Intzaar ek had tak - 3 in Hindi Moral Stories by RACHNA ROY books and stories PDF | इन्तजार एक हद तक - 3 - (महामारी)

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इन्तजार एक हद तक - 3 - (महामारी)

पुरे घर में रमेश ने सबको ढुंढ लिया पर कोई ना मिला।

फिर वो रोने लगा कि सब के सब कहा गए? मैं क्यों नहीं देख पा रहा हूं।

रमेश अपने कमरे में पहुंच गया जहां पर उसने देखा कि एक दिवाल पर पुरे परिवार की फोटो लगी थी उसे उठा लिया और बैग में रख कर बाहर की तरफ निकल गया।


देखा कि बाहर दूर दूर तक कोई भी नहीं था वो दौड़ने लगा जितना भी शरीर में दम था वो दौड़ता गया और उसे अम्मा की कहीं हुई बात याद आ रही थी।

किसी भी तरह वो स्टेशन तक पहुंचना चाहता था।

हांफते -हांफते हुए वो आखिर हकीम पुर स्टेशन पर पहुंच गया।

और फिर स्टेशन मास्टर को ढूंढने लगा पर वहां कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।

रमेश रो रहा था कि शायद अब वो यहां से ना लौट पायेगा।

घड़ी देखी तो १२बज रहे थे।

वो दौड़ कर स्टेशन मास्टर के रूम में गया और इघर -उधर देखने लगा तभी एक फोन दिखाई दिया और उसके मुंह से मां शब्द निकला।


और फिर उसने फोन उठाया और अलिगढ शहर के स्टेशन पर फोन किया और रिंग जा रहा था फिर स्टेशन मास्टर ने बोला हेलो।। तो रमेश ने अपनी पुरी बात किसी तरह से बताया।

उधर से स्टेशन मास्टर ने कहां, हां मुझे पता चला है एक सज्जन ने इसकी जानकारी दी थी।
तुम कुछ देर राह देखो एक गाड़ी हकीम पुर मे रुकेगी तो तुम उस पर बैठ जाना।

रमेश बोला सर क्या मैं बच पाऊंगा।


वो स्टेशन मास्टर बोला भगवान पर भरोसा रखो जब यहां तक बच गए तो आगे भी बच जाओगे।


फिर रमेश जल्दी से प्लेटफ़ॉर्म पर आ गया और गाड़ी का इन्तजार करने लगा।उसको रह- रह कर अम्मा की कहीं हुई बात याद आ रही थी।
वो सोचने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है। मैंने तो खुद सबको देखा और अम्मा के हाथ की खिचड़ी भी खाया वहीं स्वाद, वहीं देसी घी।

फिर रमेश ये सब सोच रहा था कि उसे लगा कि कोई उसे बुला रहा है पर वो मुड़ कर नहीं देखा।

तभी गाड़ी आती हुई नजर आई। और गाड़ी स्टेशन पर रुक गई।।

और रमेश जल्दी से एक बोगी में चढ़ने लगा तो लगा कि उसे कोई खिंच रहा हो , रमेश रुको मेरे भाई ऐसे कैसे जा सकता है ये आवाज़ तो बड़े भाई की है ये रमेश ने कहा।।

और तभी अम्मा की आवाज कानों तक आ गई वो बोली नहीं बेटा यहां से चला जा तू और कभी वापस मत आना।

फिर रमेश को जैसे किसी ने अन्दर की तरफ खींच लिया और गाड़ी चल पड़ी थी।

रमेश इधर -उधर देखने लगा पर कोई भी नहीं था।

रमेश रोता हुआ एक सीट पर बैठ गया। और फिर उसे घर की याद आने लगी आखिर कहां गए सब ?

क्या हुआ होगा।। कुछ पता नहीं चल पाया पर एक बात समझ नहीं आता कि रत्ना और रवि कहा गए?

