देवाधिदेव का खेल - 2
दयाराम को अब और सहन नहीं होता I कब वह केशव को संतानहीन होते हुए देखेगा यही सोच कर परेशान है I केशव , दयाराम का रिश्ते में भाई जैसा ही है I दोनों ही खाना बनाने का काम करते I दयाराम के हाथों से ही केशव ने खाना बनाना सीखा लेकिन आज वह दयाराम से भी अच्छा बावर्ची है I इलाके के सभी शादी ,श्राद्ध व अनुष्ठान में उसे भोजन
बनाने के लिए बुलाया जाता है जहां से एक दो - साल पहले केवल दयाराम को ही बुलाया जाता था I
और आज रेल के नए साहब के क्वार्टर रूम पर भी प्रतिदिन वह भोजन बनाएगा I वहां पर भी उसे केशव के आगे नकार दिया गया I यही सब सोचते हुए दयाराम ईर्ष्या की जलन से
तिलमिला उठता है I और हमेशा इसी सोच में रहता है कि किस प्रकार उसका कुछ बहुत बुरा किया जाए I
इसी बीच उसने सुना मुरादाबाद में अभय तांत्रिक नाम के एक तांत्रिक है जो पैसा लेकर मनुष्यों के बाधा व विपत्ति को दूर कर देते हैं I उसी समय दयाराम ने सोचा कि वह आज ही जाएगा और तांत्रिक से केशव का अनर्थ करने के लिए कहेगा I और वैसे भी गढ़मुक्तेश्वर से मुरादाबाद ज्यादा दूर नहीं है I वहां पर उसने अपनी लड़की का विवाह भी किया है ज्यादा जरूरी हुआ तो रात लड़की के ससुराल में ही ठहर जायेंगे I देर न करते हुए दयाराम पहुंच गया अभय तांत्रिक के पास………
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साधु बाबा के घर से चलकर मेरे कमरे के पास पहुंचते ही देखा केशव दरवाजे के पास खड़ा है I
मैंने उससे पूछा - " तुम तो आ गए और कितनी देर से खड़े हो ? "
केशव बोला - " यही कुछ मिनट हुआ साहब , और थोड़ी देर पहले ही आ जाता लेकिन लड़के को बहुत ही तेज बुखार हुआ है I न जाने अचानक उसे इतना तेज बुखार कैसे हो गया I "
मैं बोला - " पहले नहीं आए अच्छा ही किया I मैं तो अभी लौटकर आ रहा हूं I "
इसी बीच साधु बाबा की ओर नजर जाते ही देखा साधु ,
केशव को ध्यान से देख रहे थे I उनके दोनों आँख कुछ ज्यादा ही उज्वल दिख रहे थे I केशव भी साधु बाबा के वैसे देखने के कारण आश्चर्य हो गया I
नमस्कार करके बोला - " साधु बाबा क्या आप कुछ बोलना चाहते हैं I "
साधु बाबा गंभीर आवाज में बोले - " हाँ बहुत सारी बातें हैं I अंदर चलो बताता हूँ I "
इसके बाद दरवाजा खोलकर हम अंदर गए I अंदर कमरे में जाकर बैठने के बाद , साधु बाबा ने केशव को पेड़ का एक जड़ हाथ में दिया I यह उसी लाल कपड़े के टुकड़े में था जिसे आने से पहले साधु ने अपनी पोटली में रखा था I
केशव बोला - " इसको लेकर क्या करूंगा बाबाजी "
साधु बाबा बोले - " इसके दो टुकड़े करके एक टुकड़ा अपने लड़के को खिला देना और दूसरा घर के सामने एक हाथ लंबा गड्ढा करके डाल देना I याद रहेगा न "
केशव ने हां में सिर हिलाया और फिर बोला - " बाबा जी क्या मेरे साथ कुछ हुआ है I कुछ बुुुरा दिखाई दिया मेरे अंदर I "
साधु बाबा बोले - " तुम कुछ भी चिंता मत करो I "
मैंने केशव से बोला - " साधु बाबा के लिए चाय पानी लेकर आओ I "
इसके बाद केशव उठकर रसोई घर में चला गया I
मैंने धीरे आवाज में साधु बाबा से पूछा - " बाबा जी आपको कुछ पता चला ? "
