Ek aur Afsos in Hindi Short Stories by Kamal Maheshwari books and stories PDF | एक और अफसोस

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एक और अफसोस

लघु कथा
कहानीकार - कमल माहेश्वरी
शीर्षक- एक और अफसोस
पिताजी सरकारी नौकरी में थे, उस दिन वह किसी प्रोजेक्ट पर बड़े ध्यान से कार्य कर रहे थे । मैं और मेरी छोटी बहन मस्ती में इतने डूब गए थे कि कुछ भी ध्यान नहीं रहा.....
यूू तो बचपन होता ही इतना प्यारा है ना खाने की चिंता ,
ना सोने की चिंता ,
ना कमाने की चिंता ,
न किसी और बात की चिंता जिस काम में लग गए केवल उसी में डूब गए । खेलना, मस्ती करना बेपरवाह होकर बाकी दुनिया में क्या चल रहा है हम को क्या लेना - देना।
बचपन होता ही है इतना प्यारा,
खेलते खेलते मेंं कब उनके से टेबल टकरा गया । टक्कर भी इतनी जबरदस्त थी कि एक जोर की आवाज आई । पर में किस्मत का इतना धनी की मुझे जरा सी भी चोट नहीं लगी।
कुछ देर का सन्नाटा आया।
फिर तड़ाक की आवाज ।.........
पिताजी को उस समय बहुत क्रोध आया और उन्होंने मुझे एक जोरदार तमाचा जड़ दिया । शायद जीवन में पहली बार पिताजी के हाथ की मार खाई थी।
पिताजी ने पहली बार मुझे चांटा मार तो दिया, लेकिन बाद मेंं उन्हें बहुत अफसोस हुआ।
उन्होंनेेेेे मेरे माथे पर हाथ फेरा जब में रोये जा रहा था। उनके माथे पर हाथ फेरना मानो ऐसा लगा कि दर्द से तड़पते हुए बाली को भगवान राम के केवल स्पर्श मात्र से सारी पीड़ा अचानक गायब हो गई थी ।
उसी प्रकार मैं उस समय सब कुछ भूल गया कि मुझेे तमाचा पड़ा था। मुझे तमाचा मार तो दिया पर अगले ही पल लाड़ले पुत्र को रोता देख अफसोस के कारण उनका गला भी भर आया।
भरे हुए गले से कहा बेटा चुप हो जा.... अब तुझे नहीं मारूंगा।

पता नहीं कैसे बरसों पुरानी घटना आज पुनर्जीवित हो गई।
कोरोना वायरस के कारण कहीं आ जा नहीं पा रहे थे ।
इस वायरस नेेेेेे सबको अपने अपने घर के अंदर कैद करके रख दिया था । कोरोना वायरस पहले वाले चरण से ये चरण बहुत घातक था.. बहुत सारे लोग मर रहे थे ।
जवान लोगों की मौत की खबर सुनने को मिल रही थी। यह सब सुनकर मन में घबराहट थी इसीलिए कहींं आना आना जाना बंद कर दिया था। केवल घर में कैद होकर रह रहे थे। घर पर रहना ,घर से कार्य करना, खाना, पीना,टीवी देखना यही दिनचर्या थी । उस दिन भी हम सभी तारक मेहता का का उल्टा चश्मा देख रहे थेेेेेे ।
फिर कुछ समय के लिए विज्ञापन आ गया।
बिटिया ने चैनल बदलना प्रारंभ कर दिया । और अपनी पसंद का चैनल खोजने लगी।
बच्चों मेंं आदत होती है ...किसी को कुछ पसंद तो किसी को कुछ पसंद।
बेटा बोला यह लगा दे ..वह लगा दे ....
इस प्रकार अपने पसंद के चैनल लगाने को लेकर दोनों के बीच झगड़ा प्रारंभ हो गया।
इससे पहले उसे कभी ना डाटा था और ना ही मारा था ..पता नहीं
अचानक मुझे ऐसा क्या गुस्सा आया कि बेटी को सिर में थप्पड़ मार दिया । बेटी रोने लगी । उसको रोता देख मैं ,
उसके पास गया और उसके माथे पर हाथ फेरा तो वह और जोर से रोने लगी। फिर मैंने उसकी आँखों से आंसू पोछ कर कहा बेटी अब में तुझे कभी नहीं मारूंगा । इस बार मुझे वैसा ही अफसोस हुआ जो कई साल पहले मेरे पिताजी को हुआ था ।
अफसोस फिर एक और अफसोस !
इति