कुछ मौसम कुछ महीने ऐसे होते हैं न जो कुछ यादें साथ लाते हैं। ऐसा ही एक ये मई का महीना है और खास बात ये है कि 3 साल बाद उसका मैसेज आया है इंस्टाग्राम पर।
इसी मई की चिलचिलाती गर्मी में हम सिगरा चौराहे पर खड़े होकर ऑटो का इंतजार कर रहें थे, कोई ऑटो रुक ही नही रही थी। असल में यह होता ही है कि आम दिनों में जब आपको कहीं जाना हो तो ऐसे ही ऑटो नही मिलती और हमें तो समय से कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचना था वरना हमारी ट्रेन छूट जाती। ऐसे में एक ऑटो के रुकते ही हम उसमे बैठ गए।
वैसे तो सिगरा से कैंट स्टेशन दूर नही है पर क्या ही करते इतनी गर्मी पड़ रही थी उस वक़्त।
सिगरा से कैंट की ओर बढ़ते वक़्त विद्यापीठ गेट के सामने एक लड़की हाथ आगे करके ऑटो रोकने का इशारा कर रही थी। ऑटो वाले ने ऑटो को साइड में रोक कर उससे पूछा "कहाँ जाना है दीदी?"
"बस यहीं कैंट जाना था भईया। पर लगता है स्पेस नही है आपके ऑटो में।", उसने ऑटो में देखते हुए बोला।
"अरे! आप बोलो या हम बोले बात एक ही है। चलिए अब जल्दी से चलिए।", हमने ऑटो वाले से कहा
कैंट रेलवे स्टेशन पहुँचते ही ऑटो वाले को पैसे देने के बाद हम स्टेशन की तरफ बढ़ें तब हमें ख्याल आया कि उस लड़की से पूछ लेते है कि उसका समान पहुंचा दे क्या उसके साथ चल कर। फिर हमने सोचा कि न जाने कैसा लगेगा यूँ पूछना, पर फिर भी हमने पूछ लिया।
ओके कहकर हम स्टेशन के तरफ बढ़ गए स्टेशन के अंदर जाते समय हमने न जाने क्यों एक बार पीछे घूम कर देखा, वो खड़े होकर किसी का इंतज़ार कर रही थी।
तभी अनाउंसमैंट हुआ कि हमारी पटना वाली ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 9 पर आरही है। हमारा रिजर्वेशन था तो हमें वैसे भी टिकट काउंटर पर जाकर टिकट लेने का झमेला नही था। हम सीढ़ीयों से चढ़कर प्लेटफार्म नंबर 9 पर पहुंच गए। ट्रेन के आते ही हम अपनी जगह पर बैठ गए। पटना में हम अपने एक दोस्त के घर रुकने वाले थे तो हमने उसे फ़ोन करके बताया कि हम ट्रेन में बैठ गए हैं। बिहार आना-जाना होता रहता है और हम तो एक बात हर दम कहते हैं कि 'बनारस इश्क़ है तो बिहार प्यार है।'
इधर हम ट्रेन में बैठ चुके थे और उधर हमारे मित्र रात के दावत के लिए लिट्टी चोखा बनाने का सोच रहे थे, मतलब सफर भर हम लिट्टी चोखा और न जाने क्या-क्या खाने की याद में डूबे रहेंगे।
इतना सब कुछ सोच ही रहें थे कि उस लड़की को हमने अपनी ही ट्रेन कंपार्टमेंट में चढ़ते देखा।
वो अपने सीट को ढूंढते हुए हमारी तरफ बढ़ रही थी और उसके साथ उसका वो दोस्त भी था हाथ में समान लिए हुए। वो आकर हमारे सामने वाली सीट पर बैठ गयी और उसका वो दोस्त समान रखकर उसके बगल में बैठ कर उससे बात करने लगा।
लेकिन हमें क्या, हम क्यों इन सब पर इतना ध्यान दे रहे थे। हम खिड़की से बाहर देखने लगे।
ट्रेन के निकलने से थोड़ी देर पहले उसका दोस्त उठ कर जाने लगा और वो लड़की भी उसे "बाय" कहकर सीट पर बैठ गयी।
ट्रेन कैंट रेलवे स्टेशन से निकलते ही उसका ध्यान मेरी तरफ गया और उसने बोला "हेलो, आप भी इसी ट्रेन में!"
"ओह! हेलो। जी हम पटना जा रहे हैं", हमने जवाब देते हुए ऐसा ही दिखाया जैसे हमारा ध्यान अभी गया हो उसपे।
"अच्छा" बोल कर वो खिड़की से बाहर देखने लगी। हमारी ट्रेन इस वक्त धीरे-धीरे राजघाट पुल से गुज़र रही थी।
"ना जाने फिर कब दुबारा आना लिखा होगा इस शहर में" उसने उदास मन से बनारस के घाटो को देखते हुए बोला।
हमने उससे पूछा "आप बनारस में नही रहती हो?"
