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उच्च शिक्षा पर उच्च शिक्षा कमिशन

-उच्च शिक्षा पर उच्च शिक्षा कमिशन

यशवंत कोठारी

केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधा र के लिए विश्वविद्द्यालय अनुदान आयोग के स्थान पर उच्च शिक्षा कमिशन बनाने का एक ड्राफ्ट जा री किया है.देश में उच्च शिक्षा की जो हालत है उस से सभी परिचित है.लगभग सबी सरकारी गेर सरकारी विश्व विद्यालय दयनीय दशा में है.सरका र की और से निजी संस्थानों को बड़ी राशी ले कर लाइसेंस दिए जा रहे हैं,इसके बाद ये संसथान पैसे जमा कराओ डिग्री ले जाओ के सिद्धांत चलते है,फीस इतनी तगड़ी की छात्र नहीं दे पा ते,हर कम के लिए अलग पेसा.उच्च शिक्षा के अन्य क्षेत्र –मेडिकल,इन्जिनियरिंग,नर्सिंग,वैकल्पिक चिकित्सा शिक्षा,प्रबंधन,आई आई टी व् अन्य रोज़गार परक शिक्षा के बारें में यह ड्राफ्ट कोई खास बात नहीं कहता.

वर्षों पहले डा. डी . एस कोठारी की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग गठित किया गया था ,उसके बाद शिक्षा में सुधार के लिए हर सरकार ने प्रयास किये.लेकिन शिक्षा खासकर उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधर नहीं हुआ. मानव संसाधन मंत्रालय ने पिछले महीने हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया बिल 2018 का मसौदा पेश किया है जो पारित हो गया तो यूजीसी ख़त्म हो जाएगा.

इसका मतलब यूजीसी एक्ट के तहत बने नियामक यूजीसी की जगह प्रस्तावित बिल के हायर ऐजुकेशन कमिशन ऑफ़ इंडिया का गठन किया जाएगा.बी बी सी पर छपे विवरण के अनुसार

प्रस्तावित मसौदे में सरकार का कहना है कि इससे शिक्षा नियामक की भूमिका कम होगी, देश में उच्च शिक्षा के माहौल को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, सभी के लिए सस्ती शिक्षा के मौक़े पैदा होंगे और शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन के मुद्दों में हस्तक्षेप भी कम होगा. वित मसौदे के अनुसार अनुदान यानी आर्थिक मामलों में फ़ैसले मंत्रालय करेगा जबकि कमीशन, शिक्षा से जुड़े मामलों पर नज़र रखेगा. कमीशन को शिक्षा संबंधी कार्यक्रम शुरू करने की अनुमति देने संबंधी अधिकार होंगे और कानून का पालन ना किए जाने पर किसी संस्थान को दी गई अनुमति रद्द करने का भी.

अगर नियामक से अनुदान देने संबंधी अधिकार छीन लिए जाएं और इसके फ़ैसले सरकार करने लगे, साथ ही शैक्षिक संस्थानों को शुरू करने, बंद करने, उनमें निवेश करने संबंधी सलाह देने का काम कमिशन करेगा तो इससे देश की उच्च शिक्षा में वैचारिक स्तर पर बदलाव के रास्ते खुल सकते हैं और विविधता ख़त्म होने का भी डर है. साथ ही उच्च शिक्षा के अकादमिक मानक, फ़ीस और फ़ायदे के मामलों में भी हस्तक्षेप के मौक़े बढ़ सकते हैं.

इससे छात्रों को, ख़ासकर समाज के निचले तबके के छात्रों को हानि पहुंच सकती है और कई शिक्षण संस्थान भी बंद हो सकते हैं.

. प्रस्तावित बिल में कहा गया है कि छात्रों के हितों की रक्षा के लिए न्यूनतम स्टैंडर्ड ना रख पाने की सूरत में कमीशन शिक्षा संस्थानों को बंद करने का भी प्रस्ताव दे सकता है. साथ ही ये भी कहा गया है कि उच्च शिक्षा के लिए बनाए जाने वाले पाठ्यक्रम में छात्र क्या सीखेंगे वो भी वही तय करेगा.

