Tantrik Rudrnath Aghori - 8 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 8

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 8

हिमालय की ओर - 2


अब आगे .....

" 2 दिन बाद जाकर उतरा हरिद्वार स्टेशन पर , उस समय सुबह होने वाला था I मैंने अनुभव किया कि पूरे 2 दिन रेलगाड़ी की यात्रा करने के कारण जो थकान आया था वह पूरी तरह से यहां उतरते ही खत्म हो गया I एवं मन मानो तृप्त हो गया है I स्टेशन के बाहर एक चाय की दुकान पर चाय पीने के लिए गया I चायवाले के पास केदारनाथ का
रास्ता पूछते ही उसने बताया था कि मैं गलत समय पर आ गया हूं I उस समय दर्शनार्थी केदारनाथ से लौट कर आते हैं I क्योंकि अगले 3 महीने में ही वहां भारी बर्फबारी शुरू हो जाएगी I इसके बाद लगभग 6 महीने मंदिर बंद रहेगा I वहां इतनी बात बर्फबारी होती है कि सामान्य मनुष्य नहीं रह सकते I इसके बाद मैंने उससे बोला कि अभी तो 3 महीने
बाकी हैं मैं तो आज ही उस ओर रवाना हो जाऊंगा I यह सुन चायवाले ने जानकारी दी कि पहाड़ी रास्ते पार करके केदारनाथ मंदिर पहुंचने में मुझे लगभग 1 महीने लग जाएंगे और फिर वहां से लौटना भी होगा I यह सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया लेकिन साहस नहीं कम होने दिया क्योंकि बड़े चाचा के पास से सभी जानकारी लेकर ही मैं यहां पर आया
हूं I इतनी आसानी से मैं हार नहीं मानने वाला था I चाचा जी ने कहा था कि केदारनाथ यात्रा से पहले मैं हरिद्वार में गंगा स्नान अवश्य कर लूँ I चाय वाले को चाय के पैसे देकर व उससे गंगा नदी का रास्ता पूछकर मैं बाहर निकल आया I
गंगा नदी के घाट तक पहुंचते-पहुंचते अच्छा खासा सुबह हो गया था I गंगा जी एकदम कांच की तरह झिलमिला रही थीं I पानी में उतरते ही महसूस किया वह बहुत ही ठंडा है I दो डुबकी लगाकर बाहर निकल आया I शरीर और मन मानो एकदम शुद्ध व निर्मल हो गया I शरीर पर कपड़ा लपेट व सूर्य को प्रणाम कर निकल पड़ा पहाड़ी रास्तों पर केदारनाथ के उद्देश्य से...
मन में केवल एक ही बात गूंज रहा है ,' हर हर महादेव , हर हर महादेव ' I उस समय भी नहीं जानता था कि देवादिदेव महादेव भक्त के बुलावे से स्वयं आकर अपने भक्तों की दुख व दुर्दशा को दूर करते हैं I उस घटना के बाद से मुझे दृढ़ विश्वास हो गया कि महादेव केवल काल्पनिक नहीं हैं I मन में भक्ती व श्रद्धा होने से उनका दर्शन भी मिल सकता है I हर हर महादेव , हर हर महादेव I

