DUNIYA MERI MUTTHI MEIN - 3 in Hindi Drama by Amar Kamble books and stories PDF | DUNIYA MERI MUTTHI MEIN - 3

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DUNIYA MERI MUTTHI MEIN - 3




करन ने फोन पर कहा, “हैलो महक, मैं पांच मिनट में आ रहा हूं।” और फोन रख दिया। तभी सामने से वो हवालदार आया। करन ने पूछा, “क्या हुआ? कोई problem?” हवालदार ने कहा, “साहब, दाई तरफ से कुछ लोग कुल्हाडीयां लेकर घुसें हैं, पेड़ काटने! मैंने उन्हें रोका मगर वे मान नहीं रहें हैं।” करन ने कहा, “ठीक है,‌ चलो बैठो।” वे गाड़ी पर बैठकर दाईं तरफ चले गए और तभी झाड़ियों में से एक जीप निकलकर बाईं तरफ चली गई, वहीं जीप!

शाम के सात बजे थें। महक हॉल में बैठकर रेडियो पर समाचार सुन रही थी। बाहर बारिश हो रही थी। अचानक बिजली कड़की और लाईट चली गई। महक चौकन्ना हो गई। वह उठकर बेडरुम की ओर जाने लगी। तभी बेल बजी। महक ने कहा, “करन!” और सामने आकर दरवाज़ा खोला। दरवाज़े में वे चारों खड़े थें। महक ने कहा, “अंदर आओ।” चारों हल्के पांव से अंदर आए। महक ने दरवाज़ा लगाया। मुड़कर उसने पूछा, “बारिश हो रही है न्? भीग गए होगे!” लखन ने राजा को आगे किया। राजा ने करन की आवाज़ की नक़ल करते हुए कहा, “हां, थोड़ा सा भीग गया हूं।” महक ने कहा, “तुम फ्रेश हो लो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं। ठंड लगी होगी ना!” वो दीवार को हाथ लगाते हुए किचन में गई। चारों ने एक दूसरे की ओर देखा। महक ने चाय का बर्तन गॅस पर रखा। तभी राजा ने पिछे से उसे बाहों में लिया। महक ने कहा, “करन छोड़ो, चाय बनानी है।” राजा ने कहा, “ठंड भगाने के और भी तरीके हैं।” और उसे उठाया। महक ने कहा, “करन छोड़ दो, क्या हो गया है तुम्हें आज!” राजा ने कहा, “चलो, बताता हूं।” महक चिल्लाई, “करन!” उधर, करन और हवालदार के सामने कुछ गरीब लोग खड़े थें। करन ने कहा, “ठिक है,‌ अभी आप जाइए, मैं वादा करता हूं के मैं आपकी मदद करुंगा ताकि आपको पेड़ काटकर अपना गुज़ारा ना करना पड़े।” वे सभी चले गए। करन ने हवालदार से कहा, “तुम भी घर जाओ, मैं यहीं से घर के लिए निकलता हूं।” हवालदार ने पूछा, “इतनी बारिश में?” करन ने कहा, “ तो क्या हुआ? भीग तो गया ही हूं। अंधेरा भी हो रहा है। महक अकेली होगी।” उसने किक मारी और चला गया। हवालदार ने कहा, “वो अकेली कहां है साहब?” उधर घर पर, राजा ने महक को बेड पर लिटाया। महक को बाहों में लेकर उसने अपनी उंगलियां उसकी उंगलियों में अटकाई। महक ने भी अपनी उंगलियां कस ली तभी उसके हाथ राजा की अंगुठी लगी। उसने झट् से राजा को दूर किया और पूछा, “अंगुठी! कौण हो तुम?” मदन ने महक को पिछे से पकड़ कर कहा, “अब ये भी हमें ही बताना पड़ेगा? ए, पकड रे इसे।” और महक को किशन की ओर फेंका। किशन ने उसे पकड़ा। महक कहने लगी,”छोडो, छोड़ो मुझे।” तभी बेल बजी। सभी चौकन्ना हो गए। महक करन के नाम से चिल्लाए; तभी किशन ने उसका मुंह दबाया। उसने कहा, “राजा, लखन, तुम दोनों उसे संभालो।” राजा ने आकर दरवाज़ा खोला। करन उसे देखकर हैरान हो गया। उसने पूछा, “तुम यहां कैसे?” और आगे बढ़ा; तभी दरवाज़े के पीछे से लखन ने करन के सिर पर लोहे की प्रेस मारी। करन चिल्लाकर निचे गिर गया। उसके सिर से खून बहने लगा। राजा और लखन ने उसे उठाकर पकड़ा। तभी बेडरूम से मदन और किशन कपड़े पहनते हुए बाहर आए। मदन ने कहा, “वा! मजा आ गया!” किशन ने कहा, “राजा, लखन, तुम लोगों की बारी!” मदन और किशन ने करन को पकड़ा। करन का होश खो रहा था फिर भी उसने कहा, “छोड़ दो उसे वरना अंजाम बुरा होगा।“ तभी मदन ने उसे लाथ मारी। राजा और लखन शर्ट उतार कर अंदर गए। करन चिल्लाया, “रुक जाओ।“ किशन ने करन के बाल पकड़कर कहा, “दर्द हो रहा है ना! चिंख, और चिंख। भिख मांग अपनी बीवी की।“ करन ने कहा, “तुने ये अच्छा नहीं किया।“ वे करन को फिर से मारने लगे। कुछ देर बाद राजा महक के गले पे चाकू लगाकर उसे ले आया। करन ने कहा, “महक।“ महक रोने लगी। उसके कपड़े फटे थें। शरीर पे चोंटे आई थीं। करन ने गुस्से से कहा, “मैं तुम लोगों को नहीं छोडूंगा।“ और छूटने की कोशिश करने लगा। मदन ने उसका गला पकड़कर कहा, “इतने में थक गया! अभी तो और ज़ख्म बाकी हैं।“ और राजा को आवाज दी। करन चिल्लाने लगा तभी राजा ने एक झटके में महक के गले पे चाकू चलाया। महक धीरे धीरे निचे गिर गई। करन चिल्लाया, “महक!” चारों हंसने लगे। करन ने गुस्से से किशन को लाथ मारी। तभी मदन ने वो लोहे की प्रेस उठाकर करन के सिर पे वार किया। करन कांच की खिड़की से टकराकर निचे गिर गया।

( To Be Continued...)