वैसे तो देखी गयी है कि किताब में लिखी हुई बर्णमाला के साथ जिवन का हर भाव जुड़ी हुई होती है । तो इस दौरान हम आपको अपनी जीन्दगी के हर सुख-दुख पलों को याद दिलाना चाहते हैं, इस नोबेल पर । तो दोस्तों और पाठकों चलिए इस "जीवन के बर्णमाला" की ओर बढते हैं । तो इस हिसाब से हमारी पेहली अक्षर है, "अ" । तो चलिए अब "अ" अक्षर से सुरुआत करते हैं ।
अ - अभिमान् ( पेहले में आपको अभिमान् की मतलब समझा देेेेेती हुं, फिर हम इस पर चर्चा करेगें । अभिमान् का मतलब, किसी के ऊपर हदसे ज्यादा भरोसा करना और उसीसे अपनी हक जताना । अभिमान् का मतलब हम रूठा हुआ भी केह सकते हैं । अभिमान् हम तब करते हैं, जब हमे कुछ बहत जरुरत होती है । तो अब चलिये इस अभिमान् हमारी जीन्देगी में कैसा असर करती है, वो जानते हैं । )
एक बच्चे के लिए माँ ने की थी अभिमान्,
पापा उनको बहुत समझाये,
इधर-उधर की बाते बनाकर थोड़ा सा कुछ खिलाये,
तब भी माँ ने जिद नहीं छोड़ी थी बोले की मुझे बच्चा चाहिए ।
पापा बहुत गुस्से वाले हैं,
एक जोर का थप्पड़ लगाये,
जब माँ ने रो पड़े फिर से पापा उनको समझाये,
अब माँ कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे,
मगर पापा को उनकी तबीयत का बहुत
फिकर था,
सोचे वैसे तो वो मान नहीं रहे हैं, में ही चला जाता हूँ ।
बाहार गये थोड़ा घूमकर आये,
आकर देखे माँ अब भी वहीं बैठे हैं ,
पुरे गुस्से से लाल हुए हैं,
पापा पुछे क्या हुआ ?
माँ झट से जबाव दिये अगर तुम्हें जाना ही था बाहार तो मुझे साथ में क्यों नहीं लेकर गये ?
पापा एकदम से चुप थे,
सोच रहे थे ये क्या मुसीबत है भाई ?
थोडी देर चुपीके बाद पापा बोले में देखने गया था की बच्चा काहाँ मिलेगा ?
माँ अब ओर भी गुस्सा हो गये,
बोले मुझे ओर की बच्चा नहीं अपनी
बच्चा चाहिये,
पापा के पास शब्द नहीं थे,
वो मनही मन सोचने लगे भाई मैंने ये क्या
कर दीया ?
जीसको टालना था वही बात केहदिया ।
अब पापा बडे प्यार से बोले श्रीमती जी आपको बच्चा चाहीये ?
माँ पापा के बाते सुनकर थोडी सरमागये,
पापा बोले पर मुझे नहीं चाहीये,
माँ थोडी सी दुःखी हो गये,
पापाने पास बैठे और हात में हात लेते हुये बोले मुझे तुम प्यारे हो,
एक बच्चे केलिए में तुम्हारे जीन्देगी दावपे नहीं लगा सकता ।
पापा का प्यार देखकर माँ की आखों में आशुं आगेयी,
अब पापा बताये की डाक्तर् बोले हैं तुम्हे खतरा है,
माँ ने बोले मुझे अपने से नहीं दुसरों से खतरा है,
पापा कुछ समझ नहीं पाये,
माँ भी कुछ नहीं बताये,
फिर कुछ देर बड़ी टकरार के बाद आपस में बातें सुलझाये ।
फिर कुछ युं हुई की पापा भी बच्चे केलिए राजी हुये,
अब माँ भी खुस् और पापा भी ।
खुसी थोडी देर टीकी नहीं की पापा फिरसे सुरू होगेये,
बोले मुझे एक ही बच्चा चाहीये,
माँ ने बोले मुझे कोनसी क्रिकेट टीम चाहीये,
मुझे भी एक ही चाहीये,
पापा अब बडे चिन्ता में लग रहे थे,
मगर पत्नी की मुहँ देखकर चुप रहे ।
सुबह हुआ नहीं की डाक्तर् के पास दौड़े,
डाक्तर् को बताये सारा माजरा,
अब डाक्तर् भी बोल दिये की भाई कोई परेसानी नहीं सब आराम से हो जायेगा,
पापा डाक्तर् के बातें सुनकर इतना खुस
थे की पुछो मत,
एक पैर पर घर लोटे,
पत्नी को गले लगाये,
और बोले देखो भाई मुझे कोई दिकत् नहीं,
अब पापा के मुहँ को माँ गरसे देख रहे थे,
पापा जबाव दिये आरे यैसे क्या देख रहे हो श्रीमती जी ?
में आपीका पति हुं,
हाँ जिस बात का डर था वो दूर होगेया,
अब में भी सपना देख रहा हुं तुम्हारे साथ,
माँ ने झट से पापा को गले लगाये,
पता नहीं कोनसी दुनियां में खो गये ?
फिर कुछ दिन के बाद एक बच्चा हुई,
माँ की जीद् पुरी हुई,
पापा खुस थे की माँ खुस् है इस बच्चे के साथ,
और समझ पाये माँ की परेशानी की बात,
वैसे अच्छा हुआ श्रीमती जी बच्चे केलिए जीद् की थी,
बरना पता नहीं ये दुनियां उनको क्या बोलती
रेहती थी ?
अब समझा ये जीद् नहीं अभिमान थी उनकी,
अब पुरा हुआ तो सुकून मिला दिल की ।
********* :- हां दोस्तों, अभिमान् यैैसा करो जो पुरी होने के बाद सबको तसल्ली मिले । जैसे कि आप इस कबिता पर पढ़े हैं । इस अभिमान् की भुमिका हमारी जीन्दगी में बहुत ज्यादा है, और इसके साथ हमारी कयी सारे यादे ताजा हो जाती है । तो इस को पढते हुये अपनी वो पल की यादों में खोते जाइये तबतक, जबतक की हम आपको हमारी दुसरी भाव के साथ मुलाकात नहीं करबा लेते हैं ।