Pawan Granth - 4 in Hindi Mythological Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 4

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 4


दादी जी— अनुभव मैं तुम्हें सफलता के रहस्यों को विस्तार से बताती हूँ जो अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने बताया था ।
हमें अपने काम या पढ़ाई में पूरी तरह इस प्रकार खो जाना चाहिए,जिससे और किसी बात का,यहाँ तक कि काम के फल का भी ध्यान न रहे । हमें अपने कर्म के श्रेष्ठतम परिणामों की प्राप्ति के लिए हमें पूरे मन को अपने काम पर ही केन्द्रित करना चाहिए इधर-उधर नहीं ।

कर्म को परिणामों की चिंता किए बिना पूरे मन से करना चाहिए ।यदि हम अपना पूरा ध्यान और पूरी शक्ति कर्म में लगा सके और अपनी शक्ति को परिणामों के चिंतन में न बिखरने दें, तो हमारे कर्म का परिणाम अच्छा ही होगा।

परिणाम,कर्म में लगाई गई शक्ति पर निर्भर करता है ।कर्म करते समय हमें फल की चिंता न करने के लिए कहा गया है । इसका अर्थ यह नहीं कि हम परिणामों की ओर बिलकुल ही ध्यान न दें । किंतु हमें हर समय केवल लाभकारी फलों की आशा भी नहीं करनी चाहिए ।

सार्थक जीवन जीने का रहस्य है पूरी तरह सक्रिय होना और शक्ति भर काम करना । बिना अपने स्वार्थ उद्देश्यों और परिणामों का चिंतन किये।
आत्म ज्ञानी पुरुष सबकी भलाई के लिए काम करता है ।

अनुभव— आत्म ज्ञानी व्यक्ति के क्या लक्षण है दादी जी?

दादी जी—आत्मज्ञानी एक पूर्ण व्यक्ति है अनुभव ।भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि पूर्ण व्यक्ति का मन कठिनाइयों से विचलित नहीं होता है ।वह सुख के पीछे नहीं भागता है ।भय ,इच्छा,लोभ और मोह से मुक्त होता है और मन व इन्द्रियों पर अंकुश रखता है । आत्मज्ञानी व्यक्ति को क्रोध नहीं आता है, वह सदा शांत और प्रसन्न रहता है ।

अनुभव— दादी जी हम क्रुद्ध होने से कैसे बच सकते है?

दादी जी— जब हमारी इच्छा पूरी नहीं होती तो हमें क्रोध आता है । अत: क्रोध को क़ाबू में रखने का श्रेष्ठतम उपाय है— इच्छाओं का दास न होना। हमें अपनी इच्छाओं को सीमित करने की ज़रूरत है । इच्छाएँ हमारे मन में पैदा होती हैं ।इसलिए हमें अपने मन को क़ाबू में रखना चाहिए ।
यदि हम मन को क़ाबू में नहीं रखते है,तो हम भटक जायेंगे ।
सुख की कामना हमें पाप की अंधेरी गली में ले जाती है,मुसीबतों में डालती हैं और हमारी प्रगति को रोकती हैं ।
एक विद्यार्थी होने के नाते तुम्हें अपने लिए सुख से ऊँचा ध्येय निश्चित करना चाहिए ।पूरे प्रयत्न से से पढ़ाई में मन लगाना चाहिए ।
अर्जुन इस प्रकार के ध्यान केंद्रित करने वाले का बहुत अच्छा उदाहरण है ।उसके विषय में एक कथा सुनो—-

(२) दीक्षांत परीक्षा

गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पाण्डवों दोनों को अस्त्र-शस्त्र विद्या की शिक्षा देने वाले गुरू थे ।उनकी सैनिक शिक्षा की समाप्ति के बाद अंतिम परीक्षा का समय आया ।
द्रोणाचार्य ने समीप के पेड़ की शाखा पर लकड़ी का एक पक्षी रखा।कोई नहीं जानता था कि वह केवल एक खिलौना था ।वह असली पक्षी जैसा लग रहा था ।
दीक्षांत परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए सभी छात्रों को एक बाण से पक्षी का सिर काटना था ।

गुरु द्रोणाचार्य ने सबसे पहले पांडवों में से सबसे बड़े युधिष्ठिर को बुलाकर कहा —“तैयार हो जाओ पक्षी को देखो और मुझे बताओ कि तुम क्या देख रहे हो?”

