खूब चिल्लाये |
कृतिका और उसकी टीम भौचक्की थी की हम यानी "लूज़र्स" उसकी भाषा में, कैसे मैच जीत सकती है! पर वो कहते हैं ना की जब मन में इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ संभव है और हमने कृतिका का घमंड चूर चूर कर दिया |
अगले ही पल विजेता ट्रॉफी हमारे हाथ में थी |
जीत का जश्न मनाने के लिए हम सब शिव बर्फ गोले वाला के पास बर्फ के गोले खाने आ खड़ी हुई | जहाँ हम सभी ने अपनी अपनी फरमाइश बतानी शुरू कर दी | मुझे ऑरेंज फ्लेवर देना, मुझे काला खट्टा, मुझे रानी कलर आदि आदि |
हम सब हँस रही थी | बर्फ के गोले चूस रही थी और एक दूसरे को कह रही रही थी, देख तेरे होंठ लाल हो गए, तेरे गुलाबी, तेरे काले और तेरे ऑरेंज |
उसी वक़्त सागर भी अपने दोस्त हरमन के साथ वहां आया | दिव्या को खुश देखकर वो सब समझ गया था और उसे धीमे से कॉन्ग्रैचुलेशन्स कहा |
दिव्या की अठखेलियां देखकर उसके होंठों पर रह-रह कर मुस्कान आये जा रही थी |
जब हरमन ने उसे मुस्कुराते हुए देखा तो पूछ ही लिया |
ओये!! क्या हुआ यार? ऐसी की गल है, सानु वी तो वता, हरमन ने पूछा |
हरमन पंजाबी है और सागर के साथ ही पढता है | दोनों पक्के यार है |
ना वीरे!! कोई गल नी, मैं तो बस ऐंवे ही |
सागर उसके साथ रहकर पंजाबी बोलना भी सीख गया था |