हिमालय की ओर - 4
तांत्रिक बाबा ने फिर बताना शुरू किया .......
" इसके बाद लगभग 21 दिन बीत गया I दिन बीतने के साथ - साथ वातावरण में ठंडी और भी बढ़ गया था I इतने दिन ठंड के कपड़े ज्यादा नहीं पहनने पड़े थे लेकिन अब घर से लाए मोठे ऊनी पोशाक को पहनना पड़ा I वह बूढ़ा आदमी अब लगभग ठीक ही हो गए है I यही कुछ 10 दिन पहले
उन्हें चलने में दिक्कत हो रहा था लेकिन अब वो स्वाभाविक हैं I हाथ पैरों में उखड़े नाखून भी ठीक से सूख गए हैं I और एक रात गुफा में रहकर अगले दिन हम केदारनाथ के उद्देश्य से निकल पड़े I उस घटना के बाद से वह बूढ़ा आदमी कुछ भी नहीं बोल रहा था इसीलिए मैंने भी बात करने में ज्यादा
उत्साह नहीं दिखाया I केवल उनको अनुशरण करके पीछे पीछे चलता जा रहा था I दोपहर तक रास्ता चलने के बाद एक ऐसे जगह पर पहुंचा जहां से दिखाई देता है ऊँचे ऊँचे बर्फ के पर्वत और पेड़ पौधे पहाड़ों के ऊपर सीना तान खड़े हैं I हिमालय पर्वत का एक टुकड़ा भी दिख रहा है I बीच - बीच में पर्वत की ओर से ठंडे हवाओं का झोंका भी दस्तक दे रहा है I आज और इससे ज्यादा पैदल नहीं चला जाएगा I कुछ देर बैठकर आराम करते हुए ही सूर्य देव पहाड़ों के पीछे चले गए I इस जगह पर कुछ लोग दिखाई पड़ रहें हैं I बहुत दिन बाद एक से अधिक लोगों को देखा हूँ I उस बूढ़े आदमी से पूछने पर पता चला इस जगह का नाम गुप्तकाशी है I इसके बाद रास्ते को छोड़कर बूढ़े आदमी के पीछे - पीछे मैं आगे बढ़ा I बहुत ऊँचे एक पहाड़ के नीचे एक छोटा सा जंगल , उस जंगल के थोड़ा सा अंदर जाते ही नजर आया एक के बाद एक पांच पेड़ों के पत्तों व शाखाओं से बनाया गया पर्णकुटी I देखकर समझ गया कि यह सब यहां के स्थानीय लोगों ने ही रात को विश्राम करने के लिए बनाया है I कुटी के आसपास वाले पेड़ों में एक टुकड़े लाल , कई टुकड़े भगवा रंग के कपड़े झूल रहें हैं I मैं जान गया कि यहां शायद पहले भी कई साधु - संत रात को आराम करके आगे बढ़े हैं I एक पर्णकुटी में मैं और बूढ़ा आदमी जाकर बैठे I भूख अनुभव होते ही मैंने थैले से कुछ खाने का समान निकाला और खाकर उस दिन के लिए सो गया I रात के उस समय कितने बज रहें होने मैं नहीं जानता I नींद एक सपने के कारण टूट गई I मैं उठकर बैठा और सोचने लगा कि ऐसा सपना मैं क्यों देखूंगा ? तो क्या भाग्य ने मेरे लिए कुछ दूसरा सोच कर रखा है ? क्या मैं बाबा केदारनाथ का दर्शन नहीं कर पाउँगा ? सपने में देखा कि मैं थक हार कर चलता जा रहा हूँ एक बर्फीले पहाड़ी रास्ते पर और वहाँ से दू चोटी पर एक मंदिर दिखाई दे रहा है I मंदिर के पास पहुंचते ही मंदिर का दरवाजा मेरे सामने ही बंद हो गया I बहुत कोशिश के बाद भी मैं वह दरवाजा नहीं खोल पाया I चलने की थकान से और खड़े न रहने कारण पैर फिसलकर एक खाई में गिरता जा रहा हूँ I ठीक उसी समय नींद खुल गया I इस घटना के बाद मेरे मन में दो भाव जागे I पहला उदासी और दूसरा है मुझे केदारनाथ का दर्शन करना ही होगा I फिर नींद नहीं आया उस रात , कुटी के अंदर बैठकर मन ही मन महादेव को शरण करके मैं ध्यान करता रहा I
