उपन्यास भाग—5
दैहिक चाहत – 5
आर. एन. सुनगरया,
समाज की ईकाई है, परिवार, प्रत्येक सदस्य है, परिवार की ईकाई एवं परिवार रहित सदस्य समग्र सवमाज की ईकाई कहा जा सकता है। देवजी का स्थान भी समग्र समाज की ईकाई के समान है, समाज की सम्पूर्ण गतिविधियॉं एवं कार्यकलाप में देवजी की भागीदारी समाहित है।
नितांत निजि स्तर पर कोई भी व्यक्ति की सम्पूर्ण इच्छाओं, मनोकामनाओं, आवश्यकताओं इत्यादि की पूर्ती के लिये पारिवारिक परिवेश अत्यावश्यक होता है। जिसके अभाव में व्यक्ति का समोचित समग्र सामाजिक विकास संभव नहीं है। परिवार, कुटुम्ब, कबीला, खानदान इत्यादि के होने से ही मनुष्य अपनी तृष्णा, हंसी-खुशी, रूठना-मनाना, दु:ख-दर्द-शोक, सहन करना, प्रीत, प्यार, स्नेह, लाड़-दुलार का प्रदर्शन करना, रसास्वादन करना, चिन्ता, फिकर, तबज्जो करना, खुश करने व खुशी होने के प्रयास करना। कहने का तात्पर्य यह कि प्रत्येक स्तर पर आदान-प्रदान का आत्मिय सिलसिला चलते रहना ही; समाज की गतिशीलता की प्राण-ऊर्जा है। इस तत्व के कारण ही समाज सजीव रहता है।
सम्भवत: यही अन्तर्निहित आवश्यकता के कारण मानव परिवार के साथ जुड़ा रहता है। इसके अभाव में उदासीन हो जाता है। जीने की ख्वाईश एवं लालसा क्षीर्ण हो जाती है। निरूद्देश्य सा लगने लगता है, जीवन-पथ !
देवजी की पारिवारिक मानसिकता मूर्छित हो गई है। इसे पुन: चेतन्य करना होगा। दिल-दिमाग में जीवन प्रवाह के लिये कोई आस उत्पन्न करनी होगी। तभी देवजी को सामान्य जीवन जीने में दिलचस्पि उदित होनी अत्यावश्यक है। इसके लिये देवजी को रोजमर्रा के कार्यकलाप में परिवारिक वातावरण निर्मित करना होगा; देवजी के अन्त:करण में कोई मकसद, ध्येय, उद्देश्य के भाव का अंकुरण उत्पन्न करना होगा। ताकि टार्गेट अचीव करने हेतु प्रयासरत रहने लगे निरन्तर......।
शीला ने इसी दृष्टिकोण को आधार बनाकर, देवजी को पारिवारिक सदस्य की भॉंति ट्रीट करना प्रारम्भ कर दिया। ताकि फेमलियर एटिट्यूट डव्वलप्प हो सके, देवजी के दिल-दिमाग अथवा आत्मा में। प्रीत का स्थाई बीज जाग्रत हो सके......।
देवजी कुछ ऑफिसियल वर्क में व्यस्त थे। उन्हें आभास ही नहीं हुआ कि उनके टेबल के सामने आकर शीला खड़ी हो गई, ‘’नमस्कार देवजी।‘’
‘’अरे तुम कब आईं।‘’ अचम्भित देवजी, ‘’बैठो-बैठो।‘’
‘’जी, अभी-अभी।‘’ बोलते-बोलते शीला शॉंत भाव से बैठ गई।
कुछ क्षण खामोशी रही, देवजी बोले, ‘’आज मैं, रेक्वेव्स्ट करूँगा कि आप मेरे टेबल पर लन्च करें, मेरे साथ !’’
‘’एनी सरप्राइजी ?’’ शीला के दॉंत मोतियों जैसे चमक उठे मुस्कुराते ही।
‘’हॉं, ऐसा ही समझो!’’ देवजी आज बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में नज़र आ रहे हैं। ऐसा कम ही देखा गया है। कुछ तो ,खास है। शीला लन्च पीरीयड की प्रतीक्षा करते-करते अपने कैविन में आ गई। और ऑफिस के काम निबटाने लगी।
शीला अपना लन्च बॉक्स लेकर आ गई, मगर देवजी की थाली अभी तक कैन्टीन से नहीं आई। समय तो हो गया! आखिर रहस्य क्या है। एक कौतुहल बना हुआ है।
देवजी ने शीला को बैठने का संकेत दिया। और चैयर पर बैठे-बैठे ही, दायें तरफ झुककर बड़ा सा लन्च बॉक्स उठाकर टैबल पर रख दिया, ये देखो मेरा प्रेप्रेशन, चख कर टेस्ट ! .....शीला की ओर खुला लन्च बॉक्स बढ़ाया।
शीला ने अपना चम्मच निकाला और डब्बे से थोड़ा भोजन निकाला, अपने बॉक्स के ढक्कन पर डाला, ‘’अभी देखती हूँ।‘’
‘’टेस्ट तो करो !’’
