Harkhu in Hindi Short Stories by shubham mishra books and stories PDF | हरखू

Featured Books
Categories
Share

हरखू

अभी सुबह होने में कुछ देर बाकी थी | हरखू , बाबू जी जमीदार की घर की ओर भगा जा रहा था| भोथरे काका जिनका द्वार हरखू से सटा हुआ था बाहर ही पुरवाई का आनन्द लेने के लिए चारपाई डाले हुए थे ;बिचारे रात भर के जगे दस्त से परेशान धोती की बाँध को ढीला किये लेटे थे ,भोथरे काका वैद जी के घर जाना चाहते थे ,लेकिन ; रामू जो भोथरे काका का लड़का था अपनी पत्नी को लेकर अपनी ससुराल गया था |
जिससे भोथरे काका का अकेले जाना एक सन्घर्ष सा था ; उनके पास एक टूटी हुई साइकिल थी जिसको चलाने में वह असमर्थ थे वैद जी का घर जो दूसरे गाँव में था वो भी नदी उस पार ;यह सब सोच कर वो लेट गए ; पुरवाई में उनकी आँख कब लग गयी उन्हें पता ना चला | आचानक, उन्हें चटर पटर की आवाज सुनाई दी |
जो सायद किसी के चलने की चप्पलो से निकली आवाज थी ,भोथरे काका जो थोड़ा डर सा गए ;क्योकि उस समय गाँव में अक्सर चोरिया हुआ करती थी ,गाँव में दो जगह डाका भी पड़ चूका था ;डकेत दरोगा जमीदार को अपने साथ उठा ले गए थे जो गाँव के बड़े जमीदारो में जाने जाते थे ; आज तक उनका पता ना चला जिससे भोथरे काका ने घुटनों को सिर ओर खीचा ओर गहरी नींद में होने का नाटक किया परन्तु विवशता की अन्गराई ने उन्हें उठने पर मजबूर कर दिया फिर क्या था जो हुआ उससे उनका दस्त मानो एक कल्पना था | तीन कद का आदमी जो सायद हरखू था ,तेजी से बाबू जी जमीदार की घर की ओर भागा जा रहा था , पीछे से छनछनाहट की आवाज आई ,जो बुधना के पायलो की आवाज थी जो हरखू की धर्मपत्नी थी; अभी ही तो शादी हुई थी दोनों की ,इतनी सुन्दर ,सुशील ओर गुणवान लड़की लम्बी कद काठी जितनी भी तारीफ की जाये कम है | दिखने में ऐसा प्रतीत होता मानो कितने धनवान घर में बिहाई हो लेकिन बड़ी अभागन है बिचारी कहाँ इस दरिद्र के यहाँ इसकी किस्मत लिखी थी |

एसा सोच कर भोथरे काका फिर से चारपाई पर बैठ गए | परन्तु इतनी रात को हरखू का बाबू जी जमीदार की घर की ओर जाना उन्हें कुछ समझ ना आया | जैसे उनका पेट फूलने सा लगा अब उन्हें सुबह होने का इंतज़ार था|लेकिन सुबह होने में अभी घंटो बाकी थे, दस्त से परेशान भोतरे काका अब हरखू की लम्बी व तेज़ चाल से परेशान
उनको इस बात ने आश्चर्य में डाल दाल दिया की जो हरखू गोधूली होते ही सब काम छोड़ चुप जाता है ,अँधेरे से डरने वाला आखिर इस घड़ी कहाँ जा रहा है | भोथरे काका का सब्र का बाँध टूटता की सूर्यदेव ने अपना दर्शन दे दिया |
उन्होंने अपने बैलो को आपने साथ ले लिया ओर हरखू के द्वारे पहुच कर कहने लगे ,हरखू मैंने कल ही खेतो में बीज बोये थे और सुबह जब में खेत में गए तो कोई उन पर चल कर गया है ,कही तू तो नहीं है न क्योंकी मुझसे कही ऊँच- नीच न हो जाये | मैंने तुझको रात को खेतो में जाते देखा था साथ में तेरी मेहरारु भी थी |
हरखू एक टक-टकी नजरो से भोथरे काका को देखता रहा 'और लड़खड़ाती व मद्धम स्वर में बोला, काका हा मैं ही था जंगली जानवरों से खेती बचाने गया था ; इतना कह कर वह भीतर की ओर चला गया | काका बुधना को ताकते हुए बोले सुनती है रे हर्खुआइन सुना है तेरी काकी कहती है की तू गाय के दूध की मिठाईयां बड़ी ही स्वादिष्ट बनाती है ;शरीर के साथ अब स्वाद की उम्र भी कम हो चली है ,क्या पता कल को रहू न रहू कभी आकर मेरे घर बना जाना तेरी काकी भी खा लेगी ओर जो से खासते हुए जाने लगे | लेकिन इस बात के अंतर्द्वंद ने उन्हें रोक दिया की हरखू रात को बाबु जी जमीदार की घर की ओर क्यों जा रहा था | वह पीछे मुड़ के चिल्लाते हुए बोले सुन हरखुआ भले ही तुझे इस जुबान की कड़वाहट का स्वाद लगे लेकिन ,देख तू अपना न सही अपनी मेहरारू का सोच कब तक इस द्ररिद्रता भरी झोपड़ी में रहेगा जिसमे पतोहिया का छत भी न नसीब हो ऐसा कह कर चलते बने | बुधना भी झंनाते हुए बोली का गलत कहत हए भोथरे काका ;कमस कम अब तव इ सोचो रोती हुई चूल्हा जलाने लगी | हरखू भी बुधना को कोसता हुआ बोला तो क्यों न ले आयी अपने घर से कुछ धन तेरे घर वाले ने भी तो मुझे तेरे साथ व्याह में चिंता व्याह दिया ; या क्यों न कहती अपने भोथरे काका को की कुछ धन ये ही मुझे उधार दे दे 'बड़ा आया शुभचिंतक कही का कहते हुए खेतो की ओर चल दिया |

यह एक सारांश मात्र था आगे के अंश हेतु कमेंट करे
लेखक
शुभम मिश्र
8795170343
shubhammishra24373@gmail.com