Aag aur Geet - 7 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | आग और गीत - 7

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आग और गीत - 7

(7)

सबेरे जब उसकी मुलाकात मलखान से हुई तो वह समझ गया कि मलखान रात भर भय और परेशानी के कारण सो नहीं सका है क्योंकि उसकी आंखें लाल थीं और चेहरा उतरा हुआ था । राजेश को देखते ही उसने बेचैनी से पूछा ।

“सच बताओ – मामला क्या है ?”

“मामला तो बहुत संगीन है कप्तान साहब ।” राजेश ने कहा “मगर मुझे केवल इस बात का दुख है कि तुम मुझसे झूठ बोले थे । मार्था से तुम्हारे बड़े गहरे संबंध थे मगर जिस रात मार्था की मौत हुई है तुम किसी बात पर उससे नाराज थे । इतने नाराज थे कि तुमने उसे फांसी की धमकी दी थी और यह भी कहा था कि फांसी से पहले भी मौत आ सकती है – कहा था या नहीं ?”

मलखान का चेहरा पीला पड़ गया । उसने हकलाते हुए कहा ।

“तत...तुमको...कक...कैसे मालूम हुआ ?”

“आकाशवाणी हुई थी ।” राजेश ने दांत पिसते हुए कहा “इस चक्कर में मत पड़ो औए यह बताओ कि तुमने मार्था को इस प्रकार की धमकी क्यों दी थी ?”

मलखान का चेहरा पहले से भी अधिक पीला पड़ गया । वह कहने लगा ।

“मार्था किसी आदमी को क़त्ल करना चाहती थी । पहले तो मैंने समझा था कि वह मज़ाक कर रही है – मगर बाद में जब वह अनुमान हो गया कि वह गंभीरता पूर्वक कह रही है तब मैंने उसे डांटा था और उसे डराने के लिये यह सब बातें कही थीं ।”

“मार्था किसको क़त्ल करना चाहती थी ?” राजेश ने पूछा ।

“नाम उसने नहीं बताया था मगर संकेत कुछ इस प्रकार का था कि जिससे मैं यह समझा था कि उसका निशाना कासीनो का मैनेजर है । और यह भी अंदाजा हो गया था कि मार्था अकेली नहीं है बल्कि कुछ साथी भी हैं और वह मैनेजर को अवश्य क़त्ल कर देगी ।”

“अब मेरी सुनो । मार्था के साथियों को इसका विश्वास दिला दिया गया है कि मार्था को तुमने ही क़त्ल करवाया है । इसलिये अब वह तुमको क़त्ल करना चाहते हैं ।”

“तत...तो...कक...क्या होगा ?” मलखान का चेहरा पीला के बजाय श्वेत हो गया ।

“जो होना होगा वह होगा ही । वैसे तुमने बहुत सारी बातें नहीं बताई हैं जिनको मैं फिर तुमसे पूछूंगा । फिलहाल जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं आ रहा हूं ।” राजेश ने कहा और बाहर निकल कर उस कमरे में पहुंचा जिसमें प्राइवेट फोन रहता था । कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया फिर जोली के नंबर डायल करने लगा ।

“हलो ।” जोली की आवाज आई ।

“पवन स्पीकिंग, रिपोर्ट ?”

“चौहान कासीनो में मौजूद है ।” जोली की आवाज आई “आज रात के शो की तैयारी हो रही है, मैनेजर ने खुशामद करके चौहान से उसका कमरा खाली कराकर उसे दूसरा कमरा दे दिया है ।”

“ऐसा क्यों हुआ ?” राजेश ने पूछा ।

“कन्सर्ट वालों को तीन कमरों की आवश्यकता थी श्रीमान जी ! एक ही लाइन के दो कमरे खाली थे और तीसरा चौहान का पड़ता था । कन्सर्ट वाले एक ही जगह रहना चाहते थे इसलिये मैनेजर ने चौहान से खुशामद करके वह कमरा खाली कराया था ।”

“मदन कहां है ? राजेश ने पूछा ।

“वह नायक ही पर लगा हुआ है श्रीमान जी । मदन ने एक रिपोर्ट यह भी दी थी कि थोड़ी ही देर पहले वह कैप्टन मलखान से निवास स्थान के सामने से गुजरा था तो उसे कुछ दूरी पर सड़क की दूसरी ओर उन्हीं दोनों विदेशियों में से एक दिखाई दिया था जिसे उसने नायक के फ्लैट की निगरानी करते हुए देखा था ।”

“अच्छा, सुनो, अपने साथियों को नायक सहित यह आदेश दो कि उन्हें संध्या का शो देखना है, राजेश भी रहेगा । उसका टिकट तुम अपने पास रख लेना । राजेश की पहचान यह होगी कि उसके हाथ में छतरी होगी । बस ।” उसने संबंध काट दिया और बाहर निकल आया ।

फिर पहले उसने मलखान का चेहरा मेक अप द्वारा बदला फिर अपने चेहरे पर मेक अप किया और फिर मलखान को लिये हुए नीचे आ गया ।

दूसरे ही क्षण वह मोटर साइकल पर एक ओर जा रहा था । मलखान पिछली सीट पर बैठा था ।

“कहां चल रहे हो ?” मलखान ने पूछा ।

“तुम्हारे घर ।” राजेश ने कहा ।

“क्या मतलब ?” मलखान ने विस्मय के साथ पूछा “तुमने तो कहा था कि मैं कहीं छिप जाऊं फिर...?”

“मैं यह दिखाना चाहता हूं कि तुम्हारे घर की निगरानी हो रही है – शेष बातें फिर होंगी ।”

फिर दोनों ही मौन हो गये ।

जब मलखान के मकान के सामने से मोटर साइकल गुजरने लगी तो मलखान ने देखा कि उसके मकान से थोड़ी ही दूरी पर सड़क की दूसरी ओर एक विदेशी खड़ा सिगार पी रहा था और उसकी आंखें उसी के मकान पर लगी हुई थीं ।

“देख लिया ?” राजेश ने धीरे से पूछा ।

“हां, इसे बंद करा दूं ?” मलखान ने पूछा ।

“ऐसा करने से तुम और संदिग्ध हो जाओगे । और फिर तुम उस पर चार्ज क्या लगाओगे ? और अगर इसको बंद करा दोगे तो विश्वास रखो, इसका कोई दूसरा साथी दिन दहाड़े तुम्हारी खोपड़ी में सुराख़ कर देखा ।”

बात मलखान की समझ में आई या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता था मगर इसके बाद उसने कुछ नहीं कहा था ।

राजेश उसे दिन भर मोटर साइकल पर बैठाये नगर के चक्कर लगाता रहा । एक बार कासीनो भी गया । मलखान के घर के सामने से तीन बार गुजरा था और हर बार कोई न कोई आदमी निगरानी करता हुआ दिखाई दिया था ।

“देखा कप्तान साहब ।” राजेश ने कहा “मैंने कहा था ना कि तुम्हारी बीबी विधवा होकर किसी दूसरे की बीवी बनने वाली है । अब तुमको भी विश्वास हो गया होगा कि मैंने ठीक ही कहा था ।”

“क्या बताऊँ, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है ।”

“कल सवेरे तक बहुत कुछ समझ में आ जायेगा ।” राजेश ने कहा “अब यह बताओ कि तुम कासीनो में शो देखोगे या नहीं ?”

“क्या बताऊँ । आज मैं आफिस भी नहीं गया । मेरी तलाश में पूरा आफिस परेशान होगा । डायरेक्टर जनरल के कई बार फोन आ चुके होंगे ।”

“तुम किसी पब्लिक काल आफिस से उन्हें फोन करके तीन चार दिन की छुट्टी ले लो । या जो दिल चाहे करो, मगर मुझे अवश्य छुट्टी दे दो ।” राजेश ने कहा और मोटर साइकल रोक दी ।

फिर मलखान को उतारा और ख़ुद होटल कासीनो की ओर चल दिया ।

***

यद्यपि टिकिट का दाम बहुत अधिक था, मगर केवल एक ही दिन में शो की इतनी शानदार पब्लिसिटी हुई थी कि नगर का धनी वर्ग शो देखने के लिये उमड़ पड़ा था ।