मुझे घर पहुंच कर अम्मा की सारी चिठ्ठियां पढ़ना होगा।


फिर रमेश सही सलामत अपने शहर अलीगढ़ पहुंच गया।

स्टेशन पर काफी भीड़ थी सभी रमेश को देख रहे थे।

रमेश खुद को सम्हाल नहीं पा रहा था।

मौत के मुंह से वापस आ पाना बहुत नसीब की बात होती है।

फिर स्टेशन के बहार निकलते ही एक आटो रिक्शा में बैठ गया।

अपने कालोनी पहुंच कर अपने घर में जाकर किसी तरह से बैठा और फिर खुब रोने लगा जोर जोर से रोने लगा अम्मा ने ही मुझे बचाया।

अब मुझे सबको मुक्ति दिलाने की व्यवस्था करनी होगी।

फिर रमेश नहा धोकर तैयार हो कर नाश्ता बना कर खा लिया ।

फिर अलमारी से सारी अम्मा की चिठ्ठियां लेकर बैठ गया।

अब तारीख देख कर चिठ्ठियां पढ़ना शुरू किया।

लिखावट तो मेरे उर्मी की थी कितना सुन्दर लिखती थी वो।


लिखा था लल्ला तू तो आया नहीं पर शायद अब मिलना ना हो। क्योंकि हकीम पुर गांव पुरा कोलेरा महामारी से फैल गया है।


शायद कोई ना बच पाए।तु एक बार आ जाता तो उमीला बहु को सौंप देती थी।उसका जीवन तो जैसे हमारे लिए ही हो ।
बहुत बड़ी ग्लानि में जी रहे हैं बेटा।
तू एक बार आ जाता तो।।।


रमेश पढ़ते-पढ़ते रोने लगा।हे भगवान ये क्या किया मैंने एक बार भी अपने परिवार के लिए नहीं सोचा।


फिर तीसरी चिठ्ठी खोली।

बाबूजी की तबीयत ठीक नहीं है पता नहीं क्या हो जाएं। तुझे तो चिठ्ठियां नहीं मिल रहा है।
बहु रोज डाक खाने जाती है ।
पर तेरा कोई खबर नहीं है बेटा,तू जहां भी हो बस ये दुआ करती हुं कि अच्छा रहें।


फिर चौथे पत्र खोला तो लिखा था बेटा रमेश तेरे बाबूजी की हालत सुधरी नहीं ,हम-सब भी अब उसी मौत के दरवाजे पर खड़े हैं। बेटा एक विनम्र अनुरोध है कि अगर हमलोग इस महामारी में चल बसे।तू अपना ख्याल रखना हां बेटा।


ये पढ़ते ही रमेश फुट फुट कर रोने लगा उसके ये आंसु पोंछने के लिए कोई भी नहीं था।

रमेश ने अब दूसरा चिठ्ठी खोली तो देखा लिखा था कि बेटा हमलोग ने मिलकर एक फैसला लिया है कि घर के दो मासूम बच्चे जिन्होंने अभी तक पुरी दुनिया नहीं देखी है उनको रत्ना के मामा के घर पहुंचा देंगे और फिर तू उन दोनों को अपने पास ले आना, बेटा तभी हमें शान्ति मिल जाएगी।ये बच्चे ही तो हमारे परिवार का अंश है। आशा करतीं हुं तू मुझे निराश नहीं करेगा।


रमेश ने घड़ी देखी तो रात के दस बज गए थे।

फिर रमेश ने एक और चिट्ठी खोली लिखा था कि आज शायद हम सब का अन्त आ गया है।
बहु किसी तरह पत्र लिख रही हैं। आगे शायद तुझे और चिट्ठी ना मिले। तभी तू समझ जाना कि ये प्राण पखेरू उड़ गए हैं।।
तु तो नहीं आया बेटा।पर हमारे प्राण अब ना रहेंगे।

रमेश बोला अम्मा ये कैसी सजा दे कर चली गई।

दूसरे दिन सुबह ही रमेश तैयार हो कर पंडित जी से बात करके सब बताया और फिर पंडित जी बोले कि एक अच्छा मुहूर्त देख कर मैं एक पुजा और हवन करवाता हूं।


वहां से रमेश सीधे आगरा के लिए निकल गए और तीन घंटे बाद ही रत्ना के मामा के घर पहुंच गए।


रत्ना और रवि अपने चाचा को देख कर दौड़ पड़े और गले लगकर रोने लगे।


क्रमशः