साधु बाबा बोले - " किसी ने उसका अनर्थ करने के लिए उसके पीछे प्रेत को लगा दिया है I बहुत ही चिंता हो रहा है उसके लिए , अभी भी विपदा खत्म नहीं हुआ है I मुझे साफ दिखाई दे रहा है उसके चारों तरफ एक काले धुएं ने आवरण लिया है I और वह तुम्हारे संपर्क में आया है इसीलिए तुम भी कुछ प्रभावित हुए हो I लेकिन तुम्हें कोई खतरा नहीं है मुझे असल चिंता है केशव के परिवार के लिए I जितनी देर इस
अशुभ शक्ति के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर पा रहा तब तक देवी महामाया मुझे संकेत देती ही रहेंगी I "
साधु बाबा की बातें समाप्त होते ही रसोई घर से कराहने की आवाज आई I जल्दी से जाकर देखा तो केशव खून की उल्टियां कर रहा था I
उस दृश्य को देखकर मैं कांप सा गया I केशव को पकड़ने से पहले ही साधु बाबा दौड़कर गए और उसके माथे पर अपने दाहिने हाथ के अंगूठे को रखकर आंख बंद करके कुछ मंत्र पढ़ते ही , केशव बेहोश होकर नीचे लेट गया I
मेरा पूरा शरीर उस समय कांप रहा था I साधु बाबा बोले - " इसे अभी तुरंत मेरे घर पर ले जाना होगा I पकड़ो इसे "
इसके बाद हम दोनों मिलकर केशव को पकड़ किसी तरह कमरे के बाहर लेकर आए और एक रिक्शे को बुलाकर उसमे बैठा जल्दी से साधु बाबा के घर की ओर चल पड़े I
साधु बाबा के घर पर पहुंचते केशव को पकड़कर रिक्शा से उतारा I
साधु बोले - " उसे देवी मूर्ति के सामने दरवाजे के पास लेटा दो I"
वही किया गया फिर साधु बाबा अपने मंदिर के अंदर जाकर हाथ में एक नर खोपड़ी एवं एक हड्डी लेकर बाहर आए और मंत्र पढ़ते हुए उस हड्डी को नर खोपड़ी के ऊपर घुमाने लगे I
सच बताऊँ तो यह सबकुछ मेरे समझ से परे था I
ऐसे ही मंत्र पाठ कुछ देर चलता रहा I
इसके बाद साधु बाबा , केशव की ओर देख कर बोले -
" जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ "
बोलकर उसके हाथ में एक लाल धागा बांधते ही देखा केशव हिल रहा है I कुछ मिनट बाद ही केशव जाग गया और आसपास देखते ही रोने लगा I
और साधु के पैर को पकड़कर बोला - " मुझे अगर कुछ हो गया तो मेरे पत्नी और लड़के का क्या होगा बाबा जी , मैं तो उन्हें बहुत ही प्यार करता हूं I मैं अगर नहीं रहा तो वह दोनों रास्ते पर आ जाएंगे I "
साधु बोले - " रोना बंद करो बेटा , बंद करो I देवी महामाया के रहते चिंता किस बात की है I और जितनी देर तांत्रिक रूद्रनाथ अघोरी बचा हुआ है तब तक तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा नही होने दूंगा I क्योंकि अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं देवी मां के सामने अपना चेहरा भी नहीं दिखा पाउँगा I "
केशव ने अब अपना आंसू पोछा I
कुछ देर शांत रहने के बाद फिर साधु बाबा बोले -
" तुमने कहा था न कि तुम अपने पत्नी और लड़के से बहुत ही प्रेम करते हो तो सुनो प्रेम से बड़ा तंत्र और कोई भी नही I सच्चे प्रेम के आगे पृथ्वी के सभी अनिष्टकरी तंत्र - मंत्र , सब कुछ व्यर्थ हो जाता है I प्रेम है सबसे बड़ा तंत्र सबसे बड़ा जादू I अभी के लिए तुम्हारा संकट दूर हो गया है I तुम अब जल्दी से घर जाओ और उस समय जिस जड़ को दिया था उसका आधा अपने लड़के को खिलाना और आधा जमीन में
गाड़ देना I जाओ जाओ जल्दी से अपने घर जाओ I "
केशव प्रणाम करके जल्दी से अपने घर की ओर चला गया I उसे जल्दी घर पहुंचना होगा आज उसके पत्नी व लड़के के साथ कितना बुरा हो सकता है इससे वह अवगत हो चुका है I........
