गुरु दर्शन - 2
" कुछ देर और इंतजार करने के बाद , नदी की ओर से एक सियार के चिल्लाने की आवाज आई I और तुरंत ही सुनाई दिया सूखे पत्ते के ऊपर किसी के चलने की आवाज , वह काला परछाई आज फिर जंगल की ओर बढ़ रहा था I मैं प्रतीक्षा करने लगा उसके लौटने का क्योंकि उसके लौटते ही मैं उसका पीछा करूंगा I आज उसके हाथ में एक थैला झूल रहा था I जंगल के अंदर उस थैले को फेंककर , वह आदमी नदी की ओर चला गया I यहां से नदी लगभग 60 -70 कदम पर होगा I मैंने साफ देखा कि वह आदमी नदी के किनारे
बैठकर ना जाने किस वस्तु से मिट्टी खोद रहा है I कुछ देर खोदकर वहां से कुछ निकाला और उसे नदी के पानी में धोने के बाद ,वह नदी के किनारे की ओर आने लगा I मैं पूरी तरह तैयार था , उस आदमी के सामने वाले रास्ते पर कुछ दूर आगे जाते ही , मैं भी पीछे - पीछे चलता रहा I उस समय अट्टाहास शक्तिपीठ में रात को कोई भी नहीं आता था , अगर उस समय किसी शहरी आदमी को वहां छोड़ दिया जाए वह
आसपास के परिवेश को देखकर ही मूर्छित हो जाए I उस आदमी के लगभग 20 गज दूरी पर मैं धीरे - धीरे चल रहा था I चारों ओर अंधेरा , केवल आसमान में जो तारे हैं मैं उन्हीं की रोशनी में देख रहा था I उस आदमी के बाल कंधे तक व् पहनावे में केवल एक लाल धोती , और शरीर पर मोटा सा एक जनेऊ । इसी तरह चलते - चलते कुछ दूरी पर ही वह आदमी रुक गया I मैं भी रुक गया I
इस समय मैं जहां पर पहुंचा हूं वहां पर बलि दिया जाता है I उस आदमी ने बलिस्थान के लकड़ी को छूकर एक बार प्रणाम किया I इसके बाद कुछ और आगे आकर एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ , नदी के किनारे से जिस वस्तु को लाया था उसे रखकर , न जाने क्या करने लगा I ये जगह बहुत ही
निर्जन है , दिन के रौशनी में भी यहां पर कोई नहीं आता है I मैं एकटक उधर ही देखता रहा I कुछ देर बाद वह आदमी खड़ा हुआ फिर एक बार इधर उधर देखकर सामने की ओर चलने लगा I कुछ दूरी पर एक छोटा झोपड़ी जैसा दिखाई दे रहा है , उसी में वह आदमी अंदर चला गया I मैं अपनी जगह पर कुछ देर और खड़ा रहा I इसके बाद मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ गया पीपल के पेड़ की ओर , इधर - उधर एक बार देखने के बाद मैंने अपने हाथ में लिए हुई मशाल को जलाया I मशाल के रोशनी में देखा कि पीपल के पेड़ के नीचे वर्ग जैसा एक गड्ढा बना हुआ है और एक लाल कपड़ा उसके ऊपर बिछाया गया है I लाल कपड़े के चारों कोने पर छोटा-छोटा पत्थर का टुकड़ा रखा गया है जिससे वह उड़ ना जाए I मैं सोच में पड़ गया कि कपड़े को हटाऊ या नहीं I उस आदमी के हाव - भाव को देखकर कापालिक जैसा लगा था इसीलिए मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा था I अगर कोई अमंगल हुआ तो क्योंकि तंत्र मंत्र में बहुत ही शक्ति होती है I फिर मन ही मन सोचा कि जो होगा देखा जाएगा I अपने मन के कौतूहल को खत्म होगा I देवी काली का नाम लेकर लाल कपड़े को हटा दिया और कपड़े को हटाते ही मेरा पूरा शरीर डर से कांपने लगा I ऐसा दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा था I मैंने देखा कि उस चौकोर गड्ढे में है पांच कटा हुआ सिर , लेकिन पांचों सिर पांच प्रकार के थे I एक बंदर का सिर , एक सियार का सिर ,एक नेवले का सिर , एक नाग का सिर , एक नर कंकाल का
