जूही वही खड़ी हो गई, " अच्छा तो अब तुम मुझ पर चिल्लाने भी लगे हो?????"
" अरे तुमसे बात नहीं कर रहा था में । वो तो" वीर प्रताप आगे कुछ बोल पाए उस से पहले यमदूत बोल पड़ा।
" बोहोत बुरी बात है। तुम्हे लड़कियों से बात करना सीखने की जरूरत है। " इतना कहकर यमदूत गायब हो गया।
" मुझे बचाने यमदूत लाना तुम्हे याद रहा पर एक गाड़ी ले कर आना भूल गए????? नजाने कैसी जगह है ये पूरी सड़क पर एक गाड़ी नहीं है।" जूही ने चिल्लाते हुए कहा।
" अरे मुझे कही आने जाने के लिए गाड़ी की जरूरत नही है। तुम तो जानती हो ना।" वीर प्रताप उसे समझाकर एक होटल ले आया। जहां जूही ने खाने की चीजे मंगवाई।
" ये रहा सारा खाना। तुम खाओ में चलती हू " जूही।
" रुको।"
" क्या हुवा???" जूही ने पूछा।
" तुम्हारे खाने का बिल कौन भरेगा???" वीर प्रताप।
" मेरा खाना ??? मैने ये तुम्हारे कहने पर मंगवाया है। और मेरे पास कोई पैसे नही है इस के लिए।" जूही ने सर झुकाते हुए कहा।
" इसीलिए कह रहा हूं, चुप चाप यहां बैठो और खाना खाओ। बिल में भर दूंगा।" वीर प्रताप ने कहा।
" तो तुम मुझे खाना खिलाना चाहते हो?" जूही।
" हा। यकीनन तुम्हे किडनैप करने से पहले, उन गुंडों ने कुछ खिलाया तो नही होगा। इसीलिए। बैठ जाओ।" वीर प्रताप।
जूही उस के सामने बैठ कर, खाना खाने लगी। वीर प्रताप एक प्यारी सी मुस्कान के साथ बस उसे देखे जा रहा था।
" तुम गए नही अब तक ??" जूही ने पूछा।
" बस कुछ देर और।" वीर प्रताप।
" मैने तो नही बुलाया था, फिर भी कैसे पोहचे मुझ तक???" जूही ।
" मैंने बस तुम्हारी आवाज सुनी ‘ बचाओ ’ । बस फिर में पोहोच गया।" वीर प्रताप।
" में अपने बारे सोच रही थी। इस पूरे वक्त। सच मे।" जूही।
" हा । शायद । तुमने खुद के बारे में कुछ ज्यादा ही सोच लिया।" वीर प्रताप।
" मैने कुछ रिसर्च की, अपने बारे मे। उस दिन के लिए सॉरी। मुझे पता चला, किस तरह तुमने मेरी मां को और मुझे बचाया था। तुम्हारी ही वजह से में सात साल अपनी मां के साथ जी पाई। शुक्रिया।" जूही ने खाना खत्म किया।
वीर प्रताप ने अपने हाथो से उसके होठों पर लगा खाना पोछा। " शुक्रिया कहने की जरूरत नही। मैने तुम्हे बचाया था, मुझे इस बात का कोई पछतावा नहीं है।"
उस के पास आते ही जूही के लिए ये वक्त मानो रुक सा जाता था। वो कमजोर थी, उस के सामने। वो अपनी जगह से उठी और जाने लगी। " हा। ठीक है। मुझे हमारी बाते याद है। में तुम्हे कभी नही बुलाऊंगी। अगर हम कभी रास्ते मे मिल भी गए, तो पहचान नहीं दिखाएंगे। में दुवा करूंगी, तुम्हे तुम्हारे पसंद की अच्छी लड़की मिल जाए। जिसे तुम मे वो दिखे, जो तुम दिखाना चाहते हो। अब मुझे चलना चाहिए, खाने के लिए शुक्रिया।"
" क्या अब भी नाराज हो मुझसे।" वीर प्रताप ने पूछा।
" नही। मेरा कोई हक नही है तुम पे। नाराजगी किस बात की।" जूही।
" अच्छा। तो तुम गुस्सा दिल मे रखती हो।" वीर प्रताप।
" बिल्कुल नही। में वही कह रही हो जो तुम सुनना चाहते हो। तुम मुझसे नफरत करते हो। में भी तुमसे नफरत करने की कोशिश करूंगी।" जूही।
" इतनी नफ़रत।" वीर प्रताप।
" कहा ना कुछ नही है।" जूही।
वीर प्रताप ने उसे सही सलामत उसकी जगह छोड़ा। फिर वो वापस घर चला गया।
दो दिन बाद,
" सात साल की थी, जब वो उनके पास रहने गई। वो लड़की बचपन से बोहोत रोई है। बोहोत ज्यादा और उसे रूलाने वाले है ये लोग।" राज ने वो फाइल खोली और एक एक कर तीन तस्वीरे बाहर निकली। " उसकी आंटी और उसके दोनो भाई बहन।"
" यकीन नही होता तुम इतने काम के निकलोगे। एक ही दिन मे सब कुछ पता कर लिया।" वीर प्रताप ने राज से पूछा, उसने कल ही उसे जूही के परिवार के बारे मे जानने भेजा था।
" जब आप के पास पैसा हो तो कुछ भी जानना नामुमकिन नही होता। मैने बस थोड़ी पूछताछ की । उसके सारे पड़ोसी इन बातो को जानते है। जूही की मां उस के लिए बोहोत पैसे छोड़ कर गई है। जो उसे अठारह के बाद मिलेंगे। उसकी आंटी ने इसीलिए उसे अपने पास रखा है।"
" तुम्हे ये तस्वीरे कहा से मिली।" वीर प्रताप ने पूछा।
" मैने खींची। कैसी है अंकल ??? में अच्छा डिटेक्टिव बन सकता हू ना। बस मुझे वहा जूही नही दिखी।" राज ने कहा।
" वैसे अब आप इन लोगो के साथ क्या करेंगे??"