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शाम को बैठकर दयाराम सोच रहे हैं - " अभय तांत्रिक ने कहा था की रात बीतते ही फल मिलेगा I अभय तांत्रिक कहीं ढोंगी तो नहीं है I कुछ किया भी है या इधर-उधर करके मुझसे इतने पैसे और पोटली भरकर गेहूं चावल और सब्जी ले लिया I कल एक बार फिर अभय तांत्रिक के कुटी पर जाकर उनसे मिलना होगा I इतने सारे पैसे देने के बाद अगर कोई काम ही नहीं हुआ तो कैसे चलेगा I "........ ____
" केशव के जाने के बाद , घड़ी की ओर देखा तो रात के साढ़े नौ बज रहे थे I
मैंने साधु बाबा से पूछा - " आपने कहा कि अभी के लिए संकट टल गया है इसका मतलब अभी भी संकट ख़त्म नहीं हुआ है I "
साधु बाबा बोले - " नही , अब भी उसे और उसके घरवालों को बहुत जोखिम होने की संभावना है I अभी के लिए मैंने उसका गोत्र बंधन कर दिया है लेकिन आज रात ही मुझे पूजा में बैठना होगा I जो कि बहुत ही जटिल तंत्र की क्रिया है I जल्दी से अगर मैंने कुछ नहीं किया तो फल बहुत ही खराब हो सकता है I शायद आज सुबह होने से पहले ही केशव के घरवालों की मृत्यु भी हो सकता है I "
यही सब बोलते हुए मैंने देखा साधु बाबा की आंखें धीरे -धीरे लाल हो रही है I
" बाबाजी बात क्या है कृपया थोड़ा मुझे समझाकर
बताइए I "
साधु बाबा बोले - " केशव का अनिष्ट करने के लिए किसी ने उसके पीछे प्रेत लगा दिया जिससे उसका सर्वनाश हो जाए I और सम्भवतः इसे कल रात ही किया गया है I कल अमावस्या था और इन सभी क्रियाओं को करने सबसे बढ़िया दिन होता है I "
मेरे चेहरे को देखकर साधु बाबा शायद समझ गए थे कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा I और तो और इसके अलावा साधु बाबा मन की बातों को भी समझ जाते हैं इसका प्रमाण मैंने पहले भी पाया है I
साधुवाद फिर से बोले - " ठीक है मैं तुम्हें सब कुछ समझाकर बताता हूं I "
बोलकर तांत्रिक रूद्र नाथ अघोरी ने शुरू किया अकल्पनीय एक आश्चर्य विवरण ,
" भूत डामर अथवा प्रेत डामर तंत्र एक बहुत ही गुप्त तंत्र साधना की प्रक्रिया है I यहां डामर शब्द का अर्थ है डमरु , डमरू के डुगडुगी से जैसे बंदर नाचते हैं ठीक उसी प्रकार जो भी इस तंत्र में सिद्धि लाभ करते हैं , उनके वश में बहुत सारे प्रेत व पिशाच रहते हैं I वो साधक जो भी कहता है और जिस भी प्रकार से कहता है , प्रेत को उनकी एक एक बात मानने पर विवश होना पड़ता है I
देवाधिदेव महादेव ने उन्मत्त भैरव रूप में उन्मत्त भैरवी को जिन घटनाओं व साधना के बारे में बताया था , वही भूत डामर नाम से परिचित हैं I इस साधना को करके साधक बहुत सारे शक्तियों को प्राप्त कर सकता है I इस साधना को करने के लिए साधक को श्मशान , जंगल व नदी के किनारे जाना पड़ता है और वह भी रात्रि काल में I कुछ साधनाएं 3 दिनों की होती है और कुछ 7 दिनों की , मूलतः 3 दिनों की साधना में देवी भार्या व प्रेमिका के रूप में दर्शन देती हैं I
