Aag aur Geet - 3 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | आग और गीत - 3

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आग और गीत - 3

(3)

नायक के कुछ कहने के बजाय उसी चट्टान पर नजर डाली जिस पर आग का स्नान किया था । वह चट्टान पहले ही के समान स्वच्छ  नजर आ रही थी । उस पर राख नजर नहीं आ रही थी – फिर उसने साइकी पर नजर डाली और और उसे ऐसा लगा जैसे नीले प्याले में लाल शराब छलक रही हो । उसकी आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे और कुछ इस प्रकार की मादकता भर आई थी कि उससे आँखे मिलाने के बाद मदहोश हो जाना निश्चित था । उसके लाल बाल हवा में लहरा रहे थे ।

नायक ने अपने को संभालते हुये पूछा ।

“क्या कोई पुरुष आग का स्नान नहीं कर सकता ? ”

“क्यों नहीं कर सकता – मगर अभी तक किसी ने नहीं किया ।”

“अगर मैं इस प्रकार का स्नान करू तो क्या मैं भी ऐसा ही रहूँगा ? ”

“हा ।”

“तब मैं यह स्नान करूँगा ।” – नायक ने कहा ।

“अब यह स्नान तो पूरे चाँद की रात ही को हो सकेगा ।” – औरत ने कहा “अब मैं वायु मंडल में उड़ान करने जा रही हूँ ।”

“मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं सपना देख रहा हूँ ।” – नायक ने कहा ।

उसी समय हल्की सी घडघड़ाहट महसूस हुई और नायक ने चौक कर आवाज की ओर देखा । जिधर वह स्वेट पथ्थरो वाली इमारत थी उसी ओर से एक हेली काप्टर उड़ता चला जा रहा था । उसकी रोशनियां जल बूझ रही थी । उसकी उड़ान इतनी नीची थी कि आदमी उछल कर उसके निचले तल तक अपना हाथ पहुंचा सकता था ।

“यह तो हेली काप्टर है ।” – नायक ने कहा ।

“हा – हेली कप्तर ही है ।” – औरत ने कहा “मगर तुम कहना क्या चाहते हो ? ”

“तुमने कहा था कि तुम वायु मंडल में उड़ान करने जा रही हो इससे मैंने यही समझा था कि तुम परियों क्व समान हवा में उस जाओगी ।” – नायक ने कहा ।

“अवसर पड़ने पर यह भी कर सकती हूँ । ” – औरत ने कहा “मगर इस समय तो हेली काप्टर ही स्व जाउंगी ।”

अचानक नायक चीख पड़ा ।

“क्यों – क्या हुआ ? ” – औरत ने पूछा ।

“मुझे निशाता यहां लाई थी और....। ”

“वह नहीं लाई थी ।” – औरत ने बात काट कर कहा “मैंने तुमको बुलवाया था ।”

“अब मैं वापस जाना चाहता हूँ ।” – नायक ने कहा ।

“तो जाओ – तुमको रोका किसने है ? ”

“कैसे जाऊं – यह पहाड़ियां ।”

“मैं तुम्हें पहुंचा दूं ? ”

“हां – इन पहाड़ियों के उस पार मुझे उतार देना ।”

“अच्छा – हेली काप्टर लैंड करने दो ।”

हेली काप्टर ने लैंड किया । औरत उसे लिये हुये हेली काप्टर में बैठ गई । उसने नायक को अपने पास ही बैठाया था ।

 

हेली काप्टर धीरे धीरे ऊपर उठने लगा – थोड़ी देर तक वह पहाड़ी के बराबर ही उड़ता रहा ।

औरत के शरीर से कुछ ऐसी सुगंध निकर रही थी कि नायक मदहोश होता जा रहा था । औरत उसे कनखियों से देखती जा रही थी – फिर उसने नायक से पूछा ।

“कहा उतरोगे ? ”

“कहा तो था कि पहाड़ी के उस पार ।” – नायक ने कहा ।

“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम मेरे साथ रहो ? ” – औरत ने पूछा ।

“दिल तो मेरा भी यही चाहता है कि तुम्हारे साथ रहूँ ।” – नायक ने कहा ।

“क्यों – मेरे साथ क्यों रहना चाहते हो ? ” – औरत ने मुस्कुरा कर कहा ।

“इसलिये कि तुम अत्यंत सुंदर हो ।”

“मैं एक हज़ार तिस वर्ष की बुढिया हूँ ।” – औरत ने हंस कर कहा ।

“नहीं – तुम झूठ कह रही हो – तुम पचीस वर्ष से अधिक की नहीं हो ।” – नायक ने कहा ओर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया ।