" इन्हे सजा मिलेगी। इनके बुरे कर्म इन्हे अब मुझ तक ले आए। देखो अब में इनके साथ क्या करता हु। जाने से पहले में उस के लिए इस जगह को बेहतर बना कर जाऊंगा।" वीर प्रताप ने आखें बंद की, जब उसने आंखे खोली उन तीन तस्वीरों पर दो सोने के बिस्किट आ गए थे। राज बस अपनी आंखे फाड़ कर सब देखे जा रहा था।
" वा......। सोने के बिस्किट। ये किस के लिए है ??? अंकल।" उसने पूछा।
" ये उनकी मुझसे उलझने की सजा है।" वीर प्रताप
" वाउ... । ये सजा कैसे हुई??? अगर है, तो मुझे भी सजा दीजिए प्लीज़ अंकल।" राज।
" चुप रहो। वरना तुम्हे यहां से निकाल दूंगा।" वीर प्रताप ने अपने जादू से वो बिस्किट जूही के कमरे मे छिपा दिया।
बस कुछ समय बाद उसकी आंटी जब जूही का कमरा तलाश रही थी। उसकी नजर उन बिस्किट पर पड़ी। दूसरे दिन वो तीनो उस बिस्किट को बेचने सोनार के पास गए। वीर प्रताप सामने के होटल मे बैठ सब देख रहा था।
" हा दादाजी। में और अंकल नाश्ता कर रहे हैं। मैने उनके लिए खास लैम्ब का सूप ऑर्डर किया है। आप बेफिक्र रहिए उन्हे पसंद आ रहा है। दादाजी वो क्रेडिट.... हेलो दादाजी। अ..." राज ने फोन रख दिया। " अंकल आप दादाजी से कह मेरा अकाउंट खुलवा दीजिए प्लीज़। अंकल।"
वीर प्रताप की नजर अब टीवी पर चल रहे एक डांस शो पर जा कर रुक गई थी।
" वो इसी उम्र का था। क्या ये वही है।" वीर प्रताप ने कहा।
" वो। वो कौन???" राज।
" वो राजा जिसके लिए में काम करता था।" वीर प्रताप।
" वो अंकल तो आप राजा के कैप्टन थे। कुल।" राज।
" चलो मेरे साथ।" वीर प्रताप उसे लेकर घर आ गया।
" क्या तुम्हे यकीन है??? ये वही है।" यमदूत ने टीवी पर उस लड़के को देखते हुए पूछा।
" हा । जब आखरी बार मैने उसे देखा था, वो इसी उम्र का था। १६ साल का। ठीक से देखो, बताओ मुझे क्या ये उसका पुनर्जन्म है???" वीर प्रताप।
" ये कैसे बताएंगे??" राज ने बीच मे पूछा।
" में ऐसे नही बता सकता। मुझे छूने ने की जरूरत है।" यमदूत " पर क्या फर्क पड़ता है, अगर ये उसका पुनर्जन्म हुवा भी तो।"
" फर्क पड़ता है। मेरे ९०० सालो का गुस्सा। मेरा अभिशाप। सब उसकी वजह से है। उसके पिछले जन्म मे में अपना वादा पूरा नहीं कर पाया। शायद इस जन्म मे ???" वीर प्रताप कुछ कहते कहते रुक गया।
" किसे छुना है??? क्यों छुना है ?? मुझे भी तो बताओ।" राज ।
" भूल जाओ उन बातो को। क्यों अपने जख्म अपने ही नाखून से कुरेत रहे हो? घाव जितने पुराने उतनी तकलीफ ज्यादा देंगे।" यमदूत ने उसे समझाया।
" ये तुम कह रहे हो। क्या तुम खुश हो अपनी पुरानी जिंदगी भुला कर??? कह दो के तुम जानना नही चाहते की कौन हो तुम? और तुम्हे ये सजा क्यों मिली??? तुम्हे अच्छे से पता है, अपनी यादें भुलाकर कितनी तकलीफ होती है फिर भी ये सलाह।" वीर प्रताप ने उसकी ओर देखते हुए कहा।
" सही कहा। पर मैने अपना ये वजूद भी अपना लिया है। तुम्हे भी वही सलाह दूंगा। अगर मुझे इस लड़के के बारे मे कुछ पता चला तो जरूर बताऊंगा।" यमदूत वहा से चला गया।
राज ने बीच मे बोलते हुए कहा " अरे मुझे तो कोई कुछ बताओ, आखिर चल क्या रहा है यहां???"