परंतु असली साधना होती है 7 दिनों की साधना जिसमें देवी अपना दिव्य रूप लेकर प्रकट होती हैं I साधना तभी संभव होगा जब पूरे 7 दिन इसे ठीक से किया जा सके I एक मंत्र को एक लाख से अधिक बार श्मशान व किसी जंगल में जाकर जाप करना होता है I रात में विशेष कुछ पूजा पद्धति भी होता है गुग्गुल की बत्ती जलकर , कनेर के फूल की आहुति देकर , यज्ञ करके इस साधना को किया जाता है I इस साधना के पूर्ण होने पर देवी सातवें दिन आएँगी और वरदान देंगी I इस साधना से साधक को बहुत उन्नति का लाभ होता है I साधना में सिद्धि प्राप्त करने पर साधक एक राजा की तरह रह सकता है I उसका नाम , यश क्रमशः दिन पर दिन बढ़ता ही जाएगा I इस भूत डामर तंत्र में कुछ ऐसे
गुप्त मंत्र हैं जिसे किसी के सामने बोलना भी संभव नहीं है I गुरु दीक्षा प्राप्त साधक के अलावा यह मंत्र वर्जित है I इस तंत्र में भूत, प्रेत , पिशाच , ब्रह्मदैत्य इनपर सिद्धि पाया जा सकता है I साधक इनके ऊपर अपना हुकुम चला सकता है I इसके बाद इस पृथ्वी पर ऐसा कोई प्रेत व पिशाच नहीं है जो साधक के द्वारा वशीभूत नहीं होंगे I केवल प्रेत लोक ही नहीं इस साधना से पाताल नाग पर भी सिद्धि पाया जा सकता है I मैंने ऐसे बहुत सारे लोगों को देखा है जिनके शरीर व घर में पिशाच , बेताल व पाताल नाग विचरण करते रहते हैं अर्थात किसी दुष्ट साधक ने उसके अनिष्ट करने के लिए ऐसा काम किया है I लेकिन ऐसा ही अनर्थ काम करते रहने से साधक को क्षति पहुंचता हैं I उसका शक्ति धीरे-धीरे खत्म होने लगता है I साधना की सिद्धि के द्वारा जो शक्ति मिलता है अगर उसे साधक किसी का अनिष्ट करने के लिए प्रयोग करता है तो उसका शक्ति धीरे-धीरे खत्म होने के साथ ही उसे हानि होने की संभावना भी बढ़ जाती है I देवाधिदेव महादेव ने जैसे शक्ति दिया है ठीक वैसे ही शक्ति को समाप्त करके छीन भी सकते हैं I महादेव ने किसी का अनिष्ट करने के लिए इस शक्ति को नहीं दिया है यही देवाधिदेव महादेव का खेल है I भूत डामर तंत्र में इन सभी बातों का उल्लेख है I अब जैसे केशव के अनिष्ट के लिए साधक ने इस क्रिया को
किया है अब केशव के संकट को दूर करने के लिए मैं इसके विपरीत तंत्र क्रिया करके , केशव का प्राण बचाऊंगा I इससे मेरे क्रिया का प्रभाव पड़ेगा उस तांत्रिक के ऊपर व कुछ प्रभाव पड़ेगा जिसने तांत्रिक के द्वारा इस काम को करवाया है I इससे उन्हें भी हानि होगा यह पूरी तरह निश्चित है और इसके साथ तांत्रिक का शक्ति भी नष्ट हो जाएगा I प्रेत व पिशाच सभी क्रोधित होकर उस तांत्रिक के ऊपर बरस पड़ेंगे I "
इतना सब कुछ बता तांत्रिक बाबा गहरी सांस छोड़कर
शांत हुए I
मैं बोला - " कब बैठेंगे आप इस क्रिया को करने के लिए I "
उन्होंने बताया - " आज रात को ही ब्रह्ममुहूर्त के अंदर क्रिया को समाप्त करके उच्छिष्ट नदी में प्रवाहित करना होगा I "
मैं बोला - " ठीक हैं आप क्रिया को कीजिए मैं चलता हूं
बहुत रात हो गया है I "