लगातार पूरे 5 घंटा चलने के बाद थकान अनुभव होने लगा I पतले पहाड़ी रास्ते के पास ही आराम करने के लिए मैं एक पत्थर पर बैठ गया I हरिद्वार छोड़कर जितना ही आगे बढ़ा रहा था ऊंचाई और भी बढ़ती जा रही थी I और साथ ही साथ बदल रहे थे आसपास के प्राकृतिक दृश्य I क्रमशः
पहाड़ी रास्ते शुरू हुए थे लेकिन रास्ते ज्यादा चौड़े नहीं हैं I
आसपास 3 आदमी सटकर चल सकते थे I एक तरफ गहरी खाई और दूसरी ओर पहाड़ को काटकर बनाया गया है चलने के लिए रास्ता एवं पहाड़ के ऊपर जंगल हैं I पहाड़ के दूसरी ओर खाई की तरफ जितनी दूर नजर जाती उधर केवल ऊंचे - ऊंचे पहाड़ों की श्रृंखलाएं हैं I किसी किसी पहाड़ के ऊपर रूई की भांति एक - दो टुकड़े बादल लटक
रहे हैं I हरिद्वार से कुछ ज्यादा ही ठंडी यहां पर महसूस हो रहा है लेकिन सूर्य देवता के कारण ठंडी ज्यादा नहीं लग रही पर बीच-बीच में ठंडी हवाएं शरीर को कंपा देती I दूर किसी अनजाने पहाड़ से एक अज्ञात जलधारा नीचे उतर रही है I
आंखें फैलाकर देख रहा हूं इस प्राकृतिक सुंदरता को जो मनोरम है I
घर से आते वक्त मैंने बहुत सारा चूड़ा , लाई , गुड़ आदि लेकर आया था क्योंकि चाचा जी ने कहा था कि साथ में उपयुक्त खाना व शीत पोशाक अवश्य लेकर जाना और मैं उनकी बातों को अमान्य नहीं करता था I कंधे के थैली से लाई व गुड़ निकाल मैंने खाना शुरू कर दिया I उसके बाद लगभग आधे घंटे और विश्राम करके फिर से चलना शुरू कर दिया I रास्ता समतल नहीं है , कहीं ऊँचे - कहीं नीचे , सावधानी से न चलने पर गिराने की भी संभावना है I जितना आगे बढ़ता रहा ऊंचाई भी उतनी ही बढ़ती गई I 3 घंटा और
बीतते ही सूर्य ने खुद को किसी पहाड़ के पीछे छिपा लिया I सिर उठाकर देखा आसमान की ओर एवं एक ऐसा दृश्य देखा जिससे मैं बहुत आश्चर्यचकित हो गया I पहले ही बताया कि रास्ता जो की है पहाड़ को काटकर बनाए गए है I जिस पहाड़ पर यह रास्ता बनाया गया है उसके ऊपर की ओर देखते ही ऐसा लगा कि मानो पूरा पहाड़ ही महादेव के जटा जैसा दिख रहा है और उसके पास तैयार रास्ता मानो महादेव के जटा से होकर जटा में प्रवेश कर रहा है I इस दृश्य को देखकर मन में एक भाव उत्पन्न हुआ जिसे बोलकर नहीं समझाया जा सकता I धीरे-धीरे अंधेरा होने लगा I पहाड़ों पर शाम जल्द ही हो जाती है I ऐसे अंधेरे में चलना बहुत ही कठिन है I कहीं भी रोशनी नहीं है केवल आसमान में चांद व
तारों की रोशनी के अलावा ,उसमें आसपास के दृश्यों को देखकर ऐसा लगा मानो मैं किसी अंधेरे से घिरे स्वर्ग में पहुंच गया हूँ I आसमान में रुई जैसे बादल , नीचे बह रही है ठंडी
हवा और वातावरण में एक अनजाना सुगंध सब कुछ मनमोहक है I इतनी देर में जहां पर पहुंचा हूं वहां रास्ता थोड़ा चौड़ा हो गया है I लेकिन कुछ ही दूरी पर फिर से पतला रास्ता शुरू हो गया है I मैंने निश्चय किया कि आज यहीं पर रात बिताया जाए इसीलिए पहाड़ से सटकर लगे एक बड़े पत्थर पर जाकर मैं बैठ गया I पैरों में हल्का हल्का दर्द शुरू होने लगा था और नींद भी जोरों की लगी थी I ज्यादा देरी ना करते हुए कुछ लाई - चूड़ा चबाकर , उसी बड़े पत्थर से टेंक लगाकर सो गया I नींद जब खुला उस समय सुबह की रोशनी नहीं हुई थी I केवल ईशान कोण से हल्की