एक समय आँख खोल कर देखा I बहुत समय ऐसे ही ध्यान में बीत गए I अब कुटी के पत्तों के बीच से दिखाई दे रहा है लाल सूर्य की किरणें , मैं समझ गया कि सुबह हो गया है I पास ही सोए हुए बूढ़े को बुलाकर उठाया और हम कुटी से बाहर निकल पड़े I जंगल छोड़ रास्ते पर आते ही फिर से दिखाई दिया वही एक टुकड़ा हिमालय कि चोटी , मैंने दोनों हाथों को माथे से लगाकर महादेव को नमस्कार किया I बूढ़े आदमी के ओर देखते ही समझा कल के मुकाबले आज वह ज्यादा स्वस्थ व स्वाभाविक लग रहें थे I हिमालय कि चोटी मन में साहस व शारीरिक शक्ति को और बढ़ा देता है I तेजी से चलता रहा मानो केदारनाथ मुझे दूर से बुला रहें हैं I मुझे जल्दी से वहां पहुंचना है I केदारनाथ के रास्ते चलते समय जो हमेशा एक कौतुहल बना रहता वह है यहां का प्राकृतिक सौंदर्य , पूरे दिन आँखे फैलाकर इधर - उधर देखने से भी मन नहीं भरता I हर एक मुहूर्त न जाने कितने प्राकृतिक आश्चर्य मनुष्य को भाव विभोर कर रहा है I कभी ऐसा लगता कि हाथ उठाते ही बादलों को पकड़ सकते हैं फिर महसूस होता वह हमसे दूर होता चला जा रहा है I किसी - किसी पहाड़ से पतले झरने की धारा नीचे उतर रही है I प्यास लगने पर यही झरने के पानी को पेट भर पी लेता I कितना स्वादिष्ट और ठंडा है वह पानी , गले से जब नीचे उतरता है तो ऐसा लगता मानो पहाड़ी अमृत गले से शरीर में प्रवेश कर रहा है I इसके बाद एक ऐसी घटना घटी जिससे मुझे लगा देवादिदेव महादेव मेरी परीक्षा लेना चाहते हैं I आसपास के प्राकृतिक शोभा को देखते हुए चल रहा था I वह बूढ़ा आदमी मुझसे लगभग 10 हाथ आगे ही चल रहे थे I रास्ते के पास ही कुछ दूरी - दूरी पर एक दो पत्थर द्वारा बनाए गए घर नजर आ रहें थे I उसमें एक दो लोगों भी दिख रहे थे I पहाड़ी रास्ते यहां बहुत ही ऊँचा - नीचा हैं I अभी केवल पास के एक घर को छोड़ कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक पत्थर से पैर टकराकर पथरीले रास्ते पर मैं गिर पड़ा I सिर जाकर टकराया एक बड़े पत्थर से और टकराते ही सिर दर्द से कांप उठा व आँखों के सामने काला अँधेरा उतर आया I तुरंत ही मैं बेहोश हो गया I आँख बंद होने से पहले केवल एक ही दृश्य दिखाई दिया कि सामने से बूढ़ा आदमी उत्तेजित होकर मेरी ओर बढ़ रहे थे I
इसके बाद सब अँधेरा... "
इतना बोलकर तांत्रिक शांत हुए I
अब तक तांत्रिक रुद्रनाथ अपने पैरों को फैलाकर बोल रहें थे अब पद्मासन में बैठे I
मैंने धीरे से पूछा - " इसके बाद , इसके बाद क्या हुआ ? "
तांत्रिक रुद्रनाथ ने फिर से बताना शुरू किया -
