Amaltas flowers - 11 in Hindi Moral Stories by Neerja Hemendra books and stories PDF | अमलतास के फूल - 11

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अमलतास के फूल - 11

टूटते पंख

     वह पूर्वी उत्तर प्रदेश का पच्चीस-तीस टूटी-फूटी झोंपड़ियों वाला छोटा-सा गाँव था। उस छोटे-से गाँव में पक्के मकान के नाम पर मुखिया जी का ही घर था, जो आधा कच्चा, आधा पक्का था। राम प्रसाद जिसे सब गाँव में परसादी के नाम से बुलाते हैं, पसीने से लथ-पथ, पुरानी-सी धोती- कुर्ता पहने, सिर को अंगोेछे से ढके अपने बेटे देशराज का हाथ पकड़े खेतों के बीच बनी टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से होता हुआ चला जा रहा था। वह प्रतिदिन लगभग तीन किमी0 दूर स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय में देशराज को छोड़ने जाता हैं। 

        टेढ़ी-मेंढ़ी पगडडियों पर चलते हुए उसकी आँखें एक सीधा सपना देखती हैं कि- ’’पढ़-लिख कर देशराज एक बड़ा आदमी बनेगा। देशराज को गरीबी का जीवन नही जीना पड़ेगा।’’ देशराज उसका इकलौता लड़का है। वह उसे पढ़ाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करता है। अपनी तरफ से उसकी पढ़ाई में कोई कोर-कसर बाकी नही छोड़ना चहता। देशराज, जो गाँव में सबके लिए देसवा है, एक दुबला-पतला साँवला-सा लड़का है। देसवा की माँ प्रतिदिन उसके बालो में तेल लगाकर, कंघी कर के, साफ-सुथरे कपड़े पहना कर विद्यालय भेजती है। हाँ! विद्यालय भेजते समय वह उसकी आँखें में काजल लगा कर माथे पर काला टीका लगाना नही भूलती, ताकि उसके कलेजे के टुकड़े को किसी की नज़र न लगे। उस पिछड़े गाँव में अधिकांश लोग अनपढ़ हैं। कुछ पढ़े-लिखे हैं भी तो अठवीं से अधिक नही। देशवा को उनसे अधिक पढ़ना है तथा बड़ा अदमी बनना है।

      धीरे -धीरे दिन व्यतीत होते रहे। समय के साथ देसवा बड़ा होता जा रहा था, और परसादी की आँखों में पल रहा सपना भी। देसवा ने गाँव के विद्यालय से आठवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। अब राम प्रसाद के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह उत्पन्न हुआ कि आगे देसवा की पढ़ाई कैसे हो? गाँव मे आठवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिए कोई विद्यालय नही है। रामप्रसाद आगे की पढ़ाई के लिए देसवा को ले कर जाये तो कहाँ जाये? वह अपने सपने को यर्थाथ में कैसे बदले? झुग्गी-झोंपड़ी वाले इस आदिवासी बहुल गाँव में न तो कोई अधिक पढ़ा -लिखा है न तो कोई बड़ा विद्यालय। विकास की रोशनी तो इस गाँव से कोसों दूर थी। मुखिया जी से सुना है कि-’’पास के बड़े शहर में कई बड़े-बड़े विद्यालय हैं। जहाँ दूर-दूर से बच्चे पढ़ने के लिये आते हैं। विद्यालय में ही बच्चों के रहने, खाने-पीने की भी व्यवस्था है, जिसे छत्रावास कहते हैं। उनमें पढ़ाने के लिए बहुत पैसे लगते हैंै।’’ रामप्रसाद इतने पैसे लाएगा कहाँ से? वह तो दिहाड़ी मजदूर है, जिसे कभी काम मिलता है, कभी नही। इसी चिन्तावश वह गाँव के मुखिया से भी कई बार मिला, किन्तु समस्या का कोई समाधान न निकला। उस दिन वह काम पर निकलने वाला था कि उसकी पत्नी कमला ने उसे प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा। वह बोलती कुछ नही किन्तु उसकी उदास आँखें उसके ह्नदय की बात कह देतीं हैं। वह कमला से बोल पड़ा-’’ हम का करी कमला! कुछ समझ में नाही आवत है। हम देशराज को आगे कइसे पढ़ाई?’’

  ’’ पास के शहर में कऊनो इस्कूल नाही है का जिमे हमार देसवा पढै?’’ कमला ने राम प्रसाद से पुनः पूछा।

’’है काहे नाही पर पइसा बहुत लगिहै।’’ राम प्रसाद ने चिन्तायुक्त स्वर में कहा।

’’पइसा के बिना हमार देसवा बड़ा आदमी ना बन पाई का?’’कमला ने राम प्रसाद का तरफ उम्मीद भरी आँखों से देखते हुए पूछा।

’’नाही! पइसा के बिना आज के जमाने में कुछ नाही होत है। शहर में पढ़ावै खातिर पइसा बहुत लगिहै। हम इतना पइसा कहा से लाईं कमला?’’ राम प्रसाद ने अत्यन्त निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया।

