(5)
टू सीटर पर बैठ कर इंजिन स्टार्ट किया और होटल कासीनो की ओर चल दिया ।
रात हो चली थी और होटल कासीनो में भरपूर चहलपहल थी ।
राजेश ने क्लाकरूम में पहुंचकर अटैची खोली । उसमें से ढीला ढाला सूट निकाल कर पहना आंखों पर कमानीदार चश्मा लगाया । सर पर खिचड़ी वालों की विग जमाई । चेहरे पर बहुत बेढंगे किस्म की दाढ़ी भी आ गई और फिर दोनों हाथों में छतरी लिये वह होटल के हाल में आ गया ।
हाल में सबसे पहले उसकी नजर अजय पर पड़ी । अजय की मौजूदगी यह बता रही थी कि वह इटैलियन बेन्टो भी होटल ही में मौजूद है जिसके बारे में जोली से रिपोर्ट मिली थी ।
राजेश एक मेज पर बैठ गया । बैरे को बुलाकर शानदार लंच का आर्डर दिया फिर छतरी खोलकर हाथ में ले ली ।
प्रकट है कि वह दृश्य ऐसा ही था कि हाल में बैठे हुए तमाम लोगों की निगाहें राजेश ही की ओर उठ गई थीं । कुछ लोग दिल खोलकर अट्टहास लगा रहे थे – कुछ गंभीर प्रकृति वाले केवल मुस्कुरा रहे थे ।
मगर राजेश इस प्रकार छतरी लगाये बैठा रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
फिर बोलियाँ भी बोली जाने लगीं । आवाजें भी कसे जाने लगे । हंसियां अट्टहासों में परिवर्तित हो गईं । मगर वह राजेश ही क्या जो इस सबसे प्रभावित हो सकता ।
कुछ ही देर बाद उसे एक आदमी दिखाई दिया जो बालकोनी से धीरे धीरे सीढ़ियाँ तै करता हुआ आ रहा था । उसके चेहरे की बनावट यह बता रही थी कि वह इटैलियन है । देखने से वह हिंसक और निर्दयी मालूम दे रहा था । बायें और के गाल पर घाव के लम्बे लम्बे दो निशान थे । जबड़े से यह मालूम होता था कि कभी फट गया होगा और उसे टांका लगाया गया होगा । कद लम्बा था और शरीर गठा हुआ था ।
उसे देखते ही अजय ने पहलू बदला था और फिर सीधा हो गया था ।
राजेश समझ गया था कि यही आदमी बेन्टो है । उसने यह भी महसूस किया था कि नीचे आते ही बेन्टो की नजर उसकी छतरी पर पड़ी थी और उसके चेहरे पर मंद सी मुस्कान प्रकट हुई थी और फौरेन ही विलीन भी हो गई था ।
वह एक मेज पर बैठ कर सिगार सुलगाने लगा था फिर गुर्राहट भरे स्वर में व्हिस्की का आर्डर दिया था ।
इतने में बैरा राजेश की मेज पर आ गया और प्लेटें लगाते हुये बोला ।
“सर – यह छतरी ।”
“सर पर ही तो है ।” – राजेश ने बात काट कर कहा ।
“मेरा मतलब यह था सर कि यह उचित नहीं है ।”
“हाँ – पचास साल पुरानी हो गई है ।” – राजेश ने कहा “अब जल्द ही नई ख़रीद लूँगा ।”
“मैं यह कह रहा था कि होटल में छतरी लगाना उचित नहीं है ।”
“क्यों ? ” – राजेश ने फाड़ खाने वाले भाव में पूछा ।
“होटल का डिस्पिलिन खराब होता है ।”
“यह कहां लिखा है ? ”
“यह लिखा तो नहीं है – मगर...। ”
“मगर क्या ।” – राजेश ने बीच ही में बात उचक ली “जब लिखा नहीं है तो मुझे पूरा अधिकार है ।”
बैरा भी शायद झल्ला गया था । उसने कहा ।
“मगर श्रीमान जी ! यह भी तो कहीं नहीं लिखा है कि कृपया लंगोट बांध कर तशरीफ़ न लायें तो क्या आप लंगोट बांध कर आयेंगे ? ”
“अवश्य आऊंगा ।” – राजेश ने चिडचिडे भाव में कहा “ लोग आते ही है ।”
“जी नहीं ।” – बैरा ने कहा “लंगोट बांध कर कोई नहीं आता ।”
“क्या औरतें लंगोट बांध कर यहां डांस नहीं करती ? ”
इतने देर में कई मनचले वहां आकर खड़े हो गये थे और हंस रहे था । उन्हीं में से एक ने कहा ।
“वह तो केब्रे डांस है ।”