“क्या मैं तुम्हें सचमुच सुंदर मालूम होती हूँ ? ” – औरत ने मधुर मुस्कान के साथ पूछा ।

“सुंदर ही नहीं – अत्यंत सुंदर ।”

“सच ! ” – औरत ने कहा और दुसरे हाथ से उसे पकड़ कर अपनी ओर खीच लिया ।

इस क्रिया से नायक का सर उसके वक्ष से जा टिका – नायक जो पहले ही से मदहोश हो रहा था – अब अपने को रोक न सका । उसका हाथ छोड़ दिया और दोनों हाथों से उसे पकड़ कर लिपटा लिया – औरत ने कोई आपत्ति नहीं की । नायक ने आंखे बंध कर ली थीं । नाक के नथनों में औरत के शरीर से निकलने वाली सुगंध पहले ही से घुस रही थी – मगर अब जो सुगंध घुसने लगी थी वह कुछ विचित्र प्रकार की थी ।

अचानक नायक एक दम से चौंक पड़ा । उसने औरत को छोड़ कर अलग हटना चाहा मगर उसे ऐसा लगा जैसे उसके दोनों हाथ औरत के शरीर से चिपक गये हों ।

और फिर उसे कुछ याद नहीं रह गया था ।

और जब उसकी चेतना लौटी तो उसे यह याद नहीं रहा कि अब तक वह सोता रहा था या बेहोश रहा था । उसने घड़ी देखनी चाही तो इसका ज्ञान हुआ कि उसकी आँखों पर पट्टियां बंधी हुई हैं । करवट लेनी चाही तो समझ ही में नहीं आया कि आखिर वह किस चीज़ पर लेटा है जिस पर स्थान ही नहीं है ।

फिर धीरे धीरे यह अहसास होता गया कि वह किसी कार पर यात्रा कर रहा है, बहुत तीव्रगामी कार, और वह उसी कार की सीट पर लेटा है – केवल आंखों पर पट्टियां बंधी हैं – हाथ पैर आज़ाद हैं । वह उठ कर बैठ गया और आंखों पर से पट्टी उतार दी ।

अब उसने देखा कि वह एक लम्बी सी विदेशी गाड़ी पर यात्रा कर रहा है । उसका सफरी थैला उसी सीट पर रखा हुआ था । कार जिस मार्ग से गुज़र रही थी उसके दोनों ओर हरे भरे खेत नज़र आ रहे थे – आम के बाग़ तथा नहरें भी दिखाई दे रही थीं । मार्ग के दोनों ओर वैसे ही वृक्ष थे जैसे उसके अपने इलाके की ओर पाये जाते थे – अर्थात न तो वह पहाड़ी इलाके में था और न उसी इलाके में था जिसमें वह निशाता से मिलने से पहले था ।

कार ड्राइव करने वाली वही औरत साइकी थी । शीशे में उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा साफ़ नज़र आ रहा था । उसकी बगल में एक लम्बे कद का खौफनाक शक्ल वाला आदमी बैठा हुआ था ।

अचानक कार रुक गई और वह आदमी नीचे उतरा ।

नायक का ज़ेहन बिल्कुल सोया हुआ था । वह सब कुछ देख रहा था मगर काम नहीं कर रहा था । उसे यह भी स्वप्न ही मालूम हो रहा था ।

वह आदमी नायक की सीट वाले दरवाजे के पास आकर रुका । उसका भयंकर रूप देख कर नायक डर सा गया – फिर उस आदमी ने द्वार खोला और नायक से कहा ।

“नीचे उतरो ।”

नायक ने साइकी की ओर देखा जो गर्दन मोड़े उसी की ओर देख रही थी । उसके अधरों पर बड़ी मधुर मुस्कान थी । उसने कहा ।

“उतर जाओ प्यारे – हम फिर मिलेंगे ।”

“मगर में जाऊं कहां ?” नायक ने पूछा ।

उत्तर में आदमी ने नायक का हाथ पकड़ कर जोर से झटका दिया । नायक सड़क पर आ गिरा । वह आदमी फिर कार में बैठ गया और कार चल पड़ी ।

नायक कराहता हुआ उठ ही रहा था कि उसके पास ही उसका थैला आ गिरा । उसने थैला उठाया और कार की ओर चिल्लाता हुआ दौड़ा ।

“ठहरो – रोको – गाड़ी रोको ।”

और फिर शीघ्र ही उसे अपनी मूर्खता का ज्ञान हो गया । वह झुक गया और जाती हुई कार को देखने लगा जो काफ़ी आगे जा चुकी थी ।

नायक वहीँ खड़ा हवन्नकों के समान चारों ओर देखने लगा ।

कुछ ही देर बाद वही कार बिजली के समान जन्न से आई और उसी ओर चली गई जिधर से नायक को लाई थी ।

नायक तनमयता की स्थिति में खड़ा रहा । दिमाग पर बर्फ की सिल रखी हुई थी या फिर विचित्र प्रकार की मादकता थी जिसने सोचने समझने की योग्यता हरण कर ली थी । उसे बस दो ही बातें याद रह गई थी आग का स्नान और वह औरत साइकी जो आग का स्नान करने के कारण एक हज़ार वर्षसे जीवित थी – क्या आग का स्नान करके वह भी एक हजार तीस वर्ष जीवित रह सकता है ?

