ऋषिपुरुष एक सच्चा प्रकृति प्रेमी ! श्री सुन्दरलाल बहुगुणा - महान पर्यावरणविद! हिमालय के महत्त्व को समझने-समझाने वाले तथा रक्षक। उनके स्वर्गारोहण के समाचार से देश स्तब्ध! पेड़ बचाओ-पेड़ लगाओ जैसे आंदोलन के प्रणेता। प्रकृति पर्यावरण संरक्षण के उनके कार्य सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हैं! उन्होंने सोये हुए हमारे समाज को जगाया। हमारा समाज नींद से जाग उठा। चिपको आंदोलन की शुरुआत की। अब हम अपने पर्यावरण और प्रकृति के बारे में अधिक जागरूक हैं। निश्चित रूप से उन्होंने प्रकृति की महिमा को अच्छे से जाना। कम से कम लोग अब कुदरत की इस अनमोल धरोहर के प्रति अत्यधिक सजग है। उनके जीवन का एक ही ध्येय रहा - पेड़ लगाओ। उनकी नजर में पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए 'चिपको आन्दोलन' के अभियान के कारण वे 'वृक्षमित्र' के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उनके द्वारा दिए गए घोष वाक्य अभी भी कानों में गूँजते हैं - क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने का आधार। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष को लोग 'पर्यावरण गाँधी' के नाम से भी जानते हैं। प्रकृति पुरुष का प्रकृति में विलीन होने से साधारण मनुष्यों ने एक मार्गदर्शक खो दिया। प्रकृति के सुंदर ‘लाल’ और मानवता के सेवा के बहुगुणों से विभूषित दिव्य विभूति का महाप्रयाण मानव समाज के लिए अपूर्णिय क्षति है। प्रकृति-पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक, पर्यावरणविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पद्मभूषण एवं वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे गांधीजी के सच्चे अनुयायी थे। 13 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक सफर की शुरुआत कर ली थी। वर्ष 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से बहुगुणा की मुलाकात हुई। यहीं से उनका आंदोलन का सफर शुरू हुआ। मंदिरों में दलितों को प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए प्रदर्शन करना शुरू किया। समाज के लोगों के लिए काम करने हेतु बहुगुणा ने 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से बहुगुणा ने पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना की। यह विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। 26 मार्च 1974 में चमोली जिला में जब ठेकेदार पेड़ो को काटने के लिए पधारे तब ग्रामीण महिलाएं पेड़ो से चिपक कर खड़ी हो गईं। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 साल के लिए पेड़ो को काटने पर रोक लगा दिया। चिपको आंदोलन की वजह से बहुगुणा विश्व में वृक्षमित्र के नाम प्रसिद्ध हो गए। पुरस्कारों का उनके जीवन में अम्बार लग गया। जमनालाल बजाज पुरस्कार, राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन), शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, आइआइटी रुड़की द्वारा सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि, पहल सम्मान, गांधी सेवा सम्मान, सत्यपाल मित्तल अवॉर्ड, पद्म विभूषण आदि प्राप्त हुए। आज हम कोरोना काल में सभी जगह लूट ही लूट देख रहे हैं। कोई दवा के नाम पर। कोई हॉस्पिटल के नाम पर। कोई अन्य किसी नाम से किसी मजबूर को लूट रहा है। मनुष्य जन्म बार - बार नही मिलने वाला है। ऐसा ना हो कि हमने कोई सत्कार्य ही नही किया और हमारा ये जन्म ही लुट जाए। हर कर्म का एक उद्देश्य होता है यह उद्देश्य ही मनुष्य को क्षुद्र और महान बना देता है। जहाँ व्यक्तिगत स्वार्थ व सुख के लिए कुछ किया जाता है वहाँ क्षुद्रता होती है। जहाँ किसी आदर्श के लिए कार्य किया जाता है वहाँ महानता की बात होती है। इस विचारधारा पर सुन्दरलाल बहुगुणा जी जीए। प्रकृति से मनुष्य के छीनने की प्रकृति के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठायी। वे अनंत काल तक याद किये जायेंगे। प्रकृति के लिए पूरा जीवन लगाने वाले और कश्मीर से कोहिमा तक पदयात्रा करने वाले पर्यावरण के पितामह को विनम्र श्रद्धांजलि।