“वाह वाह – क्या कहना ।” – राजेश ने परिहास जनक स्वर में कहा “अगर औरत लंगोट बांध कर आये तो वह केब्रे डांस कहलाये और अगर कोई शरीफ आदमी गर्मी से परेशान होकर लंगोट बांध ले तो उसे अंदर आने न दिया जाये – क्यों साहब – यह कैसा इंसाफ़ है ।”
“मगर आपने छतरी क्यों लगा रखी है ? ” – एक दुसरे ने पूछा “किसी आवश्यकता वश ? ”
“कई कारण है ।” – राजेश ने कहा ।
“एक ही बता दीजिये ।” – उसी आदमी ने हंस कर पूछा ।
“पानी ही बरस सकता है – बरसात का मौसम है ।”
“अगर पानी बरसेगा भी तो आप यहां हाल में भीगेंगे नहीं ।”
“और अगर छत टपकने लगी तो ? ” – राजेश ने कहा “और फिर धूप भी तो है ।”
“अरे महाशय जी – यह रात का समय है ।” – तीसरे ने कहा ।
“तो फिर ? ” – राजेश उसे घूरने लगा ।
“फिर यह कि रात में धूप का क्या काम ।”
“और जो यह चारों ओर फैली हुई है ।” – राजेश ने रौशनी की ओर संकेत करके कहा “यह धूप नहीं तो क्या छाँव है ? ”
“आप क्रेक है ।” – उस आदमी ने झल्ला कर कहा ।
“और आप झक मार रहे है ।” – राजेश ने उससे अधिक झल्लाहट के साथ कहा ।
अचानक सब लोगों का ध्यान राजेश के बजाय दूसरी और आकृष्ट हो गया ।
लाल रंग का चुस्त रेशमी लिबास पहने एक औरत दाखिल हुई थी । बस ऐसा ही लगा था जैसे लपकता हुआ शोला लोगों के मध्य से गुजर गया हो ।
नीली आँखों में तैरते हुये लाल डोरे – तराशा हुआ शरीर – सुगंध बिखेरती हुई – लोगों को हटाती हुई वह सीधी बेन्टो के ओर गई थी । उसने उस ओर देखा भी नहीं था जिधर राजेश छतरी लगाये बैठा था और लोग जमा थे ।
ऐसा नहीं था कि हाल में लड़कियां या औरतें नहीं थीं । हर रंग और हर नस्ल की एक से एक बढ़ कर सुंदर लड़कियां और औरतें मौजूद थीं मगर उस लाल वस्त्रधारी औरत में कुछ ऐसी खास बात अवश्य थी जिसने सब का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था ।
राजेश ने भी उसे देख लिया मगर अब उसकी छतरी उसी अच्छी तरह नहीं देखने दे रही थी इसलिये उसने छतरी बन्द करके अपने पैर के पास रख ली और अपने निकट खड़े लोगों से बोला ।
“बीर बहूटी आ गई – इसका अर्थ यह हुआ कि वर्षारुतु आरंभ हो गई इसलिये मैंने छतरी बंद कर दी ।”
“क्या बात हुई ? ”- एक ने कहा और बडबडाता हुआ अपनी सीट की ओर चला गया ।
अब सारी निगाहें उसी बीर बहूटी पर लगी हुई थी । वह लोग भी पूरी तनमयता से उसी औरत को देख रहे थे जो अपनी अपनी महिला मित्रो के साथ आये थे और थोड़ी ही देर पहले उन्हें विश्वास दिला चुके थे कि वह स्वर्ग की अप्सरा है – उनके सौन्दर्य की मिसाल नहीं मिल सकती – इत्यादि इत्यादि ।
राजेश ने देखा कि अजय भी उसी औरत को घूर रहा है और वह औरत शराब की चुस्कियों के साथ बेन्टो से कुछ बातें कर रही है ।
इतने में बैरा राजेश के पास आया । राजेश खाने में लगा हुआ था और कनखियों से उन दोनीं की ओर देखता जा रहा था – बैरा को अपनी मेज के पास देखकर उसने सर उठाया और कुछ कहने ही जा रहा था कि बैरा बोल पड़ा ।
“मुझे दुख है श्रीमान जी ।”
“होना ही चाहिये । ” – राजेश ने गंभीरता के साथ कहा “इतने स्वाद राहित भोजन पर हर सभ्य आदमी को दुख होना चाहिये । मुझे अच्छी तरह याह है कि एक होटल के स्टोवर्ड ने इस बात पर आत्म हत्या कर ली थी कि खाने में नमक तेज हो गया था ।”
“पता नहीं आप क्या कह रहे है ।”
“मैं सच कह रहा हूँ ।” – राजेश ने कहा “इसी प्रकार एक बार डांस करते समय एक नर्तकी का पैर गलत पड़ गया था । इसका उसे इतना दुख हुआ कि उसने जान ही दे दी थी ।”
बैरा ने घूर कर राजेश को देखा फिर जाना ही चाहता था कि राजेश ने उसे रोक लिया ।
