Atonement - 19 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग-19

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प्रायश्चित - भाग-19

पूरे रास्ते शिवानी, किरण व उसकी बीमारी के बारे में ही सोचती रही। जिस किरण से वह रात दिन, उठते बैठते, सालों से नफरत करती आई थी!!
जिसके लिए उसने भगवान से हमेशा बददुआ के सिवा कुछ
ओर ना मांगा!! आज उसके बारे में यह सब जानकार , पता नहीं क्यों उसे अच्छा नहीं लग रहा था।
वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि वह उसकी बीमारी की खबर सुनकर खुशियां मनाएं या दुख!!!
अरे, मुझे तो खुशियां मनानी चाहिए। मेरे जीवन में जहर घोल दिया उसने। उसके पापा की, उसके नीच कर्मों की, उसे यही तो सजा मिलनी चाहिए थी। मैं भी तो यही चाहती थी !!!
लेकिन क्यों, उसके दुख के बारे में सुनकर मैं इतना विचलित हो रही हूं!!!!
मन में सुकून के स्थान पर इतनी अशांति क्यों!!!!!!
हां क्योंकि मैं उसके जैसी नहीं!!!! मुझमें मानवता शेष है!!!

वैसे ,ऐसा कैसे हुआ!! उसे इतनी बड़ी बीमारी कैसे!!!!
वह यहां तक कैसे पहुंची!!!!!
कुमार कहां गया!! एक भी बार वह उसे किरण के साथ क्यों नहीं दिखाई दिया!!! वह क्यों नहीं आया उसके साथ हॉस्पिटल!!!!

ऐसे अनेकों प्रश्न अब रात दिन उसे बेचैन करने लगे। कितनी ही बार उसका मन करता कि वह किरण से जाकर एक बार मिले !!!
पूछें, क्यों तुमने मेरा घर बर्बाद किया!!! मेरा घर बर्बाद करके क्या तुम सुखी रही!!! !!!!!
नहीं, नहीं रही ना !!!! भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। आज देख लो तुम!!!!
मैं तो बर्बाद हुई लेकिन सुखी तो तुम भी नहीं हो। देखो तुम्हारे पाप इस बीमारी के रूप में तुम्हारे सामने आए!!!
किसी का बुरा चाहने वाले का कभी भला नहीं हो सकता!!!!
वैसे मैं क्यों मिलूं उससे!! मैं तो उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती!!!
शिवानी जितना अपने मन को किरण की तरफ से हटाना चाहती उतना ही मन उस ओर दौड़ लगाता । उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
क्यों ना एक बार उसकी बहन के बताए पते पर जाकर उससे मिलूं!!!
उसकी आंखों में शर्मिंदगी देखना चाहती हूं मैं। पश्चाताप के आंसू है या वह भी सूख गए!!!!
नहीं नहीं, मैं उसका चेहरा नहीं देखूंगी!!!
इसी उधेड़बुन में डेढ़ दो महीने गुजर गए। शिवानी ने किसी तरह से अपनी भावनाओं पर काबू किया हुआ था!