सिर और उसके अंदर सांप और नेवले के सिर को देखकर लगा कि उसे आज ही काटा गया है क्योंकि उस समय भी उनसे ताजा खून निकल रहे थे I और नरमुंड को ही वह उस समय नदी के किनारे से लाने गया था I और जिस थैली को उसने जंगल में फेंका था उसमें सांप और नेवले का सिर कटा
हुआ शरीर था I मैं वहां पर और नहीं रुका , उठ कर लौटने लगा I
कुछ कदम बढ़ाते ही पीछे से किसी ने बहुत ही भारी आवाज में बोला - " रुको , कहां जा रहे हो ? कपड़े को हटाकर जो देखा उसे फिर से कौन ढकेगा I"
इतना आवाज सुनते ही मेरा ह्रदय मानो धड़कते हुए बाहर ही आ जाएगा I मन ही मन सोचने लगा अब नहीं बच सकता I दौड़कर वहां से भाग जाऊंगा वह शक्ति भी नहीं है , पैर मानो हिलना ही नहीं चाहते और पूरा शरीर भारी हो गया है I डर के कारण शरीर कांप रहा है और मुझे सुनाई दे रहा था सूखे पत्ते के ऊपर चलने की आवाज , कोई मेरी ओर धीरे-धीरे बढ़ रहा है I मैंने अपने कंधे पर एक हाथ महसूस किया I इसके
बाद आवाज सुनाई दिया - " रूद्र, मैं जानता था कि तुम आओगे लेकिन बहुत देर कर दिया तुमने बच्चा I "
यह सुनने के बाद मैं थोड़ा घबरा गया I मेरे हाथ व् पैरों में एक झनझनाहट और माथे पर एक बहुत ही ठंडी हवा बहने लगी I मैं पीछे की तरफ घूमा और मशाल की रोशनी में उस आदमी को देखा I उस आदमी के माथे पर एक उज्वल छोटा सा तिलक था I आदमी ने कुछ बोला नहीं केवल मेरे आंखों में देखते हुए मुझे छूकर खड़े रहे I और तुरंत ही आंखों के सामने के दृश्य बदलने लगे I मैं किसी दूसरी दुनिया मैं खो गया I मैंने देखा कि एक ज्वलंत पिंड आसमान से नीचे उतर रहा है इसके बाद उससे उत्पन्न हुआ एक छोटा सा बच्चा , एक बच्चे ने जन्म लिया I इसके बाद आसमान के रंग बदलने लगे , आसमान का रंग काला और चारों तरफ आग , नदी का पानी लाल रंग का एकदम खून जैसा , यह पृथ्वी मानो प्रेत
रूपी पृथ्वी में परिवर्तित हो गया है I इसके बाद मैंने देखा एक छोटा सा बालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा I उसका चेहरा व् आँख बदलते बदलते पूरी तरह मेरे जैसा दिखने लगा I
इसके बाद क्रमशः अदृश्य बदलते हुए मेरे यहां तक आने की समस्त घटना को मैंने देखा I जब अपने स्वाभाविक दृष्टि में लौटकर आया तो देखा कि सामने खड़ा आदमी अब वहां नहीं था I आश्चर्य हुआ ,जब मैंने अपने आसपास ध्यान से
देखा तो मैं मंदिर के बाहर नीम के पेड़ के नीचे खड़ा था और हाथ में मशाल जल रहा है I यह कैसे हुआ ? मैं तो यहां पर नहीं था I अचानक मुझे बहुत ही जोरों की नींद आने लगी I
ना चाहते हुए भी शरीर ने मुझे सोने के लिए बाध्य कर दिया I
