Dreams (final part) in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | सपने (अंतिम भाग)

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 107

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૭   જ્ઞાની પુરુષો –પરમાત્માના રૂપમાં એવા મળી જ...

  • ખજાનો - 74

    " તારી વાત પરથી એવું લાગી રહ્યું છે કે તમે લોકો મિચાસુને ઓળખ...

  • મૂર્તિનું રૂપાંતર

    મૂર્તિનું રૂપાંતર ગામની બહાર, એક પથ્થરોની ખાણ હતી. વર્ષો સુધ...

  • ભીતરમન - 53

    મેં ખૂબ જ ઉત્સાહ સાથે કાગળ ખોલી વાંચવાનું શરૂ કર્યું,"પ્રિય...

  • ગામડાં ની ગરિમા

    ગામના પાદરે ઉભો એક વયોવૃદ્ધ વડલો તેના સાથી મિત્ર લીમડા સાથે...

Categories
Share

सपने (अंतिम भाग)

नागेश के वीजा की अवधि समाप्त होते ही कम्पनी ने उसे कम से हटा दिया।वह कुछ ऐसे लोगो के सम्पर्क में आया जो वीजा खत्म हो जाने पर भी चोरी छिपे वहां काम कर रहे थे।नागेश भी काम की तलाध करने लगा।काम की तलाश मे कई जगह वह गया।लेकिन बिना वीजा कोई भी उसे काम देने के लिए तैयार नही हुआ।उसने पहले काम करके जो रुपये कमाए थे।वो धीरे धीरे खत्म हो गए।
नागेश दोस्तो से उधार लेकर खर्च चलाने लगा।एज महीना गुज़र गया और उस पर कर्ज भी हो गया।काफी भागदौड़ करने और मिन्नते करने के बाद भी बिना वीजा उसे कोई काम देने के लिए तैयार नही हुआ।बिना वीजा चोरी छिपे वह वहां कितने दिन तक रह सकता था।एक दिन पुलिस की पकड़ में आ गया।उसे जेल मे बन्द कर दिया और एक दिन उसे भारत भेज दिया गया।
नागेश दुबई गया तब उसकी आँखों मे ढेर सारे सपने थे।उसने सोचा था।ढेर सारे पैसे कमाकर लाएगा और परिवार की गरीबी दूर कर देगा।अपना गिरवी मकान छुड़ा लेगा।बहनों की धूम धाम से शादी करेगा।भाई को खूब पढ़ायेगा ताकि वह कहीं अच्छी नौकरी कर सके।और भी कई सपने थे।अपने देखे सपनो को मूर्त रूप देने के लिए ही वह अपना देश छोड़कर दुबई गया था।बेटे को विदेश भेजने के लिए रामचन्द्र ने अपना पैतृक मकान तक गिरवी रख दिया था।
मकान के लिए लिया कर्ज चुकाना तो दूर दुबई में दोस्तो से पैसा लेकर उसे खर्च चलाना पड़ा था।नागेश दुबई से खाली हाथ नही लौटना चाहता था।वह चाहता था।पैसा कमाकर ही लौटे।लेकिन उसे ज़बरदस्ती भेज दिया गया।
नागेश के खाली हाथ विदेश से लौटने पर माँ बाप ने जो आशा पाल रखी थी।वो टूट गई।नागेश जब विदेश गया।उसके परिवार वालो ने पूरे गांव में कहा था,"नागेश ढेर सारा पैसा कमाकर लाएगा।"v
लेकिन नागेश खाली हाथ विदेश से लौट आया था।गांव के लोग उसका मजाक उड़ाने लगे।जब नागेश घर से बाहर निकलता तो लोग चिढ़ाते,"अरे नागेश कितना पैसा कमा लाया।अरे हमे भी बता।हम भी चले जायेंगे।पैसा कमाने के लिए।"
"अरे कमाकर क्या खाख लाया।गांठ का भी गंवा आया।"दूसरा कोई उपहास उड़ाता।तीसरा और बात को आगे बढ़ाता,"लखपति बनने के लिए गए थे।खाखपति बनकर लौटे है।"
चौथा कहता,"दुबई तो जा आये।अब कहाँ जाओगे।इंग्लैंड,अमेरिका या फ्रांस।"
घर से बाहर निकलने पर नागेश को लोगो की इस तरह की व्यंग्य भरी बातें सुनने के लिए मिलती।लोगो उसे देखकर मजाक करते।खिल्ली उड़ाते।घर मे रहता तो माँ बाप को उदास देखता।जवान होती बहनों की आंखों में उसके दुबई जाते समय जो चमक आयी थी।वो बुझ चुकी थी।छोटे भाई को पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ रही थी।साहूकार रोज पेसो के लिए तकाजा करने लगा था।कर्ज न चुका पाने पर मकान खाली करने की धौंस देने लगा था।
लोगो के व्यंग्य बानो और जली कटी बातो के डर से घर से बाहर निकलने से डरने लगा।घर मे रहता तो माँ बाप बहनों के उदास चेहरे देखकर सोचता।अच्छे भविष्य का सपना दिखाकर तोड़ने का दोषी वो ही है।रात दिन ऐसा सोचने से वह निराश के गहरे गर्त में गिरता चला गया।
अपना देखा सपना टूटने का दर्द उसे कचोटने लगा।माँ बाप,भी बहनों के सपने तोड़ने का दोषी खुद को मानने लगा।और अपने को दोषी मानकर स्वंय को सजा दे डाली।