सधी आंच in Hindi Moral Stories by kavita jayant Srivastava books and stories PDF | सधी आंच

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सधी आंच

"कितनी बार कहा है कि, सुबह उठते ही मत बताया करो कि क्या दर्द है क्या तकलीफ है , सुबह सुबह ही शुरू हो गया तुम्हारा राग..'' वो गुस्से से भरा हुआ था
"मैंने कहां बताया आपने खुद ही तो पूछा कि, क्या हुआ?

"हां- हां गलती हो गयी, आंख खुली तो तुम्हारी शक्ल पर बारह बजे हुए थे अब मुंह बनाये रहोगी तो इंसान पूछेगा नही कि क्या हुआ ?

उसकी बात सुनकर अनु खिन्न हो गयी 'पूछना भी है और सुनना भी नही है' हद है यार... वो चुप हो गयी ,उसकी आदत थी जब उसे लगता कि राजुल नही समझेंगे तो वो शांत हो जाती थी और जब वो शांत हो जाती थी तो राजुल सोचता था वो जीत गया लेकिन आज ऐसा नही हुआ वो दोबारा बोला

''जब देखो तब तुम्हारा रोना शुरू हो जाता है, तुम ये क्यों जताती हो कि, तुम बेचारी हो ?

"अरे काम वाम से थक जाती हूं बस !और क्या ? उसने टालना चाहा

"काम ? अच्छा अब काम का ताना ,खाना ही तो बनाती हो तुम ? अब वो भी मत बनाना ,मैं कुक का इंतजाम कर लूंगा ..वैसे भी तुम्हारी शक्ल देखकर खाने की इच्छा ही मर जाती है , किसी दिन अगर कुछ स्पेशल बना भी देती हो तो इतना एहसान सा लगता है कि उफ्फ ,लगता है गलती कर दी फरमाइश करके"

"ऐसा क्यों बोल रहे हो ,जो बोलते हो सब कुछ तो बनाती हूँ , हां थक जाती हूं बस'' ..अब वो रोने वाली थी

"अरे कितना थक जाती हो यार , सब औरतें हैं सब दिन भर यही सब करती हैं पर तुम्हारी तरह सड़ा हुआ मुंह बनाकर नही बैठी रहती..!"

अनु हतप्रभ थी,कि कितना कुछ भरा हुआ है राजुल के मन में..! उसकी आँखों मे नमी थी,शायद उसका मन भर आया था इसलिए आंसू छलक आये । वो सोचने लगी कि, उसने गलती की अपनी तबियत के बारे में बोलकर ,लेकिन अगर उसने बोल भी दिया तो क्या हुआ.. ये कोई अपराध तो नही?
वो राजुल के इस अप्रत्याशित व्यवहार से डर गई थी सोचने लगी मैंने तो केवल इतना ही कहा था कि, पेट मे हल्का सा दर्द है और राजुल इतना ज्यादा फट पड़े ? क्या मैं इतना भी नही कह सकती ? पति पत्नी एक दूसरे से अपनी पीड़ा भी न कह पाएं तो क्या फायदा ? ये बीमार होते हैं तो पूरा घर खड़ा हो जाता है और मैं केवल इनसे ही तो अपनी पीड़ा कह सकती हूं ..! पर अब वो खामोश हो गयी भीतर के सवाल ,जुबान पर आने का साहस भी नही कर पाए और राजुल हिकारत भरी नजरों से देखकर पांव पटकते बाथरूम की ओर चला गया।