और फिरर निशाता – आखिर निशाता से कैसे मुलाकात हो – इसलिये नहीं कि निशाता पर वह आशिक हो गया था – बल्कि इसलिये कि वह साइकी की दासी थी – और उसके माध्यम से वह साइकी तक पहुंच सकता था ।

साइकी उसे अपने पूरे अस्तित्व पर छाई हुई नजर आ रही थी – उसे ऐसा लग रहा था जैसे इस समय भी वह वही रेशमी लाल वस्त्र पहने उसके सामने खड़ी है ।

अचानक उसने चौंक कर घडी की ओर देखा । इस समय तीन बज रहे थे – और तारीख से यह पता लगा कि वह पूरे साठ घंटे या तो बेहोश रहा है या सोता रहा है ।

फिर उसे एक बस नजर आई जो उसी ओर से आ रही थी जिस ओर से वह कार पर यहां तक आया था ।

नायक चौंक पड़ा – आखिर यह बस यहां कैसे – मगर जब बस निकट आ गई तो वह हर्ष वश खिल उठा – क्योंकि यह सिटी बस सर्विस की वह बस थी जो नगरांत से उसके अपने नगर तक जाती थी । वह सोचता ही रह गया और बस उसके सामने से निकल गई – मगर उसे उसका दुख नहीं हुआ – क्योंकि अब यह बात उसकी समझ में आ गई थी कि वह किसी वीराने में नहीं है – अपने नगर से पैतीस मील के अंदर ही कही है और एक घंटा बाद उसे दूसरी बस मिल जाएगी – और यह भी मालूम हो गया था कि उसे यहां तक लाने वाली कार नगर ही की ओर जा रही थी – फिर उसे वहां उतार कर जिधर से आई थी उधर ही वापस चली गई थी ।

मगर उसे एक घंटे तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी । थोड़ी ही देर बाद उसे टैक्सी मिल गई और वह उस पर बैठ गया ।

एक घंटे बाद वह शहर में था ।

वही नायक जो रास्ता चलती हुई हर सुंदर लड़की और औरत को देख कर नटखट बालक के समान मचल उठता था – इस समय बिल्कुल किसी सन्यासी के समान तल्लीनता की दशा में टैक्सी पर बैठा चला जा रहा था – निगाहे झुकाये हुये ।

इसी दशा में अपने फ़्लैट तक पहुंच गया – ताला खोला और अंदर पहुंच कर बिस्तर पे लेट गया ।

जेहन पर केवल एक ख्याल – एक तस्वीर – एक नाम छाया हुआ था – साइकी ।

कुछ ही देर बाद फोन की घंटी बजी । उसने लेटे ही लेटे रिसीवर उठा लिया और मरी हुई आवाज में बोला ।

“हलो ।”

“कौन – नायक ? ” – दूसरी और से मदन की आवाज आई ।

“हाँ – मैं ही बोल रहा हूँ ।” – नायक ने कहा ।

“तुम कब आये ? ”

“बस चला ही आ रहा हूँ ।”

“क्या रहा ? ”

“मैं  नहीं जानता ।”

“अरे ! यह तुम क्या कह रहे हो ।”

नायक ने कोई उत्तर नहीं दिया और रिसीवर क्रेडिल पर रखकर अपने विचारों में खो गया ।

थोड़ी ही देर बाद जोली और मदन उसके फ़्लैट का दरवाज़ा खटखटा रहे थे ।

वास्तव में जोली को मदन इसलिये अपने साथ लाया था कि उसे नायक के स्वर में बड़ी निराशा और उदासीनता प्रतीत हुई थी । उसका विचार था कि वह जोली को देखते ही चहकने लगेगा ।

दूसरी ओर जोली भी नायक से मिलना चाहती थी इसलिये कि उनका चीफ पवन वायुयान दुर्घटना वाला केस उन लोगों को सौप कर एक प्रकार से भूल ही गया था – एक सप्ताह से पवन ने उस दुर्घटना के बारे में न किसी से कुछ पूछा ही था न कोई आदेश ही दिया था । यह लोग अपनी ओर से अपनी कारगुजारी की रिपोर्ट उसे पेश करना चाहते थे ।

