Its matter of those days - 19 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 19

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ये उन दिनों की बात है - 19

स्कूल की तरफ से पिकनिक का प्रोग्राम बना था | जगह थी सरिस्का नेशनल पार्क | सुबह 6:30 बजे सभी स्कूल पहुँच गए थे | चूँकि सफर काफी लम्बा था इसलिए जल्दी निकलना जरूरी था |

उस दिन मैंने व्हाइट कलर का फ्रॉक जिसमें लाल रंग के पोल्का डॉट्स थे और साथ ही मैचिंग का पोल्का डॉट्स वाला ही हेयरबैंड लगा रखा था | छोटी छोटी लाल रंग की बालियां कानों में पहन रखी थी |

पहले मुझे पता नहीं था कि पोल्का डॉट्स क्या होता है | हम तो इसे छोटे-छोटे बिंदुओं वाली ड्रेस कहते थे, पर जब कृतिका का बर्थडे था तो वो कुछ इसी तरह की ड्रेस पहनकर स्कूल आई थी और वो काफी अच्छी लग रही थी उस दिन | तब मैंने सुना उसे कहते हुए की इन छोटी छोटी छींटों को ही पोल्का डॉट्स कहता हैं | अब जब मुझे पता चला तो अपनी सहेलियों को बताना तो लाजमी था|

अरे वाह!! दिव्या!! बहुत खूबसूरत लग रही है तू, कामिनी ने मुझे गले लगाते हुए कहा |

"हाँ", "सच्ची", मेरी और भी सहेलियों ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई |

यहाँ तक की कृतिका, जो की हमारी क्लास की सबसे स्मार्ट और इंटेलीजेंट लड़की थी, जो अब मेरी क्लास में नहीं है क्योंकि उसने साइंस सब्जेक्ट लिया था और मैंने आर्ट्स सब्जेक्ट | बार-बार मेरी तरफ ही देखे जा रही थी |

ये दिव्या मुझसे भी सुन्दर कैसी लग सकती है, उसके चेहरे पर गुस्सा था, क्योंकि जब सोनिया उसके पास से होकर गुजरी तो उसने उसे यही कहते हुए सुना था |

फिर सोनिया भागती सी हमारे पास आई और जोर जोर से हँसने लगी |

क्या हुआ ?

पर वो थी कि हँसे जा रही थी और बीच बीच में कुछ बोलने की कोशिश भी कर रही थी |

अब तू या तो हँस ही ले या बोल ही ले, हम सबको चिढ़ होने लगी थी |

वो कृतिका...............

क्या हुआ उसे? हम सब चौंके | अभी तो ठीक ही थी |

अरे उसे कुछ हुआ नहीं है| उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई | बस इतना ही बोली वो कि फिर हँसने लग गई |

वो कैसे ? बता ना.........बता ना..........

बताती हूँ, बाबा, बताती हूँ, साँस तो ले लेने दो |

जब मैं उसके पास से गुजर रही थी तो मैंने उसे पता है क्या कहते सुना |

क्या? अब बोल भी दे |

ये दिव्या मुझसे भी सुन्दर कैसे लग सकती है............एक ही साँस में कह गई थी वो |

हैं?? सच्ची?? मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं रहा था | मुझे ही क्या!! कामिनी, निशा सभी को विश्वास ही नहीं हो रहा था |

चलो | उसको और चिढ़ाते हैं |
हाँ......हाँ......चलो |

हाई कृतिका!! कैसी हो? मैं उसके पास उसको चिढ़ाने के इरादे से गई |

"आई एम फाइन", "ओह माई मिस्टेक", तुझे तो इंग्लिश आती नहीं | वो फूहड़ता से हँसने लगी और साथ-साथ उसकी सहेलियां भी हँसने लगी |

मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन अपने आपको संयत करते हुए बोली, "आई एम आल्सो फाइन" |

अब उसकी शक्ल देखने लायक थी | उसका जो घमंड था, वो मैंने एक पल में ही तोड़ दिया था, हालाँकि अभी तो और भी मौके आने बाकी थे |

"ओके बाय!" "गुड टू सी यू", मैंने कहा और बस में जा बैठी |

वो अवाक रह गई थी कि मैं भी इंग्लिश बोल सकती हूँ | मेरी थोड़ी बहुत इंग्लिश की जानकारी के लिए मैं हमारी कविता टीचर का शुक्रिया अदा करना चाहूँगी | कुछ टीचर ऐसे होते हैं जो सिर्फ एक बच्चे पर ध्यान ना देकर पूरी क्लास पर ध्यान देते हैं और कविता मेम उनमें से एक थी | क्योंकि वो चाहती थी की हर लड़की इंग्लिश सीखे | इसलिए उन्होंने अपना 100 परसेंट दिया हमें सिखाने में और ऐसे टीचर बहुत कम होते हैं |