अनु उदास मन से उठी और किचेन में भागी ,सुबह के छः बज चुके थे , उसे बहुत से काम निपटाने थे लेकिन उसे अपनी जिंदगी बोझिल लगती थी जब राजुल नाराज होता था पर उसका दोष क्या था , सिर्फ इतना कि उसकी तबियत खराब थी ? लेकिन वो करे क्या दिन भर बच्चों और किचन में खटने के बाद यदि शरीर शिथिल हो जाये तो क्या वह इतना भी नही बोल सकती ? उसने खाना बनाना शुरू किया और वो मशीन की तरह अपने काम मे जुट गई
पापा जी और मम्मीजी की चाय देकर उसने बेटे को तैयार किया स्कूल के लिए भेजा फिर पूजा की तैयारियां करके दोबारा किचेन में भागी क्योंकि अभी सबका नाश्ता भी बनना था ..राजुल का टिफिन पैक करके उसने सबका नाश्ता लगा दिया इस सबमे 9 बज गए ..राजुल को साढ़े नौ तक निकलना होता था ...राजुल आये और नाश्ता भी नही किया सीधे लंच उठाया और निकल गए ...पानी लेकर आती वो स्कूटर की आवाज सुनकर चौंक गई कि "अरे इतनी जल्दी चले गए ? नाश्ता नही किया क्या ? डाइनिंग टेबल पर नाश्ते की प्लेट सजी हुई उसे चिढ़ा रही थी अब उसका मन अजीब ढंग से चीत्कार कर उठा मन तो हुआ कि सिर पटक दे , चिल्ला दे पर वो कुछ नही कर सकती थी क्योंकि वो संस्कारी परिवार की बेटी थी जिसकी बेड़ियों में जकड़ी जुबान को 'गूं गां' करने का भी हक़ नही था वरना संस्कारी परिवार का लेबल उधड़ जाता ...मजबूरी और गुस्से की स्थिति में वो चिल्लाकर करती भी क्या ? बूढ़े सास ससुर का क्या दोष ? और वो सुनकर करते भी क्या ..उसकी स्थिति न बदलनी थी न बदलती ..धीरे धीरे उसका मन खराब हो रहा था ,अभी तक उसने कुछ खाया भी न था बस काम निपटा रही थी ।

काम खत्म करके उसने कमरे में आकर लेटने के लिए तकिया खींचा तो सोचा ...कितना बदल गए हैं राजुल, शादी के 10 सालो बाद क्या सब कुछ खत्म हो जाता है ? सोचती हुई अतीत में घूमने लगती है जब रिशु पैदा हुआ था और राजुल उसे कोई काम नही करने देते थे , कभी खाने पीने में देर हो जाये तो तकिए के नीचे कुछ रखा होता था ...एक नोट लिखा हुआ जिसपर राजुल ने लिखा होता था "2 बज गए होंगे न? कुछ खाया ' या नही ? " चलो मत खाओ अब तैयार रहो मैं आ रहा हूं, बाहर चलते हैं और कुछ खाते हैं ..! "
उसकी आंखें भर गई ,सुबह की बेरूखी से आहत मन था और उसपर खुद बिना खाये चले गए ,जिससे अनु को सारी गलती खुद की ही लग रही है गुस्सा एक तरफ गया और ऊपर से अपराधिनी भी बन गयी वो '

राजुल हमेशा ऐसा करते थे जब कभी झगड़ा करते तो कुछ न कुछ ऐसा करते कि , अनु खुद बोलने और मनाने को मजबूर हो जाती..जब सहेलियां बताती कि उनके पति कितने अच्छे हैं और झगड़े के बाद किस लेवल तक मनाते हैं तो अनु हमेशा मुस्कुराकर रह जाती ..क्योंकि वो किसको बताती कि राजुल कैसे हैं और उनके बीच किस तरह की बातें होती हैं ..वो उसे कभी मनाते भी हैं या नही ..!" सोचते सोचते आंख लग गयी ,जब नींद टूटी तो शाम हो गयी थी वो आज हड़बड़ाई नही ,न ही भागी बस उठ कर शांत बैठी रही शून्य में ताकती हुई ,शरीर मे थकान थी और मन मे बोझिलता ..फिर रिशु की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की ..अब उसे उठना ही पड़ा ,वो माँ जो थी ,मातृत्व ने थकान और बोझिलता को परे धकेल दिया।