हल्की रोशनी दिख रहा था I मैं उठकर बैठ गया I धीरे-धीरे ठंडी हवा चल रही है और इधर उधर के जंगलों से एक - दो चिड़ियों की आवाज सुनाई दे रहा है I अचानक दाहिने ओर नजर जाते ही देखा एक प्रकाश बिंदु धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ रहा है I मैं उधर ही एकटक देख रहा था I धीरे-धीरे वह प्रकाश बिंदु बड़ा होने लगा I कुछ देर बाद ही वह मुझसे लगभग 40 - 50 हाथ नजदीक तक आ गया I ध्यान से देखने पर पता चला एक आदमी जलती मशाल को लेकर इधर ही चला आ रहा है I कुछ देर बाद वह आदमी मेरे पास आ गया और मेरे सामने से जाते वक्त मुझे देखते ही अचानक से चौंक उठे I मैं समझ गया कि उन्होंने इस समय ऐसी जगह पर किसी मनुष्य के होने के बारे में नहीं सोचा होगा I वह एक बूढ़ा आदमी था I मशाल की रोशनी में उन्होंने मुझे ध्यान से देखा I मैं भी उनके ओर वैसे ही देखता रहा I मेरे मन में एक खटका सा उठा कि इस समय ऐसा एक बूढ़ा आदमी पहाड़ी रास्तों पर घूम रहे हैं और तो और शरीर पर कोई मोटा
वस्त्र भी नहीं है I
मैंने ही पहले कहा - " नमस्ते "
मेरे आवाज को सुनकर वो धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़े और बोले - " नमस्ते बेटा "
उनके आवाज को सुनकर मुझे ऐसा लगा कि वो यहीं पहाड़ी के रहने वाले हैं I
मैंने पूछा - " आप कहां जाएंगे ? "
" घर जाऊंगा बेटा "
" आपका घर कहाँ पर है ? "
" गौरीकुंड "
इस बात को सुनते ही मुझे मन में एक बात याद आ गई I कल ही सोच रहा था कि अनजाने एक ऐसे दुर्गम रास्ते पर अकेला चल पड़ा हूं I रास्ता पूरी तरह अज्ञात है किस तरफ पहुंच जाऊंगा पता नहीं कि केदारनाथ भी पहुंच पाउँगा या नहीं I चाचा जी ने कहा था कि गौरीकुंड तक अगर मैं पहुंच गया तो उसके आगे का रास्ता ऊँचा नीचा होने पर भी रास्ते में खोने की संभावना नहीं है I एवं यह आदमी ऐसे समय पहाड़ी रास्तों पर जा रहा है और इनका घर भी गौरीकुंड में है I ना जाने मुझे ऐसा क्यों लगा कि यह आदमी भगवान का भेजा कोई दूत है I मेरे रास्ते को प्रदर्शित करने का भार मानो भगवान ने इन्हीं को दिया है वरना एक ऐसे समय जब ठीक से रोशनी भी नहीं हुआ है तब भी मुझे यह आदमी दिखाई
दे गया I मन ही मन भगवान को धन्यवाद देकर , मैंने उस बूढ़े आदमी से कहा - " मैं केदारनाथ जाऊंगा I क्या मैं भी आपके साथ चल सकता हूं ? "
बूढ़ा आदमी कुछ हंसते हुए बोला - " क्यों नहीं ,
चलो I "
मैंने देर ना करते हुए अपने थैले को उठाकर उनके साथ चल पड़ा I उस आदमी के हाव - भाव ऐसे थे कि मैं तो तुम्हें ही लेने के लिए आया था I उस समय पूर्व दिशा से धीरे-धीरे लाल रंग की छटा निकल रही थी और उस प्रकाश में अपनी
चादर को हटा रहे थे सामने के विस्तृत असंख्य पहाड़ , चिड़िया अपने घोसलों को छोड़कर निकल पड़ी हैं I
मैंने इस बूढ़े आदमी से पूछा - " बाबाजी गौरीकुंड से केदारनाथ कितना दूर है ? "
लेकिन उस बूढ़े आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया वो एक मन से चलते ही जा रहे थे I
मैंने फिर पूछा - " केदारनाथ तक पहुंचने में कितना समय लगेगा ? "
बूढ़ा आदमी कुछ भी ना बोलते हुए अचानक से रुक गए I तब तक रोशनी से आसपास सब कुछ अच्छे से दिखने लगा था I उस बूढ़े आदमी के दोनों आंखों को मैं स्पष्ट देख रहा था I उन आँखों में कितनी नम्रता थी I उनके आंखों को अगर कोई देख ले तो उससे नजर हटाना मुश्किल था I केवल आंखें ही पर्याप्त थी इसीलिए कोई और विवरण नहीं दे रहा हूँ I उन्होंने अपने मशाल को पास ही पत्थर पर फेंककर बुझा दिया I इसके बाद मेरे तरफ देखकर फिर से चलना शुरू कर दिया I मैं भी उनके साथ चुपचाप चलता है I "