टिकिट लेकर जोली गेट पर टहल रही थी । राजेश का टिकिट उसी के पास था और उसे रह रहकर राजेश पर ताव आ रहा था क्योंकि अभी तक राजेश वहां नहीं पहुंचा था ।

जोली के तमाम साथी पहुंच चुके थे और उन सब की निगाहें नायक पर ही थीं – क्योंकि उन्होंने यह ताड़ लिया था कि यहां भी नायक की निगरानी हो रही है ।

फिर जोली को राजेश नजर आया । ढीला ढाला पोशाक, खिचड़ी बाल, मलगजी सी दाढ़ी, और हाथ में छतरी जो सर पर छाया किये हुए थी । वह तीर के समान जोली के पास आया था और कहा था ।

“क्यों श्रीमती जी ! क्या आप इस समय...।”

“बको बत ।” जोली ने झल्ला कर उसकी बात काट दी “तुम केवल पांच मिनट पहले आये हो ।”

“ओह । तब तो मुझे वापस जाकर ठीक पांच मिनट बाद आना चाहिये ।”

जोली ने कुछ नहीं कहा । अपने वैनिटी बैग से उसका टिकट निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिया ।

“यह क्या है ?” राजेश ने पूछा ।

“टिकिट ।” जोली और अधिक झल्ला उठी, इसलिये कि तीसरी बेल हो रही थी और अब बाहर कोई नजर नहीं आ रहा था । सब हाल में चले गये थे ।

“टिकिट !” राजेश ने विस्मय के साथ कहा “न मुझे कहीं पत्र भेजना है और न रेल से यात्रा करनी है फिर टिकिट का क्या काम ।”

“नरक में जाना है ।” जोली ने चिनचिना कर कहा ।

“धन्यवाद ! धन्यवाद !” राजेश ने हर्षित हो कर कहा “मुझे आज ही मालूम हुआ कि नरक में जाने के लिये टिकिट की आवश्यकता पड़ती है । जरा रास्ता भी बता दीजिये ।”

मगर जोली तो जा चुकी थी । उसे इत्मीनान था कि उसकी और राजेश की सीटें खली होंगी । राजेश ख़ुद ही आकर उसके पास बैठेगा ।

जब जोली हाल में दाखिल हुई तो रोशनियां बुझ चुकी थीं और पर्दा धीरे धीरे सरक रहा था । जोली ने एक ही जगह दो सीटें खाली देखीं । उसने सोचा कि वही दोनों सीटें उसकी और राजेश की होंगी इसलिये वह उन्हीं में से एक पर बैठ गई ।

दूसरे ही क्षण एक आदमी उसकी बगल में आकर बैठ गया था ।

जोली ने सोचा था कि राजेश ही होगा इसलिये उसने देखने का भी कष्ट नहु उठाया था – वह स्टेज को ओर देखती रही थी जिस पे बेले डान्सर आ गये थे और रूस का दो हजार वर्ष पूर्व की सभ्यता का बेले प्रस्तुत कर रहे थे । तालियों से हाल गूंज रहा था ।

जोली ने राजेश की ओर देखा और एक दम से चौंक पड़ी क्योंकि उसकी बगल में बैठने वाला राजेश नहीं हो सकता था । कुछ ही मिनट पहले वह राजेश को देख चुकी थी । इतनी जल्द और वह भी यहां राजेश दूसरा मेक अप नहीं कर सकता था और फिर चेहरा ही तो बदला जा सकता था । हाथ के पंजे की बनावट तो नहीं बदली जा सकती थी ।

अंधेरे में भी उस आदमी का एक हाथ अंगुलियों में पड़ी जगमगाती अंगूठियों के आधारपर साफ़ देखा जा सकता था । चौड़ी और बे ढंगी हथेली जिसमें लम्बी लम्बी और पतली पतली अंगुलियां बड़ी विचित्र सी लग रही थी ।