" आंख खुलते ही अनुभव किया कि बहुत ठंडी लग रही है I पास ही देखा तो वह बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था I एकाएक बूढ़े आदमी को देखने से ऐसा लगता मानो वह कोई बौद्ध सन्यासी हैं I एक छोटे से घर में फर्श पर बिछाए गए मोठे बिस्तर पर मैं सोया हुआ था I घर के कोने में एक छोटा सा खिड़की दिख रहा है I उसी खिड़की से एक बड़ा पेड़ दिखाई दे रहा है I उसके तने व शाखाओं में वो सफेद - सफेद क्या लगा हुआ है ? अभी - अभी आँख खोला था इसीलिए कुछ समझ नहीं पा रहा था I मैं उठ बैठा , सिर में उस समय भी थोड़ा दर्द हो रहा था I मुझे उठता देख वह बूढ़ा आदमी मानो कुछ आश्वस्त हुआ I वो उठकर घर से बाहर चले गए I मैंने भी बिस्तर छोड़कर दरवाजे की ओर आगे बढ़ा I सोते वक्त जिस कंबल को ओढ़ रखा था उसे ओढ़कर ही बाहर आया I बाहर निकलते ही सामने के दृश्यों को देखकर मैं अवाक् हो गया I आँखों के सामने जितने भी घर दिख रहें हैं उनके ऊपर , सामने के रास्ते पर , पेड़ों पर सभी जगह सफेद बर्फ जमा हुआ है I मैंने आगे बढ़कर थोड़ा सा बर्फ अपने हाथ में उठाया I तबतक मानो मेरे सभी दर्द खत्म हो गए थे I जीवन में पहली बार ऐसे बर्फ देख रहा था I यह दृश्य मुझे कितना मनोरम लगा था मैं बोलकर नहीं समझा सकता I अचानक याद आया कि जिस जगह पर गिरकर मैं बेहोश हुआ था यह तो वो जगह नहीं है और यह घर किसका है ? जहाँ तक मुझे याद है कि मैं जहां पर बेहोश हुआ था वहां इतने सारे घर नहीं थे I पीछे देखते ही नजर आया एक विशाल पहाड़ खड़ा है I उसके ऊपर बर्फ पड़ने के कारण पूरा पहाड़ सफेद दिखाई दे रहा है I आसमान कि ओर देखा तो नीले आसमान में एक दो रुई जैसे बादल तैर रहें थे I इसी समय मैंने देखा वह बूढ़ा आदमी अपने हाथ में एक प्याले जैसा कुछ लेकर इधर ही आ रहे थे I उनके चेहरे पर अब वही पुरानी हंसी थी I
मेरे पास आकर बोले - " अब तबीयत तो ठीक है ना बेटा "
इतने दिन बाद उस बूढ़े आदमी को बात करते हुए देख बहुत अच्छा लगा I
मैं बोला - " हाँ बाबाजी , सिर में थोड़ा दर्द है लेकिन कोई परेशानी नहीं हो रहा I
" ठीक है घर के अंदर चलो I "
मैं उनके साथ घर के अंदर गया I प्याले को मेरे हाथ में देते हुए बोले - " इसमें थोड़ा चाय है , पी लो बेटा "
प्याले को लेकर एक चुस्की लुगाई I आह ! कितना स्वादिष्ट है I चाय पीते पीते हैं उनसे पूछा कि मैं यहां पर कैसे आया ? क्योंकि मैं यहां पर तो नहीं था I मेरे प्रश्न के उत्तर में बूढ़े आदमी ने बताया कि मैं आज 12 दिन बाद होश में आया हूं I गिरने के एक दिन बाद भी जब मुझे होश नहीं आया तब वहां के कुछ लोगों का मदद लेकर बूढ़ा आदमी मुझे यहां पर ले आए I एवं स्थानीय एक वैध को बुलाया गया जिन्होंने मेरे सिर के घाव को ठीक किया I उनके बात को सुन अपने माथे को छूकर सूखे घाव को महसूस किया I मैंने उनसे ये भी पूछा कि इस जगह का नाम क्या है ? इसके उत्तर में उन्होंने जो बताया वह सुन मैं खुशी से झूम उठा I उन्होंने कहा इस जगह का नाम गौरीकुंड है और जिस जगह पर मैं बैठा हूं यह उनका ही घर है I मुझे बड़े चाचा की बात याद आ गई I
गौरीकुंड से ही केदारनाथ का असली रास्ता शुरू होता है I
