अपनी नौकरी की ज्वॉइनिंग के लिए निकिता मुजफ्फरपुर से मुंबई जा रही थी। मई की भीड़-भाड़ में उसका कंफर्म टिकट नहीं हो पाया था और वह वेटिंग में टिकट लेकर जाने को विवश थी। अपनी बोगी में जाकर वह इधर-उधर नजरें घुमाते हुए देख ही रही थी तभी, 'मिस, प्लीज़ इधर बैठ जाइए' कि आवाज सुनकर उसने मुड़कर देखा तो एक नवयुवक उसे बैठने की जगह दे रहा था। इस लंबी दूरी के सफर में एक अदद सी सीट का मिलना उसके लिए रेगिस्तान में पानी मिलने के समान था। टीटी के आने पर, अपनी परेशानी का मिला यह समाधान उसने सच्चाई के साथ बता दिया। टीटी को कोई आपत्ति नहीं थी और साथ बैठे उस लड़के को भी कोई परेशानी नहीं थी, बत्तीस घंटे का सफर और इस सीट का मिलना निकिता के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसा था। सफर के उस साथी का नाम अनिकेत था। अनिकेत बेहद चुलबुले और मजाकिया किस्म का लड़का था, छुट्टियां अपने दादा-दादी के पास बिताकर मुंबई में रह रहे अपने पापा-मम्मी के पास वापस जा रहा था। निकिता गाँव के माहौल से निकली झिझक वाली लड़की थी, जो पहली बार मुंबई जा रही थी, लेकिन अनिकेत का चुलबुलापन उसकी झिझक को मिटाने में काफी हद तक कामयाब रहा। दोनों का समय अच्छा गुजर रहा था। बातों-बातों में पता चला कि अनिकेत का चयन बैंकिंग सर्विस रिक्रूटमेंट बोर्ड के लिए हो चुका है और वह अगले महीने नौकरी ज्वाइन करेगा। मौका देखकर अनिकेत में निकिता को अपने मन की बात बता दी, "निकिता मैं हकीकत में थोड़ा स्वार्थी किस्म का हूँ, जो अपनी सीट जल्दी किसी के साथ शेयर नहीं करता, लेकिन तुम्हारे चेहरे का भोलापन और हिचक मुझे पहली नजर में ही पसंद आ गई थी, इसलिए मैंने तुम्हें सीट ऑफर किया था। अगर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं हो तो मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूँ। जिंदगी भर तुम्हें थामे रखूंगा, यह वादा रहा।" निकिता ने कुछ पल के लिए अपनी नजरें झुका ली, इस परिस्थिति के लिए वह मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। उसके शरीर कांप रहे थे, वह पूरी तरह नर्वस सी हो चुकी थी। अनिकेत ने मौके की नजाकत को समझते हुए फिर से बोलना शुरू किया, "देखो, अगर तुम्हें मैं पसंद नहीं तो कोई बात नहीं, आगे से मैं इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं करूंगा। सॉरी..!" कुछ पल की चुप्पी के बाद निकिता के शब्द फूटे, "आप भी मुझे अच्छे लगे, पर मेरे मम्मी-पापा.. वे इस शादी के लिए शायद नहीं मानेंगे। हमारे परिवार में अभी तक किसी का प्रेम विवाह नहीं हुआ।" "तुम उसकी चिंता मत करो, तुम्हारे मम्मी-पापा को मनाना मेरा और मेरे परिवार वालों की जिम्मेदारी है। मुझे उम्मीद है वे अपनी बेटी के प्यार की खातिर इस विवाह को अपनी स्वीकृति जरूर देंगे। अगर मेरी शादी तुमसे नहीं हुई तो मैं आज एक वादा तुमसे और करता हूँ कि मैं आजीवन अविवाहित रहूंगा।" निकिता की आंखों से आंसू निकल पड़े उसने कहा, "आपकी बातों से मुझमें भी हिम्मत आई है। मैं अपने मम्मी-पापा को इस शादी के लिए मनाने का पूरा प्रयास करूंगी, अगर फिर भी वह नहीं माने तो आज मैं भी आपसे एक वादा करती हूँ कि मैं भी आजीवन अविवाहित रहूंगी और इतना कहते हुए वह अनिकेत के सीने से लग गई।" इस बात से पूरी तरह बेखबर कि आसपास के नजरें उन्हें निहार रही थी और दो दिलों को मिलते देख मुस्कुरा रही थी। "बच्चों, तुम दोनों परिणय सूत्र में अवश्य बंधोगे, मेरा भी आशीर्वाद तुम्हारे साथ है", यह आवाज पास के सीट पर बैठे एक बुजुर्ग की थी! दोनों झेंपते हुए एक-दूसरे से अलग हट गए। एक नई प्रेम कहानी की शुरूआत हो चुकी थी, मुकम्मल होने के लिए !