कुछ दिनों से उसे अपनी तबीयत सही नहीं लग रही थी। दो-चार दिन तो उसने यूं ही गुजार दिए लेकिन जब नहीं रहा गया तो उसने हॉस्पिटल जाकर दवाई लेना ही सही समझा।
बच्चों के एग्जाम शुरू होने वाले थे। अगर वह बीमार पड़ गई तो उसका असर बच्चों की पढ़ाई पर होगा। रिया तो अपनी पढ़ाई छोड़ उसकी सेवा में ही लग जाएगी और रियान! रियान तो वैसे ही लापरवाह है और मेरे बीमार होने पर तो उसकी लापरवाही कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। नहीं, नहीं समय रहते दवा लेना ही सही है!!!
पहले तो शिवानी ने सोचा, दिनेश के साथ ही हॉस्पिटल जाऊं। फिर उसे लगा क्यो बेकार में इसकी छुट्टी करानी। वैसे भी जब तब छुट्टियों की जरूरत पड़ ही जाती है और अभी तो वह अकेले जाने लायक है इसलिए उसने दिनेश से कुछ नहीं कहा और उसके ऑफिस जाने के बाद काम निपटाकर, वह खुद ही हॉस्पिटल के लिए निकल गई।
वह हॉस्पिटल पहुंची भी नहीं थी कि रास्ते में ही दिनेश का फोन आ गया।
उसने शिवानी से पूछा "शिवानी एक बार टेबल पर चेक करके बताओ कि मेरी ऑफिस टेबल की चाबी वहीं रखी है क्या!"
"दिनेश , वह मैं, मैं बाहर हूं!!!"
"कहीं काम से निकली हो क्या!!!!"
"आज तबीयत कुछ सही नहीं लग रही थी इसलिए हॉस्पिटल जा रही हूं !!!!"
"तुमने मुझे बताया क्यों नहीं अकेले ही!!!!!"
"मैं ठीक हूं! बस थोड़ा रूटीन चेकअप के लिए!!!!!
आप परेशान मत हो सब ठीक है!!!!" कह शिवानी ने फोन काट दिया।
शिवानी के हॉस्पिटल जाने की बात सुन वह थोड़ा परेशान हो गया। कुछ सोचकर वह भी थोड़ी देर बाद ही हॉस्पिटल के लिए निकल गया।
हॉस्पिटल में अंदर घुसते ही शिवानी ने इधर-उधर नजर दौड़ाई।
उसकी नजर आज भी हॉस्पिटल में किरण और उसकी बहन को ढूंढ रही थी लेकिन दूर तक भी दोनों का कहीं नामोनिशान ना था।
वह मन मसोसकर आगे बढ़ गई।
डॉक्टर को दिखाने के लिए अपने नंबर का इंतजार कर रही थी कि तभी सामने से दिनेश आता हुआ दिखाई दिया।
जैसे ही वह उसके पास आया, शिवानी ने धीरे से कहा "मना किया था आपको फिर क्यों!!!!"
"बस मन नहीं माना।" कहते हुए दिनेश चुपचाप बैठ गया।

कुछ ही देर बाद शिवानी का नंबर आ गया। डॉक्टर को दिखाने के बाद दिनेश उसे बैठने की कह, दवाई लेने चला गया।
शिवानी वेटिंग एरिया में बैठने के लिए जगह तलाश ही रही थी कि तभी उसकी नजर किरण की बहन पर पड़ी। उसे देखते ही शिवानी की आंखों में चमक आ गई ।वह जल्दी से पैर बढ़ाकर उसकी ओर गई।
उसे देखते ही किरण की बहन फीकी सी मुस्कान बिखेरते हुए बोली "अरे दीदी आप! बैठो और सुनाओ आपकी तबीयत कैसी है!"
"हां, मैं तो ठीक हूं लेकिन तुम इतनी कमजोर और बीमार कैसे लग रही हो!! क्या हुआ!" शिवानी ने बैठते हुए पूछा!

सुनते ही मानो किसी ने उसकी दुखती रग छेड़ दी हो। उसकी आंखों में पानी आ गया।
"मैं तो ठीक हूं लेकिन दीदी दीदी!!!!!"
कहते हुए उसने अपना रूदन छिपाने के लिए दुपट्टा मुंह पर रख लिया!!!!
शिवानी का दिल अनजानी आशंकाओं से भर गया। किसी तरह से अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए वह बोली "क्या हुआ तुम्हारी दीदी को! सब ठीक है ना!!!!
बोलो!!!!!"
"बस दीदी कुछ ही दिनों की मेहमान हैं। डॉक्टर ने जवाब दे दिया!!!!!
2 दिन पहले उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी। हॉस्पिटल वालों ने एडमिट तो कर लिया है लेकिन!!!!!" कहते हुए उसका गला फिर से भर गया।
सुनकर शिवानी को अपने भीतर कुछ टूटता हुआ सा लगा। किसी तरह से अपने को संभालते हुए वह बोली "हौसला रखो!!!
तुम ऐसे टूट जाओगी तो तुम्हारी बहन को कौन संभालेगा!!!!"

