स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 6 in Hindi Fiction Stories by Nirav Vanshavalya books and stories PDF | स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 6

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स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 6

वह स्टॉक मार्केट ही है जिसने हर हाल में हमारी 30% इकोनामी रिजर्व रखी है. यदि सारी दुनिया आतंकवाद के चपेट में भी आ जाती है और फिर भी हमारा स्टॉक एक्सचेंज जिंदा है तो हम अभी भी सुरक्षित है.

स्टॉक की विशेषता यह है कि इसके बंच ( इंटरेस्ट सकिंग)( ब्याज शोषण)कभी टूटते नहीं और यदि टूटते भी है तो वह बंच का कौन सा हिस्सा किसके पास है और किसके नाम से है यह हम फट से पता लगा सकते हैं. यदि इन नामों में किसी आतंकवादी का नाम है तो हम उसे ढूंढ निकाल सकते हैं. मगर हमारी आज की पारंपरिक करेंसी में ऐसा नहीं हो सकता. यह काम केवल एंटीफंगस ही कर सकता है. यानी कि प्रति फूग, यानी प्रफुग.

दोस्तों, मैं आपको प्रफुग के बारे में कितना ही बताऊ मगर शायद मैं पूरा समझा ना पाऊं. मगर यह बात तय है की कथा के किसी ने किसी मोड़ पर अदि
यह बात आपको जरूर समझाएगा और वह भी परफेक्ट.


अदैन्य ने दुनिया के कई बड़े देशों को खत लिखे और उनसे कॉरस्पॉडेंट भी किया और एंटीफंगस के एस्टेब्लिशमेंट की बात की. मगर सभी ने एक ही सवाल किया, तुम्हारी जर्मन इकोनामी इसके बारे में क्या कहती है? और अदैन्य को चुप हो जाना पड़ता था.

जहां सारी दुनिया आतंकवाद के दमन के लिए निरर्थक प्रयास कर रही हैं, वहां अदैन्य को एक नक्कर( ठोस) बात समझ में आ जाती है कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे आतंकवादियों के हाथों में हमारी करेंसी ही ना जा पाए. फिर वे किससे हथियार खरीदेंगे और किस पर गोलियां चलाएंगे. अदैन्य भले ही अपनी दोम दोम युवावस्था पर हो और लड़कियां कुछ भी निछावर करने तैयार हो मगर फिर भी अदैन्य, तत्व अर्थशास्त्र में किसी वयोवृद्ध गुरु तुल्य से कम नहीं.

चाणक्य के अतिरिक्त ऐसा कोई नहीं जो अदैन्य को
अर्थशास्त्र का उपदेश दे सके. कुछ अंश तक तो कदाचित चाणक्य भी नहीं.

वेटिकन से लेकर वाइट हाउस तक लगभग सभी यह मानकर चैन की नींद सो रहे हैं कि ग्लोबलाइजेशन इस गोइंग ऑन.

मगर प्रत्येक शब्द का एक पदार्थ होता है और उन प्रत्येक पदार्थो की एक परिभाषा भी होती है.

ग्लोबलाइजेशन नामक पदार्थ की परिभाषा ना तो बेथलेहम के धर्मगुरु जानते हैं और ना ही व्हाइट हाउस के विद्वान.

यह परिभाषा केवल अदैन्य ही जानता है.

यह कोई मंतव्य नहीं है बल्कि एक ठोस परिभाषा है की ग्लोबलाइजेशन का सीधा संबंध इकाई( one Ness)के साथ जुड़ा हुआ है.

ग्लोबलाइजेशन और मल्टी लिसम कभी एक साथ नहीं चल सकते.

जी हां बहू वाद और वैश्वीकरण कभी भी एक साथ नहीं चल सकते.

जहां पश्चिम के कुछ मांधाता ओ ने ग्लोबलाइजेशन की परिभाषा, अ वर्ल्ड बिकम ग्लोबल विलेज जैसी बना दी थी वहां प्रफूग के संस्कारों ने अदैन्य को ऐक्य वादी बना दिया था.

अदैन्य के मंतव्य से ग्लोबलाइजेशन याने ग्लोबल नेशन, 1 प्रेसिडेंट, वन प्राइम मिनिस्टर, वन करेंसी और सेम टाइम इन इलेक्शन.

इतनी बातों की उत्पत्ति के बिना यह संसार एक वैश्विक गांव कभी नहीं बन सकता, आप चाहो तो कुछ भी कर लो.

अदैन्य के मंतव्य से इस संसार के सारे अपराध अंक बहु चलन(multi currency) से ही व्याप्त है.

यदि पूरे भूमंडल पर एक ही करेंसी हो तो अपराध अंक शुन्य के लगभग हो.