अनु ऊपर से शांत थी पर मन अशांत था केतली में रखे गर्म पानी की तरह उबलता हुआ ..आज मन भी उबल रहा था ..अम्मा को थैली में भरकर गर्म पानी देना था और बाबूजी के लिए खिचड़ी बनानी थी ,राजुल अभी तक लौटे नही थे ,सो उसका मन नही लग रहा था ,डिनर की तैयारी करती वो न जाने क्या क्या सोच रही थी।
अम्मा बोलती हैं मन कच्चा हो तो बड़बड़ करता है और जब पक जाता है तो शांत हो जाता है पतीली में पकती खिचड़ी की तरह ...वो ढक्कन हटा कर देखती कि ,पका या नही और बड़बड़ सुनकर ढक्कन वापस लगा देती अनुभवी अम्मा के नुस्खे उसके तब बहुत काम आते थे जब उसका मन काम मे नही लगता था
उसने कटहल के कोफ्तों की तैयारी की ..राजुल के मनपसन्द कोफ्ते ..शायद तब वो सब कुछ भूल कर खुश हो जाये। तन की पीड़ा अब मन की पीड़ा के आगे द्वितीयक हो उठी ..उसने ठान लिया कि ,राजुल का मूड ठीक होने के बाद वो फिर उससे कुछ कभी भी शेयर नही करेगी ,उसे लाख दर्द हो तकलीफ हो पर उफ्फ तक नही करेगी ।

तभी राजुल आ गए और सारे निश्चय धरे के धरे रह गए
आते ही कमरे में चले गए और आवाज लगाई
"अनु यहां आओ .."

"क्या है ...लो पानी तो पी लो पहले ..! वो मुंह फुलाये थी

"नही तुम इधर आओ बैठो ..! ये देखो तुम्हारे लिए कुछ दवाइयां और सप्लीमेंट्स लाया हूं पेनकिलर लेना बंद करो ये बहुत हार्मफुल होते हैं " उसने अनु की लाल नाक देख ली और समझ गया

अनु का मन भीग गया अब दर्द नही था बस प्यार था राजुल के लिए , अफसोस सिर्फ इतना था कि , उसके खुद से किये सारे वादे टूटने वाले थे पर वो खुश थी ..

" सुबह तो इतना चिल्ला कर गए थे ,कुछ खाया भी नही , और...मुझे दिन भर परेशान कर दिया

" तो तुमने भी तो सुबह सुबह उठकर ही मुझे परेशान कर दिया था ,एक निवाला भी निगल न पाता में तुम्हें इस हालत में देखकर !''

"तो ये शहद जो अब झड़ रहा बातों में से ,ये सुबह नही झड़ सकता था क्या ? सुबह तो बर्रैया बने थे ,आए बड़े, क्या बोले थे ? सड़ा हुआ मुंह ..अब देखना तो तुमको यही मुंह है सड़ा हो चाहे गला हो..!" उसने हंसकर कहा

राजुल ने भी मसखरी करते हुए कहा
"अरे तो बर्रैया के छत्ते में ही तो शहद छुपा होता है न ! और अगले पल संजीदा हो गया ,
" सुबह के लिए सॉरी यार पर क्या करूँ ?चिंता हो जाती है अनु तुम्हारी ..तुम्हारे अलावा मेरा है ही कौन ? खुद का ख्याल रखती नही बस हर समय ऊट पटांग काम करती हो , कल से तुम मेरे साथ वाक पर चलोगी और उसके बाद ये दर्द वगैरह छूमंतर "

दोनो की हंसी गूंजने लगी और अम्मा चिल्लाई ,अनु बिटिया देखो ज्यादा आंच से खिचड़ी जल न जाये..!
आंच सधी हुई हुई हो , पकवान तभी सुस्वाद होता है कम आंच से कच्चा और ज्यादा से जल जाता है बिटिया '

"आयी अम्मा .. आंच बंद कर दी है अब खिचड़ी नही जलेगी
सब कुछ शान्त था मन भी और माहौल भी..अनु अब खुश हो कर रसोई में गयी और कोफ्ते की खुशबू पूरे घर मे भर गई। सधी हुई आंच ने सब सम्हाल लिया था।

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