"दीदी जिसने सबको संभाला हो उसको भगवान ही संभालेगा। हमारा हौसला टूट सकता है लेकिन दीदी का नहीं। कहती है, जब तक मैं उनसे मिलकर अपने पापों का प्रायश्चित ना कर लूं, मेरे प्राण नहीं निकलेंगे!!!
उससे मिलने के लिए ही दीदी ने अपनी सांसो को संभाल कर रखा है। इतनी पीड़ा भोग रही है लेकिन कहां से ढूंढ कर लाऊं उन्हें मैं। कितनी बार तो वहां जा चुकी हूं। हर बार पता चलता है कि वह यहां नहीं रहते । मकान बेच दिया उन्होंने लेकिन दीदी मानने को तैयार नहीं। कहती है वह मुझे जरूर मिलेगी!!
अभी कुछ महीने पहले ही दीदी ने उन्हें इस शहर में देखा है!!!!! "
"किसकी बात कर रही हो तुम!!!! किससे मिलना चाहती है तुम्हारी दीदी!!!!"
"बहुत साल पहले दीदी किसी के यहां किराए पर रहती थी!!! शिवानी नाम बताती है उसका। कहती है कि वह मुझे छोटी बहन की तरह से प्यार करती थी। उन्होंने ही मुझे हंसना सिखाया। बीमारी में भी दीदी उनका ही नाम रटती रहती है। पता नहीं दीदी का उनसे ऐसा क्या नाता है जो इतने सालों बाद भी छूटता नहीं।
उन्होंने तो आज तक दीदी की खबर नहीं ली और एक दीदी है कि हर दिन उठते बैठते उनके नाम की माला जपती रहती है। पता नहीं दीदी के मन में कौन सी बात दफन है। जो वह केवल उनको ही बताना चाहती है।
1 दिन सुख का नहीं देखा मेरी बहन ने। हम दोनों बहनों को
उस जल्लाद से बचाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी स्वाहा कर दी। देखो ना भगवान ने भी उनकी नेकी का क्या सिला दिया है!" वह अपनी आंख में आए आंसू पोंछते हुए बोली।

अब तो शिवानी की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। वह कुछ और पूछती , तभी उसे सामने से दिनेश आता हुआ दिखाई दिया।
"चलो शिवानी! " शिवानी ना चाहते हुए भी उसके पीछे चल दी।
उसने पीछे मुड़कर देखा किरण की बहन घुटनों में सिर देकर उदास बैठ गई थी।
शिवानी का मन रह रह कर किरण से मिलने का कर रहा था। लेकिन लेकिन फिर वही पुरानी बातें याद कर उसका मन घृणा से भर गया।
हॉस्पिटल के गेट तक पहुंचकर अचानक शिवानी उल्टे पांव
अंदर की ओर दौड़ सी पड़ी।
"क्या हुआ शिवानी! कहां जा रही हो तुम! ऐसे क्यों भाग रही हो !क्या हुआ बताओ तो!"
मानो शिवानी को कुछ सुन ही ना रहा हो। वह बेतहाशा अंदर की ओर थोड़ी जा रही थी। आस पास वाले उसे बड़ी ही हैरानी भरी नजरों से देख रहे थे लेकिन वह इन सबसे बेपरवाह अपनी ही धुन में लगातार भाग रही थी।
मानो कुछ पीछे छूट गया है जिसे अगर उसने आज नहीं पकड़ा तो शायद कभी वह उससे मिल ना सके।

कुछ ही देर में वह किरण की बहन के सामने थी।
किरण की बहन अब भी उसी अवस्था में बैठी हुई थी।

उसने किरण की बहन के कंधे कंधे पर हाथ रखा।
उसने हड़बड़ा कर मुंह उठाया। सामने शिवानी को खड़ा देख ,वह हैरानी भरी नजरों से बोली "दीदी आप ,आप तो चली गई थी। फिर!!!
आप इतना हांफ क्यों रही हो! क्या बात है!!!!"

"मुझे किरण से मिलना है!" शिवानी एक ही सांस में बोली।

अपनी बहन का नाम शिवानी के मुंह से सुनकर किरण की बहन ने अचरज भरी नजरों से उसकी ओर देखा।
"आप, आप दीदी को कैसे जानती हो! "

"तुम्हें सब कुछ पता चल जाएगा! मुझे उसके पास ले चलो। देर मत करो।" शिवानी उसे लगभग खींचते हुए बोली।

वह मुडी तो देखा दिनेश भी उसके पीछे ही खड़ा था। वह उसे अजीब नजरों से देख रहा था।
शिवानी, कुछ ना बोली और किरण की बहन के साथ चल दी। दिनेश भी चुपचाप उनके पीछे चल दिया।
क्रमशः
सरोज ✍️