शीला ने एक निबाला मुँह में डाला, जायके का जायजा ले रही थी, तभी इशारे से देवजी ने पूछा, ‘’कैसा लगा।‘’ आगे बोला, ‘’कुछ स्वाद भी है कि............।‘’
‘’वेरी गुड......टेस्ट।‘’
देवजी असमंजस में अधूरा मुस्कुरा कर, ‘’सच ! या मुझे प्लीज करने....।‘’
‘’वाक्यी टेस्टी है।‘’ शीला ने तारीफ की।
‘’थेन्क्यू मेडम।‘’
लन्च के उपरान्त देवजी ने कैन्टीन से दो कॉफी बुलबाई।
कॉफी की चुस्कियॉं लेते-लेते लन्च टाईम गुजर गया।
सेकन्ड हाफ में शीला कुछ फाइलों पर गौर-गम्भीरता पूर्वक पढ़कर सिग्नेचर करने में तल्लीन थी, ‘’नमस्ते मैडम।‘’ अभिवादन ध्वनी ने चौंका दिया, ‘’हॉं कक्कू दादा।‘’ शीला ने पूछा, ‘’क्या कोई प्राबलम है।‘’
‘’जी मैडम, जीप में डीजल लेना है।‘’ शीला ने कक्कू को देखा, डीजल रेक्वार्मेंट स्लिप बढ़ाते हुये याचक जैसा खड़ा है।
‘’हॉं लाओ।‘’ शीला ने उसके हाथ से स्लिप लेकर सिग्नेचर करके लौटा दी। साथ ही पूछ लिया, ‘’आप तो देवसाहब की जीप चलाते थे।‘’
‘’येस मेडम।‘’ नजरें उठाते हुये, काफी टाइम ड्राइवर रहा उनका।‘’
‘’उनका व्यवहार कैसा था।‘’ शीला ने जानना चाहा।
बड़े साहब लोगों के मिजाज का क्या ठिकाना, मैडम।‘’ कक्कू बताने लगा, ‘’कभी शोला ! कभी शबनम !’’ शीला के देखते हुये, ‘’बहुत कड़क साहब हैं। कब किस करवट बैठेगें कुछ अंदाज नहीं, उन्हें देखकर मातहतों में हड़कम्प मच जाती है। जिसको, जिधर जगह मिलती है, छुप जाता है। साहब की अगाड़ी, घोड़े की पिछाड़ी से बचकर ही रहना चाहिए। बिना वजह हड़का देने में एक सेकेन्ड की देर नहीं करते प्रताडि़त करते रहना तो शायद उनका शौक है।‘’
‘’अब तो ठीक हैं ना।‘’ शीला द्वारा कक्कू का बयान रोकना जरूरी था।
‘’हॉं अब तो काया पलट लगता है।‘’ कक्कू का दृष्टिकोण बदला, बहुत ही सज्जन व्यक्ति जैसा वर्ताव करते हैं, मृदुवाणी में सहानुभूति पूर्वक काम बताते हैं। व्यवहार कुशल...........।‘’
‘’ठीक है ले लो डीजल।‘’ शीला ने आदेशात्मक लहजे में कहा एवं अपने काम में पुन: व्यस्त हो गई।
शीला के कैविन के द्वार के सामने खड़े देवजी, अपना पेन पॉकेट में खोंसते हुये, ‘’शीला जी ऑफिस टाईम ऑफ हो चुका है।‘’ देवजी के स्वर में हास्य-व्यंग्य व्याप्त है।
शीला फाईल बन्द करते-करते देवजी को मुस्कुराते देखते हुये, ‘’आप मुझे शीला जी कहकर सम्बोधित ना किया करें।‘’ शीला ने हंसते-हंसते निकट आकर कहा’’ मुझे ऐसा लगता है, जैसे आर्डर कर रहे हैं ऑफिसियली।
‘’हॉं नहीं मैं कहने वाला था।‘’
‘’क्या।‘’ शीला बोली, ‘’क्या कहने वाले थे।‘’
‘’यही कि तुम भी मुझे देवजी मत बोला करो।‘’ देवजी ने आगे क्लियर किया, ‘’ऑफिसियल प्रोटोकॉल ऑफिस में, इमीडियट वॉस के नाते, मगर आउट ऑफ ऑफिस, हम एक-दूसरे के मित्र हैं।‘’ शीला को देखते हुये, ‘’येस और नाट ?’’
शीला कुछ क्षण विचार मग्न खड़ी रही, देवजी असहज महसूस करने लगे। चेहरे पर अशिष्टता की छाया मंडराने लगी। तत्काल शीला ने दृढ़ता पूर्वक चीखते हुये कहा, ‘’येस येस !’’