नायक ने उठ कर द्वार खोला था और एक ओर हट गया था ।

जोली और मदन दोनों ने ही बड़े उत्साह के साथ “हलो” का नारा लगाया था मगर उत्तर में नायक की केवल मनमनाहट सुनाई दी थी । उसने जोली की ओर आंख उठा कर देखा तक नहीं था ।

“क्या बात है ? ” – जोली ने विस्मय के साथ पूछा “बड़े उदास दिखाई दे रहे हो ? ”

“नहीं – ऐसी कोई बात नहीं है ।” – नायक ने कहा । उसने अब भी जोली की ओर नहीं देखा था ।

“कुछ पता चला कि वह हवाई दुर्घटना कहां हुई थी ? ” – जोली ने ही पूछा ।

“कुसुमित घाटी में ।” – नायक के नेत्रों में अचानक चमक आ गई और फिर वह इस प्रकार बोलने लगा जैसे अपना सपना दुहरा रहा हो, वह कह रहा था “कुसुमित घाटी – जिसमें बहने वाले नाले की एक ओर जाल शीतल रहता है और दूसरी ओर का गर्म – मैंने उसी नाले की एक चट्टान पर उसको आग का स्नान करते हुये देखा था – जानती हो वह कौन थी ? ”

“नहीं ।” – जोली ने कहा । वह चकित थी । उसने पूछा “कौन थी वह ? ”

नायक ने फौरन ही कुछ नहीं कहा – कुछ देर बाद बोला ।

“उसका नाम साइकी है । वह एक हज़ार तीस वर्ष से जीवित है । वह चुस्त रेशमी लिबास में मुझे मिली थी – मेरा सर उसके वक्ष पर था वातावरण सुगंध में बसा हुआ था – फैली हुई चांदनी गीत गा रही थी और साइकी – साइकी । ” नायक ने सिसकारी भरी और मौन हो गया ।

मदन ने जोली की ओर देखा जो बुरा बुरा मुंह बना रही थी – फिर उसने नायक को सम्बोधित करके कहा ।

“तुम्हारा जेहन बुरी प्रकार प्रभावित हुआ है ।”

“नहीं – मैं बिलकुल होश हवास में हूँ – मगर अब मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है ।” – नायक ने कहा “हर वक़्त साइकी की याद सताती रहती है – मैं एकांत चाहता हूँ ।”

“और पवन ।” – मदन ने पूछा ।

“उससे कह देना कि मुझे फोन न करे – मैंने उसकी आज्ञा का पालन कर दिया है ।” – नायक ने कहा “उसे बता देना कि वायुयान दुर्घटना कुसुमित घाटी में हुई थी । सब लोग मर गये । हवाई जहाज जल कर राख हो गया । केवल एक आदमी बचा था जो वहीँ के लोगों की कैद में है – बस – वह मुझे भूल जाये तो अच्छा है – मेरी इतनी दिनों की सेवाओं का विचार करके मुझे क्षमा कर दे ।”

जोली ने मदन को संकेत किया और दोनों उठ गये ।

वापसी में दोनों नायक ही के बारे में बातें करते रहे ।

घर पहुंचने पर जोली ने अपने चीफ पवन को फोन किया और नायक की कही बातें दुहरा दी ।

कुछ क्षणों तक खामोशी रही फिर पवन की मरोई हुई आवाज सुनाई दी ।

“औरत उसकी कमजोरी रही है – यह सामयिक प्रभाव है ।”

“धृष्टता क्षमा की जाये श्रीमान जी ।” – जोली ने साहस करके कहा “मैंने उसके नेत्रों में ऐसी दीवानगी देखी है कि दिल कॉप उठा ।”

“सुनो जोली – तुम अपने व्यहार में परिवर्तन कर दो ।” – आवाज आई ।

“मैं समझी नहीं श्रीमान जी ? ”

“तुम नायक के साथ प्रेम पूर्ण व्यहार करो । दिल खोल कर राजेश की बुराई करो और यह देखती रहो कि इसकी प्रति क्रिया क्या होती है – फिर मुझे बताना ।”

“जी अच्छा ।” – जोली ने मुहं बना कर कहा ।

“उस विदेशी औरत की हत्या के संबंध में क्या हो रहा है  ? ”

“उसे चौहान और अजय देख रहे है श्रीमान जी । उन्हीं से रिपोर्ट मिल सकता है – वैसे उन्होंने अभी तक कोई रिपोर्ट मुझे नहीं दी है ।”

“अच्छा – बस ।” – आवाज आई और संबंध के गया ।

जोली ने धीरे से क्रेडिल पर रिसीवर रख दिया ।

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