इतना बोलकर तांत्रिक रुद्रनाथ शांत हुए और पास ही रखे लोटे में पानी नहीं है यह देखकर वह कुएं से पानी लाने चले गए I मैं चुपचाप बैठकर सोच रहा था कि इस आदमी ने न जाने कितने आश्चर्य चीजें को देखा है I केदारनाथ , बर्फ का पहाड़ , पहाड़ी रास्ता , प्रकृति की गोद में रात बिताना और भी न जाने क्या-क्या किया व देखा है I
रुद्रनाथ तांत्रिक पास ही लोटा रखते हुए बैठे I
मैं बोला - " इसके बाद बताइए क्या हुआ ? क्या वह बूढ़ा आदमी पूरी तरह से मौन है ? "

" हां , हमेशा चुप ही थे I लेकिन उन्होंने जो खेल दिखाया था वह मुझे पूरे जीवन भर याद रहेगा I "
" क्या हुआ था ? क्या हुआ था ? जरा बताइए I"
रुद्रनाथ तांत्रिक हंसते हुए बोले - " इतने उतावले क्यों होते हो I धैर्य रखो धैर्य I
उस दिन लगभग शाम तक पैदल चला I उस बूढ़े आदमी की वजह से कुछ जल्दी ही मैं आगे बढ़ पा रहा था I वो कई टेढ़े मेढ़े गलियों से मुझे लेकर जा रहे थे I ऐसे ही दो पहाड़ों को काटकर बनाए गए दरार से एक ऐसी जगह पर पहुंचा जिसे देख मेरी आँखे फटी की फटी रह गई I सामने ऊंचे ऊंचे सफेद रंग के पहाड़ एवं उसके ऊपर सफेद बादलों का घेरा
और उसके पीछे धीरे-धीरे डूब रहा है शाम का सूरज I सूरज की रोशनी में बादल मानो ऐसे दिख रहे हैं जैसे कोई मखमली बिस्तर बिछाया गया है I और जहां हम खड़े हैं इसके कुछ ही दूर आगे बह रहा है एक पानी का स्रोत , यह पानी निकल रहा है पहाड़ों के बीच बने दरारों से I वह पानी बहुत ही ठंडा है और बहुत ही साफ इसीलिए मैंने हाथों से पीना शुरू कर दिया I बहुत सारा पानी पीने के बाद पास ही
मुड़कर देखा तो वह बूढ़ा आदमी वहां नहीं था I कहां गया वह आदमी ? ऐसे एक जगह से अचानक आँखों से ओझल हो जाना संभव नहीं है I इसके बाद फिर मैंने देखा जलधारा के उस पार एक पत्थर के बड़े बिल से वह निकल रहे थे I मैं भी जलधारा को पार करके उनके पास गया I जाकर देखा तो वह एक गुफा थी I शाम हो चुकी थी शायद इसीलिए बूढ़े आदमी ने कहा - " आज रात हम इसी गुफा में रहेंगे I पहले भी मैं यहां पर रहा हूं और अंदर एकदम साफ है I जब भी हरिद्वार जाता हूं इसी में रात गुजरता हूँ I "
मैं भी उनके साथ अंदर गया I यह गुफा अच्छा खासा बड़ा है I अंदर जाते समय सिर भी नहीं झुकाना पड़ता I
उन्होंने कहा - " तुम रुको जरा मैं अभी आता हूं I "
