जैसे ही अवि और प्रज्ञा,विहान को गले लगाते हैँ…..तभी आसमान मे बिजली की तेज़ गड़गड़ाहट के साथ उनके घर की लाइट चली जाती है।
तीनों बिजली की आवाज़ से डर जाते हैँ और प्रज्ञा घबराकर जल्दी से उठकर खिड़की से बाहर झाँक कर देखने लगती है। वो देखती है की चारों तरफ झप्प अंधेरा हो चुका था और सामने भी कुछ नज़र नहीं आ रहा था और सड़क किनारे लगे खम्बों मे शॉर्ट सर्किट की वजह से चिंगारियाँ उठ रहीं थी।
बाहर के तूफ़ान को देखकर अब उसके अंदर भी एक तूफ़ान उठ चुका था।
अविनाश टॉर्च जलाये सोफे पर विहान को लिए बैठा था और दोनों ही प्रज्ञा की तरफ देख रहे थे….प्रज्ञा भी पीछे मुड़कर उनकी आँखों मे देखने लगती है। बिल्कुल बेबस और डरी हुई….
एक बार फिर बिजली दमकती है और उसकी लाल-नीली रोशनी खिड़की से आकर पूरे घर मे एक क्षण के लिये उजाला सा कर जाती है, जिसके साथ ही उसकी भयानक आवाज़ सुनकर विहान, अविनाश को कस कर पकड़ के उसके सीने से चिपक जाता है और प्रज्ञा लड़खड़ाती हुई खिड़की के पास से, अपने दोनों हाथ अपने सीने पर रखकर खुद को संभालती हुई दरवाजे के पीछे सरक कर रोने लगती है…..तभी विहान की हल्की सी आवाज़ उस शोर मे होती हुई अविनाश के कान मे पड़ती है-पापा!….भाई कब आएगा???
उसकी बात सुनकर अविनाश के अंदर भी एक करंट सा दौड़ गया…….अविनाश को भी यश की चिंता खाए जा रही थी और विहान की पीठ को सेहलाता हुए वो प्रज्ञा को देखने लगा …..और पहले से डरी हुई प्रज्ञा उसे ही देख रही थी। लेकिन इस बार जैसे उनकी डरी-सहमी आँखों मे एक-दूसरे से कुछ बाते चल रही हो…..जैसे दोनों एक दूसरे को हिम्मत दे रहें हो….अविनाश भी रोना चाह रहा था लेकिन उसके मन मे चल रही व्यथा और प्रज्ञा-विहान की हालत देखर उसने अपने आंसुओ को अंदर ही रोक लिया।
अविनाश को कुछ सूझा और वो विहान को अपनी गोद मे लेकर खड़ा होते हुए उसे समझाते हुए बोला-बेटा इधर देखो ऊपर!.....
अविनश की बात सुनकर प्रज्ञा भी उसके नज़दीक आकर ख़डी हो गयी।
अविनाश-विहु! आप स्ट्रांग बच्चा हो ना मेरा और मम्मा का….
विहान हाँ मै सर हिलाता है…..
अविनाश एक नज़र प्रज्ञा की तरफ देखकर-बेटा बाहर कितनी बारिश हो रही है और भाई अब तक आया नही….तो क्या आप पड़ोस मे गिन्नी के घर पर रह सकते हो….ताकि हम भाई को लेने जा सके।
अविनाश की बात सुनकर प्रज्ञा ने तुरंत अपना हाथ अवि के कंधे पर रख दिया…..लेकिन विहान कुछ सोचने लगा….
अविनाश-विहु!....हम बस यूँ वापस आ जाएंगे भाई को लेकर।
विहान भी जैसे उस वक़्त अपनी समझ से बड़ा हो गया हो वो प्रज्ञा की उदास शक्ल देखते हुए बोला-कोई बात नहीं पापा!.. मै रह लूंगा….आप भाई को लेकर आ जाओ बस।
उसकी बात सुनकर अवि और प्रज्ञा के शरीर मे एक अजीब सी जान आ गयी हो…..दोनों ने विहान को चूमकर तुरंत अपना सामान उठाया, विहान को एक बड़ी सी पन्नी मे ढका और उसको गोद मे लेकर बाहर जाने लगे….प्रज्ञा ने जैसे ही दरवाजा खोला तो उसकी साँसे सी थम गयीं…..
बाहर का मंज़र इतना बुरा था की जैसे प्रलय आ गयी हो….बारिश का पानी सड़क पर एक नदी का सा रूप ले चुका था।काफ़ी देर से इतनी बारिश हो चुकी थी की पानी उनके घर मे घुसने लगा था और वो काला पानी अँधेरे के साथ मिलकर जैसे उन्हें चुनौती दे रहा हो…..प्रज्ञा के हाथ मे जलती टॉर्च की रोशनी भी उस पानी मे कहीं बह गई….झर झर गिरती बारिश और पल-पल मे कौंधती बिजली…...किसी की भी साँसे थमा दे….जिसे देखकर प्रज्ञा को बस एक ही ख्याल आने लगा की यश कहाँ और किस हालत मे होगा?? ….तभी अविनाश ने उसका हाथ पकड़ा और एक हाथ मे विहान को लेकर गहरी सांस लेते हुए पहला कदम उसने बाहर रखा….आगे बढ़कर प्रज्ञा ने भी अपना दरवाजा बंद किया और पानी मे संभलते हुए उतरकर पड़ोस की तरफ बढ़ने लगे…..
उनके शरीर तक पहुँचते ही ठंडा पानी उन्हें कंपाने लगा और ऊपर से गिरती बारिश उन पर काँटों की तरह बरस रही थी….विहान ने अपने दोनों हाथों से अवि को पकड़ रखा था….वो डगमगाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे…..लेकिन तूफ़ानी हवाओं ने वो बीस कदम की दूरी भी सौ कदम के बराबर कर दी थी और ऊपर से घुटनो तक भरा पानी…..लेकिन मन मे यश की चिंता उन्हें उस तूफ़ान मे रुकने नहीं दे रही थी।