"नही। मैं यहाँ पढ़ने के लिए आई थी, अब जब पढ़ाई हो गयी तो वापस चले अपने घर बक्सर", उसने जवाब दिया।
फिर उससे हमने कहा "आपको पता है, आप बनारस से दूर तो जा सकती हो पर बनारस कभी आप से दूर नही जाता।"
उसने मुस्कुराते हुए बोला.."हम्म, ये तो सही कहा आपने। पिछले तीन सालो में मानो बनारस अपना सा हो गया हो बिल्कुल अपने घर जैसा।"
उसने हमसे पूछा कि "आप भी बाहर रहते हो?"
तो हमने बताया "नही। हम यही रहते हैं। पटना दोस्त से मिलने जा रहे हैं"
"अच्छा है। मतलब बक्सर के बाद आपका सफर काफ़ी सुनासुना और बोरियत भरा बीतेगा।", उसने हंसते हुए बोला।
बस युहीं कुछ बातें हुई और वो अपना फ़ोन चलाने लगी और हम बाहर का नज़ारा देखने लगे।
"इतनी बातें होगयी पर मैंने आपका नाम तो पूछा ही नही" कुछ देर बाद उसने हमारी तरफ देखते हुए बोला
"जी, हमारा नाम देव है। आपका?", हमने जवाब देते हुए उससे उसका नाम पूछा
हमारे पूछने पर उसने झट से बोला "देविका", फिर उसने हंसते बोला "मज़ाक कर रही थीं। मेरा नाम सुनिधि है"
हम दोनों ही हंसने लगे।
युहीं हम दोनों ने कई बातें की,
फिर हमने बातों ही बातों में उससे पूछ दिया कि "वो आपका बॉयफ्रेंड आपके साथ क्यों नही आया? वो जो आपका फ्रैंड आया था आपका समान लेकर"
उसने मेरी तरफ शांति से देखा और जवाब दिया "बॉयफ्रैंड! वो मेरा बॉयफ्रैंड नही था। वो तो स्टेशन के पास रहता था इसीलिए उसे बुला लिया था मैंने।"
"ओह, मुझे लगा वो आपका बॉयफ्रैंड था।", हमने बतीसी दिखाते हुए बोला
हम मन ही मन सोच रहे थे की हम लड़के भी थोड़े अजीब होते हैं न, फ़िजूल की कुछ बातें हमारे दिमाग में भी आजाती हैं।
ट्रेन दिलदारनगर जंकशन पर रुकी तो हम पानी लेने उतर गए। हमारे उतरते ही सुनिधि ने दरवाजे पर आकर हमें आवाज़ लगाई, "देव जी! मेरे लिए भी एक बौटल पानी लेते आइयेगा।"
कोई आपके नाम के बाद 'जी' लगा दे तो नाम से प्यार हो जाता है। हमने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है सुनिधि जी"
हम पानी लेकर वापस अपनी सीट पर बैठ गए। सुनिधि ने पानी के पैसे दिए तो हमने लेने से मना कर दिया।
उसने हमारे हाथ में चिप्स का पैकेट देखा तो बोली "हमारे लिए भी ले लिए होतें"
"आपके लिए ही है।", चिप्स का पैकेट हमने उसे देते हुए बोला।
लेकिन यह हम भी जानते हैं और आप भी जानते हैं की वो चिप्स का पैकेट हम अपने खाने के लिए लेकर आये थे।
युहीं बात करते करते न जाने कब हम ठोरा नदी पुल पर पहुंच गए पता ही नही चला। अगला स्टॉप बक्सर था।
उसने अचानक से हंसते हुए बोला "आपने तो हमारा बॉयफ्रेंड उसे मान लिया। आपकी कोई गर्लफ्रैंड या प्रेमिका है या नही?"
उसका ये सवाल सुनकर हमने शर्माते हुए हल्की सी मुस्कान दी।
"इतना शर्मा रहे हैं तो नही ही होगी।", उसने बोला
"क्यों! शर्माने वाले लड़कों की प्रेमिका नही होती क्या?", हमने पूछा
"होती तो महोदय आप शर्माते नही।", उसने हंसते हुए जवाब दिया।
"हाँ! नही है", हमने बताया
"आपका कोई है या नही?", हमने पूछा
"हमारा!!!!" "हमारा स्टेशन आ चुका है।"
ट्रेन अब बक्सर स्टेशन पर पहुंच चुकी थी, हमने खिड़की से बाहर देखा इतने में वो जाने लगी।
हमने बोला "बता तो दीजिये"
"आपने तो उसे ही माना था न" वो हंसते हुए बोलकर चली गयी और ट्रेन से बाहर जाकर बोली "बाय"
पटना पहुंच कर उसकी बात हुई, बनारस आकर उसकी बात हुई, बस उससे बात नही हो पाई।
अब 3 साल बाद 2021 में उसने हमें इंस्टाग्राम पर खोजकर बात की तो कुछ तो बात होगी।
जी हां! उसने बताया कि अगस्त में उसकी शादी है तो वो सभी दोस्तों को बुला रही है।
अब इसे Happy Ending कहें या क्या !! क्योंकि 3 साल में तो हम भी काफ़ी आगे बढ़ चुके थें। पर वो सफर याद रहेगा।
Written By :
©Ansh Sisodia