देव का चेहरा चमक उठा, ‘’धन्यवाद !’’
देानों एक-दूसरे को खामोशी पूर्वक घूरने लगे एवं साथ-साथ ऑफिस के बाहर तक आ गये।
संध्या समय निवृत्त होकर बैठी शीला के अंत:करण में मीठी सी हूँक उठी, अव्यक्त हिलोर लेती स्वर लहरी सी तरंगें। उतावली बैचेनी की थर्थराहट के साथ जिस्मानी उबाल का आभास होने लगा। मन व्याकुल होकर अपनी मर्यादाओं के पिंजरे में फडफड़ाता टॉंव-टॉंव कर रहा है। ऑंखों में शुरूर उतर आया है, ये सब फीलिंग, भावनाओं, वासनाओं का साया उमड़ रहा है। इसी मदहोशी में शीला हॉस्टल की बालकनी में आ गई, मन्द शीतल पवन में राहत मिली। उमड़ती, उठती हसरतों का उतार प्रारम्भ हुआ। धैर्यपूर्वक अपने-आप पर नियन्त्रण करते-करते शीला ने नीचे नज़र झुकाई, हॉस्टल की पुष्प वाटिका में भॉंति-भॉंति के फूल अपनी-अपनी डालियों पर झूलते हुये अटखेलियाँ कर रहे हैं, प्राकृतिक माहौल में मस्त-मस्त महसूस करने लगी शीला, शुकून मिला। कुछ शॉंत हुआ मन-मतवाला ना जाने कब से यह प्यास परेशान करती रहती है। कुदरत का तकाजा है या मन डोल गया है। संस्कार-संकल्प क्षीण हो रहे हैं ! अंतत: शीला कुछ नतीजे पर नहीं पहुँची तृष्णा ज्यों-कि-त्यों बरकरार रही........
शीला, बेटी तनूजा से अपने मन की बात करने की तीव्र इच्छा हो रही है। मोबाइल उठाया ही था कि वेल बजने लगी, तत्काल रिसीव किया, ‘’हॉं तनूजा बोल मैं तुम्हें ही कॉल करने वाली थी।‘’
‘’हॉं तो बताओ क्या बात है।‘’
‘’तुम बोलो कैसे........।‘’
‘’नहीं कोई खास नहीं।‘’ तनूजा ने कहा, ‘’सामान्य हाय हेल्लो।‘’ आगे पूछा, ‘’तुम बोलो मॉम क्या कश्माकश चल रही है। दिल-दिमाग में।‘’
‘’बिलकुल अकेले-अलग-थलग बैठे हुये तुम्हारे पिता के साथ बिताये यादगार लम्हों ने आ घेरा था। बहुत भावुक हो गई, तो तुमसे बातें करने का मन हुआ। जस्ट लाइक सम चेन्ज !’’
‘’मॉम तुम तो दुनियॉं को सीख-सलाह-शिक्षा देने में पूर्ण सक्षम हो। अभी तक तुमने अपने सराऊँडिंग में ऐसा एटमास्फर नहीं बनाया कि अकेलेपन की नौबत ही ना आये।‘’
‘’अरे लाड़ो, जिन्दगी हमेशा अपने मन मुताबिक ही नहीं चल सकती।‘’ शीला ने आगे समझाया, ‘’कुछ अप्रत्यासित मोड़ अथवा उतार-चढ़ाव का भी सामना करना पढ़ता है। अनायास उत्पन्न उलझनों को फेस करना होता है। अपने विवेक, संयम या नियन्त्रण के माध्यम से.......।‘’
‘’खेर ! यह सीख तो आपने हमें दी है।‘’ तनूजा ने आगे सामान्य सलाह दी, ‘’मॉम तुम तो अपने मन-माफिक परिवेश गढ़ने में माहिर हो। उदासी तो तुम से कोसों दूर भागती है।‘’
‘’वाह-वाह मेरी प्यारी लाड़ो।‘’ शीला ने खिलखिलाते हुये, माहौल को खुशगवार बनाया, ‘’फुला दे गुब्बारा, चढ़ा दे चने के झाड़ पर ।‘’
‘’मैं गम्भीर हूँ, मॉम, मेरी मंशा है, आप-अपने-आपमें, अनुकूल वातावरण निर्मित करने में पूर्ण सक्षम एवं निपूर्ण हो।‘’
‘’हॉं, देखती हूँ, तुम्हारी सलाह पर भी सोचूँगी।‘’ आगे बोली, ‘’कैसी चल रही है, स्टेडी।‘’
‘’एकदम टॉप एण्ड टॉप !’’
‘’चल ठीक है, अपना ध्यान रखना।‘’ शीला ने पूछा, ‘’रखती हूँ मोबाइल, वाय !’’
‘’वाय मॉम ।‘’
लाइन कट ।..............
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क्रमश:---६
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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