संभवत लगभग 2 घंटे बाद शरीर में एक अनुभूति हुई मानो बहुत ही ठंडा कुछ मेरे शरीर को बार बार छू रहा है I और साथ ही साथ मेरा पूरा शरीर भी क्रमशः ठंडा होता चला जा रहा है I उसके बाद अचानक सुनाई दिया एक कड़कड़ाहट की आवाज और सिर पर एक ठंडाई स्पर्श क्रमशः बढ़ता रहा I फिर से वही कड़कड़ाहट की आवाज और बहुत
ही ठंडी हवा I किसी तरह आंख खोल कर देखा तो बात तो कुछ दूसरी ही थी I आसमान से झमाझम बारिश हो रहा है , साथ ही बिजली कड़कने की आवाज I नीचे मिट्टी कीचड़ में बदल गया है I मैं वहां से उठ गया I असल में सोते हुए ऐसा कुछ देख रहा था जिससे मैं बहुत ही गहरे सोच में चला गया था I शरीर में कोई भी थकान नहीं है अब , उस बरसात में भी शरीर में गर्मी महसूस कर रहा था I आह ! मन बहुत ही शांत है I कोई जटिलता नहीं है , कोई अविश्वास नहीं है , कोई संदेह नहीं I सीने में है केवल सुंदर प्राणवायु , मेरा बारिश की ओर कोई ध्यान नहीं I मैं उस समय अपने में ही खोया हुआ था I "
जयदत्त बोल पड़े - " स्वप्न में अपने ऐसा क्या देखा जिससे आपको यह सुंदर अनुभूति हुई ? "
रुद्रनाथ अघोरी ने फिर से बताना शुरू किया ,
" सबसे पहले देखा आंखों के सामने गहरा अंधेरा, और उस अंधेरे को चीर कर आगे बढ़ रहा हैं एक उज्जवल नीला शरीर और उनके पूरे शरीर में एक भी कपड़ा नहीं है I संपूर्ण निर्वस्त्र एक व्यक्ति पास आकर मेरे हाथ को पकड़ मेरे कान में बोले - " आज तुम्हारी वजह से मेरी एक जटिल साधना
पूर्ण हुई है I तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि जल्द ही तुम्हें दीक्षा के साथ ही गुरुमुखी विद्या की प्राप्ति होगी I असल में मैं पिछले दो वर्ष से एक साधना में लिप्त था इसलिए मुझे मौन व्रत का पालन करना पड़ा I मेरे गुरु ने कहा था कि आज से 2 साल बाद अट्टहास देवी मंदिर में मेरी साधना पूर्ण होगी I और रूद्र नाम के किसी मानव के द्वारा ही मेरे साधना में सिद्धि लाभ होगा I तुम कोई साधारण मानव नहीं हो तुम्हारे अंदर है कई चमत्कारी शक्तियां , आज से ठीक 65 दिन बाद तुम्हें दीक्षा प्राप्त होगा I और जो तुम्हें दीक्षा देंगे उनका नाम है श्री कृष्णानंद आगमवागीश I आज कृष्णानंद का मौन साधना समाप्त हुआ I तुम होंगे उनका प्रथम पूर्णाहुति प्रदत्त शिष्य I आज से तुम मेरे संतान जैसे हो I "
मैं बोला - " इसका मतलब आप ही हैं गुरु कृष्णानंद आगमवागीश ? "
उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया I
मैं फिर बोला - " आप एक इतने बड़े साधक होकर भी इस तरह से प्राणी हत्या क्यों किया ? "
गुरु कृष्णानंद थोड़े से हँसे और बोले - " इसका उत्तर तो मुझे देना ही पड़ेगा I असल में यह सब कुछ तुम्हारे लिए ही है बेटा I आज से जब 65 दिन बाद तुम्हारी दीक्षा होगी , फिर गुरुमुखी विद्या ग्रहण करने के बाद इस आसन पर तुम्हें ही साधना करनी है I ईश्वर की यही इच्छा है बेटा , तुम हो ईश्वर के आशीर्वाद प्राप्त पुत्र I तंत्र साधना के चिन्ह तुम्हारे माथे व् शरीर में पूरी तरह से विद्यमान है I तुम्हें तो बहुत दूर तक पहुंचाना है इसीलिए ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है तुम्हारे सामने प्रस्तुत होने के लिए I यह शुरू हुआ आज से 2 वर्ष पहले , मेरे साधना के सबसे अंतिम पर्व में था यही कि तुम्हारे लिए इस क्रिया की व्यवस्था करना और तुम्हारे द्वारा छुए गए पंचमुंडी तक तुम्हें पहुंचा देना I आज मेरा साधना पूर्ण हुआ I "
