रमेश ने एक बहुत पुराना घर खरीदा। परंतु यह घर बहुत मजबूत था। यह उसे नाममात्र की कीमत पर सामान सहित मिल गया। घर पुस्तकों व पुराने सामान से अटा पड़ा था। रमेश ने फालतू पुस्तकों व फालतू सामान को बेच दिया। इससे उसे कुछ धन प्राप्त हुआ और उसने घर, सामानो व पुस्तकों की मरम्मत करवाई। बगीचे को सुंदर किया तथा घर का रंग - रोगन भी करवाया।
घर में 10 कमरे थे। उस ने एक कमरा पुस्तकों के लिए व दो कमरे खुद के लिए रखे। बाकी सात कमरे ₹35000 प्रतिमाह के किराए पर चढ़ा दिए।
रमेश का अधिकांश समय पुस्तकों को पढ़ते हुए व्यतीत होने लगा। इनमें कुछ प्राचीन पुस्तकें भी थी। जो रोचक व रहस्यमयी थीी। इनमें थी लाल किताब, रावण संहिता, अष्टाध्यायी, उपनिषद, बेताल पच्चीसी, विमान शास्त्र, पारद तंत्र विज्ञान, विज्ञान भैरव तंत्र, सामुद्रिक शास्त्र, रस रत्नाकर, रसेंद्र मंगल, वेद, पुराण, धनुर्वेद।
इसमें एक पुस्तक चांंदी के बॉक्स में रखी थी। यह सोने के पत्तरों पर लिखी थी। यह संस्कृत भाषा में एक प्राचीन लिपि में लिखी थी। रमेश ने इसकी फोटो कॉपी करवा कर विश्व भर के सभी विद्वानों व विश्वविद्यालयों मेें अनुसंधान के लिए भेजा।
उसके पास एक पुरानी मारुति 800 थी। एक गाय भी थी जो 70 किलो दूध देती है। रमेश अपने बगीचे में बैठकर पेड़ से तोड कर ताजा सेब खा रहा था। अचानक एक उडनतस्तरी बगीचे में उतरी। उसमें से सुंदर प्राचीन वेशभूषा पहने चार व्यक्ति उतरे। उनके वस्त्र सुंदर व चमकीले थे। वेे मुुुुकुट व आभूषण पहने हुए थे। उनकी कमर से तलवारे लटकी हुई थी। यह सभी लोग सुंदर, गोरे - चिट्टे, लंबे -चौड़े 6 फीट के थे। सभी लोग जवान व तंदुरुस्त थ्।
उनमें से एक प्रभावशाली व्यक्ति आगे बढ़ा और रमेश से बोला। महोदय हम ग्यान लोक से आए हैं। वह सोने की पुस्तक हम लोगों ने ही मानवता के कल्याण के लिए यहां दी है। आप उस पुस्तक का ज्ञान हमारे लोक चल कर प्राप्त करें।
रमेश उन लोगों के साथ उड़न तश्तरी में बैठ जाता है। वह सर्वप्रथम उस को उड़नतश्तरी के अंदर घुमाते हैं। उड़नतश्तरी अंदर से एक सुंदर फ्लैट जैसी थी। उड़न तश्तरी में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद थी। अब उडनतस्तरी उडती है। कुछ समय बाद वे एक हरे - भरे ग्रह पर उतरे।
उन लोगों ने सारे ग्रह पर रमेश को हेलीकॉप्टर से घुमाया। वह ग्रह बहुत सुंदर व हरा - भरा था। इस ग्रह पर कई नगर थे जो बहुत अत्याधुनिक थेे। इसके बाद वे रमेश को एक सुंदर नगर में ले गए। यह नगर स्वर्ण निर्मित था। यह सुंदर व अत्याधुनिक स्मार्ट नगर था। रमेश को वे एक सुंदर भवन में ले गये। यह भवन सोने से बना था। इसमें जगह-जगह पुस्तकों की अलमारियां लगी हुई थी। आखिर में वे एक दरबार हाल में पहुंचे। वहां सिंहासन पर एक 10 फीट ऊंचा अति सुंदर बलशाली व्यक्ति बैठा हुआ था। उसके चार हाथ थे। एक हाथ में तलवार व दूसरे हाथ में एक पुस्तक थी। एक हाथ में कमल पुष्प व चौथा हाथ खाली था।
चारों लोगों ने सिंहासन पर बैठे व्यक्ति को प्रणाम किया और बोले ये हमारे स्वामी सम्राट विद्यमान हैं। यह हमारे ग्रह ज्ञानलोक के सम्राट हैं। इनके दरबार में ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी व वीर हैं।
विद्यमान-- आपका ज्ञान लोक में स्वागत है रमेश जी।
रमेश - धन्यवाद महाशय। क्या मैं जान सकता हूं कि मुझे यहां क्यों लाया गया है?
विद््माान- आपको ब्रम्हांड का ज्ञान देने के लिए यहां लाया गया है।
विद्ययमान रमेश के सर से पुस्तक व तलवार से छूता है।
अचानक रमेश के शरीर में परिवर्तन होता है। वह 6 फीट ऊंचा गोरा चिट्टा और बलिष्ठ शरीर के रूप में आ जाता है। रमेश को वहां के वस्त्र व तलवार प्रदान की जाती है।
1 वर्ष वहां रहकर रह के सभी ग्रंथों का ज्ञान विज्ञान का ज्ञान वह प्राप्त करता है। 1 वर्ष बाद विद्यमान उसे धन की अक्षय पोटली व तलवार देकर विदा करता है।
रमेश घर आ कर स्वर्ण रचित पुस्तक पढ़ता है। अब यह पुस्तक उसकी समझ में आ जाती है। पुस्तक में लिखा था यह ब्रह्मा द्वारा रचित ज्ञान पुस्तक है। यह पुस्तक ज्ञान नागरी लिपि में संस्कृत में लिखी गई है। यह पुस्तक अरबों वर्ष प्राचीन है। इसका अध्ययन करने वाला धर्म अर्थ काम मोक्ष सभी प्राप्त करेगा। यह पुस्तक समय-समय पर स्वयं अपडेट होती रहती है।
रमेश तलवार से अपराधियों का दमन करता है। अक्षय पोटली से गरीबों की मदद करता है। स्वर्ण पुस्तक में लिखा था रुपेश नामक में रहता है। उससे ज्ञान प्राप्त करो।
रमेश उस की झोपड़ी में जाता है। वह साफ सुथरी व पुस्तकों से भरी थी। उसके पास एक दूध देने वाली बकरी थी। यही उसकी आय का साधन थी। रमेश उस से ज्ञान प्राप्त करता है। रमेश रूपेश को पांच एचएफ गाय, एक बंगला व एक किरायेदारों वाला मकान भेंट करता है। रूपेश सब अमीर हो जाता है। रमेश उसकी टांग का इलाज करवा कर उसे स्वस्थ करवा देता है ।