उस दिन स्कूल में सब दोस्त मिले तो उनकी चिंता यही थी कि साजिद का स्कूल छुड़ा दिया गया था। यही नहीं, बल्कि उसके अब्बू ने उसे बेकरी पर जाकर वहां के कामकाज में हाथ बंटाने का तुगलकी फरमान सुना दिया।
जिस लड़के को सारे अध्यापक चंद दिन पहले तक क्लास के सबसे इंटेलीजेंट बच्चों में गिनते थे वो अब मजदूरों को आटा गूंथते और भट्टी सुलगाते हुए देख कर दिन बिताने लगा। वो भी बिना किसी अपराध या भूल के।
सिद्धांत को तो सारी बात जानकर बहुत ही गुस्सा आया। बोला- जो लड़का हम सब दोस्तों के सामने भी शॉर्ट्स बदलने तक में शरमा रहा था वो किसी लड़की को क्या प्रेग्नेंट करेगा? क्लास में अगर किसी पूरी लाइन में कोई लड़की बैठी हो तो वो बेचारा उस लाइन में भी नहीं बैठता।
उसके अब्बू ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? मनन बोला।
- यार मुझे तो उस अताउल्ला पर ऐसा गुस्सा आ रहा है कि कहीं दिख जाए तो उसे पकड़ कर प्रेग्नेंट कर दूं। सिद्धांत की इस बात पर सब हंस पड़े।
जूस पीने के लिए कैंटीन गए तो वहां भी सब पर यही चिंता छाई रही। सब बार - बार यही कह रहे थे कि साजिद के अब्बू की ग़लत-फहमी दूर करने के लिए उन लोगों को कुछ न कुछ ज़रूर करना चाहिए।
पर क्या?
और इससे भी बड़ा सवाल ये कि कैसे?
- यार उसके अब्बू भी अजीब हैं। बस गलत बात पर विश्वास करके बैठ गए! कम से कम कुछ पता तो करने की कोशिश करते कि अगर ऐसा हुआ भी है तो कब, कहां, किसके साथ? लड़की कौन है। उसके घर वाले कौन हैं। पता करेंगे तो अपने आप ख़ुद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। आर्यन बोला।
- फ़िलहाल तो वो दूध का पानी करके बैठ गए। हो सकता है कि साजिद का निकाह करने की तैयारी में हों। आगोश ने कहा।
आर्यन ने कहा- हां, ऐसा लगता है कि हम सबके डैड को हमारा भविष्य बनाने की बहुत चिंता है, चाहे इससे वर्तमान बिगड़ जाए।
उसकी बात सुनकर आगोश उसका चेहरा देखने लगा। आगोश को याद आया कि ख़ुद आगोश के पापा भी तो उसे शहर से बाहर बहुत दूर होस्टल में रह कर पढ़ने भेजने वाले हैं।
बात का रुख ही पलट गया।
सब इस बात पर बहस करने लगे कि पैरेंट्स के साथ रह कर पढ़ना अच्छा है या दूर हॉस्टल लाइफ में।
घर से दूर जाने की बात सोच कर ही आगोश उदास सा हो जाता था।
उस दिन रात को तो ग़ज़ब हो गया। आगोश को एक नई जानकारी मिली।
रात को वह अपने कमरे में काफ़ी देर से पढ़ाई कर रहा था। आम तौर पर इतनी देर तक मम्मी पापा तो सो ही जाते थे। लेकिन जैसे ही आगोश ने अपने कमरे का कूलर ऑफ़ किया एकदम से हुए नीरव सन्नाटे में उसे मम्मी- पापा के कमरे से उनके कुछ बात करने की आवाज़ सुनाई दी। कमरे में हल्की बत्ती भी जल रही थी। हमेशा की तरह पर्दा पड़ा था।
आगोश की दिलचस्पी इस तरह चुपचाप छिपकर किसी की बातें सुनने में कभी नहीं रही मगर कूलर बंद होने से एकाएक हुए सन्नाटे में उसे मम्मी- पापा की बातचीत में अपना नाम सुनाई दिया।
ख़ास बात ये थी कि बातचीत कुछ तेज़ आवाज़ में चल रही थी। मतलब माहौल कुछ गर्म सा था। इसलिए स्वाभाविक था कि आगोश के कान उधर लग गए।
कुछ ही देर में आगोश को आभास हो गया कि मम्मी उसे कहीं बाहर हॉस्टल में भेजने के सवाल पर उसका पक्ष लेकर उसका ही बचाव कर रही हैं पर पापा अपनी बात पर अडिग हैं।
आगोश की दिलचस्पी बढ़ी। बल्कि उसे लगा कि जब बात उसे लेकर ही हो रही है तो बातचीत सुनने में कोई बुराई नहीं है। बल्कि वह उठ कर मम्मी पापा के बेडरूम की ओर जाने लगा।
लेकिन हल्का सा पर्दा हटते ही उसे बिजली का सा झटका लगा। मम्मी- पापा एक ही बेड पर थे। दूसरा तो उस तरफ़ सूना पड़ा था।
और केवल एक साथ थे ही नहीं, बल्कि अंतरंग- सीन में थे। मम्मी आराम से बैठ कर बात कर रही थीं और पापा लेटे- लेटे ही उनकी बात का जवाब दे रहे थे।
ओह! तो मम्मी उसके बचाव के लिए पापा की छाती पर सवार थीं?
उसे भीतर से एक आंतरिक ख़ुशी सी मिली।
अच्छा हुआ कि उसे पर्दा हटाने की कोशिश करते हुए किसी ने देखा नहीं। वह पलट कर वहीं खड़ा हो गया और उनकी बातें सुनने लगा।
और आज उसे मालूम हुआ कि उसके पापा बड़ी मुश्किल से डॉक्टर बने थे। कई प्रवेश परीक्षाओं में रिजेक्ट हो जाने तथा विदेश तक में कोशिश करने के बाद भारी डोनेशन से पापा को डॉक्टरी में दाखिला मिल पाया था।
वह तो अभी तक अपने पापा को अपने ज़माने का ब्रिलियंट स्टूडेंट मान कर उनका सम्मान करता आया था। उसे लगता था कि उसके पापा समाज सेवा का जज़्बा लेकर इस महान प्रोफ़ेशन में हैं। आम लोग डॉक्टरों को भगवान का दर्ज़ा देते हैं और मन ही मन उनके प्रति आदर मान से भरे रहते हैं।
लेकिन आज उसने अपने पापा के मुंह से एक ऐसी बात सुनी थी कि उसे उनसे नाराज़गी की हद तक निराशा हो गई थी। वो कह रहे थे कि मैंने अपने खेत में जितने महंगे बीज डाले हैं उतनी ही कीमती फ़सल क्यों न लूं?
छी- छी... एक डॉक्टर ऐसी बात सोच ही कैसे सकता है?