मैंने पूछा - " पंचमुंडी का मतलब , यह तो ठीक से नहीं समझा बाबा I "
गुरु कृष्णानंद ने कहा - " समय आने पर खुद ही जान जाओगे I अब से पूरे 65 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करो I इसके बाद तुम्हारे साथ फिर यहीं पर मिलूंगा I "
इतना बोलकर वह गायब हो गए और इसके बाद आंख खुलते ही देखा बारिश हो रही है I "
इतना बताकर तांत्रिक रुद्रनाथ शांत हुए I
जयदत्त बोले - " इसके बाद क्या हुआ ? और यह
पंचमुंडी क्या है ? "
रुद्रनाथ बोले - " उसके ठीक 65 दिन बाद मेरा गुरु दीक्षा गुरु श्री कृष्णानंद आगमवागीश के द्वारा ही हुआ I ऐसे ही अद्भुत घटना द्वारा मुझे गुरु कृष्णानंद का दर्शन हो गया था I यह दूसरी बात है मैं तुम्हें किसी दूसरे दिन बताऊंगा I अभी मैं तुम्हें पंचमुंडी आसन के बारे में बताता हूं I पंचमुंडी का आसन एक बहुत ही शक्तिशाली आसन है I इस आसन पर बैठकर साधना करने से एवं उस साधना में सिद्धि प्राप्त करने पर , साधक को बहुत सारी चमत्कारिक शक्तियां मिलती है I किसी साधारण साधक के लिए यह काम नहीं है I पूर्ण दीक्षित साधक के अलावा किसी को कोई अधिकार नहीं है इस आसन में बैठने का I पूर्ण दीक्षित व गुरु के आदेश के बिना इस आसन पर बैठना निषेध है I 5 सिर की आवश्यकता होती है इस आसन को बनाने के लिए और इसे किसी वीरान व जंगल में तैयार किया जाता है I वह जगह
ऐसी होनी चाहिए जहां पर कोई भी ना जाए I यह आसन तैयार करने के लिए कुछ पेड़ की भी आवश्यकता होती है जैसे बेल का पेड़ , नीम ,वट अथवा पीपल , इन्हीं पेड़ों के नीचे पंचमुंडी आसन तैयार किया जाता है I 5 मुंड अर्थात सिर की जरूरत होती है I जिसमें है मनुष्य के सिर , नाग का सिर, सियार का सिर , नेवले का सिर और बंदर का सिर I
जिस जगह पर इस आसन को स्थापित किया जाएगा उस जगह को पहले संरक्षण करना होगा फिर पंचद्रव्य क्रिया से शोधन करना होगा I इसके बाद वहां पर एक महीना बैठकर साधारण जप - तप करना होगा I इसको करने से उस जगह
पर एक ऊर्जा का संचार होता है और ऊर्जा संचार होने के बाद चौखट के जितना माप लेकर लकीर खींच दिया जाता है I इसके बाद आता है मुंड की बात , अब उन पांचों मुंड को छोटे से चौकोर गड्ढे में रखा जाता है I लेकिन इसे केवल अमावस्या , चतुर्दशी व कृष्ण पक्ष के दिन ही किया जाता है I
क्योंकि तंत्र जगत है अंधेरी दुनिया का क्रियाकलाप एवं गुप्त कर्म की जगह I पूर्णिमा की रोशनी में यह संसार चमकता रहता है I उस समय तंत्र की क्रियाएं नहीं होती है इसीलिए
अमावस्या व कृष्ण पक्ष ही सबसे श्रेष्ठ दिन होते हैं I पूरे 45 दिन उस मुंड के ऊपर बैठकर साधना करना होता है और विभिन्न क्रियाओं के द्वारा उन मुंडो को जगाना पड़ता है I इससे उनके अंदर एक ऊर्जा व प्राण संचार होता है I प्राण संसार का मतलब यह नहीं है कि मुंड हिलने लगेंगे व बात
