Taapuon par picnic - 19 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 19

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टापुओं पर पिकनिक - 19

आर्यन और आगोश एक बाइक पर थे। सिद्धांत पीछे आ रहा था।
वो दोनों साजिद के घर से कुछ ही दूरी पर खड़े इंतजार कर रहे थे कि उन्होंने दो लड़कों को आपस में बातें करते हुए सुना।
- कहां रह गया था साले? तुझे पता नहीं अभी बेकरी में माल डलवाना है! एक ने कहा।
- यार वो अताउल्ला मिल गया था, वहीं देर हो गई। दूसरा बोला।
उनकी बातें सुनते ही आर्यन और आगोश के कान खड़े हो गए।
लड़के तो अपनी मस्ती में ज़ोर - ज़ोर से बातें करते हुए चले जा रहे थे पर वो दोनों चौकन्ने हो गए।
बातें करते हुए चलते जाने के कारण लड़कों की बातों का स्वर भी मंद होता हुआ दूर जाता जा रहा था।
आगोश झट बाइक से उतर कर धीरे - धीरे उन लड़कों के पीछे हो लिया और उनकी बातों को सुनने की कोशिश करते हुए कुछ दूरी बना कर साथ - साथ चलता रहा।
लड़का कह रहा था- क्या बोला बे अताउल्ला?
- कुछ नहीं, वो तो एयरपोर्ट पर जा रहा था। दूसरा लापरवाही से बोला।
- एयरपोर्ट पर क्यों? कहीं जा रहा है क्या? लड़के ने कहा।
- उस बावले को वहां कोई काम - वाम मिल गया होगा। जाएगा तो कहां, और वो भी फ्लाइट से! लड़के के ऐसा कहते ही दोनों हंसने लगे।
आगोश पलट कर वापस आ गया।
आगोश ने वापस पलट कर कहा- चल, एक चक्कर मार कर आते हैं?
- कहां? आर्यन बोला।
- एयरपोर्ट पर! आगोश ने कुछ उत्साह से कहा।
आर्यन हंसने लगा। बोला- तू भी बेवकूफों जैसी बात कर रहा है, क्या पता वो कहां गया है, इसे कहां मिला, कब मिला, और ये भी तो मालूम नहीं कि वो कहीं जाने के लिए गया है या आसपास किसी और काम से गया है। मान लो, एयरपोर्ट में भीतर चला गया होगा तो उसे कहां ढूंढेंगे।
- अरे एक चक्कर लगा कर आ जाते हैं। क्या पता कहीं आता - जाता दिख ही जाए! नहीं तो वापस आ जाएंगे। आगोश ने कहा। अताउल्ला का नाम सुनते ही आगोश के दिमाग़ में तो खलबली सी मच गई थी। जब से उसे ये पता चला था कि अताउल्ला सुल्तान का रिश्तेदार है वो और भी तमतमा गया था।
- फ़िर वो सिद्धांत यहां आकर किसकी मां को मां कहेगा... उसे मना कर फ़ोन से... कहते - कहते आर्यन ने बाइक स्टार्ट कर दी और धीरे - धीरे रोड पर बढ़ने लगा।
- ओए, थोड़ी देर वेट कर लेगा सिद्धांत। हम आते हैं अभी पंद्रह - बीस मिनट में। आगोश लापरवाही से बोला।
आर्यन ने तेज़ी से स्पीड बढ़ाई और एयरपोर्ट जाने वाली सड़क पर गाड़ी दौड़ाने लगा।
एयरपोर्ट के नज़दीक वाली रोड पर पुलिस ने ट्रैफिक कंट्रोल के बैरियर्स लगा रखे थे।
आर्यन ने तेज़ी से दो- तीन चक्कर लगाए। एक बार डिपार्चर लाउंज के सामने से भी निकला। आगोश को वहां घूमते हर आदमी का चेहरा अताउल्ला से मिलता जुलता दिख रहा था।
एक जगह एक पुलिस वाले ने हाथ दिया पर मस्ती में लहरा कर गाड़ी दौड़ाते आर्यन का ध्यान उस पर नहीं गया। उसी समय दो- तीन बुर्काधारी औरतों के सड़क क्रॉस करने के कारण आगोश ने भी पुलिस वाले पर ध्यान नहीं दिया।
वो आगे मुश्किल से पचास गज़ दूर बढ़े होंगे कि एक दूसरे पुलिस वाले ने सड़क के बीच में आकर उनकी गाड़ी रोक दी।
दोनों सकपका गए।
गाड़ी भी कुछ लड़खड़ाई। दोनों ओर पैर झुलाते आगोश ने माजरा समझने की कोशिश की। तभी उसके मोबाइल पर फ़ोन आया। आगोश ने शर्ट की जेब से मोबाइल हाथ में लेकर कान से लगाया ही था कि दूसरे पुलिस वाले ने आगोश के हाथ से फ़ोन छीन लिया।
आगोश हतप्रभ रह गया।
इधर एक पुलिस वाले ने आगोश के उतरने से ख़ाली हुई सीट पर हाथ रखते हुए दूसरे हाथ से बाइक की चाबी निकाल ली।
आर्यन भी उतर कर खड़ा हो गया।
तीनों पुलिस वाले अब उन दोनों की ओर बिना ध्यान दिए पास खड़ी जीप की ओर जाने लगे।
आर्यन और आगोश के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं।
पुलिस वाले उनकी ओर बिना कोई ध्यान दिए अपनी ही बातचीत में उलझ गए।
आर्यन ने जेब में हाथ डाल कर अपने मोबाइल को संभाला और उसे बाहर निकालने ही वाला था कि आगोश का मोबाइल छीन लिए जाने की बात याद करके एकाएक रुक गया।
वो दोनों किसी से ये भी नहीं पूछ पा रहे थे कि क्या हुआ, उन्हें क्यों रोका है। क्योंकि कोई न तो उनकी ओर ध्यान दे रहा था और न ही देख रहा था। वो सब अपनी ही किसी उलझन में लगे थे।
थोड़ी देर में पुलिस वालों की बातचीत से आर्यन और आगोश को कुछ ऐसा समझ में आया कि आसपास में किसी बाइक सवार ने किसी सड़क पार करती महिला के गले से चेन खींच कर तोड़ ली थी।
दोनों और भी बुरी तरह घबरा गए।
दोनों सफ़ेद पड़े चेहरे से एक दूसरे की ओर देखने तो लगे पर इस बात पर बौखलाए हुए भी दिखे कि उनसे कोई कुछ पूछ भी नहीं रहा है।