प्रस्तावित मसौदे की धारा 3.6 के अनुसार कमीशन का चेयरमैन वो बन सकता है जो किसी शिक्षण संस्था में कम से कम दस साल तक प्रोफ़ेसर के पद पर काम कर चुका हो या जाना-माना अकादमिक हो या फिर शिक्षा के क्षेत्र में अकादमिक और प्रशासक के रूप में काम कर चुका हो.

साथ ही कुल 12 सदस्यीय आयोग में केंद्र सरकार के दो प्रतिनिधियों की बात की गई है. ऐसा करने के पीछे उद्देश्य ये था कि कमीशन की स्वायत्तता बरकरार रहे.

जानकार ये भी मानते हैं कि मौजूदा प्रस्ताव के अनुसार कमीशन के चेयरमैन के चुनाव की प्रक्रिया सर्च एंड सिलेक्शन कमिटी करेगी जिसमें एक कैबिनेट सचिव, उच्च शिक्षा सचिव समेत तीन अन्य अकादमिक व्यक्ति रहेंगे. जानकारों का कहना है कि यूजीसी एक्ट में सरकारी हस्तक्षेप करने के मौकों को पूरी तरह कम किए जाने की बात थी लेकिन प्रस्तावित बिल में ऐसा बिल्कुल नहीं दिखता.

उच्च शिक्षा के लिए फ़ीस तय करने संबंधी मानदंड और प्रक्रिया तय कर करना और केंद्र और राज्य सरकार को इसके बारे में सलाह देने का काम कमीशन करेगा.

जानकारों का कहना है कि यूजीसी एक्ट, 1956 में फ़ीस संबंधी नियंत्रण प्रक्रिया और डोनेशन पर रोक लगाने संबंधी विस्तृत जानकारी दी गई है. साथ ही अधिक लेकिन प्रस्तावित बिल में कमीशन की भूमिका को मात्र सलाह देने तक ही सीमित कर दिया है.

. प्रस्तावित बिल की धारा 16 के अनुसार इस नए एक्ट के लागू होने के बाद पहले से कानूनी तौर पर मान्य कोई शिक्षा संस्था छात्रों को डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे सकता. हर संस्था को पहले कमीशन के मानदंडों के आधार पर इसके लिए ऑथोराइज़ेशन यानी अधिकार लेना होगा.

साथ ही पहले से ही मान्यता प्राप्त डीम्ड यूनिवर्सिटी को नया एक्ट लागू होने पर तीन साल के लिए अधिकार प्राप्त माना जाएगा जिसके बाद उन्हें ऑथोराइज़ेशन के लिए अपील करनी होगा.

जानकारों का कहना है कि इससे अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो सकती है. ख़ासकर उन छात्रों के लिए जिन्होंने तीन साल से अधिक वक्त के पाठ्यक्रम को चुना है.

साथ ही ये भी महत्वपूर्ण है कि प्रस्तावित बिल के अनुसार कमीशन के दिए गए नियमों या सलाह को ना मानने पर या कमीशन के बताए न्यूनतम नियमों उल्लंघन करने पर या फिर निश्चित समयसीमा तक उनका पालन न करने पर शिक्षा संस्था पर पेनल्टी लगाई जा सकती है और उसके डिग्री देने का अधिकार छीना जा सकता है.

जानकारों के अनुसार सत्ताधारी सरकार इसका इस्तेमाल अपनी बात मनवाने के लिए कर सकती है और इसका लाभ असल में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालों को नहीं होगा. साथ ही इससे विरोधी स्वरों के लिए या चर्चा के लिए कोई जगह नहीं बचेगी.इस बहस पर लम्बी बहस की जरूरत है ,उचित तो ये होगा की २०१९ में आने वाली नयी सरकार इस पर निर्णय ले.

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आयताकार, कभी