करेंगे I इसका मतलब है कि मुंड के अंदर एक ऊर्जा को तैयार करना , जिसे नग्न आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता I इसे केवल महसूस किया जाता है I इसी तरह 45 दिन साधना करके उन पांच मुंडो को जगाना पड़ता है I इसके बाद उस गड्ढे को पत्थर के ढकने से ढक दिया जाता है I
9 दिन का समय लगता है पंचमुंडी आसन तैयार करने में , साधक को 9 दिनों का संकल्प लेना पड़ता है I इन 9 दिनों के संकल्प में साधक को सभी दिन सात्विक भोजन करना होता है और पूरे दिन में एक बार ही खाएगा I अकेले रहना होगा और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा I इसके बाद मुंड स्थापन करेगा I मुंडी स्थापन के बाद इसमें लगने वाले सभी पदार्थ वस्तुओं को उस गड्ढे में प्रदान करना होगा I जैसे चंदन , कुमकुम , तेल , शराब , शुद्धि व वस्त्र इत्यादि I द्रव्य में अत्यंत जरूरी कुछ द्रव्य हैं जैसे स्वेत मकाल का जड़ , अश्वगंधा , लाल वस्त्र , लाल चंदन , सफेद चंदन , पीला चंदन , चमेली का तेल , सिंदूर , कस्तूरी इत्यादि I इन सभी को मिलाकर पांच मुंडो पर तिलक करके उन 5 मुंडो के अमंगलकारी शक्ति से उन्हें मंगलकारी शक्ति में परिवर्तित करना पड़ता है I क्योंकि यह मृत हैं इसीलिए इनकी ऊर्जा अमंगलकारी होती हैं I इसके बाद इन पांच मुंडो के उर्जा को एक साथ मिलाना होगा I ऊर्जा संगम के 9 दिनों बाद इनकी
पूजा करनी होगी I पूजा व साधना यह सभी एकांत व गुप्त विधि है I सभी विधि खत्म करके इस स्थान को ढकना होगा I इसके बाद साधक इस आसन पर बैठकर अपने साधना पद्धति से साधना कर सकता है I जो पूरी तरह से गुरुमुखी
विद्या है , जिसे साधारण मनुष्य के सामने प्रकाश करना निषेध है I और भी कुछ नियम है जैसे पंचमुंडी साधना के
समय साधक को संपूर्ण सात्विक रहना होगा व संपूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा और सबसे बड़ी बात यह है कि पंचमुंडी आसन में साधना करते वक्त साधक को पूरी तरह दिगंबर होकर बैठना पड़ेगा I उसके शरीर में कोई भी बंधन नही रहना चाहिए I इस साधना को करने के लिए गुरु की अनुमति जरूरी है अगर ऐसा नहीं किया तो साधक का
क्षति भी हो सकता है I विधिपूर्वक इस साधना को करने से साधक को बहुत सारी चमत्कारी शक्तियां प्राप्त होती है I उसका कुंडलिनी जागृत होता है I
और एक बात इस साधना को नारी , पुरुष कोई भी कर सकता है क्योंकि ईश्वर के सामने सभी सामान हैं I पुरुष नारी व प्रकृति सब उन्हीं के द्वारा बनाया गया है इसीलिए इसमें कोई भी भेद नहीं रहता है I और एक प्रकृति साधक इन सभी भेद - अभेद से मुक्त होकर ही एक प्रकृति साधक बनता है I "
इतना सब कुछ बताकर तांत्रिक रुद्रनाथ शांत हुए I
जयदत्त बोले - " हां आपने सही कहा I "
→ ( समाप्त )
तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी क्रमशः ....
@rahul