Children of nature in Hindi Children Stories by Sandeep Shrivastava books and stories PDF | प्रकृति की संतान

Featured Books
Categories
Share

प्रकृति की संतान

कूकी कोयल सारे रघुवन में बड़ी चिंता में यहाँ वहां घूम रही थी | कभी इस पेड़ तो कभी उस पेड़ पे उड़ती बैठती थी | फिर एक घने पीपल पे जाके बैठ गई | उधर एक सूंदर और मजबूत घोंसला था | उस घोंसले में पहले से ही दो अंडे थे | कुकी घोंसले के पास गई और एक अंडा नीचे गिरा दिया | फिर उसने उसी घोंसले में अपना एक अंडा दिया | फिर उस अंडे को बड़े प्रेम से देखने के बाद वो उड़ गई |
यह सब घटनाक्रम बबली गिलहरी देख रही थी | किन्तु वो अचम्भे के कारण कुछ कह ना सकी |

वो घोंसला कुशी कौवी का था | वो घोंसले पे लौट कर आई और पहले की ही तरह अंडो पे प्रेम वर्षा करती रही | बबली से रहा ना गया| वो जाके कुशी से बोली "कुशी क्या तुम्हे पता है तुम्हारे पीछे यहाँ क्या घटना हुई |यह तुम्हारा घोंसला है| इसमें तुम्हारे बच्चे रहने चाहिए| इधर एक दुष्ट कोयल आई और........ "

कुशी बोली "मुझे पता है की इनमें से एक अंडा मेरा नहीं है | शायद कुकी कोयल का हो | "
बबली बोली "फिर तुम कुछ करती क्यों नहीं ... तुम इस घोंसले की मालिक हो , तुम्हे किसी और की संतान इसमें नहीं पालना चाहिए|"
कुशी बोली "देखो पहली बात तो हम प्रकृति की कोई भी चीज के मालिक नहीं है| हम सब प्रकृति की संतान हैं | हमें प्रकृति के संसाधनों को उपयोग उसी तरह करना चाहिए जिस तरह से माता अपनी संतानों को बस्तुएं देती हैं | कुकी, तुम, मैं और हम सभी प्रकृति की ही संतानें हैं | हमें एक दूसरे की क्षमताओं और अक्षमताओं को ध्यान में रखकर एक दूसरे की सहायता भी करना चाहिए | कोयल को शारीरिक और मानसिक रूप से ईश्वर ने इतना सक्षम नहीं बनाया की वो घोंसला बनाकर शिशुओं का लालन पोषण कर सके | वो तो शिशुओं की भोजन व्यवस्था भी ठीक से नहीं कर सकती है| इसलिए उसके कई अंडों और कई शिशुओं का जीवन समय के पहले ही समाप्त हो जाता है | इस वजह से कोयलों की संख्या हमेशा कम ही रह जाती है | कभी भी अन्य पक्षियों की तरह कोयलों का झुण्ड नहीं बन पाता | अब बेचारी कोयल अपनी संतान बचाने के लिए कोई योग्य माता ढूढ़ती है, और उसके घोंसले में अपने अंडे देती है | जैसे की कूकी ने मुझे चुना | अब उसके शिशु भी मेरे शिशुओं के साथ ही पलेंगे | मैं उनके आत्मनिर्भर होने तक उनकी देखभाल करुँगी और सक्षम होने के बाद वो अपनी माता के साथ चले जायेंगे | ईश्वर ने मुझे तो मधुर कंठ नहीं दिया पर जब कोई कोयल जब मधुर स्वर में गीत गाती है तो मुझे लगता है की मेरी ही कोई संतान गीत गा रही है | मैं इस पूरे क्रम को अपनी प्रकृति माता का आदेश समझ के करती हूँ | नहीं तो उनकी दूसरी संतान कोयल विलुप्त ही हो जाएगी | "
बबली अब तक सब कुछ बड़े ध्यान से सुन रही थी बोली "बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है... तुम्हे कभी कोई दुःख नहीं होता इसका।"
कुशी बोली " हाँ दुःख मुझे इस बात का होता है इतना कुछ करके भी हमें कोयल की मौसी का दर्जा भी नहीं मिलता ..... "
और फिर दोनों हंसने लगे ।

फिर कुछ दिनों के बाद दोनों अण्डों में से दो शिशु निकले, दोनो को कुशी ने समान स्नेह दिया। सब बहुत प्रसन्न हुए ।
और फिर सबने मिलकर पार्टी करी ।