साधु बोले - " रुको , तुम्हारे घर में तो आज खाने को कुछ भी नहीं बना है I थोड़ा सा लाई , चूड़ा व गुड़ खाकर जाओ I "
मैं तो आश्चर्य हो गया साधु बाबा के बात को सुनकर , इन सभी के बीच भी उन्हें मेरे खाने के बारे में याद है I
इतना प्रेम मनुष्यों के प्रति , ये साक्षात देवी महामाया के संतान हैं I इस बात को कहने से खुद को रोक नहीं पाया I उनके पैरों को छूकर प्रणाम किया I "
मेरे चेहरे की ओर देखकर बोले - " मां महामाया की संतान हम सभी हैं I और कुछ देर पहले ही मैं कह रहा था कि प्रेम से बड़ा तंत्र और कुछ भी नहीं I प्रेम के सामने सभी तंत्र - मन्त्र व्यर्थ है I प्रेम ही है सबसे बड़ा तंत्र , सबसे बड़ा जादू I मेरे गुरुदेव श्री कृष्णानंद आगमवागीश ने मेरे सिर पर हाथ रखकर इस बात को बोला था I आज समझ में आता है कि गुरुदेव ने गलत नहीं कहा था I"
यही बोलकर उन्होंने हाथ जोड़कर मन ही मन गुरुदेव को प्रणाम किया I उसके बाद एक कटोरी लाई , चूड़ा व गुड़ खाकर बाहर निकल ही रहा था कि साधु बाबा ने मुझे रोका और कहा -
" तुम्हारा भी देहबंधन कर देना जरूरी है कुछ देर रुको I "
एक हाथ मेरे सिर पर रखकर , आंख बंद करके साधु बाबा मंत्र पढ़ने लगे I से बात बोलें - " अब तुम सावधानी से घर जाओ I "
मैं भी वहां से निकल पड़ा I कमरे में पहुंच , हाथ पैर धोकर इस डायरी को लिखने बैठा I रात हो गया है अब सोना होगा I "
इसी बीच मां ने दो-तीन बार बुलाया है नहाने के लिए , डायरी के बहुत ही इंटरेस्टिंग पार्ट में था इसीलिए मां से बोला कि थोड़ी देर बाद आ रहा हूं I अब इतना ही रहने दो लेकिन एक बात तो बहुत ही अच्छा है कि मेरा लॉकडाउन ज्यादा खराब नही बीतने वाला I यह तो पहली डायरी थी अभी तो सात डायरी और बाकी है I अब जाता हूं नहाने के लिए और इधर पेट में भी चूहों ने आंदोलन मचा रखा है I .......
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नींद से उठकर सुबह - सुबह दयाराम ने अभय तांत्रिक के पास जाने के लिए यात्रा शुरू किया I तांत्रिक के आश्रम के सामने पहुंचते ही देखा कि बहुत सारे लोग भीड़ लगाकर खड़े हैं I भीड़ को हटाकर सामने जाते ही उसने देखा आश्रम वाले इमली के पेड़ के नीचे अभय तांत्रिक का मृत शरीर पड़ा हुआ है I कुछ आगे जाकर ठीक से देखा , तो डर से कांप उठा I तांत्रिक का सिर पीठ की ओर मुड़ा हुआ था और आंखों में एक भयावह दृष्टि , देख कर ऐसा लग रहा है कि मृत्यु से पहले तांत्रिक ने कुछ बहुत ही भयानक देखा था I
कहीं भी हवा नहीं चल रही चारों तरफ सन्नाटा है I केवल वह सभी लोग भीड़ लगाकर खड़े हैं वरना सब कुछ शांत रहता I
अचानक इमली के पेड़ का एक मोटा डाल टूटकर आश्चर्यजनक रूप से दयाराम के ऊपर आकर गिरा I दयाराम दर्द से चिल्ला उठा , आसपास खड़े लोग जल्दी से दौड़कर उधर गए I लेकिन सभी ने मिलकर जितनी देर में पेड़ की शाखा को हटाया तब तक दयाराम के आत्मा ने शरीर को छोड़ दिया था I
→ ( समाप्त )
तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी क्रमशः...
@rahul