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तेज कदमों से पुष्कर अपने घर की ओर बढ़ा जा रहा था। आज उसे ऑफिस में कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी। उसे पूरी उम्मीद थी कि आज उसे घर जाकर अपने अंधविश्वासी पिता से खूब डांट पड़ने वाली है क्योंकि आज अमावस्या की रात में को इतनी देर तक वो घर से बाहर था। अभी वो आगे बढ़ ही रहा था की पीछे से उसे अपने दोस्त मयंक की आवाज आती है "पुष्कर!"
पुष्कर हैरानी में पद जाता है क्योंकि अभी तो वो मयंक के साथ ही आधे रास्ते तक आया था। शायद वो कुछ भूल गया हो।
पुष्कर ने मुड़कर मयंक से कहा "क्या हुआ?"
मयंक उससे कुछ दूरी पर खड़ा था इसलिए पुष्कर उसे सही से नहीं देख पा रहा था।
मयंक ने उससे कहा "चलो आज मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा। मैं भूल गया था लेकिन मुझे भी उसी तरफ जाना है।"
पुष्कर ने कहा "ठीक है। एक से भले दो। लेकिन जल्दी चलना क्योंकि तुम बहुत धीमे चलते हो और मुझे आज जल्दी घर पहुंचना है।"
मयंक ने कहा "क्यों? आज घर में कोई खास बात है क्या?"
पुष्कर ने कहा "नहीं यार। तुम तो पापा को जानते ही हो की वो कितने बड़े अंधविश्वासी हैं। आज अमावस्या है न इसीलिए उन्होंने जल्दी घर पहुंचना को कहा है। और आज तो वैसे ही हम लोग ऑफिस से देर से छूटे हैं।"
मयंक अब तक उसके पास तक पहुंच गया था लेकिन पता नहीं क्यों उसका चेहरा ठीक से नहीं दिखाई दे रहा था। थोड़ा धुंधला सा दिखाई दे रहा था।
पुष्कर के पास अभी इन चीजों के लिए समय नहीं था इसलिए वो जल्दी जल्दी चलने लगा। मयंक भी तेजी से चल रहा था। थोड़ी ही देर में मयंक पुष्कर से बहत आगे हो गया था।
पुष्कर ने उससे कहा "तुम्हें भी तुम्हारे पापा ने जल्दी बुलाया है क्या जो इतनी तेज चल रहे हो। थोड़ा धीमे चलो।"
मयंक ने बिना मुड़े कहा "तुम्हीं ने तो तक चलने को कहा था। मैं धीमा नहीं होऊंगा तुम ही थोड़ी तेज चलो।"
पुष्कर को ही अपनी चल तेज करनी पड़ी। बहुत देर तक वो लोग बिना बात किए चलते गए। यह बात पुष्कर को अजीब लगी क्योंकि मयंक बहुत बातूनी किस्म का था।
आगे चलकर मयंक एक तिराहे पर जाकर खड़ा हो गया। जब पुष्कर उसके पास पहुंचा तो मयंक ने कहा "चलो बाईं ओर चलो।"
पुष्कर ने कहा "लेकिन उधर तो एक खंडहर है। मेरा घर तो सीधे पड़ता है।"
अब मयंक पुष्कर की तरफ मुड़कर उसकी आंखों में देखने लगा और एक बार फिर कहा "चलो बाईं ओर चलो।"
अबकी बार पता नहीं पुष्कर को क्या हुआ लेकिन वो अपने आप ही बाईं ओर बढ़ने लगा। तभी उसे एक तेजतर्रार आवाज आई "रुको!"
अचानक से पुष्कर अपने होश में आ गया और उसने देखा की उसके पापा उसकी ओर आ रहे हैं।
उसके पास पहुंचते ही उन्होंने उसे डांटते हुए कहा "अपने घर का रास्ता भूल गए हो क्या जो इतनी रात में खंडहर की ओर जा रहे हो।"
पुष्कर ने हैरान होकर कहा "में अकेला कहां हूं। मेरे साथ मयंक है ना।"
अब हैरान होने की बारी पुष्कर के पापा को थी। उन्होंने पूछा "कहां है मयंक? मुझे तो नहीं दिख रहा है।"
पुष्कर ने मयंक की ओर उंगली दिखाते हुए कहा "ये खड़ा तो है। मयंक तुम कुछ बोलते क्यों नहीं।"
लेकिन मयंक कुछ नहीं बोला और उसके पापा ने कहा "जब वहां होगा तब बोलेगा ना। वहां पर कोई नहीं है।"
अब पुष्कर के पापा को शंका होने लगी। वो पुष्कर से पूछते हैं "अगर सच में मयंक वहां पर है तो क्या तुम्हें उसका चेहरा साफ साफ दिख रहा है?"
पुष्कर ने कहा "नही। थोड़ा धुंधला सा है।"
पुष्कर के पापा ने उससे कहा "अरे पागल! मैने तुम्हें इतनी बार समझाया है कि अगर तुम्हें कोई रात में जब तक तीन बार ना पुकारे तब तक किसी की बात का जवाब मत देना। ये एक निशि डाक है!"
पुष्कर ने कहा "अब क्या करें पापा?"
मयंक अब धीरे धीरे अपने असली रूप में आ रहा था।
पुष्कर ने उसका चेहरा देख चीख कर कहा "पापा इसका चेहरा बदल रहा है!"
उसके पापा अपना दिमाग दौड़ाने लगे। उनके पास उनका कोई पूजा का सामान नहीं था की वो उसका इस्तेमाल करके उसे रोक सकते और आज अमावस्या भी है तो निशि डाक की शक्ति भी बढ़ गई होगी। अब पुष्कर को बचाने का बस एक ही उपाय था उनके पास।
उन्होंने निशि डाक को संबोधित करते हुए कहा "तुम्हें आज एक शिकार चाहिए ना। तुम मेरा शिकार कर लो लेकिन पुष्कर को बख्श दो।"
यह बात सुन पुष्कर चिल्लाने लगा "नहीं पापा! ये आप क्या कर रहे हैं? यह सब मेरी गलती की वजह से हुआ है। मैं ही इसकी सजा भुगतूंगा।"
पुष्कर के पापा ने कहा "तुम चुपचाप घर जाओ और जल्दी से मदद लाने की कोशिश करो हो सकता है की में इसे कुछ देर के लिए रोक पाऊं।"
पुष्कर के पापा ने जानबूझ कर ये झूठ बोला की जिससे वो जल्दी से घर चला जाए। उन्हें भी पता था की वो निशि को नहीं रोक सकते हैं।
पुष्कर आंखों में आंसू लेकर अपनी पूरी जान लगाकर घर की ओर भागने लगा। उसने आखिरी बार पलट कर अपने पापा की ओर देखा। उसके पापा भी एकटक उसी की ओर देखे जा रहे थे। उनकी चेहरे पर गुस्सा नहीं गर्व था। पुष्कर ने फिर निशि डाक को ढूंढना शुरू किया लेकिन वो उसे नहीं दिखी। उसके बाद वो फिर भागने लगा। अबकी बार वो सीधे घर पहुंच कर पड़ोसियों को साथ लेकर वापस इस जगह पहुंचा लेकिन उसे वहां अपने पापा की लाश के अलावा कुछ नहीं मिला।
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