बस चल पड़ी थी | हम सभी अंताक्षरी खेलते हुए जा रहे थे | हमारी टीचर भी हमारे साथ खेल में शामिल हो गई थी | पहले बार हमने उन्हें गाते हुए सुना | समय कैसे कट गया पता ही नहीं चला | दो घंटे में हम सरिस्का पहुँच चुके थे | वहां पहुँचते ही सबसे पहले खाना खाया | वहाँ और भी स्कूल के स्टूडेंट्स पिकनिक मनाने आये थे |

चूँकि सरिस्का एक वन्यजीव अभ्यारण्य है पर भारतीय पौराणिक इतिहास के अनुसार यहाँ पर पांडवों ने अपने निर्वासन का अंतिम समय यहीं बिताया था | जब उन्हें हस्तिनापुर से निर्वासित किया गया था | इसलिए यहाँ पर पांडुपोल नामक मंदिर भी है |

लड़कियों......तुम सब एक साथ ही रहना | इधर उधर मत जाना, नहीं तो खो जाओगी | "ठीक है", मेम ने आदेश दिया |

सब लड़कियों ने हाँ में सर हिलाया |

और फिर उससे मुलाकात हो गई यानी सागर से | दरअसल माहेश्वरी बॉयज स्कूल के स्टूडेंट्स भी पिकनिक मनाने आये हुए थे और सागर इसी स्कूल में पढ़ता था | ये ज़िन्दगी भी अजीब है | आपको ऐसे ऐसे ख्वाब दिखाती है कि आप सोच ही नहीं पाते | दरअसल वो आपको किसी से मिलाने की खुराफ़ात कर रही होती है |

मेम आगे-आगे चल रही थी | हम सब पीछे-पीछे | हमने देखा कृतिका ने अपनी सहेलियों को आगे चले जाने का इशारा किया और खुद एक जगह रुक गई | एक लड़का उसके पास आया | दोनों गले मिले | हमें समझते देर नहीं लगी हो-न-हो ये उसका बॉयफ्रेंड है |

उस लड़के का नाम राज है, माहेश्वरी बॉयज स्कूल में पढ़ता है और कृतिका की तरह ही वो भी काफी इंटेलीजेंट है | कृतिका को चॉकलेट्स और गिफ्ट्स देता रहता है | सोनिया पूरी जानकारी ले आई थी | कभी भी कोई भी जानकारी चाहिए हो हमें तो हम सबकी जुबान पर एक ही नाम होता था और वो था "सोनिया का" | अब उसमें इस तरह का हुनर था कि सामने वाले की सारी बातें कैसे निकलवानी है | उसका ये हुनर क़ाबिले-ए-तारीफ़ था |

काफी हैंडसम है और कृतिका की तरह ही गोरा-चिट्टा है, सोनिया ने आगे जोड़ा |

उस जमाने में किसी लड़की का बॉयफ्रेंड होना बहुत ही दूर की बात थी | फ्रेंड की बात तो छोड़ ही दो | ये कहावत सौ फीसदी सच थी की एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते | हमें कृतिका के बारे में जब ये पता चला की उसका बॉयफ्रेंड है तो आश्चर्य से सभी ने दाँतों तले ऊँगली दबा ली थी | फिर रही-सही कसर वहाँ दिख रहे प्रेमी जोड़ों ने पूरी कर दी थी | जो आज तक फिल्मों में हम देखते आये थे | आज असल में, अपनी आँखों के सामने घटित होता देख रहे थे | शायद भीड़भाड़ से दूर, यहाँ एकांत में कुछ पल बिताने के लिए, ऊंची-ऊंची दीवारों के पीछे छिपे ये जोड़े, अपनी ही दुनिया में खोये हुए थे और ये तो हो ही नहीं सकता कि हम सब उधर ना देखे | आश्चर्य से हमारी आँखें चौड़ी हुई जा रही थी |

ये लोग क्या बातें कर रहे होंगे ? ऊँगली से मैंने एक प्रेमी जोड़े की तरफ इशारा किया |

यहीं कह रहे होंगे की एक दिन दिव्या भी इसी तरह किसी के साथ बैठेगी, कामिनी ने मज़ाक किया |

कामिनी...इ..इ...इ...इ...इ...इ.......तू रुक और ऐसा कहकर उसे मारने को दौड़ी |