मैं उस बूढ़े आदमी की तरह एकटक देखता ही रहा I मैं उनका कितना बड़ा ऋणी हो गया था नहीं बता सकता I मुझे ऐसा लगा यहां से केदारनाथ बहुत ही जल्द पहुंच जाऊंगा I चाचा जी ने कहा था अगर अच्छे से चला जाए तो नौ से दस घंटे के अंदर केदारनाथ पहुंचा जा सकता है I मैं उत्तेजना से भर उठा और सामान बांधने लगा I
मुझे ऐसा करते देख बूढ़ा आदमी बोला - " क्या हुआ बेटा कहाँ जा रहें हो ? "
" केदारनाथ , बाबा केदारनाथ का दर्शन करने I "
बूढ़े आदमी ने बताया कि वह रास्ता अब बर्फ से ढक गया है I मैं वहां पहुँच पाउँगा या नहीं I मैंने उनके बातों पर ध्यान नहीं दिया I शरीर पर मोटा पोशाक पहनकर अपने थैले को कंधे पर रख लिया I
वो बूढ़ा आदमी धीरे से बोल उठे - " ठीक है अगर तुम्हें जाने का इतना ही जल्दी है तो जाओ I पर कोई भी दिक्कत हो तो यहां आने में शर्माना नहीं I जय बाबा केदारनाथ "
मैं और ज्यादा देर ना करते हुए चल पड़ा I आसमान में सूर्य को देखकर समझ आया बहुत ज्यादा सवेरा नहीं हुआ है ठीक से अगर सकूँ तो शाम तक बाबा केदारनाथ का दर्शन मुझे मिल जाएगा I उस समय भी नहीं सोचा था कि मन के दृढ ईश्वर आराधना से वो स्वयं अपने भक्त के कष्टों को दूर करने के लिए मृत्युलोक में चले आते हैं I उस घटना को मैं जीवन में कभी नहीं भूल सकता I ऊँचे रास्ते से चढ़ाई शुरू कर दिया I कुछ दूर जाते ही दिखाई दिया रास्ते के दाहिने तरफ नीचे एक सुंदर सा कुंड , उससे धीरे - धीरे धुआँ निकल रहा था I यह कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है I कुंड के चारों ओर बर्फ जमा हुआ है I देखकर आश्चर्य हुआ की चारों तरफ इतनी ठण्ड है और बर्फ भी गिर रहा है लेकिन इस कुंड का पानी गर्म कैसे है I ईश्वर की लीला के सिवा यह संभव नहीं है I और कुछ आगे जाते ही पवित्र मन्दाकिनी नदी जलधारा का दर्शन हुआ I यह नदी के साथ चलने पर केदारनाथ मंदिर में पहुंचा जा सकता है I लेकिन नदी तो लगभग सौ - डेढ़ सौ फुट नीचे से बह रही है I मैं चलता रहा I उस समय सूर्यदेव पहाड़ के पीछे से निकल रहें थे I जितना आगे बढ़ रहा हूँ उतना बर्फ जमने की मोटाई बढ़ रही है I लेकिन रास्ते को देखकर ऐसा लग रहा था कि लोग आज ही यहां से नीचे की ओर आए हैं I इसी तरह लगभग साढ़े तीन मील चलने के बाद जहाँ पहुंचा वहाँ पर रास्ते के ठीक पास ही एक ऊँचे पहाड़ से बड़ा सा सुंदर झरना नीचे गिर रहा था I उसका पानी रास्ते के पास से ही बह रहा था I थोड़ा सा पानी पी लिया वहां से , ठंडा व स्वादिष्ट पानी I इसके बाद कुछ देर आराम करने वहां पर बैठा I बाएं तरफ दिख रहा है हिमालय का एक अंश और सामने ऊँचे - ऊँचे पहाड़ I एवं उनके ऊपर घने जंगल , उन जंगलों में किसी भी प्रकार के जानवर रह सकते हैं I बीच - बीच में हिमालय की ओर से आने वाली ठंडी हवा के झोंके चेहरे को सुन्न कर देती I कभी - कभी कुछ लोग भी दिखाई देते लेकिन वे सभी नीचे गौरीकुंड की ओर उतर रहे थे I केदारनाथ की ओर किसी को भी जाते हुए नहीं देखा I मैं उठकर फिर चलने लगा और मन में निश्चय किया कि कितना भी पीड़ा हो बैठना नहीं है I चल पड़ा महादेव का जयकारा करते हुए I धीरे - धीरे साँस लेने की गति बढ़ने लगा I फिर एक समय ऐसा लगा मानो फेफड़े सीना चीरकर बाहर निकल आएंगे I बर्फीले रास्ते पर पहाड़ चढ़ना इतना सहज नहीं है I शारीरिक क्षमता तो लगता ही है इसके अलावा मानसिक शक्ति दृढ ना होने पर पहाड़ चढ़ना असम्भव है I ऊपर चढ़ने के साथ साथ गर्मी और वायु कम होता गया I इसी तरह पांच मील और चलने के मुझे ऐसा लगा अब मुझसे नहीं होगा I शरीर की शक्ति चलने के कारण धीरे - धीरे कम होता रहा I मुँह को खोलकर साँस लेना पड़ रहा है I थैले में हाथ डालकर देखा था उसमें खाने के लिए कुछ भी नहीं है I गौरीकुंड से आते वक्त जल्दबाजी में खाने के बारे में याद ही नहीं आया I रास्ते के पास एक दो छोटे दुकान दिखे लेकिन वो सभी बंद थे I दोनों पैर मानो और हिलना नहीं चाहते I चारों तरफ ऊँचे - ऊँचे पहाड़ और बर्फ , एक भी चिड़िया व मनुष्य नहीं दिखाई दे रहा I इसी वक्त अचानक हरिद्वार के उस चायवाले की बात याद आ गई I उसने कहा था कि इस समय बर्फ पड़ने के कारण मंदिर 6 महीनों के लिए बंद कर दिया जाता है I तो क्या बाबा केदारनाथ का मंदिर बंद कर दिया गया है ? शायद इसी कारण रास्ते में कोई भी नहीं दिख रहा I मेरा हृदय कांपने लगा यह सोच कर कि इतनी दूर आकर भी महादेव का दर्शन नहीं कर पाउँगा I उस दिन रात का वह स्वप्न क्या सच हो रहा है ? उस समय और 4 मील रास्ता बाकी था I धीरे - धीरे दोपहर बीत रहा है I मैं फिर उठ पड़ा , हाथ जोड़कर एक बार महादेव का नाम लेकर अपने गंतव्य कि ओर चल पड़ा I अब मानो रास्ता और भी ऊँचा है I चलते हुए याद आया कि महादेव का दर्शन पाना कोई सरल काम नहीं है I हर एक कदम पर मानो ईश्वर धैर्य , सहन व भक्ति की परीक्षा ले रहें हैं I मैंने भी मन ही मन निश्चय कर लिया कि अगर मौत भी हो गई तो कोई दुःख नहीं I महादेव के पैरों के पास ही मर जाऊंगा I केदारनाथ का दर्शन मुझे करना ही होगा I बिना दर्शन किये मैं यहां से वापस नहीं जाऊंगा I इसमें चाहे मैं पैर फिसलकर नीचे गिर जाऊं या बर्फ में मेरी समाधि बन जाए I... "
" सचमुच आपका तारीफ किए बिना नहीं रह सकता I हरिद्वार से उतना दूर चलकर , न जाने कितने समस्या से घिरकर , इसके अलावा दुर्घटना से चोट के बावजूद आप उतना दूर पहुँच गए I यही बहुत था I "
इतना बोलकर तांत्रिक रुद्रनाथ के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया I
तांत्रिक तुरंत बोल पड़े - " अरे , अरे ये क्या कर रहें हो I प्रत्येक मनुष्य के अंदर भगवान विष्णु का वास होता है इसीलिए मेरा पैर छूकर अपने अंदर के भगवान विष्णु को छोटा क्यों कर रहें हो I मैं तुम्हें ऐसे ही आशीर्वाद दे रहा हूँ पैर छूने की कोई जरूरत नहीं I अभी तो पूरी कहानी सुना ही नहीं I "......
अगला भाग क्रमशः ....