वो बाहर निकल गए I झांक कर देखा तो बाहर शाम हो गई थी I कुछ देर बाद वह बूढ़ा आदमी अपने साथ कुछ छोटे-छोटे लकड़ी के टुकड़ों को लेकर आया फिर अपने पास रखे माचिस से लकड़ियों को जलाया I गुफा में एक धूनी जल उठा जिसके प्रकाश से पूरा गुफा दिखने लगा I मैंने देखा गुफा के अंदर ना जाने कैसे-कैसे चित्र छपे हुए थे I मैं आगे बढ़ा गुफा के दीवार की ओर इन चित्रों को ध्यान से देखने के लिए I रंग बहुत ही चमकीला नहीं है लेकिन सफेद और लाल रंगो द्वारा उन चित्रों को बनाया गया था I ध्यान से देखने पर
मुझे पता चला कि जिस चित्र को मैं देख रहा हूँ वह देवी छिन्नमस्ता का चित्र था और उसके पास ही छपा हुआ है देवी छिन्नमस्ता का यंत्र I और उसके कुछ ही नीचे छपा हुआ है देवी उच्छिष्ट चंडालिनी देवी मातंगी का चित्र I इसी तरह देवी
धूमावती , देवी काली , देवी तारा , देवी भुवनेश्वरी , देवी बगलामुखी , देवी त्रिपुरसुंदरी , देवी भैरवी I इसके अलावा देवी कमला का भी चित्र सहित सभी देवी के यंत्र दीवार पर छपे हुए थे I मैं जान गया कि इस गुफा में कोई उच्च मार्ग के तांत्रिक रहते थे या अब भी रहते हैं क्योंकि दीवारों पर कुछ
चीजों को देखकर मुझे ऐसा लगा था I दीवार पर कहीं-कहीं सिंदूर लगा है ध्यान से देखने पर दिखाई देता है I इसके अलावा मैंने दीवार पर सुखा हुआ खून भी देखा I मुझे एक बार ऐसा लगा कि वह उच्च मार्ग का तांत्रिक यही बूढ़ा आदमी है , जो उस समय बैठकर धूनी में लकड़ी के टुकड़े डाल रहे थे I लेकिन मैंने कुछ बोला नहीं I
आग के सामने जाकर बैठते ही उस बूढ़े आदमी ने मुझसे कहा - " यह गुफा बहुत ही पुरानी है I कुछ करीब करीब एक महीना पहले भी यहां एक तांत्रिक बाबा रहते थे I इसको बहुत बार देखा है मैंने I "
" अब कहाँ गए ? वो तांत्रिक यहां पर कितने साल से थे ? "
" लगभग 10 - 12 साल होगा I पूरी तरह याद नहीं लेकिन बहुत साल तक तांत्रिक बाबा यहीं पर थे I "
" फिर क्या हुआ ? "
" पता नहीं कहां चले गए I फिर उन्हें देखा नहीं I "

धूनी के जलने के कारण गुफा का द्वार दिखाई दे रहा था I पत्थरों के बीच से थोड़ा सा आसमान भी दिखाई दे रहा था और उसी से समझा बाहर आज पूरी तरह अँधेरा है I उस समय भी नहीं जानता था कि आज रात को कुछ ऐसा होगा
जो मेरे चिंता भावना से भी परे होगा और मेरे जीवन की दृष्टि को पलट देगा एवं उसके साथ साथ डर व भक्ति से मेरा चित्त भर जाएगा I "

" क्या हुआ था रात को ? " मैं बोल पड़ा I
तांत्रिक रुद्रनाथ एक बार बाहर की ओर देखकर अपने हाथों में जोड़ा और अदृश्य किसी को नमस्कार करके बताने लगे उस आश्चर्य व अकल्पनीय घटना को…...


अगला भाग क्रमशः...


@rahul