राम प्रसाद की बातें सुन कर कमला की आँखों की उदासी और गहरी हो गयी।

एक दिन राम प्रसाद मजदूरी कर के घर लौट रहा था। वह देसवा की पढ़ाई को ले कर चिन्तामग्न व सुस्त-सा था। रास्ते में गाँव के मुखिया जी मिल गये। कुशलक्षेम पूछने के बाद मुखिया जी ने कहा-’’राम प्रसाद तुम देसवा को आगे पढ़़ाना चाहते हो तो देसवा को ले कर पास के शहर में चले जाओ। वहीं रह कर तुम मजदूरी करना तथा देसवा को आगे पढ़ाना। शहर में कई बड़े-बड़े काॅलेज हंै। तुम्हे मजदूरी का कार्य भी प्रति दिन मिल जायेगा, बड़ा शहर जो है। यहा गाँव में क्या रखा है? आगे जैसी तुम्हारी इच्छा।’’ मुखिया जी ने समझाते हुए कहा।

   मुखिया जी की बातों पर राम प्रसाद गम्भीरता पूर्वक विचार करता रहा। उसका ह्नदय यह सोच कर काँप जाता कि कैसे वह अपना घर, अपना गाँव तथा गाँव के लोगों को छोड़ कर शहर में जा कर रहेगा? शहर में तो सब पराये हैं। दःुख-सुख में कौन साथ देगा? गाँव में सब एक परिवार की तरह रहते हैं। दुःख-सुख में एक दूसरे का हाल पूछते हैं। 

   उसकी इन भावनाओं पर देसवा को पढ़ा कर बड़ा आदमी बनाने की इच्छा ने विजय पायी। एक दिन राम प्रसाद अपना गाँव, गाँव के लोग, घर, जमीन, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सबको स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखता हुआ कमला तथा देसवा के साथ शहर मे आ गया। 

    शहर में उसे नित्य नयी-नयी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कुछ दिनो तक खुले आसमान के नीचे रहने के बाद उसने एक सस्ती-सी झोंपड़ी किराये पर ले ली। एक सरकारी विद्याालय में देशराज का नामांकन भी करा दिया। देशराज विद्याालय जाने लगा। राम प्रसाद जी- तोड़ मेहनत करने लगा। सुख-दुःख मिश्रित दिन व्यतीत होनेलगे। सात वर्ष गुजर गये।देसवा मध्यम कद-काठी का युवा हो गया। अथक परिश्रम तथा नई-नई समस्याओं से जूझते -जूझते राम प्रसाद सात वर्षों में ही बूढ़ा प्रतीत होने लगा। 

   एक दिन काॅलेज से आ कर देसवा ने अपनी माँ तथा पिता को अपने बी0ए0 पास हो जाने की खुशखबरी दी। राम प्रसाद की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। उसे ऐसा अनुभव हो रहा था मानो दुनिया का सबसे खुशनसीब व सुखी व्यक्ति वह ही है। अब वह देसवा से कहेगा कि वह एक अच्छी-सी नौकरी की तलाश करे तथा बाबू जी लोगों की तरह साफ-सुथरे कपड़े पहन कर दफ्तर जाये। आखिर हमार देसवा इतना पढ़ा- लिखा है। बी0ए0 पास हो गया है। देखने में देसवा किसी बाबू जी से कम लगता है क्या? 

    श्राम प्रसाद की प्रसन्नमा उसके बूढ़े चेहरे पर स्पष्ट दृष्टिगत् हो रही थी। कमला ने उसे इतना प्रसन्न कभी नही देखा था। वह भी तो प्रसन्न थी। एक दिन उसने राम प्रसाद से कहा कि-’’हमार देसवा की नौकरी लग जाए तो हम पक्के मकान में रहेंगे। इस झोंपड़ी में बरसात में जीवन नर्क हो जाता है। बरसात में झोपड़ी में गन्दा पानी भर जाता है उस गन्दे पानी व मच्छरों में कैसे दिन कटते हैं वो हम ही जानते हैं।’’

   ’’ हमेशा ऐसे दिन थोड़े ही रहंेगे। अब हमार भी अच्छे दिन आयेंगे। तू थोड़ी और परेशानी उठा ले, बस!’’ राम प्रसाद ने कमला को समझाते हुए कहा।

   नौकरी की तलाश में दिन व्यतीत होते रहे। देशराज प्रतिदिन अर्जी ले कर दफ्तरों के चक्कर लगाता। शाम को हताश निराश देसवा लौट आता। राम प्रसाद मजदूरी करके थका हारा घर आता तो आशा भरी दृष्टि देसवा के चेहरे पर टिक जाती। 

    देसवा की उदास आँखें देख राम प्रसाद की बूढ़ी आँखों में दुःख और विषाद के मिले-जुले भाव तैर जाते। वह फटे-पुराने कपड़ों में लिपटी, बड़े मनोयोग से, निश्चिन्त हो कर घर के कार्यों को करती कमला को देखने लगता। कमला के चेहरे के निश्चिन्तता के भाव मानो यही कहते कि एक दिन देशराज अवश्य बड़ा आदमी बन जाएगा, और उसके दुःख के दिन खत्म हो जायेंगे। इसी उम्मीद में उनके जीवन का एक दिन और खत्म हो जाता। 

    अगले दिन पुनः सूर्योदय के साथ कमला घर के कार्यों में लग जाती है। राम प्रसाद मजदूरी करने के लिए तैयार हो जाता है। वह जानता है कि देसवा पुनः अर्जियाँ ले कर नौकरी ही तलाश में निकल जाएगा।    

लेखिका- नीरजा हेमेन्द्र