“यह सीट मेरे साथी की है ।” – जोली ने कर्कश स्वर में कहा ।

“क्या मैं तुम्हारा साथी नहीं हो सकता स्वीटी ।” – उस आदमी ने कहा ।

“शट अप – असभ्य ।” – जोली ने कठोर स्वर में कहा और उठना ही चाहती थी कि उसकी पस्ली से कोई कठोर सी वस्तु आ लगी – फिर उस आदमी ने कहा ।

“खामोश बैठी रहो – यह लोडेड भी है और बे आवाज भी है ।”

जोली कुछ नहीं बोली । इसे उस आदमी से अधिक राजेश पर क्रोध आ रहा था । अगर यह उसके साथ ही आया होता तो यह नौबत क्यों आती । वैसे वह बिलकुल भयभीत नहीं थी – क्योंकि वह जानती थी कि उसके सारी साथी हाल में मौजूद है – उनकी मौजूदगी में यह आदमी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता – वैसे उसे इसकी उलझन अवश्य थी कि आखिर राजेश कहां रह गया – क्यों नहीं आया ?

उसकी बगल में बैठे हुये आदमी ने अहि तक कोई अशिष्टता नहीं की थी और न कोई बात ही की थी । इसलिये जोली ने अपने आपको परिस्थिति के हवाले कर दिया था और निश्चिन्तता के साथ बेले देख रही थी ।

इसमें कोई संदेह नहीं था कि तमाशा बहुर दिलचस्प था । देखने वालों को उसके पैसों का पूरा मूल्य मिल रहा था । न केवल यह कि नृत्य ही शानदार था और मानव सभ्यता की प्रारंभिक झलकियाँ नजर आ रही थी – बल्कि कुछ ऐसे कमालात भी थे जिन्हें देखने वालों ने पहले कभी नहीं देखा था ।

एक डान्सर ने अपने पैर के अंगूठे पर इतना शानदार चक्कर लगाया था कि “वाह-वाह” और तालियों की आवाजों से पूरा हाल गूंज उठा था ।

अचानक जोली ने महसूस किया कि अब चुभने वाली वस्तु पस्ली में नहीं चुभ रही है । उसने गर्दन मोड़ कर बगल में देखा । बगल वाली सीट खाली पड़ी हुई थी । उसने संतोष की सांस ली ।

थोड़ी देर बाद हाल की सारी रोशनियाँ जल उठीं । जोली ने चारों और देखा । राजेश के अतिरिक्त उसके सारे साथी नजर आ रहे थे । उसकी नजर नायक पर जम कर रह गई । उसके चेहरे पर वही उदासीनता थी जो पहले थी । ऐसा लग रहा था जैसे उसने डांस देखा ही नहीं था और यदि देखा था तो फिर उसके ऊपर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा था ।

नायक आ नहीं रहा था । उसे जबरदस्ती यहां लाया गया था और उसके ऊपर मदन, माथुर और कपिल की डयूटी लगाईं गई थी – डयूटी इसलिये लगाईं गई थी कि कही नायक कोई पागल पन न कर बैठे ।

जोली उठ कर मदन के पास आई और बोली ।

“कोई खास बात ? ”

“बस इतनी कि संत जी ने गर्दन ऊपर नहीं उठाई ।” – मदन ने कहा । संकेत नायक की ओर था ।

“मेरे साथ तो एक घटना हो गई ।” – जोली ने कहा ।

“क्या ! ” मदन ने चौंक कर पूछा ।

जोली ने जल्दी जल्दी बात बता दी ।

“तुम उस आदमी को पहचान सकती हो ? ” - मदन ने पूछा ।

“हां – मैंने अंधेरे के बावजूद उसकी शक्ल देखी थी । उसके चेहरे पर जख्मों के निशान थे – बड़ा डरावना चेहरा था – उसके हाथ बड़े विचित्र थे । चौढ़े पंजे और पतली पतली अंगुलियां वैसे हाथ मैंने आज तक नहीं देखे थे ।”

“तो फिर ?” मदन ने पूछा ।

“राजेश का कहीं पता नहीं है । मेरी बगल वाली सीट खाली रहेगी ।” जोली ने कहा “माथुर और कपिल को यहीं रहने दो और तुम मेरे साथ बैठो ।”