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया— “मैं आकाश को देख रहा हूँ, बादलों को, पेड़ के तने को, शाखाओं को और वहाँ बैठे हुए पक्षी बाज को देख रहा हूँ”।

गुरु द्रोणाचार्य इस उत्तर से प्रसन्न नहीं हुए, उन्होंने एक-एक करके सभी छात्रों से वही प्रश्न पूछा—
उनमें प्रत्येक ने वैसा ही उत्तर दिया । तब परीक्षा के लिए अर्जुन की बारी आई ।

द्रोणाचार्य ने कहा— “तैयार हो जाओ, पक्षी को देखो और मुझे बताओ तुम क्या देख रहे हो?”

अर्जुन ने उत्तर दिया—“गुरु जी मैं केवल पक्षी बाज को देख रहा हूँ और कुछ भी नहीं।”

गुरु द्रोणाचार्य ने फिर दूसरा प्रश्न पूछा—“ यदि तुम बाज पक्षी को देख रहे हो तो बताओ उसका शरीर कितना मज़बूत है और उसके पंखों का रंग क्या है?”

अर्जुन ने उत्तर दिया—“मैं केवल उसके सिर को देख रहा हूँ, सारे शरीर को नहीं ।”

गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन के उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए ।उन्होंने उसे परीक्षा पूर्ण करने की आज्ञा दी ।अर्जुन ने सहज ही एक ही बाण से बाज पक्षी का सिर काट गिराया,क्योंकि वह अपने लक्ष्य पर एकाग्रचित्त होकर ध्यान केंद्रित कर रहा था ।परीक्षा में उसे पूरी सफलता मिली ।

अर्जुन अपने समय का न केवल सबसे बड़ा योद्धा था, वरन् वह करुणा भरा कर्मयोगी भी था ।भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान देने के लिए अर्जुन को ही माध्यम चुना ।

हम सभी को अर्जुन के पदचिह्नों पर चलना चाहिए ।
“गीता पढ़ो,आगे बढ़ो” और अर्जुन की तरह बनो।
जो भी काम तुम करो, पूरे मन से एकाग्रचित्त होकर करो।
गीता के कर्म योग का यही मूल मंत्र है और तुम्हारे हर काम में सफलता का यही रहस्य है ।

अध्याय दो का सार—— भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से हमें आत्मा और शरीर में अंतर की शिक्षा दी ।हम केवल शरीर ही नहीं,आत्मा है ।आत्मा अजन्मा है और अविनाशी है ।मानवीय और अमानवीयों सभी शरीरों में एक ही आत्मा रहती है ।इस प्रकार हम सब एक-दूसरे से जुड़े हैं।सफलता या असफलता की चिंता किए बिना हमें अपनी योग्यता के अनुसार अपना कर्त्तव्य पूरा करना चाहिए ।हमें अपनी असफलताओं से शिक्षा लेनी चाहिए और असफलताओं से हार न मानकर आगे बढ़ना चाहिए ।पूर्ण व्यक्ति बनने के लिए हमें अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पाना ज़रूरी है ।..

क्रमशः ✍️

सभी पाठकों को नमस्कार 🙏
पावन ग्रंथ—भगवद्गीता की शिक्षा
अध्याय दो सरल रूप में पूरी हो गई है ।आगे का सफ़र जारी रहेगा ।
यह पुस्तक आप स्वयं भी पढ़े और अपने बच्चों को भी पढ़ाये ।भगवद्गीता सभी पढ़ते हैं आपने भी पढ़ी होंगी लेकिन कहते हैं इसे जितनी बार पढ़ा जाये नये भाव समझ में आते हैं ।🙏