“कहिये ? ” – बैरा ने अपनी झल्लाहट दबाते हुये कहा ।
“तुम उस लाल परी को जानते हो ? ” – राजेश ने धीरे से पूछा । संकेत उसी बीर बहूटी की ओर था ।
“जी नहीं ।”
“क्या वह आज प्रथम बार यहां आई है ? ”
“मैंने आज पहली ही बार देखा है ! ”
“और वह साहब – जिनसे वह बातें कर रही है ? ”
“देखिये श्रीमान जी ! हमें सख्ती के साथ यह आदेश दिया गया है कि हम एक ग्राहक से किसी दूसरे ग्राहक के बारे में कोई बात न करें ।” – बैरा ने कहा और जाने के लिये मुडा ही था कि राजेश ने उसे फिर रोक लिया ।
बैरा रुक तो गया मगर उसके चेहरे पर झल्लाहट के गहरे लक्षण थे ।
“बहुत नाराज़ मालूम पड़ रहे हो ।” – राजेश ने मुस्कुरा कर कहा ।
“आप काम बताइये साहब ? ” – बैरा ने कहा ।
राजेश ने उसे सौ की एक नोट चुपके से थमा दी ।
“यह क्या है साहब ? ” – बैरा ने हिचकिचा कर पूछा ।
“तुम्हारा इनाम ।” – राजेश ने कहा “अभी इतना ही और मिलेगा मगर बाहर ।”
“मम....मगर ।” – बैरा हकला कर रह गया ।
“डरो नहीं ।” – राजेश ने कहा “तुम्हारी डयूटी कब समाप्त होगी ? ”
“साढ़े ग्यारह बजे ।”
“ठीक है – जाओ काम करो – डयूटी के बाद सामने वाले कैफे में मुझसे मिलना ।” – राजेश ने कहा ।
बैरा तेजी के साथ एक ओर चला गया ।
ठीक ग्यारह बजे हाल की सारी रोशनियाँ बुझा दी गई और संगीत की आवाज तेज़ हो गई – फिर केब्रे डान्सर प्रकट हुई जिस पर कभी लाल, कभी हरी और कभी पीली रोशनी का फोकस फेंका जा रहा था ।
नर्तकी ने सर पर मिश्री ढंग का रेशमी रुमाल बांध रखा था और शरीर पर बादामी रंग की जाली का वस्त्र था । उसके हाथ में एक दफ़ था जिसे वह कभी दाहिने हाथ में लेती और कभी बायें हाथ में । वह लचकती हुई मेजो के मध्य से गुजरती रही ।
राजेश का पूरा ध्यान उसी इटैलियन बेन्टो की ओर लगा हुआ था ।
अचानक राजेश ने देखा कि बेन्टो अपनी सीट से उठा – फिर उसके साथ वाली औरत उठी और दोनों फोकस से बचते हुये हाल के दरवाजे की ओर बढ़े ।
राजेश ने गर्दन मोड़ कर उधर देखा जिधर अजय बैठा हुआ था – फिर उसने संतोष की साँस ली – क्योंकि अजय भी उठ कर द्वार की ओर जा रहा था ।
जब वह तीनों बाहर निकल गये तो राजेश भी उठा । काउंटर पर जा कर बिल पेमेन्ट किया फिर तेजी से हाल के बाहर निकल आया ।
बेन्टो उस औरत के साथ एक कार में बैठ रहा था और अजय अपनी मोटर साइकिल पर । राजेश ने एक बार फिर संतोष की सास ली उसके बाद बेन्टो की कार का नंबर नोट करके फिर हाल के अंदर आ गया ।
ठीक साढ़े ग्यारह बजे वही बैरा राजेश की मेज के पास से गुजरा । राजेश ने छतरी उठाई और फोकस के प्रकाश से बचता हुआ बाहर आया ।
कम्पाउंड के गेट पर बैरा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था – फिर जैसे ही राजेश गेट पर पहुंचा, उसने कहा ।
“कैफे में नहीं साहब – उधर पार्क में चलिये ।”
“चलो – पार्क हु में चलो ।” – राजेश ने कहा । उसने महसूस कर लिया था कि बैरा भयभीत है ।
पार्क में पहुंचने के बाद बैरा ने चारों ओर देखा फिर राजेश से पूछा ।
“हां साहब –बताइये ।”
“वह औरत बीर बहूटी जिस आदमी के पास गई थी उसका नाम क्या है ? ” – राजेश ने पूछा ।
“बेन्टो ।” – बैरा ने कहा ।
“वह उसी कमरे में ठहरा है ना जिसमे मार्था रह रही थी ? ”
“जी हां ।”
“कब से ठहरा है ? ”
“दो दिन से ।”
“और मार्था की लाश कब प्राप्त हुई थी ? ”
“अर्थात एक दिन वह कमरा खली पड़ा रहा था – क्यों ? ”
“जी हां ।”